भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने खोजा 60 करोड़ वर्ष पुराना समुद्री पानी, अब बदल जाएगी जीवन की परिकल्पना!

भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने हिमालय पर्वत पर समुद्री चट्टानों से 60 करोड़ वर्ष पुराना पानी खोज निकाला है। इससे जीवन की परिकल्पना को नए सिरे से पारिभाषित करने में मदद मिल सकती है। इतना ही नहीं, इसके जरिये पूर्व में विलुप्त हुए महासागरों की वजहों का भी पता लगाया जा सकता है।

भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने मिलकर हिमालय में इतने पुराने समुद्री पानी की खोज की है, जिससे जीवन की परिकल्पना नए सिरे से समझने में न सिर्फ मदद मिल सकती है, बल्कि जीवन की पूरी परिकल्पना ही बदल सकती है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और निगाता विश्वविद्यालय, जापान के वैज्ञानिकों ने हिमालय में करीब 60 करोड़ वर्ष पुराने समुद्री जल की खोज की है। समुद्री जल की ये बूंदें खनिज भंडारों के बीच थीं। बेंगलुरु स्थित आईआईएससी ने बृहस्पतिवार को एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। विज्ञप्ति के अनुसार वहां एकत्र निक्षेपण में कैल्शियम और मैग्नीशियम कार्बोनेट दोनों थे।

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भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने खोजा 60 करोड़ वर्ष पुराना समुद्री पानी, अब बदल जाएगी जीवन की परिकल्पना!

भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने हिमालय पर्वत पर समुद्री चट्टानों से 60 करोड़ वर्ष पुराना पानी खोज निकाला है। इससे जीवन की परिकल्पना को नए सिरे से पारिभाषित करने में मदद मिल सकती है। इतना ही नहीं, इसके जरिये पूर्व में विलुप्त हुए महासागरों की वजहों का भी पता लगाया जा सकता है।

भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने खोजा 60 करोड़ वर्ष पुराना समुद्री पानी, अब बदल जाएगी जीवन की परिकल्पना!Image Source : AP
Edited By: Dharmendra Kumar Mishra 28 Jul 2023, 14:36:05 IST

भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने मिलकर हिमालय में इतने पुराने समुद्री पानी की खोज की है, जिससे जीवन की परिकल्पना नए सिरे से समझने में न सिर्फ मदद मिल सकती है, बल्कि जीवन की पूरी परिकल्पना ही बदल सकती है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और निगाता विश्वविद्यालय, जापान के वैज्ञानिकों ने हिमालय में करीब 60 करोड़ वर्ष पुराने समुद्री जल की खोज की है। समुद्री जल की ये बूंदें खनिज भंडारों के बीच थीं। बेंगलुरु स्थित आईआईएससी ने बृहस्पतिवार को एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। विज्ञप्ति के अनुसार वहां एकत्र निक्षेपण में कैल्शियम और मैग्नीशियम कार्बोनेट दोनों थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि निक्षेपण के विश्लेषण से टीम को उन संभावित घटनाओं की जानकारी मिली, जिनके कारण पृथ्वी के इतिहास में एक बड़ी ऑक्सीजनिकरण की घटना हुई होगी। बयान के अनुसार, वैज्ञानिकों का मानना है कि 70 से 50 करोड़ वर्ष पहले, पृथ्वी बर्फ की मोटी चादरों से ढकी थी। इसमें कहा गया है कि इसके बाद पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई जिससे जटिल जीवन रूपों का विकास हुआ। आईआईएससी ने कहा कि वैज्ञानिक अब तक, यह ठीक से नहीं समझ पाए हैं कि अच्छी तरह से संरक्षित जीवाश्मों की कमी और पृथ्वी के इतिहास में मौजूद सभी पुराने महासागरों के लुप्त होने की वजह का आपस में क्या संबंध था।

पुराने महासागरों के लुप्त होने की वजह का भी चल सकता है पता

हिमालय में ऐसी समुद्री चट्टानों का पता चलने से कुछ उत्तर मिल सकते हैं। सेंटर फॉर अर्थ साइंसेज (सीईएएस), आईआईएससी के शोधार्थी और 'प्रीकैम्ब्रियन रिसर्च' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के पहले लेखक प्रकाश चंद्र आर्य ने कहा, ‘‘ हम पुराने महासागरों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। वे वर्तमान महासागरों की तुलना में कितने अलग या समान थे? क्या वे अधिक अम्लीय या क्षारीय, पोषक तत्वों से भरपूर, गर्म या ठंडे थे, उनकी रासायनिक और समस्थानिक संरचना क्या थी?" उन्होंने कहा कि इस तरह के विश्लेषण से पृथ्वी पर प्राचीन जलवायु के बारे में जानकारी मिल सकती है। पुराने महासागरों के विलुप्त होने की वजहों का भी पता लगाया जा सकता है। (भाषा) sabhar India TV.in


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