काम ऊर्जा अनंत है , महावीर ने इसे अनंत वीर्य कहा है । अनंत वीर्य से अर्थ जैविक वीर्य से नहीं है -सीमेन से नहीं है । अनन्तवीर्य से अर्थ उस काम ऊर्जा से है , जो निरंतर मन से शरीर तक उतरती है - पर जो मन से नहीं आती है । वह आती है आत्मा से मन तक , और मन से शरीर तक । ये सीढ़ियाँ है । उसके बिना वह उत्तर नहीं सकती । अगर बीच में से मन टूट जाए , तो आत्मा और शरीर के बीच सारे सम्बन्ध टूट जाएंगे ।
जिस शक्ति को योग और तंत्र ने काम ऊर्जा कहा है , वह जीव शास्त्रीय काम ऊर्जा नहीं है । वह काम ऊर्जा ऊपर की तरफ पुनः गति कर सकती है । किसी ब्यक्ति में भी ये काम ऊर्जा ऊपर की तरफ गति कर जाए , तो जिंदगी उतनी ही सरल , इन्नोसेंट और निर्दोष हो जायेगी , जितनी छोटे बच्चे की होती है । यह यौन ऊर्जा नीचे की तरफ सहज आती है ।यह प्रकृति की तरफ से आती है ।
अगर किसी मनुष्य को इस ऊर्जा ऊपर की तरफ ले जाना है , तो सहज नहीं होगा , यह संकल्प से होगा ।
जो लोग भी ऊपर की तरफ जाना चाहते है , उन्हें दूसरी बात समझ लेनी चाहिए की संकल्प और संघर्ष मार्ग होगा । ऊपर जाया जा सकता है , और ऊपर जाने के अपूर्व आनंद है । क्योंकि नीचे जाकर जब सुख मिलता है क्षणिक ही सही -तो ऊपर जाकर किया मिल सकता है , उसकी कल्पना भी नहीं सकते ।
यौनऊर्जा जो नीचे बह कर जो लाती है वो सुख है , ऊपर उठ कर जो लाती है वो आनंद है ।
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स्रोत : ओशो ध्यान योग पुस्तक से