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रविवार, 28 नवंबर 2021

ब्रिटेन के किसान अब गाय के गोबर से बिजली पैदा कर के अच्छी कमाई कर रहे हैं

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 [28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: ब्रिटेन के किसान अब गाय के गोबर से बिजली पैदा कर के अच्छी कमाई कर रहे हैं। ये किसान गाय के गोबर का इस्तेमाल कर के AA साइज की ‘पैटरी (बैटरी)’ तैयार कर रहे हैं। इन ‘Patteries’ को रिचार्ज भी किया जा सकता है। अब माना जा रहा है कि ये रिचार्जेबल ‘पैटरीज’ ब्रिटेन की रिन्यूवेबल एनर्जी की दिशा में एक बड़ा योगदान दे सकते हैं। अनुसंधान में सामने आया है कि 1 किलो गाय के गोबर से 3.75 kWh (किलोवॉट ऑवर) बिजली पैदा की जा सकती है।

[28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: इसे कुछ यूँ समझिए कि एक किलो गाय के गोबर से पैदा हुई बिजली से एक वैक्यूम क्लीनर को 5 घंटे तक संचालित किया जा सकता है, या फिर 3.5 घंटे तक आप आयरन का इस्तेमाल करते हुए कपड़ों पर इस्त्री कर सकते हैं। इन बैटरियों को ‘Arla’ नाम की डेयरी कोऑपरेटिव संस्था ने बनाया है। इस कार्य में ‘GP बैटरीज’ नाम की बैटरी कंपनी ने किसानों की मदद की है। दोनों कंपनियों ने बताया है कि एक गाय से मिलने वाले गोबर से 1 साल तक 3 घरों को बिजली दी जा सकती है।

[28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: इस हिसाब से देखा जाए तो अगर 4.6 लाख गायों के गोबर को एकत्रित किया जाए और ऊर्जा के उत्पादन में उनका उपयोग किया जाए तो इससे यूनाइटेड किंगडम के (UK) के 12 लाख घरों में साल भर बिजली की कमी नहीं होगी। विशेषज्ञ इसे ‘विश्वसनीय और सुसंगत’ स्रोत बता रहे हैं, जिससे बिजली पैदा हो सकती है। अकेले ‘Arla’ कंपनी की गायों से हर साल 10 लाख टन गोबर मिलता है। ‘Anaerobic Digestion (अवायवीय पाचन)’ की प्रक्रिया द्वारा गोबर से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है।

[28/11, 13:36] Akhilesh Bahadur Pal: इस प्रक्रिया के तहत गोबर को बायोगैस और बायो-फर्टिलाइजर में तोड़ दिया जाता है। ब्रिटिश किसानों का कहना है कि ये एक इनोवेटिव प्रयास है, जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध गोबर का सदुपयोग कर के ब्रिटेन की एक बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है। उनका कहना है कि अपने खेतों और पूरे एस्टेट में वो इसी ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसकी क्षमता इससे कहीं ज्यादा है। यहाँ तक कि गोबर से ऊर्जा बनाने के बाद जो वेस्ट बचता है, उसका उपयोग खेतों में खाद के रूप में किया जाता है। sabhar up india

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

छाया पुरुष सिद्ध योगी एक ही समय में कई स्थानों में एक साथ छाया शरीर के माध्यम से प्रकट हो सकता है और अलग अलग कार्य-सम्पादन भी कर सकता है

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----------:छाया पुरुष सिद्ध योगी एक ही समय में कई स्थानों में एक साथ छाया शरीर के माध्यम से प्रकट हो सकता है और अलग अलग कार्य-सम्पादन भी कर सकता है:-------------
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                      भाग--तीन
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन

पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

       
        साधारणतया शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का छाया शरीर बहुत कम ही बाहर निकलता है। यदि कभी किसी कारणवश निकलना पड़ा तो बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है छाया शरीर को। धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक व्यक्ति के अलावा उच्च विचार रखने वाले तथा प्रबल इच्छा-शक्ति सम्पन्न व्यक्ति का छाया शरीर शीघ्र अलग नहीं होता और यही कारण है कि इस प्रकार के लोग कभी बीमार नहीं पड़ते।
       यह समझ लेना चाहिए कि स्थूल शरीर और छाया शरीर एक दूसरे के पूरक शरीर हैं। दोनों की भौतिक एकता इतनी घनिष्ठ है कि छाया शरीर में लगी चोट स्थूल शरीर की क्षति के रूप में देखी जा सकती है। इस क्रिया को प्रतिप्रभाव कहते हैं। कमज़ोर, शिथिल, रोगग्रस्त व्यक्ति का छाया शरीर स्थूल शरीर से थोड़ी दूरी  बनाकर रहता है, लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति स्वस्थ होता जाता है, वैसे-ही-वैसे उसका छाया शरीर भी उसके स्थूल शरीर में समाने लग जाता है और जब वह पूरी तरह समा जाता है, तभी रोगी पूर्ण स्वस्थ होता है। कहने का आशय यह है कि मनुष्य की स्वस्थता-अस्वस्थता उसके छाया शरीर पर निर्भर करती है।
       छाया शरीर बिना स्थूल शरीर अधूरा है। छाया शरीर उस समय अलग होता है जब हम मिलन करते हैं, नशा करते हैं, क्रोध या चिन्ता करते हैं, चोरी करते हैं, झूठ बोलते हैं, लड़ाई-झगड़ा करते हैं, आवेश करते हैं, भय की स्थिति में होते हैं या किसी बड़े और प्रभावशाली व्यक्ति के सामने जाते हैं। ऐसी स्थिति में छाया शरीर स्थूल शरीर से थोड़ा अलग हो जाता है। समझ लेना चाहिए कि दोनों शरीरों की सामंजस्यता में कमी होने पर मनुष्य को कमजोरी, मानसिक दुर्बलता का अनुभव तुरंत होने लगता है। दोनों में थोड़ा-सा भी अन्तर होने पर कोई-न कोई-रोग उत्पन्न होता है। सभी प्रकार के रोगों का एकमात्र कारण स्थूल शरीर और छाया शरीर में वैषम्य उत्पन्न हो जाना ही होता है। उचित सामंजस्य होने के लिए उचित आहार, निद्रा, मानसिक सन्तुलन बनाये रखना आवश्यक है। वाणी का कम-से-कम उपयोग ,अधिक-से-अधिक एकान्त का सेवन और अल्प भोजन आवश्यक है।sabhar Shiva ram Tiwari Facebook wall

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तीसरी श्रेणी अपदेवता

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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन


    (कई दिन पूर्व की पोस्ट में यह बताया जा चुका है कि देवताओं की तीन श्रेणियाँ होती हैं--सात्विक, राजस और तामस। इसी कड़ी में अब आगे--)


      तीसरी श्रेणी में आते हैं--अपदेवता। हाकिनी, डाकिनी, शाकिनी, पिशाच, बेताल आदि गुह्य योनि के अपदेवता हैं। गुह्य्योनि मानव योनि के बाद एक विशिष्ट योनि है। इस योनि की आत्माएं कभी भी मानव योनि में जन्म नहीं लेतीं। वे अपनी योनि में ही जन्म लेती हैं। पिशाच से पिशाच ही जन्म लेगा, दूसरा और कोई नहीं। हाकिनियों, डाकिनियों और शाकिनियों की सोलह-सोलह जातियां हैं। ग्यारह जातियां पिशाचों की हैं और बेतालों की हैं सोलह जातियां। सभी की जातियों के नाम अलग-अलग हैं और प्रत्येक जाति की साधना-उपासना आदि भी भिन्न भिन्न है।

       अपदेवताओं के शरीर का निर्माण अग्नि तत्व से हुआ रहता है। उनके स्वभाव में रजोगुण और तमोगुण --दोनों का मिश्रण रहता है। वे क्रोधी होते हैं और दयालु भी। कल्याण करते हैं और अकल्याण भी। इनमें मनोबल और प्राणबल --दोनों की अधिकता रहती है। कहाँ क्या हो रहा है?--वे अपने मनोबल से तत्काल जान जाते हैं। यही नहीं, कहाँ कौन सी घटना घटने वाली है ?-- यही भी अपने मनोबल से जान जाते हैं वे। उनका स्वभाव अति उग्र होता है। तमोगुणी तांत्रिक विधि से की गयी 'आत्माकर्षिणी विद्या' की साधना से आकर्षित होकर वे भी साधक के मनोमय या प्राणमय शरीर द्वारा उससे संपर्क करते हैं और साधक का मनोरथ पूर्ण करते हैं। कभी-कभी अपने निज रूप में, तो कभी-कभी साधक के इच्छित रूप में प्रत्यक्ष प्रकट भी होते हैं। sabhar Facebook wall dharana dhyan samadi

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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

आइये पत्तल की परंपरा को पुनर्जिवित करें

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🍀पत्तलों से लाभ :
सबसे पहले गरीब मजदूर आदिवासी लोगों को रोजगार मिलेगा ...

1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है।
2. न पानी नष्ट होगा।
3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा।
4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे l
5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी।
6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी।
7. प्रदूषण भी घटेगा।
8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
9. पत्तल बनाने वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा।
10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो #केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर #नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा। जो #जल #प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है। sabhar Sonia singh Facebook wall

🍀आजकल हर जगह #भंडारे, #विवाह शादियों, #birthday पार्टियों में #डिस्पोजेबल की जगह इन पत्तलों का प्रचलन करना चाहिए।

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रविवार, 12 सितंबर 2021

motorcycle exident lawyers in us

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As much fun and satisfaction as individuals get from riding bikes, there is consistently the potential for a mishap. At the point when a cruiser rider has a mishap, the rider and traveler's wounds can be disastrous. A mishap between two vehicles may be marked as a "minor collision" without any wounds to the tenants, yet seldom does the rider of a bike escape without a clinic trip for treatment of broke bones cuts, or much more extreme wounds. 

In case you are harmed in a bike mishap, the pay you at last get from a careless driver relies upon the experience and abilities of the cruiser attorney you recruit to address you. This article gives you the data you need to settle on an educated choice and assist you with discovering a lawyer fit for getting you the greatest remuneration for your wounds. 

What to Think about When Recruiting a Cruiser Mishap Attorney 

The method involved with turning into a lawyer is a challenging one. After graduation from graduate school, a candidate wishing to provide legal counsel should beat the bar assessment to show a candidate's lawful information. There is additionally an individual verification and an examination to decide whether the candidate is of acceptable moral person. People who complete the cycle are conceded to the bar, which implies they are legitimately qualified for provide legal counsel inside the state. 

Anybody conceded to provide legal counsel is approved to show up in court to guard somebody accused of perpetrating a wrongdoing or address a cruiser mishap casualty. What separates some lawyers from others is their experience taking care of cases in a particular space of the law. For instance, anybody can take on an individual physical issue case, however in case you are genuinely harmed in a mishap, you need the lawyer taking care of your case to have understanding into the carelessness laws and the court and preliminary abilities that must be created through long stretches of involvement addressing mishap casualties. 

There are three key elements you should consider under the steady gaze of recruiting a legal counselor to deal with your case for harms from a bike mishap: 

Area: You may have seen or heard ads publicizing the administrations of cruiser mishap legal counselors. A portion of the advertisements are for legal advisors from different states (or portions of the express that are hours from your hearing area). Out-of-state law offices as a rule allude your case to one more firm situated inside your state, leaving you with little say over the decision of lawyer. Picking a lawyer situated inside the city or district where your case will go to court implies you are addressed by somebody who knows the neighborhood court methodology and knows about the appointed authorities. 

General Specialists: Numerous legal advisors and law offices work as broad practices. They may deal with land, criminal safeguard, wills and homes, and individual injury. A legal counselor who handles an infrequent bike case won't have a similar degree of experience with the law or have similar preliminary abilities as a lawyer who only focuses on close to home injury law. The most straightforward approach to look into a legal advisor's training is to pose inquiries, including requesting which rate from the lawyer's training is bike law. 

Great Standing and Experience: Discovering a cruiser mishap attorney requires some work to guarantee you are getting somebody who can accomplish the best outcomes. As well as asking the attorney inquiries, you likewise need to do your exploration by really looking at online surveys and tributes from however many sources as could reasonably be expected. 

You need to think about a couple lawyers prior to closing which of them has the three models you need in the lawyer who handles your cruiser guarantee. 

Step by step instructions to Discover a Cruiser Mishap Legal advisor 

The pool of lawyers from which to pick a couple to meeting to choose the bike mishap attorney to deal with your case is gigantic. There are around 1.3 million legal advisors in the U.S., with very nearly 170,000 of them rehearsing in California. Obviously, just a little level of them handle bike law, yet who do you call? There are a couple of approaches to limit your pursuit, including: 

Companions and Family members: Odds are somebody you know, either a your relative or a dear companion, has utilized the administrations of a bike mishap legal counselor. 

Legal counselor Reference: The legal advisor who addressed you in the acquisition of your home or the one addressing your business probably won't deal with bike mishap claims, however they ought to have the option to suggest a lawyer who does. 

Bar Affiliations: Most state and nearby bar affiliations have legal counselor reference administrations you can contact for the name of neighborhood bike mishap legal advisors. For instance, The State Bar of California gives a statewide rundown of nearby lawyer reference administrations coordinated by area. 

Google Search: Everybody appears to depend upon Google while looking for something, so composing "bike mishap legal counselor" and your area into the inquiry box will bring results. One limit of a Google search is you should figure out the outcomes by seeing sites to figure out which of the many firms and lawyers you need to call. 

Legal counselor Indexes: One more source from which you can get the names of attorneys and law offices is at least one of the online legal advisor catalogs. A legal advisor registry permits you to track down a neighborhood legal counselor dependent on their space of training. A portion of the registries, like Martindale-Hubbell and Avvo, offer customer and friend audits and appraisals of the lawyers. Famous catalogs include: 

Cruiser Lawful Establishment 

Avvo 

Martindale-Hubbell 

Justia 

FindLaw 

NOLO 

One source you should be careful about is sales letters from law offices offering their administrations. State bar affiliations set up rules for attorney publicizing, which incorporates sales letters. For example, California necessitates that legal advisors clarify that such letters are a type of publicizing. Remember that the substance of the letter are intended to captivate you to hold the company's administrations.
sabhar https://www.motorcyclelegalfoundation.com/how-to-find-a-motorcycle-personal-injury-lawyer/

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रविवार, 29 अगस्त 2021

बंगाल का पाल वंश

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ह पूर्व-मध्यकालीन राजवंश था। जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पनन्न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी। इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया। जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया जो कि एक गडरिया था। वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने ७५० ई. से ७७० ई. तक शासन किया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया।

गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल ७७० ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने ४० वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्‍नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्‍नौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथ स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने काफी मठ व बौद्ध विहार बनवाये। धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध समर्थक था उसके लेखों में उसे परम सौगात कहा गया है। उसने विक्रमशिला व सोमपुरी प्रसिद्ध बिहारों की स्थापना की। भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे। उल्लेखनीय है कि प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने धर्मपाल को पराजित किया थ (2000-2050 ई.)

धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देवपाल गद्दी पर बैठा। इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। इसी के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था। उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूर्वोत्तर में प्राज्योतिषपुर, उत्तर में नेपाल, पूर्वी तट पर उड़ीसा तक विस्तार किया। कन्‍नौज के संघर्ष में देवपाल ने भाग लिया था। उसके शासनकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उसने जावा के शासक शैलेंद्र के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए ५ गाँव अनुदान में दिए।

देवपाल ने ८५० ई. तक शासन किया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवनति प्रारम्भ हो गयी। मिहिरभोज और महेन्द्रपाल के शासनकाल में प्रतिहारों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया।

Sabhar vikipidia 

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बुधवार, 11 अगस्त 2021

घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई दवा

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पुणे: भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus in India) का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है और अब तक देशभर में 3.2 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं. इस बीच अच्छी खबर आई है और महाराष्ट्र के कोल्हापुर की कंपनी आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कोविड-19 की नई दवा (Covid-19 Medicine) का परीक्षण कर रही है, जिससे कोरोना संक्रमित मरीज सिर्फ 90 घंटे में ठीक हो जाएंगे. घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई दवा आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) की कोरोना की दवा घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई है, जो कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षणों वाले मरीजों के इलाज अहम भूमिका निभाएगी. अगर यह दवा सभी परीक्षणों में सफल होती है तो यह इस तरह की भारत की पहली स्वदेशी दवा होगी, जिसका इस्तेमाल संक्रमण के इलाज के लिए किया जाएगा. ये भी पढ़ें- कोरोना से जंग: कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मिक्सिंग पर स्टडी को मिली मंजूरी 72 से 90 घंटे में ठीक हो जाएंगे मरीज इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कंपनी के अधिकारियों का दावा है कि दवा का पहले फेज का ट्रायल चल रहा है और अभी तक जो नतीजे सामने आए हैं, वो काफी अच्छे रहे हैं. शुरुआती परीक्षण में इस दवा के इस्तेमाल से कोरोना संक्रमित रोगियों की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट 72 से 90 घंटों के अंदर ही निगेटिव हो जा रही है. सीरम इंस्टीट्यूट ने की दवा बनाने में मदद रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस की दवा बनाने वाली आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कंपनी सिर्फ चार साल पुरानी है और कोरोना रोधी दवा बनाने में पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) ने भी मदद की है. दावा है कि कंपनी ने एंटीबॉडीज (Antibodies) का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया है, जो कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण को फैलने से रोक सकता है और शरीर में मौजूदा वायरस को भी खत्म कर सकता है. sabhar zeenewsindia.com

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सोमवार, 9 अगस्त 2021

प्रोस्टेट कैंसर का 100 फीसदी इलाज संभव

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जयपुर.
प्रोस्टेट कैंसर में रेडिएशन इंप्लांट करके इसे 100 फीसदी ठीक किया जा सकता है। यह इंप्लांट स्थायी और अस्थायी दोनों तरह से होता है। इसमें रेडियोएक्टिव आयोडीन सोर्स स्थायी इंप्लांट किया जाता है, जबकि इरिडियम सोर्स कंप्यूटराइज सिस्टम से तय समय के लिए इंप्लांट किया जाता है। बिड़ला ऑडिटोरियम में चल रही एरोइकॉन-2011 में शनिवार को अमेरिका से आए डॉ. डी.नूरी ने इंप्लांटेशन पर प्रजेंटेशन दिया। एसएमएस हॉस्पिटल में रेडियो थैरेपी डिपार्टमेंट के यूनिट हैड डॉ. ओपी शर्मा ने कहा कि ब्रेकी थैरेपी के जरिए इंप्लांट किए जाते हैं। एक महीने में इसके रिजल्ट आने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद कीमो और रेडियो थैरेपी की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ एक हार्मोन टैबलेट लेने की जरूरत होती है। हालांकि, अभी यह सुविधा एम्स और टाटा मैमोरियल मुंबई में उपलब्ध है। जयपुर में महंगी मशीनें होने के साथ-साथ उपकरण भी महंगे हैं। कम पैसे में बेहतर इलाज संभव आस्ट्रेलिया से आए डॉ. कैलाश नारायण ने कहा, अक्सर डॉक्टर्स की यह धारणा होती है कि क्लीनिकल ट्रायल से ट्रीटमेंट में बदलाव आता है, जबकि ऐसा नहीं है। प्रेक्टिस में देखे जा रहे पेशेंट्स के ट्रीटमेंट में बदलाव आ सकता है, लेकिन इंडिया में टाटा मेमोरियल को छोड़कर ऐसा कोई इंस्टीट्यूट नहीं है, जहां पर पेशेंट्स के आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। कितने पेशेंट्स ठीक हुए? कितने नहीं? यहां ऐसा कोई पब्लिकेशन भी नहीं छपता, जिसके आधार पर यह बताया जा सके कि अभी तक किए गए ट्रीटमेंट के रिजल्ट क्या हैं? महंगी मशीनों से बेहतर ट्रीटमेंट मिल पाएगा, यह जरूरी नहीं है। ट्रीटमेंट जरूर महंगा हो जाता है। साधारण टेक्निक से भी कम पैसों में बेहतर ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। यह मालूम चला है कि पैट स्कैन से ट्यूमर की सही स्टेजिंग नहीं हो पाती। एमआरआई से यह जरूर संभव है। बिना एमआरआई कराए भी ट्रीटमेंट के रिजल्ट अच्छे आते हैं। स्मोकर्स में जल्द फैलता है कैंसर डॉ. नारायण ने कहा कि अन्य लोगों की बजाय स्मोकर्स में कैंसर पूरे शरीर में जल्दी फैलता है। इससे सर्विक्स कैंसर भी हो सकता है। स्मोकर्स में कार्बन मोनो ऑक्साइड ज्यादा रहती है। ऑक्सीजन का लेवल कम रहता है। ट्यूमर का साइज भी जल्दी बढ़ता है। उनकी रिकवरी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है। sabhar : bhaskar.com

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वफादार और खूंखार कुत्तों की यहां बसी है शानदार दुनिया

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लुधियाना.
वफादार होने के साथ बेहद खतरनाक भी। हमला बोल दें तो अच्छे -अच्छे बहादुर भी मैदान छोड़ जाएं। एक-दो नहीं कुत्तों की पूरी फौज। एक ही घर में 33। जी हां, अपने शहर में ही एक घर ऐसा भी है, जहां बसी है इन जानदार कुत्तों की शानदार दुनिया। रॉट वेलर, डैशंड और शारपेई जैसी प्रजाति के 33 कुत्तों का यह रोमांचक संसार बसाया है शहर के एनआरआई अमनिंदर सिंह ग्रेवाल ने।

कनाडा में एक निजी कंपनी के साथ जुड़े अमनिंदर साल के छह महीने अपनी इस खतरनाक फौज के साथ लुधियाना में बिताते हैं। रॉट वेलर प्रजाति के 28 कुत्तों की ग्रेवाल से मोहब्बत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कैनन लॉन में घुसते ही उन्हें गले लगाने को यह फौज यूं टूट पड़ती है कि कोई अंजान देखे तो सहम जाए।

फिरोजपुर रोड पर शमशेर एवेन्यू में रह रहे इन डॉग्स के ठाठ भी निराले हैं। इनके पालन-पोषण का मासिक खर्च एक लाख रुपये से भी ऊपर है।ग्रेवाल देश में हो या विदेश में,पैट्स की शान ओ शौकत में कोई फर्क नहीं पड़ता। देखभाल और प्रशिक्षण के लिए चार मास्टर हैं। लुधियाना में कनाडा जैसी मौज तो नहीं है, लेकिन अपने इन वफादारों से मिलने की खुशी उससे कहीं ज्यादा है। रॉट वेलर नस्ल का 10 वर्षीय टाइटन तो उनके प्यार में काफी बिगड़ा हुआ है। टाइटन जिद कर बैठे तो ग्रेवाल को उसे अपने साथ बेड पर सुलाना ही पड़ता है।

यह है खानपान का हिसाब

600 ग्राम फीड प्रतिदिन एक कुत्ते को (कीमत 140 रुपये प्रति किलोग्राम) 250 ग्राम दही दिन में (कीमत 25 रुपये) छह अंडे रोज (30 रुपये) फूड सप्लीमेंट रोजाना सुबह (15 रुपये एक गोली) प्रत्येक मास्टर पर खर्च 8 से 20 हजार

इन नस्ल के डॉग्स हैं ग्रेवाल के पास

रॉट वेलर : 28 शारपेई : 3 डेशन्ड हाउंड : 1 लैब्राडोर : 1

मुझे इनसे उतना ही प्यार है, जितना अपने बच्चों से। यह मेरा परिवार है। इनका सौदा करने का सवाल ही नहीं उठता। रॉट वेलर खतरनाक नहीं बदनाम ज्यादा हैं।

sabhar : bhaskar.com

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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

समर ओलंपिक में भारत

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समर ओलंपिक में भारत सदैव से एक फिसड्डी देश रहा है। ओलंपिक के 120 साल के इतिहास में इसे अब तक कुल 31 मेडल मिले हैं। इसमें स्वर्ण पदक सदैव हॉकी में ही मिलता रहा है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के शूटर अभिनव बिन्द्रा ने गोल्ड मेडल हासिल करके इतिहास रच दिया था। वरना समर  ओलंपिक में भारत एक दो रजत या कांस्य के साथ वापस लौट आता है। 

ये दशकों की कहानी है। फिर भी ओलंपिक में एकाध मेडल पर भी हमारी राष्ट्रीयता ऐसे हिलोरे मारती है जैसे हम ओलंपिक में सब देशों से आगे हैं। इस बार भी हम अभी 63वें नंबर पर हैं। खेल खत्म होते होते पता नहीं कितना ऊपर नीचे जाएंगे। 

यह भारत जैसे सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश के लिए अपमानजनक स्थिति है। इतने बड़े देश में खेलों का ये हाल है कि एक दो कांस्य और रजत को ही अपनी जीत समझ लेते हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बधाई देने के लिए लाइन में लग जाते हैं। 

ये भावनात्मक ज्वार जनता को मूर्ख बनाने के लिए तो अच्छा है लेकिन इससे ओलंपिक की पदक तालिका में कहीं खड़े नहीं हो पाते। जब तक खिलाड़ियों पर नौकरशाही की अय्याशियां हावी रहेंगी तब तक ओलंपिक में भारत की स्थिति बेहतर हो भी नहीं सकती। जिस देश में ओलंपिक नौकरशाही के फॉरेन टूर और टीए/डीए का हिसाब किताब हो उस देश से भला कोई क्या उम्मीद करेगा? अच्छा हो कि फर्जी की खुशी मनाने की बजाय खेलों में निजीकरण करें। खेलों को जितना हो सके ब्यूरोक्रेसी के चंगुल से बाहर निकालें। कुछ ऐसा करें जैसा चीन ने किया है। चार दिन के लिए सिर्फ भावनात्मक रूप से देश को च्यूतिया बनाने से ओलंपिक में भारत कभी बेहतर नहीं कर पायेगा। sabhar sanjay Tiwari Facebook wall

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सोमवार, 26 जुलाई 2021

उन्नति की आकाँक्षा

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  उन्नति की आकाँक्षा करने से पहले मनुष्य को अपने को परखकर देख लेना चाहिए कि ऊँचे चढ़ने के लिए जिस श्रम की आवश्यकता होती है, उसकी जीवन वृत्ति उसमें है भी या नहीं। यदि है तो उसकी आकाँक्षा अवश्य पूर्ण होगी अन्यथा इसी में कल्याण है कि मनुष्य उन्नति की आकाँक्षा का त्याग कर दे, नहीं तो उसकी आकाँक्षा स्वयं उसके लिए एक कंटक बन जायेगी।

□ हममें से अधिकांश लोग किसी कार्य की शुरुआत इसलिए नहीं करते, क्योंकि आने वाले खतरों को उठाने का साहस हममें नहीं होता। हम दूसरों की आलोचना, विरोध से डरते हैं। असफलता या लोकनिन्दा का भय हमें कार्य की शुरुआत में ही निस्तेज कर देता है, इसी कारणवश हम दीन-हीन जीवन व्यतीत करते हैं। संसार की जो जातियाँ साहस पर ही जीती हैं, वे ही सबकी अगुवा भी बन जाती हैं।

◆ किसी कार्य को केवल विचार पर ही नहीं छोड़ देना चाहिए। कार्य रूप में परिणत हुए बिना योजनाएँ चाहे कितनी ही अच्छी क्यों न हों, लाभ नहीं दे सकतीं।  विचार की आवश्यकता वैसी ही है जैसी रेलगाड़ी को स्टेशन पार करने के लिए सिग्नल की आवश्यकता होती है। सिग्नल का उद्देश्य केवल यह है कि ड्राइवर यह समझले कि रास्ता साफ है अथवा आगे कुछ खतरा है? विचारों द्वारा भी ऐसे ही संकेत मिलते हैं कि वह कार्य उचित और उपयुक्त है या अनुचित और अनुपयुक्त?

◇ मनुष्य के साध्य, सुख और शान्ति का निवास कामनाओं, उपादानों अथवा भोग-विलास में नहीं है। वह कम से कम कामनाओं, अधिक से अधिक त्याग और विषय-वासनाओं के विष से बचने में ही पाया जा सकता है। जो निःस्वार्थी, निष्काम, पुरुषार्थी, परोपकारी, संतोषी तथा परमार्थी हैं, सच्ची सुख-शान्ति के अधिकारी वही हैं। सांसारिक स्वार्थों एवं लिप्साओं के बंदी मनुष्य को सुख-शान्ति की कामना नहीं करनी चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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सोमवार, 12 जुलाई 2021

सेमल के फूल

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सेमल के फूल की सब्जी का स्वाद तो आप सभी ने लिया ही होगा। सब्जी के अतिरिक्त इसका स्वादिष्ट अचार भी बनाया जाता है। हमारे पर्वतीय क्षेत्र में चाँवल के आटे से बनाए जाने वाले सिंगल नामक व्यंजन में इसके तने की छाल का प्रयोग किया जाता है।

इसकी हरी वाह्य पंखुड़ियों से सब्जी बनाई जाती है, लाल पंखुड़ियों को फेंक देते हैं।

बात मार्च के प्रथम सप्ताह की रही होगी। कई दिनों से इस विशालकाय सेमल वृक्ष के नीचे लगातार 6- 7 नन्हे से प्यारे बच्चों का जमावड़ा देख रहा था, ये बच्चे फूल गिरते ही उसको पाने के लिए हुज्जत कर रहे थे। मैंने जिज्ञासावश रुक कर बच्चों से पूछा तो उन्होंने बताया कि हम लोग सब्जी के लिए सेमल के फूल एकत्रित कर रहे हैं। 

कुछ देर में एक महिला- पुरुष भी आगए, उन्होंने बताया कि इसकी सब्जी बहुत स्वादिष्ट व पौष्टिक होती है, फूल की हरी वाह्य पंखुड़ियों से सब्जी बनाई जाती है, लाल पंखुड़ियों को फेंक देते हैं, इसके फूल आयुर्वेदिक गुणों की खान हैं। उन लोगों ने कुछ फूल तोड़ कर एकत्रित किए हुए थे, वो मुझे फूल देने लगे और कहने लगे कि आप ले जाओ सब्जी बना लेना, मैंने उनसे बोला कि आपने मेहनत करी है ये फूल आपने अपने लिए तोड़े होंगे, इनके जो भी रुपए होते हैं ले लो, लेकिन उन्होंने रुपए नहीं लिए और मैंने फूल नहीं लिए। उन्होंने अगले दिन रुपए लेकर फूल देने का वादा किया और अगले रोज निर्धारित स्थान पर मुझे कुछ फूल दे दिए।

हमारे क्षेत्र में भरपूर मात्रा में सेमल वृक्ष पाए जाते हैं। फैक्ट्री में इसकी लकड़ी से प्लाई- बोर्ड बनाए जाते हैं तथा इसकी रुई का प्रयोग तकिया बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियों तथा छोटे पेड़ों की जड़ (सेमल मूसली) का आयुर्वेद में बहुत महत्व है। sabhar Rajendra psad josi Facebook wall

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रविवार, 11 जुलाई 2021

जामुन के फायदे

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जामुन (जामु कोली ओड़िया में)~आकार में छोटे हैं पर मीठे हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम सैजियम क्यूमिनाई है। यह पेड़ जमीन में ज्यादा नमी होने से, यहां तक कि पानी जमने पर भी अच्छे तरह से बढ़ता है।
घर के पास रास्ता किनारे पेड़ से बचे इक्ट्ठा कर रहे थे, एक बांस और मच्छरदानी जाली से। किलो ₹ १४० है, उनके हिसाब से। आधा किलो रखा, ₹५० में। वर्षा ऋतु का फल है, खाना चाहिए। 
जामुन एक औसधिय गुण वाला फल है, जो खासकर रक्त शर्करा को नियंत्रित रखता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत रखता है और हृदय रोग की चिकित्सा में सहायता करता है। चर्म रोग में भी यह गुणकारी है। आयुर्वेद दुकानों में जामुन के जूस और जामुन बीज की चूर्ण उपलब्ध है जो वैद्य के सलाह पर ले सकते हैं। sabhar Facebook wall bhojan kalp grup

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शुक्रवार, 21 मई 2021

मंगलवार, 11 मई 2021

एक सरपंच ऐसा भी

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ये सरपंच भक्ति शर्मा हैं..अमेरिका से लौटी हैं ...
सरपंच भक्ति शर्मा के शौक पुरुषों जैसे हैं। इन्हें ट्रैक्टर चलाना, पिस्टल रखना, अपनी गाड़ी से सड़कों पर फर्राटे भरना, किसी भी अधिकारी से बेधड़क बात करना पसंद है। भक्ति का कहना है, “आगामी छह महीने में इस भवन में डिजिटल क्लासेज शुरू हो जायेंगी, जो पूरी तरह से सोलर से चलेंगी। इसमें महिलाओं के लिए सिलाई सेंटर, और चरखा केंद्र खुलेगा। किसानों के लिए समय-समय पर बैठकें होंगी
अमेरिका से लौटी हैं अब मध्यप्रदेश में एक ग्राम पंचायत की सरपंच है। अपने साथ हमेशा एक पिस्टल रखती हैं। इनके गांव में बहुत सारे खास काम होते हैं, यहां एक सरपंच योजना चलती है.. किसान को मुआवजा मिलता है। हर आदमी का बैंक अकाउंट है और हर खेत का मृदा कार्ड.. कुछ ही वर्षों में इन्होंने अपने गांव की तस्वीर बदल दी है.. पढ़िए इनकी सफलता की कहानी...
भक्ति शर्मा ने एमए राजनीति शास्त्र से किया है, अभी वकालत की पढ़ाई कर रही हैं। भोपाल जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत है। इस पंचायत की सरपंच भक्ति शर्मा के शौक पुरुषों जैसे हैं। इन्हें ट्रैक्टर चलाना, पिस्टल रखना, अपनी गाड़ी से सड़कों पर फर्राटे भरना, किसी भी अधिकारी से बेधड़क बात करना पसंद है। ये अपनी बोलचाल की भाषा में भी जाता है, खाता है, आता हूँ का प्रयोग सामान्य तौर पर करती हैं। इस पंचायत में कुल 2700 जनसँख्या है जिसमे 1009 वोटर हैं। ओडीएफ हो चुकी इस पंचायत में आदर्श आंगनबाड़ी से लेकर हर गली में सोलर स्ट्रीट लाइटें हैं।
“सरपंच बनते ही सबसे पहला काम हमने गांव में हर बेटी के जन्म पर 10 पौधे लगाना और उनकी माँ को अपनी दो महीने की तनख्वाह देने का फैसला लेकर किया। पहले साल 12 बेटियां पैदा हुई, माँ अच्छे से अपना खानपान कर सके इसलिए अपनी यानि सरपंच की तनख्वाह ‘सरपंच मानदेय’ के नाम से शुरू की।”

भक्ति ने कहा, “हमारी पहली ऐसी ग्राम पंचायत बनी जहाँ हर किसान को उसका मुआवजा मिला। हर ग्रामीण का राशनकार्ड, बैंक अकाउंट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया। इस समय पंचायत का कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। महीने में दो से तीन बार फ्री में हेल्थ कैम्प लगता है।
भक्ति ने कहा, “हमारी पहली ऐसी ग्राम पंचायत बनी जहाँ हर किसान को उसका मुआवजा मिला। हर ग्रामीण का राशनकार्ड, बैंक अकाउंट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया। पहले साल में 113 लोगों को पेंशन दिलानी शुरू की, इस समय पंचायत का कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। महीने में दो से तीन बार फ्री में हेल्थ कैम्प लगता है, जिससे पंचायत का हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहे।”
ग्राम पंचायत का कोई भी काम भक्ति अपनी मर्जी से नहीं करती हैं। वर्ष 2016-17 में 10 ग्राम सभाएं हो चुकी हैं, पंचों की बैठक समय-समय पर अलग से होती रहती है। जब ये सरपंच बनी थीं तो इस पंचायत में महज नौ शौचालय थे अभी ये पंचायत ओडीएफ यानि खुले में शौच से मुक्त हो चुकी है। भक्ति का कहना है, “हमने पंचायत में कोई भी काम अलग से नहीं किया, सिर्फ सरकारी योजनाओं को सही से लागू करवाया है। पंच बैठक में जो भी निर्धारित करते हैं वही काम होता है। ढ़ाई साल में बहुत ज्यादा विकास तो नहीं करवा पाए हैं क्योंकि जब हम प्रधान बने थे उस समय गांव की सड़कें ही पक्की नहीं थी, इसलिए पहले जरूरी काम किए।”
भक्ति ने अपने प्रयासों से अपनी पंचायत को सरकार की मदद से एक बड़ा सामुदायिक भवन पास करा लिया है। भक्ति का कहना है, “आगामी छह महीने में इस भवन में डिजिटल क्लासेज शुरू हो जायेंगी, जो पूरी तरह से सोलर से चलेंगी। इसमें महिलाओं के लिए सिलाई सेंटर, और चरखा केंद्र खुलेगा। किसानों के लिए समय-समय पर बैठकें होंगी, जिससे वो खेती के आधुनिक तरीके सीख सकें। बच्चों के लिए तमाम तरह की गतिविधी होंगी जिससे उन्हें गांव में शहर जैसी सुविधाएँ मिल सकें।”
पंचायत की हर महिला निडर होकर रात के 12 बजे भी अपनी पंचायत में निकल सके भक्ति शर्मा की ऐसी कोशिश है। भक्ति ने कहा, “पंचायत की हर बैठक में महिलाएं ज्यादा शामिल हों ये मैंने पहली बैठक से ही शुरू किया। मिड डे मील समिति में आठ महिलाएं है। महिलाओं की भागीदारी पंचायत के कामों में ज्यादा से ज्यादा रहे जिससे उनकी जानकारी बढ़े और वो अपने आप को सशक्त महसूस करें।”
पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से ग्राम पंचायत में पानी की बहुत समस्या है। पीने के पानी के लिए तो सबमर्सिबल लगा है लेकिन खेती को समय से पानी मिलना थोड़ा मुश्किल होता है। भक्ति का कहना है, “जिनके पास 10-12 एकड़ जमीन है, हमारी कोशिश है वो हर एक किसान कम से कम एक एकड़ में जैविक खेती जरुर करें। बहुत ज्यादा संख्या में तो नहीं लेकिन किसानों ने जैविक खेती करने की शुरुआत कर दी है।”
कोई प्रधान है जो इसके लिए आगे आये ?.

Shatrughan Sharma जी की वाल से

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मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

ओशो: अष्‍टावक्र महागीता

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अष्‍टावक्र महागीता

पहला सूत्र :

जनक ने कहा, ‘हे प्रभो, पुरुष ज्ञान को कैसे प्राप्त होता है। और मुक्ति कैसे होगी और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? यह मुझे कहिए! एतत मम लूहि प्रभो! मुझे समझायें प्रभो!’

बारह साल के लड़के से सम्राट जनक का कहना है : ‘हे प्रभु! भगवान! मुझे समझायें!

एतत मम लूहि!

मुझ नासमझ को कुछ समझ दें! मुझ अज्ञानी को जगायें!’ तीन प्रश्न पूछे हैं—

‘कथं ज्ञानम्! कैसे होगा ज्ञान!’

साधारणत: तो हम सोचेंगे कि ‘यह भी कोई पूछने की बात है? किताबों में भरा पड़ा है।’ जनक भी जानता था। जो किताबों में भरा पड़ा है, वह ज्ञान नहीं; वह केवल ज्ञान की धूल है, राख है! ज्ञान की ज्योति जब जलती है तो पीछे राख छूट जाती है। राख इकट्ठी होती चली जाती है, शास्त्र बन जाती है। वेद राख हैं—कभी जलते हुए अंगारे थे। ऋषियों ने उन्हें अपनी आत्मा में जलाया था। फिर राख रह गये। फिर राख संयोजित की जाती है, संगृहीत की जाती है, सुव्यवस्थित की जाती है। जैसे जब आदमी मर जाता है तो हम उसकी राख इकट्ठी कर लेते हैं—उसको फूल कहते हैं। बड़े मजेदार लोग हैं! जिंदगी में जिसको फूल नहीं कहा, उसकी हड्डिया—वड्डिया इकट्ठी कर लाते हैं—कहते हैं, ‘फूल संजो लाये’! 

जनक भी जानता था कि शास्त्रों में सूचनाएं भरी पड़ी हैं। लेकिन उसने पूछा, ‘कथं ज्ञानम्? कैसे होगा ज्ञान?’ क्योंकि कितना ही जान लो, ज्ञान तो होता ही नहीं। जानते जाओ, जानते जाओ, शास्त्र कंठस्थ कर लो, तोते बन जाओ, एक—एक सूत्र याद हो जाये, पूरे वेद स्मृति में छप जायें—फिर भी ज्ञान तो होता नहीं।

‘कथं ज्ञानम्?

कुछ दिनों पहले कुछ जैन साध्वियों की मेरे पास खबर आई कि वे मिलना चाहती हैं, मगर श्रावक आने नहीं देते। यह भी बड़े मजे की बात हुई! साधु का अर्थ होता है, जिसने फिक्र छोड़ी समाज की; जो चल पड़ा अरण्य की यात्रा पर; जिसने कहा, अब न तुम्हारे आदर की मुझे जरूरत है न सम्मान की। लेकिन साधु—साध्वी कहते हैं, ‘श्रावक आने नहीं देते! वे कहते हैं, वहां भूल कर मत जाना। वहां गये तो यह दरवाजा बंद!’ यह कोई साधुता हुई? यह तो परतंत्रता हुई, गुलामी हुई। यह तो बड़ी उलटी बात हुई। यह तो ऐसा हुआ कि साधु श्रावक को बदले, उसकी जगह श्रावक साधु को बदल रहा है। एक मित्र ने आ कर मुझे कहा कि एक जैन साध्वी आपकी किताबें पढ़ती है, लेकिन चोरी से; टेप भी सुनना चाहती है, लेकिन चोरी से। और अगर कभी किसी के सामने आपका नाम भी ले दो तो वह इस तरह हो जाती है जैसे उसने कभी आपका नाम सुना ही नहीं।

यह मुक्ति हुई?

जनक ने पूछा, ‘कथं मुक्ति?

कैसे होती मुक्ति? क्या है मुक्ति? उस ज्ञान को मुझे समझायें, जो मुक्त कर देता है।’

पूछा जनक ने, ‘कैसे होगी मुक्ति और कैसे होगा वैराग्य? हे प्रभु, मुझे समझा कर कहिए!’ अष्टावक्र ने गौर से देखा होगा जनक की तरफ; क्योंकि गुरु के लिए वही पहला काम है कि जब कोई जिज्ञासा करे तो वह गौर से देखे. ‘जिज्ञासा किस स्रोत से आती है? पूछने वाले ने क्यों पूछा है?’ उत्तर तो तभी सार्थक हो सकता है जब प्रश्न क्यों किया गया है, वह समझ में आ जाये, वह साफ हो जाए।

ध्यान रखना, सदज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति, सदगुरु तुम्हारे प्रश्न का उत्तर नहीं देता—तुम्हें उत्तर देता है! तुम क्या पूछते हो, इसकी फिक्र कम है; तुमने क्यों पूछा है, तुम्हारे पूछने के पीछे अंतरचेतन में छिपा हुआ जाल क्या है, तुम्हारे प्रश्नों की आड़ में वस्तुत: कौन—सी आकांक्षा छिपी है..!

दुनियां में चार तरह के लोग हैं—ज्ञानी, मुमुक्षु, अज्ञानी, मूढ़। और दुनियां में चार ही तरह की जिज्ञासाए होती हैं। ज्ञानी की जिज्ञासा तो नि:शब्द होती है। कहना चाहिए, ज्ञानी की जिज्ञासा तो जिज्ञासा होती ही नहीं—जान लिया, जानने को कुछ बचा नहीं, पहुंच गये, चित्त निर्मल हुआ, शांत हुआ, घर लौट आये, विश्राम में आ गये! तो ज्ञानी की जिज्ञासा तो जिज्ञासा जैसी होती ही नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि ज्ञानी सीखने को तैयार नहीं होता। ज्ञानी तो सरल, छोटे बच्चे की भांति हो जाता है—सदा तत्पर सीखने को।

ज्ञान—ज्ञान को संगृहीत नहीं करता; ज्ञानी सिर्फ ज्ञान की क्षमता को उपलब्ध होता है। इस बात को ठीक से समझ लेना, क्योंकि पीछे यह काम पड़ेगी। ज्ञानी का केवल इतना ही अर्थ है कि जो जानने के लिए बिलकुल खुला है; जिसका कोई पक्षपात नहीं, जानने के लिए जिसके पास कोई परदा नहीं; जिसके पास जानने के लिए कोई पूर्व—नियोजित योजना, ढांचा नहीं। ज्ञानी का अर्थ है ध्यानी जो ध्‍यान पूर्ण है।

तो देखा होगा अष्‍टावक्र ने गौर से, जनक में झांक कर : यह व्यक्ति ज्ञानी तो नहीं है। यह ध्यान को तो उपलब्ध नहीं हुआ है। अन्यथा इसकी जिज्ञासा मौन होती; उसमें शब्द न होते।

ओशो: अष्‍टावक्र महागीता–(भाग1) प्रवचन1

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दो मार्ग: साकार और निराकार

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एक उदाहरण के लिए छोटा—सा प्रयोग आप करके देखें
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 तो आपको पता चलेगा। एक दीए को रख लें रात अंधेरे में अपने कमरे में। और अपनी आंखों को दीए पर एकटक लगा दें। दो—तीन मिनट ही अपलक देखने पर आपको बीच—बीच में शक पैदा होगा कि दीया नदारद हो जाता है। दीए की ज्योति बीच—बीच में खो जाएगी। अगर आपकी आख एकटक लगी रही, तो कई बार आप घबड़ा जाएंगे कि ज्योति कहं। गई! जब आप घबड़ाके, तब फिर ज्योति आ जाएगी। ज्योति कहीं जाती नहीं। लेकिन अगर आंखों की देखने की क्षमता बचानी हो, तो बहुत—सी चीजें देखना जरूरी है। अगर आप एक ही चीज पर लगा दें, तो थोड़ी ही देर में आंखें देखना बंद कर देती हैं। इसलिए ज्योति खो जाती है।

जिस चीज पर आप अपने को एकाग्र कर लेंगे, और सब चीजें तो खो जाएंगी पहले, एक चीज रह जाएगी। थोड़ी देर में वह एक भी खो जाएगी। एकाग्रता पहले और चीजों का विसर्जन बन जाती है, और फिर उसका भी, जिस पर आपने एकाग्रता की।

अगर सारी वासना को संसार से खींचकर परमात्मा पर लगा दिया, तो पहले संसार खो जाएगा। और एक दिन आप अचानक पाएंगे कि परमात्मा बाहर से खो गया। और जिस दिन परमात्मा भी बाहर से खो जाता है, आप अचानक भीतर पहुंच जाते हैं। क्योंकि अब बाहर होने का कोई उपाय न रहा। संसार पकड़ता था, उसे छोड़ दिया परमात्मा के लिए। और जब एक बचता है, तो वह अचानक खो जाता है। आप अचानक भीतर आ जाते हैं।

फिर यह जो परमात्मा की धारणा हमने बाहर की है, यह हमारे भीतर जो छिपा है, उसकी ही श्रेष्ठतम धारणा है। वह जो आपका भविष्य है, वह जो आपकी संभावना है, उसकी ही हमने बाहर धारणा की है। वह बाहर है नहीं, वह हमारे भीतर है, लेकिन हम बाहर की ही भाषा समझते हैं। और बाहर की भाषा से ही भीतर की भाषा सीखनी पड़ेगी।

अभी मनोवैज्ञानिक इस पर बहुत प्रयोग करते हैं कि एकाग्रता में आब्जेक्ट क्यों खो जाता है। जहां भी एकाग्रता होती है, अंत में जिस पर आप एकाग्रता करते हैं, वह विषय भी तिरोहित हो जाता है; वह भी बचता नहीं। उसके खो जाने का कारण यह है कि हमारे मन का अस्तित्व ही चंचलता है। मन को बहने के लिए जगह चाहिए, तो ही मन हो सकता है। मन एक बहाव है। एक नदी की धार है। अगर मन को बहाव न मिले, तो वह समाप्त हो जाता है। वह उसका स्वभाव है।

स्थिर मन जैसी कोई चीज नहीं होती। और जब हम कहते हैं, चंचल मन, तो हम पुनरुक्ति करते हैं। चंचल मन नहीं कहना चाहिए, क्योंकि चंचलता ही मन है। जब हम चंचल मन कहते हैं, तो हम दो शब्दों का उपयोग कर रहे हैं व्यर्थ ही, क्योंकि मन का अर्थ ही चंचलता है। और घिर मन जैसी कोई चीज नहीं होती। जहां थिरता आती है, मन तिरोहित हो जाता है। जैसे स्वस्थ बीमारी जैसी कोई बीमारी नहीं होती। जैसे ही स्वास्थ्य आता है, बीमारी खो जाती है; वैसे ही थिरता आती है, मन खो जाता है। मन के होने के लिए अथिरता जरूरी है।

ऐसा समझें कि सागर में लहरें हैं, या झील पर बहुत लहरें हैं। झील अशात है। तो हम कहते हैं, लहरें बड़ी अशांत हैं। कहना नहीं चाहिए, क्योंकि अशांति ही लहरें हैं। फिर जब शात हो जाती है झील, तब क्या आप ऐसा कहेंगे कि अब शांत लहरें हैं! लहरें होतीं ही नहीं। जब लहरें नहीं होतीं, तभी शांति होती है। जब झील शांत होती है, तो लहरें नहीं होतीं। लहरें तभी होती हैं, जब झील अशात होती है। तो अशांति ही लहर है।

आपकी आत्मा झील है, आपका मन लहरें है। शांत मन जैसी कोई चीज नहीं होती। अशांति ही मन है।

तो अगर हम किसी भी तरह से किसी एक चीज पर टिका लें अपने को, तो थोड़ी ही देर में मन खो जाएगा, क्योंकि मन एकाग्र हो ही नहीं सकता। जो एकाग्र होता है, वह मन नहीं है; वह भीतर का सागर है। वह भीतर की झील है। वही एकाग्र हो सकती है।

तो कोई भी आब्जेक्ट, चाहे परमात्मा की प्रतिमा हो, चाहे कोई यंत्र हो, चाहे कोई मंत्र हो, चाहे कोई शब्द हो, चाहे कोई आकार—रूप हो, कोई भी हो, इतना ही उसका उपयोग है बाहर रखने में कि आप पूरे संसार को भूल जाएंगे और एक रह जाएगा। जिस क्षण एक रहेगा—युगपत—उसी क्षण एक भी खो जाएगा और आप अपने भीतर फेंक दिए जाएंगे।

यह बाहर का जो विषय है, एक जंपिंग बोर्ड है, जहां से भीतर छलांग लग जाती है।

तो किसी भी चीज पर एकाग्र हो जाएं। इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उस एकाग्रता के बिंदु को अल्लाह कहते हैं; कोई फर्क नहीं पड़ता कि ईश्वर कहते हैं, कि राम कहते हैं, कि कृष्ण कहते हैं, कि बुद्ध कहते हैं। आप क्या कहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप क्या करते हैं, इससे फर्क पड़ता है। राम, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट का आप क्या करते हैं, इससे फर्क पड़ता है। क्या कहते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता।

करने का मतलब यह है कि क्या आप उनका उपयोग अपने को एकाग्र करने में करते हैं? क्या आपने उनको बाहर का बिंदु बनाया है, जिससे आप भीतर छलांग लगाएंगे? तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि आपने क्राइस्ट से छलांग लगाई, कि कृष्ण से, कि राम से! जिस दिन भीतर पहुंचेंगे, उस दिन उसका मिलना हो जाएगा, जो न क्राइस्ट है, न राम है, न बुद्ध है, न कृष्ण है—या फिर सभी है। कहां से छलांग लगाई, वह तो भूल जाएगा।

कौन याद रखता है जंपिंग बोर्ड को, जब सागर मिल जाए! सीढ़ियों को कौन याद रखता है, जब शिखर मिल जाए! रास्ते को कौन याद रखता है, जब मंजिल आ जाए! कौन—सा रास्ता था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी रास्ते काम में लाए जा सकते हैं। काम में लाने वाले पर निर्भर करता है।

अभी आप बाहर हैं, इसलिए बाहर परमात्मा की धारणा करनी पड़ती है आपकी वजह से। परमात्मा की वजह से नहीं, आपकी वजह से। भीतर की भाषा आपकी समझ में ही न आएगी।

ओशो - गीता दर्शन – भाग - 6, - अध्‍याय — 12
(प्रवचन—दूसरा) — दो मार्ग: साकार और निराकार

Rajesh Saini

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सांस, मानव मुक्ति का मार्ग

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यहाँ सद्‌गुरु सांस की प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए बता रहे हैं कि कैसे सांस को बड़ी सम्भावनाओं की ओर जाने के लिये एक द्वार की तरह प्रयोग किया जा सकता है?

सद्‌गुरु: जैसे-जैसे हमारी जागरूकता में तीव्रता और पैनापन आने लगता है, एक बात जिसके बारे में हम स्वभाविक रूप से सबसे पहले जागरूक होते हैं, वह है सांस। हमारे शरीर में चलने वाली सांस, एक यांत्रिक प्रक्रिया है, जो लगातार बिना रुके चलती है। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कैसे अधिकतर लोग इसके बारे में जागरूक हुए बिना ही जीते रहते हैं। लेकिन, एक बार जब आप सांस के बारे में जागरूक हो जाते हैं, तो ये एक अदभुत प्रक्रिया बन जाती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज 'सांस को देखना' संभवतः ध्यान की सबसे अधिक लोकप्रिय विधियों में से है। यह मूलभूत और सरल है, तथा इतनी आसानी से और स्वाभाविक रूप से होती है कि इसके लिये कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती।
अगर आप थोड़े से ज्यादा सचेत हो जाते हैं, तो आप की सांस स्वाभाविक रूप से आप की जागरूकता में आ जायेगी। मैं छः - सात वर्ष का था, जब मैंने अपनी सांस का आनंद लेना शुरू किया। अपनी छोटी सी छाती और पेट को लयबद्ध ढंग से ऊपर-नीचे होते देखने में मुझे बहुत रूचि थी और मैं घंटों तक बस यही करता रहता था। ध्यान का विचार तो काफी बाद में मेरे जीवन में आया। तो अगर आप थोड़े से भी सचेत हैं तो आप सांस की सरल लय को अनदेखा नहीं कर सकते, जो बिना रुके चलती रहती है।
अधिकतर लोगों का ध्यान अपनी सांस की ओर तभी जाता है जब उनकी श्वास – नलियों में ऐंठन आ जाती है, या सांस ज्यादा तेजी से चलती है। वे अपनी सामान्य सांस को अनदेखा कर रहे हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनमें ध्यान देने की कमी एक गंभीर समस्या है। और आजकल तो लोग ध्यान की कमी को एक योग्यता की तरह देख रहे हैं।

ध्यान को अपने जीवन में उतारना

अपने जीवन में, और ख़ास तौर पर अपने बच्चों के जीवन में, ध्यान देने की प्रवृत्ति लाना बहुत महत्वपूर्ण है। आखिर में, बात चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, दुनिया से आप को उतना ही मिलता है जितना आप ध्यान देने को तैयार हैं।
सांस पर ध्यान देना वैसे तो एक जबरन प्रयास है। लेकिन यह आपको सचेत करने का एक तरीका भी है। महत्वपूर्ण चीज़ अपनी सांस पर ध्यान केन्द्रित करना नहीं है, बल्कि अपनी जागरूकता के स्तर को इतना ऊँचा उठाना है कि आप स्वाभाविक रूप से अपनी सांस के प्रति सचेत हो जायें। सांस लेना एक यांत्रिक प्रक्रिया है। मूल रूप से देखें तो जब भी आप सांस लेते या छोड़ते हैं, तो आप के शरीर में स्पंदन होता है। जब तक आप अपने मनोवैज्ञानिक ढाँचे में पूरी तरह मग्न हैं, तभी तक आप का ध्यान सांस पर नहीं होता। यदि आप अपनी भावनाओं या विचारों में पूरी तरह नहीं खोये हैं, और आप बस शांति से बैठते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि आप का ध्यान अपनी सांस की प्रक्रिया पर न जाये। किसी चीज़ को अपनी जागरूकता में लाना कोई काम नहीं है। इसके लिये कोई प्रयास नहीं करना पड़ता।
आप में से जिन लोगों ने 'शून्य' की दीक्षा ली है, वे देख सकते हैं कि जैसे ही आप बिना कुछ किये, शांत हो कर बैठते हैं, आप की सांस अचानक ही बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। वास्तव में, सांस एक बहुत बड़ी चीज़ है, बस आप को तब तक यह बात पता नहीं चलती जब तक आप इसे खो नहीं देते। हम जब कोई ख़ास प्रक्रिया सिखाते हैं तो लोगों को सांस पर ध्यान देने के लिये कहते हैं, क्योंकि उनमें जागरूकता का आवश्यक स्तर नहीं होता। लेकिन अगर आप बस आराम से बैठें, तो ऐसा नहीं हो सकता कि आप अपनी सांस के प्रति सचेत न हों, जब तक कि आप अपने विचारों में खोये हुए न हों। तो अपने विचारों में खोये मत रहिये, इनका कोई ख़ास महत्व नहीं है, क्योंकि यह बहुत सीमित जानकारी से आते हैं। आप अगर अपनी सांस के साथ रहें, तो यह आप को एक बड़ी सम्भावना की ओर ले जा सकता है। अभी तो सांस की प्रक्रिया ही ज्यादातर लोगों की जागरूकता में नहीं होती। वे सिर्फ अपने नथुनों या फेफड़ों में हवा के आवागमन के कारण हो रही हलचल को ही जान पाते हैं।

आप अगर बस बैठते हैं या लेटते हैं, एकदम स्थिर हो कर, तो आप की सांस एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया बन जायेगी। और यह हर समय चलती ही रहती है। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कैसे इतने सारे लोग इस पर ध्यान दिये बिना जीते हैं, अपने जीवन के हर पल में बिना इसकी जागरूकता के। अपनी सांस पर ध्यान देना वहां पहुँचने का एक तरीका है। आप में से जिन लोगों ने 'शून्य' की दीक्षा ली है, वे देख सकते हैं कि जैसे ही आप बिना कुछ किये, शांत हो कर बैठते हैं, आप की सांस अचानक ही बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। वास्तव में, सांस एक बहुत बड़ी चीज़ है, बस आप को तब तक यह बात पता नहीं चलती जब तक आप इसे खो नहीं देते।
आप ने 'भज गोविन्दम' मन्त्र सुना होगा जिसमें यह भी आता है, ' निश्चल तत्वं, जीवन मुक्ति'। इसका अर्थ यह है कि अगर आप बिना विचलित हुए, किसी एक ही वस्तु पर लगातार ध्यान देते हैं, चाहे वह कुछ भी हो, तो मुक्ति को, मुक्ति की सम्भावना को आप के लिये नकारा नहीं जा सकता। दूसरे शब्दों में मनुष्य की मूल समस्या ध्यान की कमी ही है। ध्यान देने के पैनेपन और तीव्रता से आप ब्रह्माण्ड का कोई भी दरवाजा अपने लिये खोल सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप का ध्यान कितना पैना और तीव्र है, और इस ध्यान के पीछे कितनी उर्जा है? इस संदर्भ में सांस एक सुन्दर साधन है क्योंकि यह हमेशा ही चलती रहती है। जब तक हम जीवित हैं, सांस हर समय उपस्थित ही है। बस आप को उसके प्रति सचेत होना है।

Isha Foundation

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सोमवार, 5 अप्रैल 2021

शिव भगवान का काम विजय

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एक बार नारद जी तप करने के लिए हिमालय पर्वत की एक सुन्दर गुफा में चले गये । और वहाँ बहुत वर्षो तक समाधिस्थ होकर ब्रम्हा साक्षत्कार का विधान प्राप्त किया । देवेन्द्र ने उनके तप को विघ्न पहुँचाने के लिए काम को भेजा । काम (काम देव) अर्थात (मोह , राग , आदि का देव माना जाने वाला काम) ने नारद जी का तप भंग करने के लिए वहाँ पहुँच कर उनसे अपनी सम्पूर्ण कलाओं की रचना की । वसंत ऋतु ने मदोन्मत्त हो कर अपनी सुंदरता से नारद मुनि के चित्त मे विकार उत्पन्न करने का प्रयास किया । परन्तु शिव की कृपा से इंद्र का गर्व (अभिमान) नष्ट हो गया । क्योंकि हिमालय के इसी स्थान पर पूर्व काल में शिवजी ने तप कर काम को जला कर राख कर दिया था और काम की पत्नी रति को वरदान था की यहाँ पर काम का कोई स्थान नहीं है । इसीलिए जिस स्थान पर योगियो ,तपस्वियों , पुण्य आत्माओं का तप प्रभाव संचित होता है । उस स्थान पर किसी भी बाहरी मोह , माया का प्रभाव निस्किर्य हो जाता है । काम देव ने अपने  बाहरीकर्षण बाहरी स्वरुप को गति हीन जानकर हिमालय काम पर विजयप्राप्त कर दी । मनुष्य का बाहरी आकर्षण व्यर्थ है । बाह्य सौंदर्य केवल भ्र्म पैदा करता है किन्तु यदि मनुष्य अपने तप , ज्ञान और विवेक के द्वारा अपने आंतरिक सौंदर्य को सजाता है तो वास्तविक सौंदर्य वही है । जिससे भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हो जाता है । इसी तप , साधना से प्रभावित हो कर उन्होंने माता पार्वती को स्वीकार किया था । 

{{डॉ लक्ष्मी भट्ट - 9013219622}} [[ महामृत्युंजय धाम ]]

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शुक्रवार, 26 मार्च 2021

Indo Russian relation in 2020 - addressed by Ambassador D.B.Venkatesh in...

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Presence of Russia in Global Encyclopedia of The Ramayan by Hon Chief mi...

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गुरुवार, 25 मार्च 2021

वैराग्य का अर्थ

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वैराग्य का अर्थ है, अब मुझे कुछ भी आकर्षित नहीं करता। वैराग्य का अर्थ है, अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। वैराग्य का अर्थ है, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे पाए बिना मेरा जीवन व्यर्थ है।

वैराग्य का अर्थ है, वस्तुओं के लिए नहीं, पर के लिए नहीं, दूसरे के लिए नहीं, अब मेरा आकर्षण अगर है, तो स्वयं के लिए है। अब मैं उसे जान लेना चाहता हूं, जो सुख पाना चाहता है। क्योंकि जिन-जिन से सुख पाना चाहा, उनसे तो दुख ही मिला। अब एक दिशा और बाकी रह गई कि मैं उसको ही खोज लूं, जो सुख पाना चाहता है। पता नहीं, वहां शायद सुख मिल जाए। मैंने बहुत खोजा, कहीं नहीं मिला; अब मैं उसे खोज लूं, जो खोजता था। उसे और पहचान लूं, उसे और देख लूं।

वैराग्य का अर्थ है, विषय से मुक्ति और स्वयं की तरफ यात्रा।

ओशो

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मंगलवार, 23 मार्च 2021

ऑर्गेनिक शक्ति.

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आने वाला वक्त किसानी और किसानों का ही है।

MS धौनी के इजा फार्म का रांची में खुला पहला आउटलेट, ग्राहकों की उमड़ी भीड़....
MS Dhoni EEJA Farms Opened in Ranchi क्रिकेट के बाद धौनी के किसानी अवतार को भी लोगों को बड़ा प्यार मिल रहा है। महेंद्र सिंह धौनी के प्रशंसकों की दिवानगी आउटलेट में देखने को मिली। उद्घाटन के साथ ही लोगों की भाड़ी भीड़ वहां खरीदारी के लिए जुटी।
 इस आउटलेट का उद्घाटन रांची के मेन रोड में सुजाता चौक के पास हुआ है। इस आउटलेट का उद्घाटन धौनी के सबसे करीबी दोस्‍त परमजीत सिंह ने किया। इस मौके पर उनके कई अन्य दोस्त भी मौजूद थे। धौनी के फार्म की सब्जियों की बाजार में भारी डिमांड है। अभी तक धौनी की जो आर्गेनिक सब्जियां केवल विदेश जा रहीं थी, अब रांची के लोगों के लिए उपलब्ध होंगी।
पहले दिन उद्घाटन के बाद चार घंटे में ही आउटलेट में लाई गई आधे से ज्यादा उत्पाद की बिक्री हो गई। हालांकि इससे पहले लालपुर में एक आउटलेट से इजा फार्म के दूध की होम डिलिवरी की जा रही थी। महेंद्र सिंह धौनी के प्रशंसकों की दिवानगी आउटलेट में देखने को मिली। इजा फार्म आउटलेट के उद्घाटन के साथ ही लोगों की भारी भीड़ वहां खरीदारी के लिए जुटी।
क्रिकेट के बाद धौनी के किसानी अवतार को भी लोगों को बड़ा प्यार मिल रहा है। रांची में खुले इजा फार्म के इस आर्गेनिक आउटलेट में सब्जी, फल के अलावा डेयरी उत्पादों को भी बिक्री के लिए रखा गया है। पहले ही दिन इस फार्म में ग्राहकों ने जबर्दस्त खरीदारी की। उनके उत्पाद गुणवत्‍ता के साथ किफायती भी हैं। इजा फार्म के इस आउटलेट पर 50 रुपये किलो मटर, 60 रुपये किलो शिमला मिर्च, 15 रुपये किलो आलू, 25 रुपये किलो ओल, 40 रुपये किलो बींस और पपीता, ब्रोकली 25 रुपये किलो मिल रहा है।
इसके अलावा दूध 55 रुपये लीटर और घी 300 रुपये में 250 ग्राम की दर से बेचा जा रहा है। इसके अलावा धौनी के फार्म में उत्पादित स्ट्राबेरी के 200 ग्राम का डब्बा 40 रुपये में खरीद सकते हैं। 
रांची में धोनी का 43 एकड़ फार्म हाउस है। यहां सब्‍जी और फलों की खेती हो रही है।
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सोमवार, 22 मार्च 2021

इलायची_की_खेती

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वैसे तो पूरे भारत भर में इसकी खेती संभव है बहुत सारे लोग इसे अपनी दैनिक जरूरतों के लिए अपने बागवानी में भी लगाया करते हैं लेकिन कर्नाटक, केरल और तमिलनाडू इसकी खेती के लिए प्रसिद्ध और अनुकूल है।

दक्षिण भारत के केरल में मालाबार की पहाड़ियों में उत्कृष्ट गुणवत्ता की इलायची की खेती की जाती है जो पूरी दुनिया में मशहूर है। 

इलाइची की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
तापमान 10 डिग्री से 35 डिग्री सेल्सियस और 1500 मिमी से 4000 मिमी की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो में इसकी खेती की जाती है जो की समुद्री स्तर से 600 मीटर से 1500 मीटर की ऊचाई पर हो|

खेती कैसे तैयार करें
सबसे पहले आप अपने खेती के स्थान की जांच करा लें|इलायची की खेती के लिए मिट्टी का PH मान 4.5 से 7.0 तक ऐसी काली गहरी अम्लीय दोमट मिट्टी को इलायची की खेतो के लिए उपयुक्त माना जाता है|

रेतीली भूमि में इलायची की खेती करना संभव नहीं है इसलिए आप भी इसे करने से बचें|

इसकी खेती के लिए खाद के रूप में आप नीम की खली का प्रयोग कर सकते हैं|मुर्गी के द्वारा उत्पन्न खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है|

खाद को अगर तेज़ गर्मी के दिनों में खेत में मिलाएं तो यह बहुत अछि प्रक्रिया हो सकती है|इसलिए कोशिश करें की मई जून के समय खाद को खेत में मिलाएं |

बीज कहाँ से खरीदें
खेती के लिए सबसे उपयुक्त बीज का ही चुनाव करें इसको खरीदने के लिए आप सरकारी संस्थान से संपर्क कर सकते हैं| आप इसके लिए अपने नजदीकी राज्य बीज भंडारण से भी संपर्क कर सकते हैं|

बुवाई की विधि
बुवाई के लिए जमीन तैयार करते समय मैला क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में मिट्टी और जल संरक्षण के उपाय जरूरी हैं।कम वर्षा वाले क्षेत्रों,विकर्ण रोपण में ढलानों भर में खाइयों में रोपण और मिट्टी और जल संरक्षण में मदद मिलेगी |

सिंचाई की विधि
सिंचाई के लिए सबसे ध्यानपूर्वक तरीके से आप किसी को नियुक्त भी कर सकते हैं | इसकी सिंचाई के लिए आप मौसम के अनुकूल जा सकते हैं यदि गर्मी अधिक है तो उस स्थिति में आप दिन में 3 से 4 बार तक सिंचाई दे सकते हैं परन्तु आपको ख़याल रखना है की इसकी खेती के लिए तापमान सामान्य होना चाहिए|बरसात में आपको कुछ नहीं करने की जरुरत नहीं है|

 
फसल की तुड़ाई
फसल की तुड़ाई के बाद उसको एक्त्रिकरन कर लिया जाये उसके बाद हौसले कैप्सूल से उसकी सफाई की जानी चाहिए| इस कैप्सूल का प्रयोग लोग इसकी रंग व सफाई के लिए करते हैं|तुड़ाई के बाद सबसे अहम् होता है इसको सुखाना जिसके लिए दो तरीके हो सकते हैं|

इलाइची सुखाने की विधि
धुप में सुखाना –बेहतर होगा की आप पैदावार होने के बाद इसको प्राक्रतिक रूप से सुखने दें|लगभग 3 से 4 दिनों में आप इसको सुखा सकते हैं|
भट्टी बनाकर – आप चाहें तो इसको सुखाने के लिए किसी एक कमरे का चुनाव करें बाद में उसमें तापमान को बढाकर कमरे को बंद करके रखे भट्टी में कोयला या लकड़ी को जलाकर रखें इस विधि को अपनाकर भी आप चाहें तो इसको सुखा सकते हैं|
माल कहा बेच सकते हैं
इलाइची की फसल को बेचना बहुत ही आसन होता है क्यों की ये एक अत्यधिक मांग वाली फसल है जिसे आप आसानी से कहीं भी बेच सकते हैं–आप सीधे तौर पे इसे मंडी में जाकर भी बेच सकते हैं जिसके लिए आप या तो अपने राज्यों की मसाला मंडी से संपर्क करना पड़ेगा या फिर सीधे तौर पे आप इसको खुद भी पैक करके बेच सकते हैं रिटेल में या फिर आप इससे ऑनलाइन के माध्यम से भी बेच सकते हैं।
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शनिवार, 20 मार्च 2021

जैविक खाद से ज्यादा उत्पादन

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आप जानते है फसलों के उत्पादन में जैव उर्वरक की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन अभी भी किसान, फसलों में रासायनिक उर्वरक का उपयोग कर रहे हैं। जिससे फसलों की लागत तो बढ़ रही है लेकिन किसानों के अपेक्षानुसार उपज नहीं बढ़ रही है। किसानों को इस नई उपज और जैविक खाद के माध्यम से इसकी उपज बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। दरअसल जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानी ने गेहूं की ऐसी फसल (सीड) तैयार की है, जो रासायनिक उर्वरक की बजाए जैविक उर्वरक के उपयोग से अधिक उपज देती है। विवि के कृषि विज्ञान केंद्र जबलपुर एवं नेशनल फर्टीलाइजर्स लिमिटेड द्वारा इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को इस नई उपज और जैविक खाद के माध्यम से इसकी उपज बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

जैविक खाद से ज्यादा उत्पादन: शहपुरा के अंतर्गत आने वाले पिपरिया कला में गेहूं के दो प्रयोग का किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण देते हुए मृदा विज्ञानी डॉ.एके सिंह ने बताया कि खेतों पर पीएसबी एवं जेडएसबी जैविक उर्वरक एक तरह उर्वरक एवं बेंटोनाइट सल्फर के उपचार के साथ प्रयोग किए गए, जिनके अच्छे परिणाम सामने आए।

जैव उर्वरक से उपज बढ़ती और लागत घटती है: कृषि विज्ञानी डॉ.यतिराज खरे ने बताया कि जेडब्ल्यू 3288 एक ऐसी प्रजाति है, जो जैव उर्वरक के साथ अच्छी उपज देती है। किसानों ने बताया कि जैव उर्वरक से उपज बढ़ती और लागत घटती है, लेकिन इसके सही उपयोग के बारे में विज्ञानियों ने उन्हें जानकारी दी है।

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रविवार, 14 मार्च 2021

भारत की पहली लिथियम रिफाइनरी

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 गुजरात में भारत की पहली लिटियम रिफाइनरी स्थापित की जाएगी इस रिफाइनरी को स्थापित करने के लिए देश की सबसे बड़ी नवीकरण ऊर्जा कंपनियों में से एक मणिकरण पावर लिमिटेड लगभग ₹1000 का निवेश करेगी इस रिफाइनरी के लिए लिथियम आयन को ऑस्ट्रेलिया से आयात किया जाएगा क्योंकि लिथियम एक दुर्लभ तत्व है जो आमतौर पर भारत में नहीं पाया जाता वर्तमान में भारत सबसे बड़े इलेक्ट्रिक कार बाजार के रूप में उभर रहा है ऐसे में देश को बैटरी का उत्पादन करने के लिए कच्चे माल के रूप में लिथियम की आवश्यकता है भारत अपनी लिथियम संबंधित आवश्यकता ओं का अधिकांश हिस्सा आयात करता है भारत में बोलीबीआई लिथियम भंडार भंडार तक पहुंच प्राप्त की है भारत ने साल 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन संख्या को 36 परसेंट तक बढ़ाने का एक महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है

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शुक्रवार, 12 मार्च 2021

यूपी में खुलेगा देश का पहला वर्चुअल माल

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उत्तर प्रदेश में सरकार देश का पहला वर्चुअल एग्जीबिशन माल की योजना पर काम कर रही है यह माल ऑनलाइन कारोबार का एक ऐसा फोरम होगा जहां पर क्रेता विक्रेता अपनी सुविधा के मुताबिक किसी भी समय उत्पादों की खरीद बिक्री कर सकेंगे इस माल में एक बार में 500 स्टाल लगेंगे क्रेता विक्रेता ऑनलाइन संवाद भी स्थापित कर सकेंगे में स्टालों के आवंटन में चक्रीय व्यवस्था लागू की जाएगी

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गुरुवार, 11 मार्च 2021

कोविड-19 और भारत की वैक्सीन कूटनीति

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हाल ही में भारत ने कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण शुरू करने के कुछ दिनों बाद अपने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों और प्रमुख साझेदार देशों को स्वदेशी रूप से निर्मित कोविड-19 वैक्सीन की लाखों पूरा भेजना शुरू कर दिया है कोविड-19 महामारी से लड़ने में मदद करने के लिए परीक्षण किट व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण वेंटिलेटर और अन्य देशों को दवाओं की खेत भेजे जाने के बाद भारत अब वैक्सीन कूटनीति के साथ उन तक पहुंच बढ़ा रहा है इसी परिपेक्ष में भारत में अपने पड़ोसी और प्रमुख साझेदार देशों को कोविड-19 वैक्सीन प्रदान करने का निर्णय लिया है नेबरहुड फर्स्ट पहल को ध्यान में रखते हुए भारत द्वारा वैक्सीन को अपने निकटतम पड़ोसी बांग्लादेश भूटान मालदीव म्यानमार नेपाल और श्रीलंका तथा मारीशस और से सेल्स जैसे महत्वपूर्ण हिंद महासागरीय भागीदार देशो ko विशेष विमान द्वारा भेजा गया है भारत में सार्क देशों को भी वैक्सीन प्रदान करने का निर्णय लिया भारत की वैक्सीन मैत्री पहल कोविड-19 टीका को विकासशील देशों के लिए अधिक सुलभ बनाकर दुनिया में टीका असमानता को कम करने में मदद मिलेगी भारतीय टीका ने कम दुष्प्रभाव दिखाए हैं तथा यह कम लागत के साथ-साथ स्टोर करने वह परिवहन में भी आसान है मों ने कम दुष्प्रभाव दिखाए हैं तथा भारतीय टीमों ने कम दुष्प्रभाव दिखाए हैं तथा यह कम लागत के साथ-साथ स्टोर करने व परिवहन में भी आसान है भारत के कोविड-19 टीका की वैश्विक मांग बढ़ रही है तथा 90 देशों ने इसकी खरीद के लिए समझौता किया है ऐसे में टीका की व्यवसायिक आपूर्ति से भारतीय फार्मास्यूटिकल व्यवसायों को लंबे समय तक लाभ होगा भारत का वैक्सीन का उपहार अपने विशेष रूप से दक्षिण एशिया में जहां भारत की बड़े भाई व्यवहार वाली छवि के लिए अक्सर आलोचना की जाती है छवि को बेहतर बनाने और सद्भावना अर्जित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं भारत की यह वैक्सीन कूटनीति दक्षिण एशिया अफ्रीका और अन्य जगहों पर चीन के व्यापक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली सॉफ्ट पावर उपकरण के रूप में काम करेगी भारत के पड़ोसी देशों में सैन्य उपकरणों के निर्देशक और आपूर्तिकर्ता के रूप में चीन की भूमिका बड़ी है विशेष रूप से उसके बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव के बाद यह नीति भारत और चीन दोनों ने महामारी के दौरान सुरक्षात्मक उपकरणों और दवाओं की एशियाई और अफ्रीकी देशों को आपूर्ति की थी भारत को एशियाई देशों के मध्य चीनी प्रभाव को कम करने में सक्षम बनाएंगे asia me इसका लाभ मिलेगा

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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

पूर्वजन्म की घटना

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वर्ष 1930 में एक संपन्न और भले परिवार में शांति देवी का जन्म हुआ था। लेकिन जब वे महज 4 साल की थीं तभी उन्होंने अपने माता-पिता को पहचानने से इनकार कर दिया और यह कहने लगीं कि ये उनके असली अभिभावक नहीं हैं। उनका कहना था कि उनका नाम लुग्दी देवी है और बच्चे को जन्म देते समय उनकी मौत हो गई थी। इतना ही नहीं वह अपने पति और परिवार से संबंधित कई और जानकारियां भी देने लगीं।जब उन्हें, उनके कहे हुए स्थान पर ले जाया गया तो उनकी कही गई हर बात सच निकलने लगी। उन्होंने अपने पति को पहचान लिया और अपने पुत्र को देखकर उसे प्यार करने लगीं। कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में भी शांति देवी की कहानी प्रकाशित हुई। यहां तक कि महात्मा गांधी भी शांति देवी से मिले।
शांति देवी को ना सिर्फ अपना पूर्वजन्म याद था बल्कि उन्हें यह भी याद था कि मृत्यु के बाद और जन्म से पहले भगवान कृष्ण के साथ बिताया गया उनका समय कैसा था। उनका कहना था कि वह कृष्ण से मिली थीं और कृष्ण चाहते थे कि वह अपने पूर्वजन्म की घटना सबको बताएं इसलिए शांति देवी को हर घटना याद है। बहुत से लोगों ने प्रयास किया लेकिन कोई भी शांति देवी को झूठा साबित नहीं कर पाया।
sabhar :http://www.speakingtree.in/

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अद्भुत स्मरणशक्ति

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;हमें अपने जीवन और आसपास हुई कुछ अहम घटनाओं के अलावा शायद ही कोई बीती बात याद रहती है, लेकिन क्वींसलैंड की रबेका के पास अद्भुत स्मरणशक्ति;है. उनके मुताबिक, 12 दिन की उम्र से लेकर अब तक की हर दिन की बात याद है. यहां तक कि उन्होंने किस दिन क्या पहना था और उस दिन का मौसम कैसा था तक बता देती हैं.रबेका बताती हैं कि उनके जन्म के 12वें दिन उनके माता-पिता ने उन्हें ड्राइविंग सीट पर रखा था और उनकी तस्वीर ली थी. रबेका को अपना पहला जन्मदिन भी याद है. उन्होंने बताया कि वह जन्मदिन पर रोने लगी थीं, क्योंकि उनकी ड्रेस उन्हें असहज लग रही थी.डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रबेका के पास हाइली सुपीरियर ऑटोबायॉग्रफिकल मेमोरी (एचएसएएम) है. ऐसी स्मरणशक्ति वाले लोगों के पास असाधारण यादें संजोकर रखने की क्षमता होती है. बताया जा रहा है कि दुनियाभर में सिर्फ 80 लोगों के पास ऐसी स्मरणशक्ति है. रबेका को हैरी पॉटर बुक का एक-एक शब्द याद है. उनकी अपने जीवन से जुड़ी सबसे पहली बात जो याद है वह उनका जन्म है. उन्हें याद कि उनके पहले जन्मदिन पर उन्हें क्या गिफ्ट मिला था. उन्होंने ये सारी बातें अपने ब्लॉग पर लिखी हैं.

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रविवार, 31 जनवरी 2021

भारतीय कृषि की अर्थब्यवस्था में योगदान

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भारतीय कृषि भारतीय कृषि में लगभग 70% से अधिक जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है भारत की भारत की अर्थव्यवस्था का आधार है इसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% योगदान है यह देश के लिए खाद्य सामग्री सुनिश्चित करती है और उद्योगों के लिए कच्चा माल पैदा करती है कृषि विकास किस लिए हमारी संपूर्ण खुशहाली की पहली शर्त है एग्रीकल्चर लेकिन भाषा के 2 शब्दों एग्रोस तथा कल्चर से बना है एग्रोस का अर्थ है भूमि और कल्चर का अर्थ है जुताई अर्थात कृषि का अर्थ है भूमि की जुताई कृषि के अंतर्गत पशुपालन मत्स्य अन्य विषय भी आते हैं वर्ष में एक बार बो गई भूमि को शुद्ध बोया क्षेत्र कहते हैं शुद्ध बोये गए क्षेत्र तथा 1 बार से अधिक बोये गए क्षेत्र को कुल मिलाकर कुल बोया गया क्षेत्र कहते हैं भारत में शुद्ध बोया गया क्षेत्र लगभग 17 करोड हेक्टेयर है कुल भौगोलिक क्षेत्र का 52% है पौधों से परिष्कृत उत्पाद तक की रूपांतरण में तीन प्रकार की आर्थिक क्रियाएं सम्मिलित हैं प्रथम द्वितीय तृतीय प्रथम प्राथमिक क्रियाओं के अंतर्गत कौन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनका संबंध पर आर्थिक प्राकृतिक संसाधन के उत्पादन निष्कर्षण से एक कृषि मत्स्य अच्छे उदाहरण है बुटीक इन संसाधनों के प्रसंस्करण से संबंधित है इस्पात निर्माण डबल रोटी पकाना कपड़ा बोलना तृतीय कन्या प्राथमिक उद्योग क्षेत्र को सेवा द्वारा सहयोग प्रदान करती हैं यातायात व्यापार बैंकिंग बीमा विज्ञापन प्रतिक्रियाओं के उदाहरण है इस प्रकार कृषि कृषि प्राथमिक क्रियाओं के अंतर्गत आता है ऐसी दो प्रकार से की जाती है हाथ निर्वाह कृषि इस प्रकार की कृषि कृषक परिवार की आवश्यकता को पूरा करने के लिए की जाती है पारंपरिक रूप से कम उपज प्राप्त करने के लिए निम्न स्तरीय प्रौद्योगिकी पारिवारिक श्रम का उपयोग किया जाता है निर्वाह कृषि को पुनः निर्वाह कृषि आदि निर्वाह कृषि में वर्गीकृत किया जा सकता है गहन निर्वाह कृषि कृषि में किसान एक छोटे भूखंड प्रसाधन औजार आदिम श्रम से खेती करता है अधिक धूप वाले दिनों में उपायुक्त जलवायु एवं उर्वरक मृदा वाले खेत में 1 वर्ष में 1 से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं चावल मुख्य फसल होती है गहन निर्माण कृषि दक्षिणी दक्षिणी पूर्वी पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले मानसूनी प्रदेशों में प्रचलित है स्थानांतरण शामिल है स्थानांतरित कृषि में सबसे पहले भूमि वन भूमि से पेड़ों को काटकर तरह तन्हा शाखाओं को जलाकर साफ किया जाता है जब उनका टुकड़ा साफ हो जाता है तो उसमें दो या 3 सालों तक फसलें उगाई जाती हैं भूमि की उर्वरा शक्ति के घटने पर भूमि के कुछ टुकड़े को छोड़ दिया जाता है और किसान नए भूखंड पर चला जाता है भारत में स्थानांतरित कृषि पूर्वोत्तर राज्य में की जाती है जैविक कृषि में रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद और प्राकृतिक पीड़कनाशी का प्रयोग किया जाता है मक्का को कारण के नाम से भी जाना जाता है विश्व में इसकी रंग बिरंगी प्रजातियां पाई जाती हैं संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मे प्रेशर नार्मल और नेवला को हरित क्रांति का पिता कहा जाता है भारत में हरित क्रांति का श्रेय डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन को जाता है भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 9768 क्रांति के जनक भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है या आम केला भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है या आम केला नारियल भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है या आम केला नारियल काजू पपीता और भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है या आम केला नारियल काजू पपीता और अनार का सबसे बड़ा उत्पादक है और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है भारत का दूध उत्पादन मेंं विश्व्व में भारत का मछली उत्पादन मेंं विश्व इस प्रकार भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था् में योगदान देती है

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मौसम टाइम मशीन का निर्माण

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अभी तक मौसम विज्ञानियों को मौसम से संबंधित ऐतिहासिक डेटा नहीं मिल पाता था जिसकी वजह से वह सटीक तौर पर मौसम की भविष्यवाणी नहीं कर पाते थे मौसम वैज्ञानिकों ने ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का विकास किया है जिससे मौसम पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों को पूरे विश्व का ऐतिहासिक मौसम डाटा मिल जाएगा इस सॉफ्टवेयर में महासागरों को भी शामिल किया गया है

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शनिवार, 30 जनवरी 2021

हड़प्पा सभ्यता ऋतु परिवर्तन से नष्ट हुई

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सिंधु घाटी सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है यह विश्व की पहली शहरी सभ्यता थी जो भारतीय महाद्वीप में फली फूली सिंधु सभ्यता का चरम काल लगभग 26 ईसवी पूर्व से उन्नीस सौ ईसवी पूर्व के बीच में था इस सभ्यता के विकसित शहरों की मिसाल आज तक दी जाती है आज भी लोगों के लिए यह रहस्य है कि ऐसी फलती फूलती सभ्यता किसी समय अचानक समाप्त कैसे हो गई थी काफी समय से एक सिद्धांत या प्रस्तुत किया जाता है कि उत्तर-पश्चिम से हुए आर्यों के आक्रमण की वजह से उच्च विकसित सभ्यता नष्ट हो गई थी हालांकि इस सिद्धांत के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका था अब वैज्ञानिकों और पुरातत्व नेताओं ने इसका वास्तविक कारण ऋतु परिवर्तन को बताया है कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और बनारस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि सिंधु घाटी क्षेत्र में लगभग 200 वर्ष तक सूखे के प्रकोप की श्रृंखला खेली जिसकी वजह से यह सभ्यता नष्ट हो गई यह बताता है कि 4100 वर्ष पूर्व उत्तर पश्चिम भारत अचानक कमजोर पड़े कृष्ण मानसून से प्रभावित हुआ था जिससे इस क्षेत्र में मरुस्थल जैसी स्थिति बन गई थी पुरातत्व व्यक्तियों ने को इस बात की भी प्रमाण मिले हैं कि लगभग इसी कालखंड के दौरान जो गलियां पहले साफ-सुथरी रहती थी वह गंदगी से भरने लगी थी उनकी हस्तकला की खुशियां धीरे-धीरे घटने लगी थी उनकी लिपि भी लुप्त होने लगी थी उस सीमा तक जनसांख्यिकीय स्थानांतरण भी हुआ इसी दौरान सिंध घाटी के बड़े शहर जिनकी जनसंख्या 100000 तक की तेजी से घटी संख्या घटने के साथ-साथ उनकी सभ्यता नष्ट हो गई

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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

घेरता बचपन में बुढ़ापा प्रोजेरिया

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 फिल्म पा में जब लोगों ने अमिताभ बच्चन की को प्रोजेरिया नामक बीमारी से पीड़ित बच्चे की भूमिका निभाते देखा तो कई लोगों को यकीन भी नहीं हुआ ऐसी भी कोई बीमारी होती है हमें से शायद ही किसी ने इस बीमारी का नाम सुनाओ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शायद कुछ लोग ही इस बीमारी के बारे में जानते होंगे दरअसल यह बीमारी सामान्य नहीं है इसलिए लोग इसकी जानकारी से अनजान है प्रोजेरिया के बारे में सबसे पहले जानकारी 1886 में जो नाथन ने दी थी इसके बाद 18 97 में हिस्ट्री गिलफोर्ड ने इसके बारे में बताया था इसलिए इस बीमारी को हर्ट चिंसन गिलफोर्ड सिंड्रोम भी कहा गया है आज भी देश विदेश में पुरस्कृत वैज्ञानिक किस बीमारी की जड़ का पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बीमारी के बारे में पता चलने के बाद यह साफ हो जाएगा कि मनुष्य मनुष्य के बूढ़े होने की प्रक्रिया क्या है प्रोजेरिया सामान्य बीमारी की श्रेणी में नहीं आती 40 से 45 लाख बच्चों में से यह बीमारी किसी एक में पाई जाती है अब तक प्रोजेरिया से ग्रसित बच्चों की संख्या 45 से 40 से ज्यादा नहीं है गौर मतलब बिहार में एक ही परिवार के 5 बच्चों में यह बीमारी पाई गई थी इसमें से 3 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है प्रोजेरिया नामक बीमारी से ग्रसित बच्चे की उम्र महज महज 17 से 21 वर्ष की होती है यह बीमारी बच्चों के जीवन काल को काफी कम कर देती है प्रोजेरिया से पीड़ित बच्चा 2 वर्ष की उम्र से ही बुरा दिखने लगता है इसकी उम्र 3 गुना रफ्तार से बढ़ने लगती है सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में वह पूरी तरह बूढ़ा हो जाता है पीड़ित बच्चों के सिर के सारे बाल झड़ जाए उसके सिर का आकार काफी बड़ा हो जाता है नरसिंह भरकर साफ दिखने लगती हैं और शरीर की बिलकुल रुक जाती है बच्चा बिल्कुल दूसरे ग्रह के प्राणी जैसा दिखने लगता है दरअसल यह बीमारी जींस और कोशिकाओं में बदलाव के कारण पैदा होने लगती है बहुत शोधों के बाद इस बीमारी के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया है इस बीमारी के बारे में लोगों में जागरूकता लाना बेहद जरूरी है ऐसे बच्चे नफरत से नहीं बल्कि तैयार के हकदार है ताकि इस बीमारी से लड़ने की हिम्मत मिल सके

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अनुमानित समय से भी एक करोड़ वर्ष पहले थे डायनासोर

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 एक नए शोध के अनुसार डायनासोरों के बारे में जितना माना जाता रहा है डायनासोर उससे भी एक करोड़ वर्ष पहले धरती पर अस्तित्व में थे द नेचर की रिपोर्ट के अनुसार एक अंतरराष्ट्रीय दल ने यह परिणाम तंजानिया में जीवाश्मों के अध्ययन के बाद दी है जीवाश्म विज्ञानियों के मुताबिक डायनासोर और उनके करीबी संबंधी जैसे उससे टीरो सार्स भी पहले अस्तित्व में थे जितना अब तक माना जाता रहा है शोध में बताया गया है कि अब तक माना जाता था कि डायनासोर केवल 23 करोड़ वर्ष पुराने थे लेकिन अब उनके पुराने करीबी सहयोगियों साहिलेसारस के लगभग 1करोड़ वर्ष और पुराने होने की पुष्टि हुई है शोध में यह भी कहा गया है कि धीरे-धीरे सालेसारस के साथ ही डायनासोर की उत्पत्ति हो गई शोधकर्ताओं को दक्षिण तंजानिया से लगभग 14 जीवाश्म हड्डियां मिली है जिन पर शोध किया गया है

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भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया टीवी के जीवाणु का जिनोम मैप

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तपेदिक गरीबों की बीमारी है इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके इलाज पर खास दिलचस्पी नहीं लेती टीबी से अंतिम लड़ाई का नेतृत्व करते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने इसके जीवाणु माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस के जीनोम की संपूर्ण सिक़्वेन्सिंग कर ली है सीएसआईआर के नेतृत्व में डेढ़ सौ वैज्ञानिकों ने एमटीवी के सभी 4000 जिलों को चिन्हित कर उसका डिजिटल मैप तैयार किया है इतना ही नहीं सीएसआईआर ने इन्हें फार्मा कंपनियों को निशुल्क उपलब्ध कराने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध कराने का ऐलान किया है कि निदेशक ने बताया था कि इससे कम कीमत में और ज्यादा असरदार दवा इलाज की नई तकनीक हासिल करने का रास्ता खुल गया है 146 करोड़ की लागत से डिलीवरी ओपन कोर्स ड्रग डिलीवरी कार्यक्रम शुरू किया था इसके तक यह बड़ी सफलता है इसी कार्यक्रम में कनेक्ट टू द कोर्ट कॉन्फ्रेंस शुरू हुई थी उसमें वैज्ञानिकों ने टीबी जीन और उनकी सीक्वेंसिंग को अंतिम रूप प्रदान किया था वैज्ञानिकों ने कहा हां कहा था कि हालांकि दुनिया में एमटीवी के जीनोम को एक दशक पहले ही डिकोड कर लिया गया था लेकिन तब वैज्ञानिकों ने इसके 4000 जीन में से करीब 1000 जीन की ही सीक्वेंसिंग की थी हमने आगे सभी 4000 जीन की सीक्वेंसिंग की है इस डेटाबेस को वह osdd.net पर डाला जाएगा टीबी की कोई नई दवा ईज़ाद नहीं हुई है 1960 के बाद गौरतलब है कि इतने वर्षों में बीमारियों के जीवाणु ने खुद को बदल डाला और अब इसकी कुछ नई प्रजातियों को दवाओं का असर नहीं होता

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बुधवार, 27 जनवरी 2021

मृत्यु के बाद का जीवन

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"अपनी इच्छा से प्रकट और अदृश्य हो सकती है आत्‍मा" आत्मा और भूत-प्रेतों की दुनया बड़ी रहस्यमयी है। जिनका इससे सामना हो जाता है वह मानते हैं की आत्मा और भूत-प्रेत होते हैं और जिनका इनसे सामना नहीं होता है वह इसे कल्पना मात्र मानते हैं। लेकन भूत-प्रेत या आत्माओं का वजूद नहीं है इसे सरे से खारिज करना सही नहीं होगा कई बार कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जो अशरीरी आत्मा के वजूद को मानने पर विवश कर देती है। विज्ञानं भी इस विषय पर परीक्षण कर रहा है और कई ऐसे प्रमाण सामने आए हैं जो यह बताते हैं कि मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व रहता है और यह कभी भी अपनी इच्छा से प्रकट और अदृश्य हो सकती है। इसी तरह की एक घटना के बारे में यहां हम बात कर रहे हैं।हम जिस घटना की बात करने जा रहे हैं वह लुधयाना के एक निवासी की है जो कारोबार के सिलसिले में पूर्वी अफ्रीका की राजधानी नैरोबी में जाकर बस गए। एक बार इनकी पत्नी अफ्रीका से पंजाब आई तो अचानक दिल का दौड़ा पड़ा और स्‍थि गंभीर हो गई।कत्सकों ने काफी प्रयास किया लेकन वह नाकामयाब रहे और व्यवसायी की पत्नी ने देह त्याग दया। मरने से पहले इन्होंने अपने अंतिम संस्कार की जैसी बात की थी उसी विधऔर तरीके से अंतम संस्कार कर दिया गया।हम जिस घटना की बात करने जा रहे हैं वह लुधियाना के एक निवासी की है जो कारोबार के सलसले में पूर्वी अफ्रीका की राजधानी नैरोबी में जाकर बस गए। एक बार इनकी पत्नी अफ्रीका से पंजाब आई तो अचानक दिल का दौड़ा पड़ा और स्थिति गंभीर हो गई।चिकित्सकों ने काफी प्रयास कया लेकिन वह नाकामयाब रहे और व्यवसायी की पत्नी ने देह त्याग दिया। मरने से पहले इन्होंने अपने अंतम संस्कार की जैसी बात की थी उसी और तरीके से अंतम संस्कार कर दिया गया।कुछ ऐसे बीता और कारोबारी की तबीयत भी खराब हो गयी और चिकित्सकों ने लंदन जाकर उपचार कराने की सलाह दी। लंदन में जब चित्सकों ने जांच की और बताया क रोग अधिक गंभीर नहीं है कुछ दिन के उपचार से स्वस्‍थ हो जाएंगे तो तैयार होकर कारोबारी अपने होटल में पहुंचे।उस रात जैसे ही इन्होंने ने कमरे का दरवाजा खोला इन्हें लगा कि कमरे में कोई पहले से मौजूद है। आगे बढ़कर जब इन्होंने देखा तो सामने इनकी मरी हुई पत्नी पलंग पर बैठी नजर आई। इस दृश्य को देखकर कारोबारी ठिठक गए लेकिन इनकी पत्नी की आत्मा ने आगे बढ़कर बोलना शुरु कया।कारोबारी की पत्नी बोली तुमने जो मेरा अंतिम संस्कार करवाया है उससे मैं संतुष्ट हूं। मैंने दक्षिणा में दी हुई अंगूठी भी देखी है। मैं हमेशा आपके साथ रहती हूं और अफ्रीका से साथ-साथ लंदन आई हूं। यहां डाक्टरों की जांच के बाद अब मुझे शांति मिली है।अमेरिका में कुछ दिनों पहले हुई दुर्घटना में अपने दूसरे बेटे की जान मैंने ही बचाई थी। जब पत्नी की आत्मा ने विदाई मांगी तो कारोबारी की आंखें भर आई और उन्होंने अपनी पत्नी को गले लगा लिया कारोबारी ने अपने इस अनुभव को 'रूहों की दुनिया' नामक की पुस्तक में लिखा है। यह लखते हैं क उस समय जब इन्होंने पत्नी को गले लगाया तो उसका शरीर वैसा ही था जैसे वह जीवनकाल में थी। इसके बाद वह अदृश्य हो गई।इस घटना का उल्लेख परलोक और पुनर्जन्म नाम की पुस्तक में भी है साभार अमरउजाला डाट कॉम

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मंगलवार, 26 जनवरी 2021

प्राण ऊर्जा के असंतुलन के 10 लक्षण

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प्राण संस्कृत का शब्द है जिसका संबंध जीवन शक्ति से है। यदि आप जीवन में खुशहाली और सकारात्मकता चाहते हैं तो प्राण ऊर्जा को संतुलित करना बहुत जरूरी है। जब हमारी प्राण ऊर्जा मजबूत होती है तो हम प्रसन्न, स्वस्थ और संतुलित महसूस करते हैं लेकिन यदि हमारी आदतें और जीवनशैली खराब हो तो प्राण शक्ति कमजोर हो जाती है। इसकी वजह खराब डायट, खराब जीवनशैली और नकारात्मक सोच है। ऐसा होने पर हमें शारीरिक और मानसिक स्तर पर कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जो वास्तव में खतरे की घंटी है कि आपकी प्राण ऊर्जा कमजोर पड़ रही है।प्राण ऊर्जा का कार्यजब हम सांस लेते हैं हम प्राण ऊर्जा ग्रहण करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हम तो ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं लेकिन आपको जानने की जरूरत है, प्राण शक्ति वो अनछुआ और अनदेखा एहसास है जो अध्यात्म में मौजूद तो है लेकिन इसे आप तभी महसूस कर पाएंगे जब आपका रुख अध्यात्म की तरफ होगा।ये जीवन शक्ति ऊर्जा के रूप में शरीर में फैलती है बिल्कुल वैसे ही जैसे नसों के जरिए खून संपूर्ण शरीर में दौड़ता है। यह प्राण शक्ति 7 चक्रों से होती हुई पूरे शरीर में बहती है ठीक उसी तरह जैसे रक्त सभी अंगों तक पहुंचता है। जब यह ऊर्जा ब्लॉक हो जाती है तो हमें कुछ शारीरिक और भावात्मक लक्षण दिखाई देते हैं। प्राण ऊर्जा के असंतुलन के 10 लक्षण 1. अत्यधिक थकान और आलस 2. तनाव और काम से थकान या चाहकर भी इसे नहीं बदल पाना 3. बार-बार नकारात्मक और हानिकारक विचार 4. प्रेरणा की कमी 5. जो भी चीज़ नकारात्मक लगे उसके प्रति फौरन और बार-बार भावात्मक प्रतिक्रिया देना 6. सिर दर्द और उलझन 7. जुकाम, एलर्जी या रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ा कोई विकार 8. परेशान रहना 9. पाचन तंत्र की परेशानी जैसे खराब पेट या डायरिया 10. सेक्सुअल दिक्कतें< ये 10 लक्षण यदि आपको अपने अंदर बार-बार दिख रहे हों और वो भी तब जब आपको कोई बड़ी बीमारी ना हो और आप चिकित्सीय रूप से स्वस्थ हों तब समझिए आपकी प्राण ऊर्जा को रिचार्ज करने की जरूरत है। sabhar :https://hindi.speakingtree.iin

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रोटी बनाने वाला रोबोट

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भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है जहां आज भी तीनों वक्त का खाना गर्म खाया जाता है और जहां रोटी भी ताजा ही बनाई जाती है. मां के हाथ ही रोटी का स्वाद तो सबको पसंद होता है लेकिन आज कल की भाग दौड़ की जिंदगी में उस स्वाद के लिए कई बार लोग तरस जाते हैं. खास कर अगर महिला और पुरुष दोनों ही कामकाजी हों, तो खाना पकाने का वक्त कम ही मिल पाता है.इस समस्या से निपटने के लिए भारत में लोग रसोइये रख लेते हैं. लेकिन जो भारतीय विदेशों में रहते हैं, उनके पास यह विकल्प भी नहीं है. उन्हीं को ध्यान में रखते हुए यह रोटी बनाने वाला रोबोट तैयार किया गया है. इसे बनाने वाली कंपनी का दावा है कि उनकी मशीन आटा गूंथने से ले कर, पेड़े बनाने, बेलने और रोटी को सेंकने तक का सारा काम खुद ही कुछ मिनटों में कर लेती है. हालांकि इसके दाम को देख कर लगता नहीं है कि बहुत लोग इसे खरीदेंगे. एक रोटी मेकर के लिए एक हजार डॉलर यानि 65 हजार रुपये तक खर्च करने होंगे. sabhar :www.dw.com

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सोमवार, 25 जनवरी 2021

दूरानुभूति परामनोविज्ञान

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क्या आप अपनी बातों को बिना मोबाईल, टेलीफोन या दूसरे भौतिक क्रियाओं और साधनों के दूसरों तक पहुंचा सकते हैं। एक बारगी आप कहेंगे ऐसा संभव नहीं है, लेकिन यह संभव है। आप बिना किसी साधन के दूसरों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं यह संभव है दूरानुभूति से, एफडब्ल्यूएच मायर्स ने इस इस बात का उल्लेख किया है इसे टेलीपैथी भी कहते हैं। इसमें ज्ञानवाहन के ज्ञात माध्यमों से स्वतंत्र एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में किसी प्रकार का भाव या विचार पहुंचता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक दूसरे व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के बारे में अतींद्रिय ज्ञान को ही दूरानुभूति की संज्ञा देते हैं। परामनोविज्ञान में एक और बातों का प्रयोग होता है। वह है स्पष्ट दृष्टि। इसका प्रयोग देखने वाले से दूर या परोक्ष में घटित होने वाली घटनाओं या दृश्यों को देखने की शक्ति के लिए किया जाता है, जब देखने वाला और दृश्य के बीच कोई भौतिक या ऐंद्रिक संबंध नहीं स्थापित हो पाता। वस्तुओं या वस्तुनिष्ठ घटनाओं की अतींद्रिय अनुभूति होती है यह प्रत्यक्ष टेलीपैथी कहलाती है।टेलीपैथी के जरिए किसी को किसी व्यक्ति को कोई काम करने के लिए मजबूर भी किया जा सकता है। ऐसा ही एक मामला तुर्की में आया है। यहां कुछ लोगों को टेलीपैथी के जरिए इतना विवश कर दिया गया कि उन्होंने आत्म हत्या कर लिया sabhar amarujala.com

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मानव मल से बनेगा सोना और खाद

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न्यूयॉर्क। भले ही यह सुनने में अजीब लगे, लेकिन सच है, क्योंकि अमेरिकी शोधकर्ता इंसान के मल से सोना और कई दूसरी कीमती धातुओं को निकालने में लगे हुए हैं। शोधदल ने अमेरिका के मैला निष्पादन संयत्रों में इतना सोना निकालने में कामयाबी हासिल की है जितना किसी खान में न्यूनतम स्तर पर पाया जाता है। एक अंग्रेजी वेबसाइट पर छपी खबर के मुताबिक डेनवर में अमेरिकन केमिकल सोसायटी की 249वीं राष्ट्रीय बैठक में मल से सोना निकालने के बारे में विस्तार से बताया गया है यूएस जिओलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के सह-लेखक डॉक्टर कैथलीन स्मिथ के मुताबिक हमने खनन के दौरान न्यूनतम स्तर पर पाई जाने वाली मात्रा के बराबर सोना कचरे में पाया है। उन्होंने बताया कि इंसानी मल में सोना, चांदी, तांबा के अलावा पैलाडियम और वैनेडियम जैसी दुर्लभ धातु भी होती है।शोधदल का मानना है कि अमेरिका में हर साल गंदे पानी से 70 लाख टन ठोस कचरा निकलता है। इस कचरे का आधा हिस्सा खेत और जंगल में खाद के रूप में उपयोग मे लिया जाता है बचे हुए आधो हिस्से को जला दिया जाता है या फिर जमीन भरने के काम में ले लिया जाता है।

धातु निकालने के लिए औद्योगिक खनन प्रक्रियाओं में जिस रासायनिक विधि का प्रयोग किया जाता है वैज्ञानिक उसी विधि से कचरे से धातु निकलने का प्रयोग कर किया जा रहा है। इससे पहले वैज्ञानिकों के एक दूसरे दल ने अनुमान कि आधार पर बताया था कि दस लाख अमेरिकी जितना कचरा पैदा करते हैं उस कचरे में से एक करोड़ तीस लाख डॉलर की धातु निकाली जा सकती है। मल त्यागना हम सबकी दिनचर्या का हिस्सा है. लेकिन क्या इंसानी मल किसी काम आ सकता है? बिल्कुल. जर्मनी में रिसर्चर कहते है कि इससे खाद बनाया जा सकता है जिसका खेती में इस्तेमाल किया जा सकता है. देखिए ये कैसे संभव होता है. sabhat webdunia dw.de

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रविवार, 24 जनवरी 2021

इंसान मशीन में बदल जायेगा

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आने वाले समय में इंसान में मशीन का कम्बीनेशन एक साथ हो सकता है कभी स्वास्थ्य कारणों से तो कभी सेना में जरूरत के लिए रोबोटिक कंकालों पर शोध होता है. बीते दशक में इंसान के शरीर की ही तरह हरकतें करने में सक्षम रोबोटिक हाथ, पैर और कई तरह के बाहरी कंकाल विकसित किए जा चुके हैं.पूरी तरह रोबोटिकआइला नाम की यह मादा रोबोट दिखाती है कि एक्सो-स्केलेटन यानि बाहरी कंकाल को कैसे काम करना चाहिए. जब किसी व्यक्ति ने इसे पहना होता है तो आइला उसे दूर से ही नियंत्रित कर सकती है. आइला को केवल उद्योग-धंधों में ही नहीं अंतरिक्ष में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.हाथों से शुरु जर्मनी में एक्सो-स्केलेटन पर काम करने वाला डीएफकेआई नाम का आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस रिसर्च सेंटर 2007 में शुरू हुआ. शुरुआत में यहां वैज्ञानिक रोबोटिक हाथ और उसका रिमोट कंट्रोल सिस्टम बनाने की ओर काम कर रहे थे. तस्वीर में है उसका पहला आधुनिक प्रोटोटाइप. बेहद सटीक डीएफकेआई ने 2011 से दो हाथों वाले एक्सो-स्केलेटन पर काम शुरू किया. दो साल तक चले इस प्रोजेक्ट में रिसर्चरों ने इंसानी शरीर के ऊपरी हिस्से की कई बारीक हरकतों की अच्छी नकल कर पाने में कामयाबी पाई और इसे एक्सो-स्केलेटन में भी डाल सके रूस का रिमोट कंट्रोलकेवल जर्मन ही नहीं, रूसी रिसर्चर भी रिमोट कंट्रोल सिस्टम वाले एक्सो-स्केलेटन बना चुके हैं. डीएफकेआई ब्रेमन के रिसर्चरों को 2013 में रूसी रोबोट को देखने का अवसर मिला. इसके अलावा रूसी साइंटिस्ट भी आइला रोबोट पर अपना हाथ आजमा चुके हैं.बिल्कुल असली से हाथदुनिया की दूसरी जगहों पर विकसित किए गए सिस्टम्स के मुकाबले डीएफकेआई के कृत्रिम एक्सो-स्केलेटन के सेंसर ना केवल हथेली पर लगे हैं बल्कि बाजू के ऊपरी और निचले हिस्सों पर भी. नतीजतन रोबोटिक हाथ का संचालन बेहद सटीक और असली सा लगता है. इसमें काफी जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स इस्तेमाल होता है. भार ढोएंगे रोबोटिक पैर डीएफकेआई 2017 से रोबोटिक हाथों के साथ साथ पैरों का एक्सो-स्केलेटन भी पेश करेगा. यह इंसान की लगभग सभी शारीरिक हरकतों की नकल कर सकेगा. अब तक एक्सो-स्केलेटन को पीठ पर लादना पड़ता था, लेकिन भविष्य में रोबोट के पैर पूरा बोझ उठा सकेंगे.लकवे के मरीजों की मदद इन एक्सो-स्केलेटनों का इस्तेमाल लकवे के मरीजों की सहायता के लिए हो रहा है. ब्राजील में हुए 2014 फुटबॉल विश्व कप के उद्घाटन समारोह में वैज्ञानिकों ने इस तकनीकी उपलब्धि को पेश किया था. आगे चलकर इन एक्सो-स्केलेटन में बैटरियां लगी होंगी और इन्हें काफी हल्के पदार्थ से बनाया जाएगा. फिलहाल इन एक्सो-स्केलेटन की अंतरिक्ष में काम करने की क्षमता का परीक्षण त्रिआयामी सिमुलेशन के द्वारा किया जा रहा है. इन्हें लेकर एक महात्वाकांक्षी सपना ये है कि ऐसे रोबोटों को दूर दूर के ग्रहों पर रखा जाए और उनका नियंत्रण धरती के रिमोट से किया जा सके. भविष्य में खतरनाक मिशनों पर अंतरिक्षयात्रियों की जगह रोबोटों को भेजा जा सकता है.बिल्कुल असली से हाथ दुनिया की दूसरी जगहों पर विकसित किए गए सिस्टम्स के मुकाबले डीएफकेआई के कृत्रिम एक्सो-स्केलेटन के सेंसर ना केवल हथेली पर लगे हैं बल्कि बाजू के ऊपरी और निचले हिस्सों पर भी. नतीजतन रोबोटिक हाथ का संचालन बेहद सटीक और असली सा लगता है. इसमें काफी जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स इस्तेमाल होता है.जर्मनी में एक्सो-स्केलेटन पर काम करने वाला डीएफकेआई नाम का आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस रिसर्च सेंटर 2007 में शुरू हुआ. शुरुआत में यहां वैज्ञानिक रोबोटिक हाथ और उसका रिमोट कंट्रोल सिस्टम बनाने की ओर काम कर रहे थे और सफल भी रहे sabhar dW.COM

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"हल्दी और एंटीबायोटिक्स का मिश्रण कई गुना उपयोगी

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भारत के हैदराबाद विश्वविद्यालय और रूस के नोवोसिबिर्स्क राजकीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एक अंतर्राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत ऐसी दवाइयां तैयार करने के काम में जुटे हुए हैं जिनके लिए हल्दी सहित अन्य पारंपरिक भारतीय मसालों का उपयोग किया जा सकता है। नोवोसिबिर्स्क राजकीय विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई एक सूचना के अनुसार, "प्रोफेसर अश्विनी नानिया के नेतृत्व में हैदराबाद विश्वविद्यालय के भारतीय वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अगर हल्दी और एंटीबायोटिक्स को मिलाकर क्रिस्टल बनाए जाएं और आगे इन क्रिस्टलों को पीसकर दवाइयां बनाई जाएं तो ऐसी दवाइयों का असर कई गुना बढ़ जाएगा।"इस परियोजना में शामिल रूसी वैज्ञानिकों का नेतृत्व नोवोसिबिर्स्क राजकीय विश्वविद्यालय के ठोस रसायनिक विज्ञान विभाग की प्रमुख और इस विश्वविद्यालय की एक वरिष्ठ शोधकर्ता, प्रोफेसर ऐलेना बोल्दरेवा कर रही हैं। sabhar : sputanik news

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शनिवार, 23 जनवरी 2021

पहली जीरो बजट फिल्म

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बॉलीवुड क्या हॉलीवुड के इतिहास में भी कभी कोई जीरो बजट फिल्म नहीं बनी लेकिन लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज होने वाला यह कारनामा कर दिखाया कुछ युवाओं ने इन युवाओं ने सोचा कि कुछ ऐसा क्यों ना किया जाए जो हॉलीवुड और बॉलीवुड में कभी ना किया गया हो नतीजे के तौर पर दुनिया की पहली जीरो बजट मूवी लो हो गई पार्टी बनकर सामने आई लेखक निर्देशक तेजस हरपालिया के निर्देशन में अनिरुद्ध दवे वैदेही हमेशा परेश भट्ट मानव वासवानी और लुविना भाटिया जैसे युवाओं ने बिना एक पैसा लिए दिन रात एक कर के इस फिल्म को बनाई थी इसमें सतीश कौशिक और मनोज ऐसे मनोज जोशी जैसे वरिष्ठ कलाकारों का सहयोग इन युवाओं को मिला इस फिल्म में जो घर दिखाया गया वह अनुरोध जगह का है फिल्म के तकनीकी पक्ष में कई वर्ष तक नीचे उन्होंने बिना किसी पैसे के सहयोग किया है उल्लेखनीय है कि तेजस 
 मोबाइल मूवी बनाकर अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करा चुकी है

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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

अस्कोट के पालों का प्रभुत्व

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ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह तथ्य सामने आता है कि अस्कोट राज्य की स्थापना सन 1238 ई. में हुई और यह 1623 ई. तक स्वतंत्र रूप में विद्यमान रहा। अपनी स्थिति एवं विशिष्टता के कारण यह कत्यूरी, चन्द, गोरखा व अंग्रेजी शासन के बाद स्वतंत्र भारत में जमींदारी उन्मूलन तक रहा।अस्कोट परगना महा व उप हिमालयी पट्टी के मिलन पर बना एक विस्तृत भू-खण्ड है, जिसमें छिपला एवं घानधुरा जैसे सघन वनों से आवृत्त पर्वत मालायें, गोरी, काली, धौली नदियों की गहरी घाटियों के क्षेत्र और आकर्षक सेरे मानव बसाव के लिये उपयुक्त रहे। अस्कोट काली जल-ग्रहण क्षेत्र में पड़ता है। इसमें छिपला से उतरने वाली अनेक छोटी नदियाँ जैसे मदकनी, बरमगाड़, रौंतीसगाड़, चरमगाड़, चामीगाड़, गुर्जीगाड़ के ढालों में भी काश्त के लिये सीढ़ीदार उपजाऊ खेत और इन खेतों से लगे छोटे-छोटे बनैले गाँव आकर्षण का कारण बनते हैं। प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से अस्कोट एक सम्पन्न परगना माना जा सकता है।अभिलेखों में बंगाल, काबुल, कटोर, कश्मीर, देव प्रयाग, टिहरी गढ़वाल एवं बैजनाथ के पाल मुख्य हैं। विभिन्न स्थानों से पालों के अभिलेख उपलब्ध होने से पालों के साम्राज्य का सन्दर्भ सहज प्राप्त होता है। इस दृष्टि से अस्कोट राज्य के पाल वंश का सन्दर्भ उकु, देथला, विण (नेपाल), घुईसेरा (घुन्सेरा), बत्यूली, बचकोट, रावलखेत (मुवानी), भिसज (भेटा), सिंगाली एवं ऊँचाकोट से प्राप्त ताम्रपत्रों से मिलता है। इसके साथ ही अस्कोट राज्य के तिब्बत व नेपाल में फैले प्रभाव का भी पता चलता है। अस्कोट के पालों का प्रभुत्व 13वीं से लेकर 16वीं शताब्दी तक दिखता है। अंग्रेजी शासन काल में वे 154 गाँवों के मुआफीदार की हैसियत पा रहे थे।अस्कोट के पाल वंश के पूर्वज बैजनाथ (कत्यूर घाटी) से आये थे। रजबारों की अपनी रागभाग के अनुसार दो तीर्थयात्री श्री शैल तथा मल्लिकार्जुन दक्षिणी भारत से कैलास मानसरोवर की यात्रा के लिये अस्कोट मार्ग से गये। तिब्बत में ये यात्री डाकुओं द्वारा लूट लिये गये और कठिन परिस्थितियों के बीच वे कत्यूरी नरेश त्रिलोक पाल देव के पास पहुँचे। श्री शैल तथा मल्लिकार्जुन ने क्षेत्र की दयनीय स्थिति व सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी उन्हें दी और इस व्यवस्था को निष्कंटक करने के लिये एक युवराज की माँग की। राजा त्रिलोकपाल देव ने अपने सबसे छोटे पुत्र अभय देव को नीमनाथ, जोगेश्वर एवं भ्यूराज पाण्डे के साथ इस क्षेत्र की रक्षा के लिये भेजा।अस्कोट राज्य का संस्थापक अभय देव को माना जाता है। एट्किंसन और बद्रीदत्त पाण्डे अस्कोट राज्य की स्थापना शाके 1201 सन 1279 ई. मानते हैं, किन्तु कुछ इतिहासकार साक्ष्यों के अभाव में अभयपाल को अस्कोट राज्य का वास्तविक संस्थापक नहीं स्वीकारते हैं। वे उकु के शिलालेख को ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करते हुए नागपाल को वास्तविक संस्थापक के रूप में देखते हैं। इस शिलालेख से स्पष्ट होता है कि इस राज्य की स्थापना शाके 1160 सन 1238 में ही हो गयी थी। उकु शिलालेख में त्रिविक्रम राजा नागपाल देव का वर्णन है। घुन्सेरा ताम्रपत्र में राजा भारथी पाल ने नागपाल को अपना पूर्ववर्ती राजा माना है। इस तरह यह स्पष्ट है कि नागपाल ने ही अस्सी खस राजाओं के प्रभाव को हटाकर अस्कोट राज्य की स्थापना की। शायद इसीलिये यह क्षेत्र अस्सी कोटों से मिलकर अस्कोट कहलाता रहा।पाल राजाओं के अन्य महत्त्वपूर्ण अभिलेखों में निर्भय पाल का बत्यूली अभिलेख शाके 1275 सन 1353 ई., भारथी पाल का घुन्सेरा ताम्र पत्र शाके 1316 सन 1394, तिलकपाल का बचकोट ताम्रपत्र शाके 1343 सन 1421, रजबार कल्याण पाल का भीषज भेटा ताम्रपत्र शाके 1525 सन 1603, रजबार महेन्द्र पाल का क्रमशः सिंगाली ताम्रपत्र शाके 1544 सन 1622 और ऊँचाकोट ताम्रपत्र शाके 1543 सन 1623 ज्ञात हैं।इन अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि 375 वर्षों तक अस्कोट स्वतंत्र राज्य के रूप में विद्यमान था। स्वतंत्र शासक ही भूमिदान सम्बन्धी ताम्रपत्र दिया करते थे। इन ताम्रपत्रों से इस राज्य की प्रारम्भिक राजधानी उकु के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। इसी ताम्रपत्र के अनुसार राजा भारथी पाल ने घुन्सेरा गाँव के भतभाट को अपने पूर्ववर्ती राजाओं के समान निर्वहन करने के अधिकार निर्गत किये थे। इन ताम्रपत्रों से राजाओं की उपाधियों का भी ज्ञान होता है। जैसे नागपाल ने अस्कोट राज्य की स्थापना के बाद ‘त्रि-विक्रम’ की उपाधि धारण की थी। निर्भय पाल ने ‘रायताराम्रगांग परम महीश्वर राजाधिराज महाराज’ की उपाधि ग्रहण की थी। यह क्रम बाद में रजबार के रूप में जाना जाने लगा था, क्योंकि बाद के शासकों जैसे भारथीपाल, तिलकपाल, कल्याणपाल, महेन्द्रपाल के नाम के आगे रजवार उपाधि लिखी जाने लगी थी किन्तु महेन्द्रपाल ने सिंगाली ताम्रपत्र में अपनी उपाधि रजबार के साथ ‘राजाधिराज महाराज’ भी लिखी थी।अस्कोट के पाल रजबार सूर्यवंशीय एवं सौनव गोत्री माने जाते हैं। मूल कत्यूरी साम्राज्य 14वीं सदी में आन्तरिक व बाह्य परिस्थितियों के कारण विघटित हो चुका था। कत्यूर राज के अन्तर्गत विभिन्न छोटे राज्यों ने अपनी स्वतंत्र ठकुराइयाँ स्थापित कर ली थीं। सम्भवतः तभी इस स्वतंत्र राज्य के शासकों ने अपने को श्रेष्ठ मानते हुए रजबार घोषित कर दिया होगा। इस तरह का उदाहरण उकु शिलालेख में भी मिलता है कि राजा नाग ने ‘देव’ से ‘पाल’ पदवी धारण कर ली थी। सहण पाल के बोध गया लेख से यह ज्ञात होता है कि 13वीं सदी में पाल कोई जातीय शब्द नहीं था। सहण पाल ने अपने पिता का नाम चाटब्रह्म तथा पितामह का नाम ऋषिब्रह्म कहा है।ताम्रपत्रों के अध्ययन से पालों की नयी वंशावली का सृजन सन 1238 से सन 1613 ई. तक होता है। अस्कोट की पाल वंशावली में 108 पीढ़ी तक के नाम सुरक्षित हैं। नामों के क्रम में भूल-चूक हो सकती है लेकिन पीढ़ी की संख्या में नहीं।अस्कोट के शासक भी मंत्री का पद ब्राह्मणों के लिये सुरक्षित रखते थे। प्रारम्भिक समय में ओझा मंत्री और राजगुरु के पद पर थे। सन 1588 ई. में राजा रायपाल श्री गोपी ओझा द्वारा मारे गये। ओझा जाति के इस कृत्य के बाद राजगुरु का पद छीनकर वास्थी (अवस्थी) ब्राह्मणों को दे दिया गया। बड़े पुत्र को राजगद्दी मिलती थी। युवराज को ‘लला’ तथा विरादरों को ‘गुसाईं’ कहते थे। जगराज पाल का यह मानना है कि अस्कोट राज्य में पहले प्रतिष्ठित ब्राह्मण भट्ट थे, जिन्हें कत्यूरी युग में परम भट्टारक भी कहा जाता था। विविध ब्राह्मण पाँचवी-छठी शताब्दी के बाद ही उत्तराखण्ड में आये और अपने को उच्च श्रेणी का घोषित कर राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर आ गये। अनुश्रुतियों के आधार पर अस्कोट परगने में पटवारी एवं तहसीलदार का पद ब्राह्मण खानदान वालों को मिलता रहा। राजा रूप चन्द के समय कुँवर गुरु गुसाईं को दारमा व जोहार का बन्दोबस्ती ऑफीसर व शासक बनाया गया था। संसाधनरजबारों के पास आय के साधनों में काश्त की गई भूमि, जंगल, खान एवं खनिज थे। विभिन्न ताम्रपत्रों से लगान एवं करों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ‘छत्तीस रकम बत्तीस कलम’ वाली प्रथा कायम थी। ताम्रपत्रों से घोड़ालो, कुकरालों, (घोड़ों एवं कुत्तों पर कर), चराई कर, भराई कर, दसौत एवं विसौत के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। बेलवासो, कल्लो आदि करों को भी कड़ाई से वसूल किया जाता था। राज्य में प्रत्येक ब्यायी गाय-भैंस पर भी कर लिया जाता था। गोरखा युग में ‘रसून’ को घी कर कहा जाने लगा था। ‘ज्यूलिया’ (झूलिया) नदी पार करते कमय पुलों पर लिया जाने वाला कर था। ‘बैकर’ राजदरबार में अन्न के रूप में ली जाने वाली भेंट, राजा के दर्शन करने पर राजा को दी जाने वाली राशि या नजराना, ‘सिरती’ राजा को दी जाने वाली नकद राशि थी, जिसे कालान्तर में ‘रकम’ भी कहा जाता था। सेना के लिये जाने वाले कर को ‘कटक’ या स्यूक कहा जाता था। भूमिदान प्राप्तकर्ता को ‘डणै’ एवं पालकी के साथ अन्य करों से भी मुक्त रखा जाता था।सन 1588 ई. में अस्कोट राज्य की स्थिति बिगड़ने से इसका सीधा प्रशासन राजा रूप चन्द के पास आ गया था। रूप चन्द ने ही 300 रुपये वार्षिक कर पर कुँवर महेन्द्र पाल को अपना करद राजा बनाया। गोरखों ने मालगुजारी बढ़ाकर 2000 वार्षिक कर दी थी। अंग्रेजी शासनकाल में सन 1815 ई. में गार्डनर ने कुमाऊँ के साथ अस्कोट का पहला बन्दोबस्त किया था। यह बन्दोबस्त गोरखा अधिकारियों द्वारा गत वर्ष वसूल की गई वार्षिक वसूली पर आधारित था। नई बात यह थी कि वसूली गोरखाली सिक्कों एवं जिन्सों के रूप में न होकर फरूखाबादी रुपयों में होने लगी थी। सन 1817 में दूसरा, 1818 में तीसरा, 1820 में चौथा तथा 1823 में पाँचवा बन्दोबस्त ट्रेल ने किया। इसे अस्सी साला बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है। सन 1829 में छठा, 1832 में सातवाँ, 1833-34 में आठवाँ भूमि बन्दोबस्त हुआ था। नवाँ भूमि बन्दोबस्त बैटन द्वारा किया गया था। 10वाँ बैकेट द्वारा 1863 में किया, जो 1873 तक चला। इसे तीस साला बन्दोबस्त भी कहा गया। डोरी पैमाइश के आधार पर सर्वे की गई, फाट खाता, रकबा, मुन्तखिव तैयार किया गया। गाँव की दर उपजाऊ, दोयम आदि को जमीन की किश्त माना गया।11वाँ बन्दोबस्त मि.गूँज ने करवाया। सन 1940-41 में परगने का 12वाँ बन्दोबस्त हुआ। गोबिन्दराम काला सहायक बन्दोबस्त अधिकारी थे। उन्होंने परगने में प्लेन टेबुल सर्वे करायी। नये बन्दोबस्त के फलस्वरूप परगने की मालगुजारी 7596 रुपये आयी। किन्तु रजबार अस्कोट पर कुल रकम 5000 रुपये सालाना 40 वर्ष के लिये पिछले बन्दोबस्त में तय की गई थी। इस बन्दोबस्त की यह विशेषता थी कि इसे मात्र अस्कोट परगने में ही करवाया गया था। संख्या के हिसाब से अगला बन्दोबस्त 1964-65 में करवाया गया। अस्कोट रजबार अपने खायकरों एवं सिरतानों से बेगार भी लेते थे। यह बेगार गोरखा युग में बहुत अधिक चलन में आ गयी थी। अंग्रेजी शासन के आने पर अस्कोट परगने की प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव आया और शासन पर अंग्रेजों का अंकुश बढ़ गया। इस पर भी अस्कोट के राजनैतिक महत्व को स्वीकारते हुए इसे विशेष स्थान मिलता रहा। अंग्रेजों से प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग रजबारों द्वारा अनेक अवसरों पर किया गया और यों भी इस क्षेत्र की गरीब जनता पर रजबार का आतंक, शोषण, उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है। शासन की दोहरी प्रणाली के कारण ही इस इलाके के उत्पीड़ित किसानों ने सन 1936-37 ई. में रजबार के विरुद्ध जन आन्दोलन खड़ा किया और तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व ने इस आन्दोलन को महत्व दिया और तत्कालीन रजबार को परिस्थितियों में सुधार के लिये निर्देशित व बाध्य किया पड़ोस तथा प्रजा पाल रजबार के अपने पड़ोसी राज्यों से महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध रहते थे। उनके निकटस्थ परगने दारमा, जोहार तथा तिब्बत, नेपाल, बजांग, मणिकोट, सोर तथा सीरा आदि राज्य थे। शाके 1275 में सीरा के मल्लों का प्रभाव निर्भयपाल ने कम किया था तथा बत्यूली ग्राम के रत्तू जोशी को भूमि दान में उपरोक्त गाँव देकर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया था। समय-समय पर सीमाओं का विस्तार भी इनके द्वारा किया गया। सोर परगने से लगे गाँव घुन्सेरा में भी इन्होंने अपना अधिकार कर लिया था। कभी रजबार उचित चिकित्सा के कारण भी भू-दान किया करते थे, जैसे शाके 1525 सन 1603 में रजबार कल्याण पाल और चम्पावत के राजा लक्ष्मण चन्द के सामूहिक रूप से भिषज ग्राम के महानन्द वैद्य को उचित चिकित्सा के फलस्वरूप भूमि दान किया था।अस्कोट का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा शूद्र वर्गों में विभाजित था। यही जातियाँ व्यापार भी करती थीं। वैश्य जाति अलग से नहीं थी। प्राचीन परम्परागत नियमों के अनुसार पाल वंश के सबसे बड़े पुत्र को राजगद्दी प्राप्त होती थी। राजगद्दी के लिये कई बार राज्य में झगड़े की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती थी। रजबार के अन्य भाइयों की सन्तानें रजबार से प्राप्त गाँवों में बस जाती थीं और यही गाँव उनकी आजीविका के साधन होते थे। यह क्षेत्र शौका तथा राजी समुदायों का निवास स्थल था। राजी व छिपला के जंगलों में निवास करते थे। यहाँ बौद्ध, इस्लाम तथा सिक्ख धर्मावलम्बी गिने-चुने थे। सन 1850 ई. में अजिमुल्ला शेख काशीपुर से व्यापार के लिये अस्कोट आये थे। इनकी तिजारत अस्कोट के साथ सीमान्त तक थी। सन 1886 ई. में घासी शेख नाम के एक-दूसरे व्यापारी यहाँ आये। वे हकीम भी थे और जानवरों की भी औषधि किया करते थे। पुष्कर पाल के समय में ही इन्होंने अस्कोट और जौलजीवी में मस्जिद बनाने के लिये जगह ली थी। मुस्लिम व्यापारी वर्ष में एक बार रजबार को खाना व भेंट दिया करते थे।स्वामी प्रणवानन्द के अनुसार इन तिजारती मुस्लिमों ने यहाँ स्थानीय हरिजन स्त्रियों से विवाह किया, जिससे यह स्त्रियाँ स्वतः ही इस्लाम धर्म में आ गईं। सन 1870-71 में अस्कोट में आने वाली पहली गौरांग महिला डॉ. ब्रूमन थी। इसके साथ डॉ. हल्कू विल्सन भी आया था। सन 1874 में मि. ग्रे इस क्षेत्र में आये थे। बाद के वर्षों में ई.वी. स्टाईनर और इनकी पत्नी इली शिवा स्टाईनर भी यहाँ पहुँची। इन्डो तिब्बतन फ्रंटियर इविंजिकल एलाइन्स मिशन के नाम से इन्होंने काम किया। यद्यपि जितने भी मिशन यहाँ आये, उनका उद्देश्य धर्म प्रचार ही नहीं, तिब्बत व नेपाल की राजनैतिक गतिविधियों पर भी दृष्टि रखना था। इन मिशनरीज ने चिकित्सा सेवा का काम धर्म समझकर किया। ईसाई धर्म का पाल वंश तथा यहाँ के लोगों पर हल्का प्रभाव पड़ा। भूपेन्द्र सिंह पाल ने ईसाई धर्म ग्रहण किया था। भोट प्रदेश के मदन सिंह सिर्ताल ने भी ईसाई धर्म अपनाया था, जो धारचूला में स्थित चर्च के पादरी भी रहे। रजबार टिकेन्द्र के भाई चित्तवन पाल ने डच महिला से विवाह किया यात्रापथ एवं व्यापार कैलास मानसरोवर का परम्परागत यात्रापथ इसी परगने से होकर जाता था किन्तु अस्कोट में यात्रा पथों व सम्पर्क मार्गों की स्थिति बड़ी दयनीय थी। रजबार कैलास मानसरोवर यात्रा में जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिये अनेक सुविधायें दिया करते थे लेकिन इस क्षेत्र में पड़ने वाले कठिन मार्गों में पड़ाव स्थलों पर किसी प्रकार की आवास सुविधा नहीं दी गई थी। निष्कंटक यात्रा पथों का निर्माण न किया जाना रजबारों की अपने क्षेत्र व रियाया के प्रति तटस्थता को उजागर करता है। उनके लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध कराने की कोई सोच इनके पास न थी। इन्हें तो सीधे-सीधे उन सेवाओं की जरूरत थी, जो इनके रजवाड़े की आय को बढ़ाते थे।अस्कोट का क्षेत्र वनों, खनिज एवं खानों के लिये प्रसिद्ध रहा है। तांबे की खानों के होने की जानकारी इस क्षेत्र के लोगों को थी। द्वालीसेरा गाँव के पारकी जाति के लोग बालू से सोना शोधन की प्रक्रिया जानते थे। यद्यपि यह सोना शुद्धता की दृष्टि से उत्तम नहीं माना जाता था, फिर भी रसकपूर से इसकी शुद्धि के कारण इसे 16 आने की जगह 12 आने के मूल्य पर खरीदा जाता था। रजबार इस पर 5वाँ हिस्सा कर वसूल करता था। इस इलाके में हाथ से निर्मित वस्त्र, तिब्बती ऊन से बनने वाले थुलमे, चुटके, दन, पशमीने, कालीन आदि का निर्माण शौका प्रवासियों के द्वारा किया जाता था और इनका विपणन ये शौका व्यापारी दूर-दूर तक गाँवों तथा जौलजीवी जैसे मेलों में भी किया करते थे। इन्हीं शौका व्यापारियों द्वारा अस्कोट के सुदूर गाँवों में नमक की तिजारत की जाती और इसके बदले अनाज एकत्र किया जाता, जिसे ये तिब्बत की मण्डियों तक पहुँचाते। राजियों द्वारा इस क्षेत्र में लकड़ी के बरतन, ठेकी, माने, बिण्डे, मथनी, हल आदि बनाये जाते थे। अस्कोट क्षेत्र में रिंगाल की चटाइयाँ, मोस्टे, पुतके, डोके, डालियाँ भी छिटपुट रूप से बनायी जातीं या इन आवश्यक सामानों को यहाँ के किसान के डोटी (नेपाल) के लोगों से अदल-बदलकर प्राप्त कर लेते थे लोक देवता तथा संस्कृति अस्कोट एवं नेपाल दोनों में मल्लिकार्जुन महादेव की पूजा परम्परागत रूप से की जाती थी। रजबार मल्लिकार्जुन महादेव को अपना इष्टदेव मानते थे। अकु, देथला और नेपाल में भुवनेश्वरी देवी को अपनी कुल देवी मानने की परम्परा विद्यमान थी। अस्कोट के पाल कनार देवी को भी अपनी कुलदेवी मानते थे। साह एवं पोखरिया जाति के लोग हुष्कर को अपना इष्ट मानते हैं। गर्खा, डांगटी या अन्य स्थानों पर पोखरिया जाति के लोग औंतलेख में जात ले जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस परगने में स्त्रियों का विशेष त्यौहार गमरा था। नाथ पन्थ के प्रवर्तकों के रूप में पूजित मलयनाथ, गंगनाथ, हरू, सैम, जगन्नाथ, छुरमल आदि स्थानीय देवताओं की उपासना की जाती थी। कुछ विशेष तथ्यों को लेकर रजबारों का दृष्टिकोण सहिष्णु था। होली, दीपावली तथा रक्षाबन्धन आदि उत्सव देवल दरबार में विशेष रूप से मनाये जाते थे। खान-पान, रीति-रिवाज एवं धार्मिक तथा सामाजिक परम्पराओं को रजबार विशेष मान्यता देते थे। जनेऊ संस्कार के बाद पुत्र अपनी माँ और विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के हाथ का भोजन नहीं करते थे। खान-पान के नियम इतने कड़े थे कि तिब्बत यात्रा में खड़क सिंह पाल, जो तिब्बत में पॉलिटिकल एजेन्ट थे, के लिये रसोइया लकड़ी को धोकर भोजन बनाता था।अस्कोट परगने के विभिन्न स्वरूपों के साथ की सांस्कृतिक छटा भी वर्णनीय है। विभिन्न प्रकार के लोक वाद्य यंत्रों द्वारा लोक नृत्य, छोलिया, हिरण चित्तल, जागर, हिल जात्रा, झोड़े, चाँचरी, भगनौले गाकर अपना मनोरंजन किया करते थे। हाट एवं मेलों में भी यहाँ की सांस्कृतिक छटा देखने को मिलती है। छिपलाकेदार, कनार एवं हुस्कर की जात यात्रा धार्मिक एवं सांस्कृतिक मानी जाती है। जौलजीवी मेला आज भी इस परगने का प्रमुख मेला है। सन 1970 तक यह मेला उत्तर भारत का प्रमुख मेला था जहाँ सेंधा नमक, ऊन, स्वर्ण चूर्ण, शहद, सुहागा, सैमूर की खालें तथा तिब्बती घोड़े, चँवर गाय की पूँछ, सोने-चाँदी का लाखों रुपये का व्यापार होता था। धीरे-धीरे यह सिमटकर मात्र सरकारी मेला बनकर रह गया है, जिसमें आज से 50 वर्ष पूर्व की रौनक देखने को नहीं मिलती है।प्राचीन धरोहर को परम्परागत रूप से यहाँ सुरक्षित रखा गया है। देवल दरबार में खण्डित सूर्य प्रतिमा, शेषशायी नारायण की प्रतिमा, जिसे विरणेश्वर भी कहा जाता है तथा दशावतार फलकों में विष्णु के 10 अवतारों से चिन्हित मूर्तियाँ भी देवल दरबार में हैं। चतुर्भुज, नारायण मूर्ति के शीर्ष फलक में ध्यानावस्थित गंगा तथा चतुर्मुखी शिवलिंग के साथ उकु में हनुमान की नमस्कार एवं उत्कृष्टासन में बैठी मूर्ति भी महत्त्वपूर्ण है। पगड़ीधारी यक्ष की मूर्ति, उदीच्य वेषधारी सूर्यमूर्ति तथा 40 पंक्तियों का एक शिलालेख भी अकु के मन्दिर की विशेषता है। बलुवाकोट में रखी देवी की प्रतिमा भी काफी प्राचीन मालूम पड़ती है। अस्कोट परगने में अनेक गाँवों में हरगौरी तथा गणेश प्रतिमाओं तथा अस्कोट के पुराने महल में दरवाजे एवं खिड़कियों के पल्ले में गणेश प्रतिमा का अंकन अद्वितीय है। सन्दर्भ : इस लेख में मैंने अपने शोध प्रबन्ध के अलावा एटकिंसन, बद्रीदत्त पाण्डे, प्रणवानन्द के ग्रन्थों, अस्कोट सेटलमेंट रिपोर्ट, पहाड़ के अंकों तथा अभिलेखागार की सामग्री का उपयोग किया है। साथ ही, श्री गजराज पाल, श्री राजेन्द्र सिंह पाल, मियाँ हामिद से पत्राचार और भेंटवार्ता द्वारा प्राप्त सामग्री से भी सहायता ली है। sabhar https://hindi.indiawaterportal.org

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