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शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

गंजे सिर पर आएंगे बाल, अमेरिकी रिसर्चर्स ने खोजी गंजेपन की नई दवा

प्रतीकात्मक फोटो है।प्रतीकात्मक फोटो है।

न्यूयॉर्क। अगर आपके सिर के बाल पूरी तरह से झड़ गए हैं तो आपके लिए एक अच्छी खबर है। अमेरिका के कुछ रिसर्चर्स ने ऐसी दवा खोजने का दावा किया है जो गंजे लोगों के सिर पर बाल उगाने में मददगार हो सकेगी। अभी इस दवा का यूज कैंसर के इलाज के लिए किया जा रहा है। 
यह दावा अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर में किए गए एक एक्सपेरिमेंट के बाद किया गया है। रिसर्चर्स एन्जेला क्रिस्टियानो और सहयोगियों द्वारा किए गए इस एक्सपेरिमेंट में कैंसर के इलाज के काम आ रही रुक्सोलिटाइनिब और टोफासिटाइनिब नामक दवाएं गंजेपन के इलाज में भी यूजफुल पाई गई है। रिसचर्च ने चूहों पर यह सफल एक्सपेरिमेंट किया है। जिन चूहों पर यह एक्सपेरिमेंट किया गया, उनके शरीर के सारे बाल गिर चुके थे। रिसर्चर्स का कहना है कि बाल झड़ने की समस्या वाले इन चूहों की स्किन पर इन दवाओं का पांच दिनों तक लेप किया गया और दस दिनों के भीतर ही बालों की जड़ें फूटनें लगीं। लगभग तीन हफ्ते में ही काफी घने बाल आ गए।

रिसर्चर्स ने एलोपेशिया एरिटा नामक बीमारी के इलाज के लिए चूहों पर यह एक्सपेरिमेंट किया था। मेल पैटर्न बाल्डनैस के लिए ज़िम्मेदार एलोपेशिया एरिटा नामक बीमारी बालों की जड़ों के इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी के कारण पैदा होती है। 
क्या है एलोपेशिया एरिटा (Alopecia Areata) : एलोपेशिया गंजेपन की बीमारी है। एलोपेशिया की बीमारी कई तरह की होती है जिनमें से एक टाइप को ‘एलोपेशिया एरिटा’ कहते। एलोपेशिया एरिटा में बाल झड़ने लगते हैं। इससे बाल जड़ों से ही पैचेस के रूप में झड़ने लगते हैं। सिर के अलावा दाढ़ी मूछों के बालों पर भी ये बीमारी अटैक करती है। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों में से किसी को भी हो सकती है। अधिकांश मामलों में एलोपेशिया एरिटा की बीमारी परिवार में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को आती है और कम उम्र के पुरुष भी इसका शिकार हो जाते हैं। 
भारतीय आयुर्वेद में भी हैं एलोपेशिया एरिटा का इलाज :
एलोपेशिया एरिटा की बीमारी को संस्कृत में इंद्रलुप्त भी कहा जाता है। भारतीय आयुर्वेद में इस बीमारी के इलाज के कई नुस्खे मिलते हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ.बी.एस. राठोर बता रहे हैं एलोपेशिया एरिटा के इलाज के तीन आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में
 :2. त्रिफला चूर्ण और भृंगराज की पत्तियों का तेल : एलोपेशिया एरिटा के इलाज के लिए घर पर ही हेयर ऑइल बनाया जा सकता है। इसके लिए चाहिए त्रिफला चूर्ण 300 ग्राम, भृंगराज की पत्तियों का जूस 300 मिलीग्राम और काला तिल का ऑइल 300 मिलीग्राम ( ये सारी चीज़ें पंसारी या जड़ी बूटी बेचने वालों की दुकान पर मिलेंगी)। इन सारी चीज़ों को आपस में मिला लें और धीमी आंच पर तब तक उबालें, जब तक कि पूरा पानी भाप बनकर उड़ न जाए और सिर्फ गाढ़े हरे रंग का तेल बाकी रहे। इस मिक्सचर को छान लें और एक बोतल में भर कर अंधेरे स्थान पर रखें। रोज रात को इस तेल की मालिश अफैक्टेड एरिया में करें और सुबह शिकाकाई व रीठा पाउडर से धो लें। इससे बालों की ग्रोथ होने की संभावना बढ़ जाती है। ध्यान रहे कि बालों पर केमिकल बेस शैम्पू का इस्तेमाल न करें।
1.कच्ची प्याज का रस : प्याज सल्फर का एक रिच सोर्स है और सल्फर ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने में काफी मददगार है। ऐसे में एलोपेशिया एरिटा से निजात पाने के लिए प्याज का रस काफी असरदार साबित हुआ है। कई एक्सपेरिमेंट्स में प्याज के रस का यूज़ करने के अच्छे रिज़ल्ट मिले हैं। प्याज का रस न केवल बाल झड़ने से रोकता है बल्कि एलोपेशिया एरिटा की वजह से हुआ गंजापन दूर करने में भी इफैक्टिव है। प्याज का रस और पेस्ट अफैक्टेड एरिया पर सीधे लगाना काफी फायदेमंद है। इसके लिए बस कच्ची प्याज़ लीजिए और उसका रस निकाल लीजिए। इस रस और पेस्ट को सीधे स्कैल्प में लगाएं और चालीस मिनट तक लगा रहने दें। इसके बाद किसी माइल्ड शैम्पू से धो लें। और बेहतर रिजल्ट के लिए प्याज के रस में दो चम्मच शहद और एक चम्मच नारियल का तेल भी मिलाया जा सकता है।
प्रतीकात्मक फोटो है।


3. टमाटर की पत्तियों का जूस : एलोपेशिया एरिटा के इलाज के लिए टमाटर की पत्तियों का जूस भी काफी इफैक्टिव माना गया है। टमाटर की पत्तियों का जूस अफेक्टेड एरिया पर मालिश करने के अलावा इन पत्तियों का तीन चम्मच जूस रोज पीने से भी बाल आने शुरू हो जाते हैं।

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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

पौरुष बचाना चाहते हैं तो तुरंत छोड़ दीजिए ये 10 गंदी आदतें

क्या आप जानते हैं अपनी उन आदतों के बारे में जो आपके पौरुष को घटा रही हैं? जाने आनजाने आप ऐसे कई काम करते होंगे जो आपके स्पर्म काउंट के लिए घातक हैं। हो सकता है इसमें से कुछ आप अभी भी कर रहे हों। देखिए क्या हैं वह आदतें और संभल जाइए।गर्म पानी से नहाने में शरीर को तो आराम मिलता है लेकिन यह मर्दानगी के लिए घातक है क्योंकि टेस्टिकल्स का तापमान बढ़ जाता है इसलिए यह स्पर्म काउंट भी घटाता है और उनकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।बहुत कसे अंतरवस्त्र पहनने से टेस्टिकल्स में गर्मी बढ़ती है और स्पर्म काउंट घटता है। ब्रीफ के बजाए बॉक्सर पहने तो अच्छा है।सोया से बनीं कोई भी चीज आपके लिए सही नहीं है। इसमें ईसोफ्लेवोन्स होते हैं जो स्पर्म की गुणवत्ता भी खराब करते हैं।स्पर्म काउंट सही रखने के लिए यह भी जरूरी है कि नियमित रूप से सेक्स करते रहें। बहुत समय तक ऐसा न करने से स्पर्म अपना आकार बदल लेते हैं और पुराने होने लगते हैं। मोबाइल और लैपटॉप से निकलने वाले रेडिएशन का भी स्पर्म काउंट पर बुरा असर पड़ता है। खास तौर से लैपटॉप को गोद में रख कर काम करने पर। शराब पीने से भी टेस्टॉसटेरॉन की मात्रा कम होती है। इसलिए इससे दूर रहिए तो बेहतर है। ज्यादातर पुरषों के घटते पौरुष का यही कारण होता है।और ऐसा ही कुछ सिगरेट के लिए है। किसी भी तरह का तंबाकू नपुंसकता की तरफ ले जाता है इसलिए यह न सिर्फ स्पर्म काउंट ही नहीं कम करता बल्कि हमेशा के लिए नपुंसक बना dete haiपड़े पड़े टीवी देखते रहते हैं तो इस आदत को छोड़ दीजिए। यह मोटापा बढ़ाता है और मोटापे से स्पर्म काउंट घटता है। शोध कहता है कि जो पुरुष टीवी देखने के बजाए नियमित कसरत करते हैं उनका पौरुष बढ़ता है।सनस्क्रीन लगाने से सूरज और धूप से तो शरीर को बचा लेंगे लेकिन अपनी मर्दानगी को नुकसान पहुंचाएंगे। शोध कहता है कि सनस्क्रीन में सूरज की खतरनाक किरणों से बबचाने वाला जो केमिकल होता है वह आपके हार्मोन के लिए बुरे हैं। पुरुषों में 30 प्रतिशत तक पौरुष घटा देते हैं।तनाव तो वैसे भी सेहत के लिए बुरा है। मानसिक स्थिति के साथ साथ पौरुष नकारात्मक असर डालता है। sabhar : amar ujala .com

व‌िज्ञान आत्मा और भूत-प्रेतों की दुन‌िया

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

लिंग परिवर्तन अजय’ बन गया ‘आकृति’

साथियों के साथ अजय (अब आकृति) की फाइल फोटोअब ‘अजय’ बन गया ‘आकृति’, 6 सालों से लगा रहा था अस्पताल के चक्कर

वडोदरा। शहर के रावपुरा इलाके में रहने वाले अजय की इच्छा आखिरकार पूरी हो ही गई। वह पिछले 6 सालों से लिंग परिवर्तन करवाकर ‘युवती’ बनना चाहता था और वडोदरा के सयाजी हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहा था। जबकि सेवासदन और खुद केंद्र सरकार ने तीन साल पहले ही अजय को ‘आकृति पटेल’ नामक ‘युवती’ का दर्जा दे दिया था। इसके बाद भी उसका लिंग परिवर्तन नहीं हो सका था। वह लगातार हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा।
अजय ने कोशिश जारी रखते हुए अपनी आवाज मीडिया के जरिए दुनिया तक पहुंचाई और उसकी मेहनत रंग ले आई। शुक्रवार को उसकी सफल सर्जरी हो गई और इस तरह वह पूर्ण रूप से स्त्री बन गया। इस सर्जरी को डॉ. गौतम अमीन (मनोचिकित्सक), डॉ. उमेश शाह (कॉस्मेटिक-प्लास्टिक सर्जन), डॉ. संजीव शाह (सर्जन) और डॉ. कमलेश परीख (किडनी स्पेशलिस्ट) की टीम ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
आकृति के बताए अनुसार गत 12 फरवरी 2009 में उसने लिंग परिवर्तन के लिए सयाजी हॉस्पिटल में संपर्क किया था। शुरुआत में अस्पताल के डॉक्टर्स ने यह कहकर उसे चलता कर दिया था कि अस्पताल में इस तरह का ऑपरेशन नहीं होता।
इसके बाद 2005 में एक युवक ने सयाजी हॉस्पिटल में ही लिंग परिवर्तन करवाया था। इसी का दावा करते हुए अजय ने फिर अस्पताल से लिंग परिवर्तन का ऑपरेशन करने की मांग की। इसके बाद उसका हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक से काउंसलिंग और एंटी डिप्रेशन का उपचार शुरू हुआ।एथिक्स कमिटि ने लिंग परिवर्तन की स्वीकृति के लिए गांधीनगर स्थित हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर डिपार्टमेंट के कमिश्नर को रिपोर्ट्र्स भेजीं। लेकिन यहां से कोई जवाब नहीं आया। तबसे लेकर अजय अब तक लगातार हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहा था। लेकिन उसे पता नहीं चल पा रहा है कि उसका ऑपरेशन कब होगा। आखिरकार अजय की कोशिश रंग लाई। अजय के ऑपरेशन के लिए सयाजी हॉस्पिटल में सात सदस्यों के एक बोर्ड का गठन किया गया है। इसी बोर्ड ने सेक्स चेंज के लिए ऑपरेशन की तिथि निश्चित की।
इलाके के लोग आकृति कहकर ही बुलाते थे:
सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स की टीम के साथ आकृति
वडोदरा के रावपुरा इलाके में रहने वाले अजय एच. पटेल को पिछले कई वर्षो से लोग अंजलि उर्फ आकृति के नाम से ही पहचानते हैं। लंबे बाल, हाथों में चूड़ियां, लिपिस्टिक और लड़कियों के कपड़े अब अजय का परिधान थे। शारीरिक व मानसिक रूप से युवति के सभी गुण-लक्षण उसमें थे, यह बात खुद सयाजी हॉस्प्टिल के डॉक्टर्स ने उसकी जांच के बाद कही थी।
sabhar :  bhaskar.com

जहां लोग दिन में न चाहते हुए भी सो जाते हैं

दिन में अपने आप ही सो जाते हैं यहां के लोग, सामने आई रहस्यमय सच्चाई

कजाकिस्तान में एक गांव ऐसा है, जहां लोग दिन में न चाहते हुए भी सो जाते हैं। इस बीमारी के कारण आधा गांव खाली हो गया है। अब तक इसका कोई ठोस कारण समझ नहीं आया है।
दुनियाभर में कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें रात में भी नींद नहीं आती। इससे वे काफी परेशान भी रहते हैं। लेकिन कजाकिस्तान में एक गांव ऐसा है, जिसके रहवासी दिन में ही अपने आप सोने लगते हैं। इनके जागने का हिसाब-किताब भी अजीब है। कभी दो घंटे में ही जाग जाते हैं तो कभी दो दिन भी लग जाते हैं। कजाकिस्तान के इस गांव का नाम कलाची है। यहां के लोग जब दिन में सोने के बाद जागते हैं तो इन्हें कुछ भी याद नहीं रहता। कहा जाता है कि कई लोग जागने के बाद या तो भविष्य की बातें करने लगते हैं या फिर अपने अतीत की। उन्हें कभी परियां दिखाई देती हैं तो कभी दीवारों पर चलते हुए मेंढक। दिन होते ही किसी भी समय लोग सो जाते हैं। इन्हें जगाने की चाहे कितनी भी कोशिश करो, सब व्यर्थ है। यहां तक कि स्कूल जाने वाले अधिकतर बच्चे भी दिन के समय सो जाते हैं। यह सिलसिला मार्च, 2013 से चल रहा है। शुरुआत में गांव की आबादी 810 थी और करीब 140 लोग इससे पीड़ित थे। लेकिन इस अजीबोगरीब बीमारी के बाद से लोग धीरे-धीरे अब गांव छोड़ रहे हैं।
तो सच क्या है?
इस गांव के लोगों को यह समस्या क्यों है, इसका पता विभिन्न स्तरों पर लगाया जा रहा है। कई बार इलाके में रेडिएशन की मात्रा को जांचा गया, लेकिन वहां इसकी कोई समस्या नहीं निकली। डॉक्टर्स भी इसकी कोई वजह नहीं बता पाए। दरअसल, यहां सोवियत संघ के समय की कुछ ऐसी यूरेनियम माइंस है, जिनमें कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा बहुत ही ज्यादा है। वहां से गैस के लगातार रिसाव होने के कारण यह पूरे इलाके में फैल गई। 2015 में इसकी जांच यहां के घरों में की गई, जिसमें पाया गया कि वो लोगों के घरों में संभावित मात्रा से 10 गुना अधिक है। इसे ही दिन में सोने का कारण माना जा रहा है। वैज्ञानिकों ने भी अब इस बात की पुष्टि कर दी है। यह बात 20 हजार से भी अधिक परीक्षणों के बाद सामने आई है। यह परीक्षण गांव की जमीन, मिट्‌टी, हवा, जानवर, इमारतों आदि पर किए गए हैं।
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जमीन के नीचे मिली थी ये 'देवताओं की बस्ती', 1400 साल पुराने मंदिर भी मिले

ग्वालियर में मिली देवताओं की बस्तीइस बस्ती में बने मंदिर

ग्वालियर. ग्वालियर से 30 किलोमीटर दूर पढ़ावली स्थित पहाड़ी पर ये है देवताओं की बस्ती। करीब 1400 साल से अधिक पुराने इन सैकड़ों मंदिरों में देवी-देवताओं के अलावा ऋषि मुनि के स्थान हैं। एक हजार साल पहले ये मंदिर भूकंप की भैंट चढ़ गायब था। 2005 में खुदाई के दौरान इसका पता चला। अब तक यहां 95 मंदिर खोजे जा चुके हैं और 110 होना बाकी हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में हजारों मंदिर और दबे हुए हैं।
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