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रविवार, 11 सितंबर 2022

चार्ल्स सम्राट घोषित, पहली बार जनता बनी गवाह

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ऐतिहासिक समारोह में शाही परंपरा, इतिहास और आधुनिकता की झलक... टीवी पर सीधा प्रसारण व सार्वजनिक रूप से हुआ एलान, मां के पदचिह्नों पर चलने का जताया संकल्प लंदन। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बेटे और उनके उत्तराधिकारी राजा चार्ल्स तृतीय ब्रिटेन के नए सम्राट बन गए। शनिवार सुबह लंदन में बकिंघम पैलेस के पास सेंट जेम्स महल में हुए आधिकारिक समारोह में उन्होंने तमाम शाही प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी करते हुए राजगद्दी संभाली। दुखी मन से बात कर रहा : चार्ल्स प्रधानमंत्री, छह पूर्व प्रधानमंत्रियों, वरिष्ठ मंत्रियों और चुनिंदा सांसदों समेत बड़े राजनेताओं, चर्च ऑफ इंग्लैंड के नेता और शाही परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से मिलकर बनी परिषद के समक्ष आधिकारिक तौर पर राजघराने की कमान लेने के बाद 73 वर्षीय चार्ल्स को बड़ी धूमधाम से तोपों की सलामी दी गई। फिर महल की बालकनी से सार्वजनिक बयान जारी करते हुए उनके महाराजा बनने का एलान हुआ। किंग चार्ल्स-3 ने लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में अपने संबोधन के दौरान कहा, मैं आज आपसे बहुत दुखी मन के साथ बात कर रहा हूं। पूरी जिंदगी महारानी और मेरी प्यारी मां, मेरे तथा मेरे पूरे परिवार के लिए प्रेरणास्त्रोत और मिसाल रहीं। Geo मां ने जो संकल्प लिया, पूरा किया राज्यारोहण परिषद (एक्सेशन काउंसिल) के शाही रिवाजों के साथ हुए कार्यक्रम में न सिर्फ राजघराने की परंपरा, इतिहास और आधुनिकता का बेजोड़ संगम दिखा बल्कि टीवी पर सीधे प्रसारण के साथ पहली बार ब्रिटिश जनता इस भव्य अवसर का गवाह बनी। 300 वर्ष में पहली बार नए महाराजा का एलान सार्वजनिक रूप से किया गया। अब तक यह प्रक्रिया बंद कमरों में संपन्न होती थी और बाद में लंदन गजट में प्रकाशन के साथ खुलासा होता था। महाराजा घोषित होने के बाद राज सिंहासन पर बैठे किंग चार्ल्स-तृतीय। उनके पास महारानी का ताज भी रखा है। एजेंसी पीएम ट्र्स ने ली किंग के प्रति वफादारी की शपथ Me सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेतीं पीएम लिज ट्रस। एजेंसी ■उनके प्यार, लगाव, मार्गदर्शन, समझ व मिसाल बनने के लिए उनके दिल से कर्जदार हैं जैसा कि कोई भी परिवार अपनी मां के लिए होता है। हमें उनके जाने पर गहरा दुख है। मैं आपसे उसी आजीवन सेवा का वादा करता हूं। 123 •ब्रिटिश पीएम लिज ट्रस और उनकी सरकार के वरिष्ठ सदस्यों ने हाउस ऑफ कॉमन्स में किंग चार्ल्स-3 के प्रति वफादारी की शपथ ली। सर्वप्रथम हाउस अध्यक्ष लिंडसे हॉयले ने निष्ठा का संकल्प लिया। इसके बाद सांसदों व पीएम ने शपथ ली। ■ दरअसल, ब्रिटेन में सभी सांसदों को राजपरिवार के सबसे प्रमुख व्यक्ति के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होती है। वरिष्ठ सांसदों के लिए यह जरूरी है। एक्सेशन काउंसिल : राजा (संप्रभू शासक) की मौत और उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा का काम एक्सेशन काउंसिल का होता है। इसमें ब्रिटेन के प्रतिष्ठित पूर्व व मौजूदा राजनेता, शाही अधिकारी, चर्च ऑफ इंग्लैंड के प्रमुख व लंदन के लॉर्ड मेयर शामिल होते हैं, ये सभी प्रिवी काउंसिल (ब्रिटिश शासक के राजनीतिक सलाहकार या एक तरह के दरबारी) के सदस्य होते हैं। शासक की मौत के 24 घंटे के भीतर यह परिषद सेंट जेम्स पैलेस में मौत के साथ ही उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा की जाती है। न्यूज डायरी 1947 में अपने 21वें जन्मदिन पर महारानी ने केपटाउन से राष्ट्रमंडल को संबोधित करते हुए अपना जीवन, चाहे वो छोटा हो या बड़ा हो, लोगों की सेवा में लगाने की शपथ ली थी। उन्होंने कर्तव्य के लिए त्याग किए। ■ एक शासक के तौर पर उनका समर्पण और निष्ठा कभी कम नहीं हुई, फिर चाहे परिवर्तन और प्रगति का समय हो, खुशी और उत्सव का समय हो या दुख और क्षति का समय हो। ईश्वर सम्राट की रक्षा करे: तमाम प्रोटोकॉल के साथ हुई ताजपोशी के बाद महल में उपस्थित ब्रिटेन के अहम और राजघराने के वरिष्ठ लोगों ने एक स्वर में कहा, 'ईश्वर सम्राट की रक्षा करे।' यह दुनिया के लिए सबसे चौंकाने वाला क्षण भी रहा। फिर चार्ल्स ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन की औपचारिक जानकारी देने के साथ देश के नाम अपना संबोधन शुरू किया, जिसमें उन्होंने मां की विरासत को जारी रखने और कर्तव्य पालन की प्रतिबद्धता जताई। ताजपोशी से पहले और और राज दरबार की पहली बैठक आधिकारिक तौर पर राजा घोषित किए जाने के बाद शासक दरबारियों (प्रिवी काउंसिल) के साथ पहली बैठक करता है। इस दौरान राजा एक भाषण देता है, जिसमें कई व्यक्तिगत घोषणाएं करता है, साथ ही संघ अधिनियम, 1707 के तहत चर्च ऑफ स्कॉटलैंड की रक्षा की शपथ लेता है। नई जिम्मेदारियों संग मेरा जीवन बदल जाएगा मैं संकल्प लेता हूं कि जीवनभर निष्ठा, सम्मान और प्यार के साथ आपकी सेवा करने की कोशिश करूंगा। नई जिम्मेदारियों के साथ मेरा जीवन भी बदल जाएगा। मैं दान और उन दूसरे कार्यों को बहुत ज्यादा समय और ऊर्जा नहीं दे सकूंगा। बेशुमार दौलत छोड़ गईं बाद बाद में महीनों तक महीनों तक अपने वारिस चार्ल्स के लिए रानी एलिजाबेथ द्वितीय करीब 50 करोड़ डॉलर की निजी संपत्तियां और 28 अरब डॉलर से ज्यादा की परिसंपत्तियां छोड़कर गई हैं। चार्ल्स को राजा के तौर पर ब्रिटिश राजघराने की तमाम संपत्तियों से होने वाली आय का 1525 फीसदी भत्ते के तौर पर मिलता रहेगा। इसके अलावा प्रिवी पर्स (गुप्त निजी खजाने) की आय भी शासक को मिलती है। चलेगी चलेगी रस्म अदायगी चार्ल्स को शनिवार को सेंट जेम्स पैलेस में आधिकारिक तौर पर यूनाइटेड किंग्डम (इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स व उत्तरी आयरलैंड) का राजा घोषित कर तो दिया गया है लेकिन अभी चार्ल्स का राज्याभिषेक नहीं हुआ है। सैकड़ों वर्ष पुरानी कई रस्में हैं, जिनके पूरा किए जाने के बाद चार्ल्स की ताजपोशी होगी। इन प्रक्रियाओं के अहम पड़ाव और किरदारों को समझिए। राजा की हिफाजत की गुहार भाषण के बाद गार्टर ( राजा का प्रमुख सलाहकार) सेंट जेम्स पैलेस की बालकनी में खड़े होकर तेज आवाज में नए शासक की घोषणा करते हुए ईश्वर से शासक की रक्षा की गुहार लगाता है। इसके तुरंत बाद पूरे इंग्लैंड में दर्जनों से ज्यादा तोपें राजा की सलामी में गोले दागती हैं। इसके बाद गार्टर की तरफ से नए राजा की घोषणा की पूरे इंग्लैंड में मुनादी की जाती है। इसके बाद 24 घंटे तक राजध्वज पूरा फहराया जाता है, बाद में शोक के तौर पर आधा फहरता है। राजनिष्ठा की शपथ राजा घोषित किए जाने और मुनादी के बाद संसद का सत्र आयोजित किया जाता है, जिसमें सभी सांसद व प्रधानमंत्री सहित सरकार के सभी ओहदेदार नए शासक के प्रति वफादार होने की शपथ लेते हैं। ■ प्रोटेस्टेंट उत्तराधिकारी की शपथ नए शासक को एक्सेशन डिक्लेरेशन एक्ट, 1910 के मुताबिक यह शपथ लेनी होती है कि वह एक वफादार प्रोटेस्टेंट है और प्रोटेस्टेंट उत्तराधिकार की व्यवस्था को जारी रखेगा। हालांकि, यह शपथ आम चुनाव के बाद संसद की पहली बैठक के दौरान ली जाती है। अस्पतालों के मरीजों में छह पहली बार गुज्जर मुस्लिम राज्यसभा के लिए नामित : ■ राज्याभिषेक कई तरह की रस्म अदायगी और शोक से उबरने के कई माह बाद नए शासक की ताजपोशी होती है। रानी एलिजाबेथ द्वितीय की ताजपोशी उन्हें शासक घोषित किए जाने के 16 माह बाद हुई थी। - चार्ल्स की ताजपोशी की तारीख अभी तय नहीं है। ■ लेकिन, मैं जानता हूं कि ये महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दूसरे भरोसेमंद हाथों में जाएगी। ये मेरे परिवार के लिए भी बदलाव का समय है। मैं अपनी प्यारी पत्नी कैमिला से भी मदद पर भरोसा करता हूं। sabhar amar ujala dainik
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मंगलवार, 23 अगस्त 2022

सेक्स और प्रेम बुनियादी है तंत्र इसे स्वीकार करता है

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जो लोग मुझे "#सेक्स गुरु" कहते हैं, वे सेक्स के दीवाने हैं। जितना मैंने ध्यान, प्रेम, ईश्वर, प्रार्थना के बारे में बात की है, उससे अधिक मैंने सेक्स के बारे में बात नहीं की है, लेकिन किसी को भी ईश्वर, #प्रेम, ध्यान, प्रार्थना में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर मैं सेक्स के बारे में कुछ भी कहूं तो वे तुरंत उस पर झूम उठते हैं। मेरी तीन सौ किताबों में से केवल एक किताब #सेक्स से संबंधित है, और वह भी पूरी तरह से नहीं। किताब का नाम FROM SEX TO SUPERCONSCIOUSNESS (संभोग से समाधि की और) है। बस इसकी शुरुआत का संबंध सेक्स से है; जैसे-जैसे आप समझ की गहराई में जाते हैं, यह #अतिचेतना की ओर, समाधि की ओर बढ़ती है। अब वह किताब लाखों लोगों तक पहुंच चुकी है। यह एक विचित्र घटना है: मेरी अन्य पुस्तकें इतने लोगों तक नहीं पहुंची हैं। भारत में एक भी हिंदू, जैन संत, महात्मा नहीं है जिसने इसे न पढ़ा हो। इसकी हर संभव तरीके से आलोचना, विश्लेषण, टिप्पणी की गई है। इसके विरुद्ध अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं- मानो यही एक मात्र पुस्तक मैंने लिखी (बोली)! इतना जोर क्यों? लोग जुनूनी हैं, खासकर धार्मिक लोग जुनूनी हैं। "सेक्स गुरु" का यह लेबल धार्मिक लोगों से आता है... सदियों से लोगों को जिस तरह से पाला गया है, वह जीवन-नकारात्मक है। मैं जीवन को उस सब के साथ पुष्टि करता हूं जिसमें वह शामिल है। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं नहीं चाहता कि आप बदलें - वास्तव में, यही बदलने का एकमात्र तरीका है। सबसे पहले आपको यह स्वीकार करना होगा कि आप कहां हैं, आप क्या हैं। पहले आपको अपनी वास्तविकता का पता लगाना होगा, और उसके बाद ही आप इससे परे जाने के तरीके खोज सकते हैं। आपको अपने अस्तित्व की सभी संभावनाओं को तलाशना होगा। और सेक्स सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, वास्तव में आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन बचपन से ही हमें धोखा दिया जा रहा है, हमें सेक्स के बारे में झूठ कहा जाता है। और जिस दिन हम जीवन के तथ्यों की खोज शुरू करते हैं, महान अपराधबोध पैदा होता है - जैसे कि हम कुछ आपराधिक कर रहे हैं। आपके साथ आपके माता-पिता ने, आपके पुजारियों द्वारा, आपके राजनेताओं द्वारा, आपके शिक्षकों द्वारा आपके साथ आपराधिक काम किया गया है। उन्होंने तुम्हारे भीतर ऐसी कंडीशनिंग पैदा कर दी है कि तुम अपने जीवन की सच्चाई और उसके निहितार्थों को नहीं खोज सकते। उन्होंने तुम्हें धोखा दिया है, उन्होंने तुम्हारे भरोसे को धोखा दिया है। संभोग से समाधि के और,~ओशो

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शनिवार, 23 जुलाई 2022

क्या अपनी लोकेशन के कारण ताकतवर देशों का अखाड़ा बना श्रीलंका

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गहरे आर्थिक संकट में घिरे श्रीलंका की जनता का बड़ा हिस्सा चीन के इरादों पर शक करने लगा है. ऐसे में क्या भारत कोलंबो की विदेश नीति को फिर से अपनी तरफ झुका सकेगा? डीडब्ल्यू की स्पेशल रिपोर्ट. श्रीलंका आजादी के 74 साल बाद सबसे बड़े आर्थिक भूकंप का सामना कर रहा है. महंगाई, कर्ज चरम पर हैं और देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली पड़ता है. इसके कारण भोजन, ईंधन और दवाओं जैसी बेहद जरूरी चीजों के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में इलाके में मौजूद दो महाशक्तियां श्रीलंका को अपने प्रभाव में करना चाहती हैं. भारत और चीन दोनों द्वीपीय देश को मदद की पेशकश कर रहे हैं. अब तक नई दिल्ली ने कोलंबो को 1.5 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता दी है. इस सहायता से श्रीलंका भोजन, ईंधन, दवाएं और खाद खरीद रहा है. मुद्रा विनिमय और कर्ज के तौर पर भारत ने अतिरिक्त 3.8 अरब डॉलर की मदद भी दी है. वहीं बीजिंग ने श्रीलंका को अब तक करीब 50 करोड़ युआन (7.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की मानवीय मदद मुहैया कराई है. चीन ने यह भी भरोसा दिलाय है कि वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बातचीत के दौरान श्रीलंका के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाएगा. क्या अपनी लोकेशन के कारण ताकतवर देशों का अखाड़ा बना श्रीलंका श्रीलंका का हम्बनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट गहरे आर्थिक संकट में घिरे श्रीलंका की जनता का बड़ा हिस्सा चीन के इरादों पर शक करने लगा है. ऐसे में क्या भारत कोलंबो की विदेश नीति को फिर से अपनी तरफ झुका सकेगा? डीडब्ल्यू की स्पेशल रिपोर्ट. श्रीलंका आजादी के 74 साल बाद सबसे बड़े आर्थिक भूकंप का सामना कर रहा है. महंगाई, कर्ज चरम पर हैं और देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली पड़ता है. इसके कारण भोजन, ईंधन और दवाओं जैसी बेहद जरूरी चीजों के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में इलाके में मौजूद दो महाशक्तियां श्रीलंका को अपने प्रभाव में करना चाहती हैं. भारत और चीन दोनों द्वीपीय देश को मदद की पेशकश कर रहे हैं. अब तक नई दिल्ली ने कोलंबो को 1.5 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता दी है. इस सहायता से श्रीलंका भोजन, ईंधन, दवाएं और खाद खरीद रहा है. मुद्रा विनिमय और कर्ज के तौर पर भारत ने अतिरिक्त 3.8 अरब डॉलर की मदद भी दी है. वहीं बीजिंग ने श्रीलंका को अब तक करीब 50 करोड़ युआन (7.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की मानवीय मदद मुहैया कराई है. चीन ने यह भी भरोसा दिलाय है कि वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बातचीत के दौरान श्रीलंका के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाएगा. श्रीलंका ने चीन से कर्ज माफ करने की भी मांग की है. बीजिंग ने कोलंबों की इस अपील का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. सीआईए प्रमुख बोले, श्रीलंका ने चीन पर ‘बेवकूफाना दांव’ लगाए श्रीलंका की लोकेशन सामरिक और व्यापारिक लिहाज से बेहद अहम हैं. एशिया को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ने से वाला समुद्री मार्ग श्रीलंका के बगल से गुजरता है. हालांकि इसी अहमियत के कारण हाल के वर्षों में श्रीलंका भारत और चीन की होड़ में फंस गया. भारत और श्रीलंका के सिर्फ कारोबारी रिश्ते ही नहीं हैं, बल्कि दोनों देश धार्मिक और सामुदायिक संबंधों से भी जुड़े हैं. श्रीलंका की सत्ता में राजपक्षा परिवार के एकाधिकार के दौरान कोलंबो और बीजिंग के रिश्ते बहुत मजबूत हुए. सिंगापुर से राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले गोटाबाया राजपक्षा और पहले राष्ट्रपति, फिर पीएम बनने वाले उनके भाई महिंदा राजपक्षा के कार्यकाल में भारत की अनदेखी कर श्रीलंका और चीन के रिश्ते आगे बढ़े. चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया. देखते ही देखते चीन श्रीलंका को सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले देशों में शामिल हो गया. आज श्रीलंका पर चढ़े विदेशी कर्ज का 10 फीसदी हिस्सा चीन का है, जिसकी अनुमानित रकम करीब 51 अरब डॉलर है. एयरपोर्ट पर ड्रामे के बाद श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने देश छोड़ा 2009 में तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे को खत्म करने के बाद श्रीलंका ने आधारभूत संरचनाओं में बड़ा निवेश करना शुरू किया. नए पुलों, बंदरगाहों और एयरपोर्टों के निर्माण में चीन ने खूब पैसा लगाया. चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में श्रीलंका एक अहम ठिकाना बन गया. उसे समुद्री सिल्क रूट का अहम ठिकाना कहा जाने लगा. लाइव खबरें क्या अपनी लोकेशन के कारण ताकतवर देशों का अखाड़ा बना श्रीलंका 22.07.2022 श्रीलंका का हम्बनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट गहरे आर्थिक संकट में घिरे श्रीलंका की जनता का बड़ा हिस्सा चीन के इरादों पर शक करने लगा है. ऐसे में क्या भारत कोलंबो की विदेश नीति को फिर से अपनी तरफ झुका सकेगा? डीडब्ल्यू की स्पेशल रिपोर्ट. श्रीलंका आजादी के 74 साल बाद सबसे बड़े आर्थिक भूकंप का सामना कर रहा है. महंगाई, कर्ज चरम पर हैं और देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली पड़ता है. इसके कारण भोजन, ईंधन और दवाओं जैसी बेहद जरूरी चीजों के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में इलाके में मौजूद दो महाशक्तियां श्रीलंका को अपने प्रभाव में करना चाहती हैं. भारत और चीन दोनों द्वीपीय देश को मदद की पेशकश कर रहे हैं. अब तक नई दिल्ली ने कोलंबो को 1.5 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता दी है. इस सहायता से श्रीलंका भोजन, ईंधन, दवाएं और खाद खरीद रहा है. मुद्रा विनिमय और कर्ज के तौर पर भारत ने अतिरिक्त 3.8 अरब डॉलर की मदद भी दी है. वहीं बीजिंग ने श्रीलंका को अब तक करीब 50 करोड़ युआन (7.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की मानवीय मदद मुहैया कराई है. चीन ने यह भी भरोसा दिलाय है कि वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बातचीत के दौरान श्रीलंका के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाएगा. श्रीलंका ने चीन से कर्ज माफ करने की भी मांग की है. बीजिंग ने कोलंबों की इस अपील का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. सीआईए प्रमुख बोले, श्रीलंका ने चीन पर ‘बेवकूफाना दांव’ लगाए श्रीलंका की लोकेशन सामरिक और व्यापारिक लिहाज से बेहद अहम हैं. एशिया को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ने से वाला समुद्री मार्ग श्रीलंका के बगल से गुजरता है. हालांकि इसी अहमियत के कारण हाल के वर्षों में श्रीलंका भारत और चीन की होड़ में फंस गया. भारत और श्रीलंका के सिर्फ कारोबारी रिश्ते ही नहीं हैं, बल्कि दोनों देश धार्मिक और सामुदायिक संबंधों से भी जुड़े हैं. श्रीलंका की सत्ता में राजपक्षा परिवार के एकाधिकार के दौरान कोलंबो और बीजिंग के रिश्ते बहुत मजबूत हुए. सिंगापुर से राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले गोटाबाया राजपक्षा और पहले राष्ट्रपति, फिर पीएम बनने वाले उनके भाई महिंदा राजपक्षा के कार्यकाल में भारत की अनदेखी कर श्रीलंका और चीन के रिश्ते आगे बढ़े. चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया. देखते ही देखते चीन श्रीलंका को सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले देशों में शामिल हो गया. आज श्रीलंका पर चढ़े विदेशी कर्ज का 10 फीसदी हिस्सा चीन का है, जिसकी अनुमानित रकम करीब 51 अरब डॉलर है. एयरपोर्ट पर ड्रामे के बाद श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने देश छोड़ा 2009 में तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे को खत्म करने के बाद श्रीलंका ने आधारभूत संरचनाओं में बड़ा निवेश करना शुरू किया. नए पुलों, बंदरगाहों और एयरपोर्टों के निर्माण में चीन ने खूब पैसा लगाया. चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में श्रीलंका एक अहम ठिकाना बन गया. उसे समुद्री सिल्क रूट का अहम ठिकाना कहा जाने लगा. Infografik China's new Silk Road Fokus auf Sri Lanka EN चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट कर्ज तले दबाने वाली कूटनीति के आरोप चीन के साथ कोलंबो के करीबी रिश्तों ने भारत को परेशान किया. पारंपरिक रूप से श्रीलंका का करीबी आर्थिक और राजनीतिक साझेदार भारत खुद को अलग थलग महसूस करने लगा. हालांकि चीन और श्रीलंका की सारी साझा योजनाएं, हकीकत में बड़ी अलग दिखाई पड़ीं. हम्बनटोटा पोर्ट और मताला राजपक्षा एयरपोर्ट प्रोजेक्ट के कारण श्रीलंका कर्ज में डूब गया. 2017 में कोलंबो ने हम्बनटोटा पोर्ट और उसके आस पास की बड़ी जमीन बीजिंग को 99 साल की लीज पर दे दी. इसके बाद आरोप लगने लगे कि चीन ने कर्ज के जाल में फंसाकर श्रीलंका की अहम राष्ट्रीय संपत्तियां अपने कब्जे में कर ली हैं. श्रीलंका के राजनीतिक और सुरक्षा समीक्षक असांगा आबेयागुणासेकरा कहते हैं, पिछले साल की गई मेरी फील्ड रिसर्च बताती है कि इंफ्रास्ट्रक्चर डिप्लोमैसी के जरिए चीन ने द्वीप की विदेश नीति में अच्छी खासी पैठ बना ली. आबेयागुणासेकरा के मुताबिक इस बात की चिताएं बहुत वाजिब है कि चीन के कर्ज में पारदर्शिता की कमी थी. साथ ही ब्याज दर भी बहुत ऊंची थी. वह कहते हैं, "हमने 6.4 फीसदी की दर पर चीन से कर्ज लिया जबकि जापान के कर्ज में ब्याज दर एक फीसदी से भी कम थी." सुमित गांगुली अमेरिका में इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं. दक्षिण एशिया मामलों के एक्सपर्ट गांगुली भी ऐसे ही विचार साझा करते हैं, "चीन के कर्ज के दम पर बने चमकदार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट आखिर रेत का किला साबित हुए." पश्चिमी देशों की फैलाई अफवाहें' चीन के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्ट्रैटजी की रिसर्च फेलो शियाओशुए लियु इसे एक साजिश की तरह देखती हैं. उनके मुताबिक चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट ने श्रीलंका को कर्ज के दलदल में फंसा दिया, ये अफवाहें पश्चिमी देशों ने फैलाई हैं. लियु कहती हैं कि, "श्रीलंका ने बीते कुछ वर्षों में बहुत ज्यादा कर्मशियल लोन लिया. इन्हीं कर्जों के कारण श्रीलंका आज इतने बुरे आर्थिक संकट में है." मौजूदा आर्थिक संकट, बीजिंग के प्रति आम लोगों में उपजा शक और कर्ज माफ करने के बारे में चीन की टालमटोल, भारत इस मौके का फायदा उठाकर अपने पारंपरिक साझेदार श्रीलंका को फिर से अपने पाले में लाना चाहता है. गांगुली कहते हैं, भारत इस संकट को एक संभावना की तरह देख रहा है. उसने फौरन श्रीलंका को धन, दवाओं और कर्ज संबंधी मदद दी है. गांगुली मानते हैं कि श्रीलंका के आस पास हिंद महासागर में चीन का असर कम करने के लिए भारत पुरजोर कोशिश करेगा. यही वजह है कि बीते कुछ महीनों में भारत ने श्रीलंका में अटके कुछ चाइनीज प्रोजेक्ट अपने हाथ में ले लिए हैं. मार्च में नई दिल्ली ने उत्तरी श्रीलंका में हाइब्रिड पावर प्रोजेक्ट्स की डील साइन की. पहले यह काम चीन कर रहा था, लेकिन दिसंबर 2021 में सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चीन ने परियोजना निलंबित कर दी. इसी दौरान कोलंबो ने विंड फार्म के लिए चाइनीज कंपनी के साथ किया 1.2 करोड़ डॉलर का करार भी रद्द कर दिया. अब यह प्रोजेक्ट भारतीय कंपनी को मिला है. इन फैसलों से पहले श्रीलंका ने लंबे समय से लटके सामरिक ऑयल टर्मिनल को भी मंजूरी दी. श्रीलंका के पूर्वी तट पर यह ऑयल टर्मिनल भारत बनाएगा. स्मृति पटनायक नई दिल्ली स्थित थिंकटैक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में फॉरेन पॉलिसी रिसर्च फेलो हैं. वह इसे एक दूसरे नजरिए से देखती हैं, "श्रीलंका के प्रति भारत की नीति, चीन को जवाब पर आधारित नहीं है. ये ऐतिहासिक है, जिसमें लोगों के बीच आपसी संबंध हैं और एक साझा संस्कृति है. अगर आप श्रीलंका में भारतीय निवेश को देखें तो वह आम लोगों पर केंद्रित है." विदेश नीति का कंपास रिसेट करने की जरूरत भारत श्रीलंका में भले ही अपना खोया हुआ मैदान हासिल करना चाहता हो, लेकिन राह बहुत आसान नहीं हैं. श्रीलंका के कुछ समुदायों में भारत विरोधी भावना आज भी है. ऐसे धड़ों को लगता है कि भारत प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है. गोटाबाया राजपक्षा के देश छोड़ने के बाद श्रीलंका की संसद ने रानिल विक्रमसिंघे को कार्यकारी राष्ट्रपति चुना है. पहले कई बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे को भारत समर्थक के रूप में देखा जाता है. असांगा आबेयागुणासेकरा को लगता है कि नई सरकार विदेशी नीति में बदलाव करेगी. उसमें चीन की अहमियत कम होगी, "एक द्वीपीय देश होने के नाते हमने हिंद महासागर में अंतरराष्ट्रीय नियमों और मूल्यों को समर्थन किया है. हमें इसी दिशा में जाना होगा और वो भी हमारे जैसी सोच रखने वाले साझेदारों के साथ." लियु का मानना है कि चीन श्रीलंका में भारत के साथ होड़ करने की मंशा नहीं रखता है, बल्कि चीन ऐसी आर्थिक योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहता है जो चीन और श्रीलंका दोनों को फायदा पहुंचाएं. वह कहती हैं, "साफ है कि भौगोलिक लिहाज से श्रीलंका और भारत कितने नजदीक हैं और चीन कितना दूर है. चीन जानता है कि श्रीलंका में प्रभाव के लिए वह भारत से मुकाबला नहीं कर सकता, लेकिन भारत इसे इसी तरह देखता तो चीन उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकता.Sahbar https://www.dw.com

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रविवार, 17 जुलाई 2022

जैव विविधता: पूरी दुनिया का पेट भर सकती हैं जंगली प्रजातियां

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 जैव विविधता के विशेषज्ञ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी जंगली प्रजातियों के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं. इन प्रजातियों के संरक्षण से अरबों लोगों को भोजन मिल सकता है. साथ ही, आमदनी बढ़ सकती है.

इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की दो ऐतिहासिक रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि जंगली प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने और मानव जीवन के लिए आवश्यक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए "परिवर्तनकारी बदलाव" की जरूरत है.

इन रिपोर्ट में शैवाल, जानवरों, फफुंद के साथ-साथ जमीन और जल में मौजूद पौधों के स्थायी इस्तेमाल के विकल्पों की जांच की गई है. रिपोर्ट को तैयार करने में लगभग 400 विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों के साथ ही स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे. कुल मिलाकर, उन्होंने हजारों वैज्ञानिक स्रोतों का मूल्यांकन किया. इस सप्ताह इससे जुड़ी अहम जानकारी जारी की गई. आईपीबीईएस के सह-अध्यक्ष जॉन डोनाल्डसन ने कहा, "दुनिया की लगभग आधी आबादी वास्तव में जंगली प्रजातियों के इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा या कुछ हद तक निर्भर है. लोग जितना सोचते हैं उससे ज्यादा वे जंगली प्रजातियों पर निर्भर हैं.”

10 लाख से ज्यादा प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा

फिलहाल, दुनिया भर में लगभग दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, क्योंकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. इससे दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन की गुणवत्ता को नुकसान पहुंच रहा है. साथ ही, वे आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं. इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण, धरती का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. इस वजह से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों के लिए 10 गुना खतरा बढ़ जाएगा.

शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बड़े स्तर पर प्रजातियों के विलुप्त होने का छठा चरण पहले से ही शुरू हो चुका है. रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण और उसकी सुरक्षा के लिए मछली, कीड़े, फफूंद, शैवाल, जंगली फल, जंगल और पक्षियों की जंगली प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है.

जंगली प्रजातियों से लोगों को फायदा

रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगली प्रजातियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने से लाखों लोगों की आजीविका सुरक्षित होगी. जंगली प्रजातियों का लगातार बेहतर प्रबंधन, गरीबी और भूख से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में से एक को और मजबूत करेगा.  उदाहरण के लिए, सभी खाद्य फसलों का दो-तिहाई हिस्सा बड़े पैमाने पर जंगली परागणकों पर निर्भर करता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो पक्षी, हवा, कीड़े या किसी अन्य माध्यम से बीज जंगल में एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं. दुनिया भर में पाई जाने वाली दो-तिहाई से ज्यादा फसलें परागण के लिए कीटों पर निर्भर हैं. बिना इन कीटों के परागण संभव नहीं और बिना परागण के फसल संभव नहीं है. आज स्थिति यह है कि इन कीटों की करीब एक तिहाई आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. ऐसे में न तो परागण होगा और न ही फसल होगी. जब फसल ही नहीं होगी, तो इंसानों को भोजन नहीं मिलेगा. जंगली पौधे, फफूंद और शैवाल दुनिया की 20 फीसदी आबादी के भोजन का हिस्सा हैं.

दुनिया में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों में से 70 फीसदी लोग जंगली प्रजातियों पर सीधे तौर पर निर्भर हैं. जंगली पेड़ों से ही लाखों लोगों का जीवन-बसर होता है. यह उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत है. हालांकि, इसके साथ ही जिन 2 अरब लोगों को खाना पकाने के लिए लकड़ी की जरूरत होती है वे जैव विविधता को नष्ट कर रहे हैं. वनों की कटाई के कारण हर साल लगभग 50 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं. जबकि, लोगों को यह समझना होगा कि पेड़ों को काटे बिना भी जंगली प्रजातियों से कमाई की जा सकती है. 

स्कूबा डाइविंग, जंगल की सैर या वन्यजीव देखने जैसे प्रकृति पर्यटन से 2018 में 120 अरब डॉलर की कमाई हुई. कोरोना महामारी से पहले राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों से हर साल करीब 600 अरब डॉलर की कमाई हुई.

पर्यावरण के नुकसान की लागत

लेखकों का कहना है कि राजनीतिक और आर्थिक निर्णय लेते समय प्रकृति को कम आंकना वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संकट को बढ़ा रहा है. आर्थिक विचारों पर आधारित नीतिगत निर्णय लेने के दौरान इस बात की अनदेखी की जाती है कि पर्यावरण में होने वाले बदलाव लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, क्षणिक लाभ और सकल घरेलू उत्पाद के रूप में विकास को मापने पर ध्यान केंद्रित करने से अत्यधिक दोहन या सामाजिक अन्याय जैसे नकारात्मक प्रभावों का आकलन नहीं हो पाता.

दोनों रिपोर्ट में से एक के सह-लेखक पेट्रीसिया बलवनेरा ने कहा, "नीति-निर्माण में प्रकृति के मूल्यों को शामिल करना, 'विकास' और 'जीवन की अच्छी गुणवत्ता' को फिर से परिभाषित करने जैसा है. साथ ही, उन तरीकों की पहचान करना है जिससे लोग प्रकृति के ज्यादा करीब आ सकते हैं

सुशी के प्रचार से टूना मछली की आबादी बचाने तक

डोनाल्डसन ने बताया, "सुशी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 1980 के दशक में ब्लूफिन टूना मछली विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. इसे बचाने के लिए कई उपाय अपनाए गए. जैसे, मछली पकड़ने की समयावधि कम की गई, मछली पकड़ने की गतिविधियों की निगरानी की गई, छोटे आकार की मछली पकड़ने पर रोक लगाई गई, कम मछली पकड़ी गई, मछलियों को फलने फूलेन का मौका दिया गया. इन सब उपायों के बेहतर नतीजे देखने को मिले.”

उन्होंने आगे कहा, "जब स्थिति को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जाता है, तो इससे न सिर्फ स्थिरता आती है, बल्कि इन्हें उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां से ज्यादा फायदा हो.”  लेखक लकड़ी उद्योग में भी इसी तरह के उपायों को लागू करने की सलाह देते हैं. इसके तहत अवैध कटाई पर रोक, कड़े नियम लागू करना, बेहतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना वगैरह शामिल है. साथ ही, लेखकों ने ऐसे नियम बनाने की भी मांग की जिससे जमीन का अधिकार स्थानीय लोगों के हाथ में हो और जो मोनोकल्चर की जगह जंगली प्रजातियों को बढ़ावा देती हो.

जैव विविधता: पूरी दुनिया का पेट भर सकती हैं जंगली प्रजातियां

जैव विविधता के विशेषज्ञ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी जंगली प्रजातियों के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं. इन प्रजातियों के संरक्षण से अरबों लोगों को भोजन मिल सकता है. साथ ही, आमदनी बढ़ सकती है.

इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की दो ऐतिहासिक रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि जंगली प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने और मानव जीवन के लिए आवश्यक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए "परिवर्तनकारी बदलाव" की जरूरत है.

इन रिपोर्ट में शैवाल, जानवरों, फफुंद के साथ-साथ जमीन और जल में मौजूद पौधों के स्थायी इस्तेमाल के विकल्पों की जांच की गई है. रिपोर्ट को तैयार करने में लगभग 400 विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों के साथ ही स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे. कुल मिलाकर, उन्होंने हजारों वैज्ञानिक स्रोतों का मूल्यांकन किया. इस सप्ताह इससे जुड़ी अहम जानकारी जारी की गई. आईपीबीईएस के सह-अध्यक्ष जॉन डोनाल्डसन ने कहा, "दुनिया की लगभग आधी आबादी वास्तव में जंगली प्रजातियों के इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा या कुछ हद तक निर्भर है. लोग जितना सोचते हैं उससे ज्यादा वे जंगली प्रजातियों पर निर्भर हैं.”

दुनिया में जैव विविधता के लिहाज से बहुत ही समृद्ध हैं भारत के पश्चिमी घाट के जंगल

10 लाख से ज्यादा प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा

फिलहाल, दुनिया भर में लगभग दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, क्योंकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. इससे दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन की गुणवत्ता को नुकसान पहुंच रहा है. साथ ही, वे आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं. इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण, धरती का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. इस वजह से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों के लिए 10 गुना खतरा बढ़ जाएगा.

शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बड़े स्तर पर प्रजातियों के विलुप्त होने का छठा चरण पहले से ही शुरू हो चुका है. रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण और उसकी सुरक्षा के लिए मछली, कीड़े, फफूंद, शैवाल, जंगली फल, जंगल और पक्षियों की जंगली प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है.

जंगली प्रजातियों से लोगों को फायदा

रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगली प्रजातियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने से लाखों लोगों की आजीविका सुरक्षित होगी. जंगली प्रजातियों का लगातार बेहतर प्रबंधन, गरीबी और भूख से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में से एक को और मजबूत करेगा.  उदाहरण के लिए, सभी खाद्य फसलों का दो-तिहाई हिस्सा बड़े पैमाने पर जंगली परागणकों पर निर्भर करता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो पक्षी, हवा, कीड़े या किसी अन्य माध्यम से बीज जंगल में एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं. दुनिया भर में पाई जाने वाली दो-तिहाई से ज्यादा फसलें परागण के लिए कीटों पर निर्भर हैं. बिना इन कीटों के परागण संभव नहीं और बिना परागण के फसल संभव नहीं है. आज स्थिति यह है कि इन कीटों की करीब एक तिहाई आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. ऐसे में न तो परागण होगा और न ही फसल होगी. जब फसल ही नहीं होगी, तो इंसानों को भोजन नहीं मिलेगा. जंगली पौधे, फफूंद और शैवाल दुनिया की 20 फीसदी आबादी के भोजन का हिस्सा हैं.

दक्षिण पूर्वी एशिया के मेकॉन्ग इलाके में हाल में जीवों की 224 नई प्रजातियां पता चलीं

दुनिया में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों में से 70 फीसदी लोग जंगली प्रजातियों पर सीधे तौर पर निर्भर हैं. जंगली पेड़ों से ही लाखों लोगों का जीवन-बसर होता है. यह उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत है. हालांकि, इसके साथ ही जिन 2 अरब लोगों को खाना पकाने के लिए लकड़ी की जरूरत होती है वे जैव विविधता को नष्ट कर रहे हैं. वनों की कटाई के कारण हर साल लगभग 50 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं. जबकि, लोगों को यह समझना होगा कि पेड़ों को काटे बिना भी जंगली प्रजातियों से कमाई की जा सकती है. 

स्कूबा डाइविंग, जंगल की सैर या वन्यजीव देखने जैसे प्रकृति पर्यटन से 2018 में 120 अरब डॉलर की कमाई हुई. कोरोना महामारी से पहले राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों से हर साल करीब 600 अरब डॉलर की कमाई हुई.

पर्यावरण के नुकसान की लागत

लेखकों का कहना है कि राजनीतिक और आर्थिक निर्णय लेते समय प्रकृति को कम आंकना वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संकट को बढ़ा रहा है. आर्थिक विचारों पर आधारित नीतिगत निर्णय लेने के दौरान इस बात की अनदेखी की जाती है कि पर्यावरण में होने वाले बदलाव लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, क्षणिक लाभ और सकल घरेलू उत्पाद के रूप में विकास को मापने पर ध्यान केंद्रित करने से अत्यधिक दोहन या सामाजिक अन्याय जैसे नकारात्मक प्रभावों का आकलन नहीं हो पाता.

दोनों रिपोर्ट में से एक के सह-लेखक पेट्रीसिया बलवनेरा ने कहा, "नीति-निर्माण में प्रकृति के मूल्यों को शामिल करना, 'विकास' और 'जीवन की अच्छी गुणवत्ता' को फिर से परिभाषित करने जैसा है. साथ ही, उन तरीकों की पहचान करना है जिससे लोग प्रकृति के ज्यादा करीब आ सकते हैं.”

टूना मछली

सुशी के प्रचार से टूना मछली की आबादी बचाने तक

डोनाल्डसन ने बताया, "सुशी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 1980 के दशक में ब्लूफिन टूना मछली विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. इसे बचाने के लिए कई उपाय अपनाए गए. जैसे, मछली पकड़ने की समयावधि कम की गई, मछली पकड़ने की गतिविधियों की निगरानी की गई, छोटे आकार की मछली पकड़ने पर रोक लगाई गई, कम मछली पकड़ी गई, मछलियों को फलने फूलेन का मौका दिया गया. इन सब उपायों के बेहतर नतीजे देखने को मिले.”

उन्होंने आगे कहा, "जब स्थिति को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जाता है, तो इससे न सिर्फ स्थिरता आती है, बल्कि इन्हें उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां से ज्यादा फायदा हो.”  लेखक लकड़ी उद्योग में भी इसी तरह के उपायों को लागू करने की सलाह देते हैं. इसके तहत अवैध कटाई पर रोक, कड़े नियम लागू करना, बेहतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना वगैरह शामिल है. साथ ही, लेखकों ने ऐसे नियम बनाने की भी मांग की जिससे जमीन का अधिकार स्थानीय लोगों के हाथ में हो और जो मोनोकल्चर की जगह जंगली प्रजातियों को बढ़ावा देती हो.


चीन में बायमा लेक नेशनल वेटलैंड पार्क

स्थानीय समुदायों को ‘कम आंका गया'

रिपोर्ट में स्थानीय समुदायों की भूमिका की भी चर्चा की गई. साथ ही, यह प्रस्ताव दिया गया कि पारिस्थितिक तंत्र को कैसे बेहतर ढंग से संरक्षित और इस्तेमाल किया जा सकता है.  स्थानीय लोग एक ही जमीन पर हर साल अलग-अलग फसल लगाते हैं, ताकि उसकी उर्वरा बनी रहे. वे पशुओं के चरने का मौसम भी निर्धारित करते हैं. कुछ विशेष मौसम के दौरान विशेष प्रजातियों की कटाई नहीं करते हैं. यह सब जैव विविधता को बनाए रखने या बढ़ाने के लक्ष्य के साथ किया जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय रहते हैं, वहां वनों की कटाई कम होती है. स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट तैयार करने में सीधे तौर पर योगदान दिया है. इसमें प्रकृति से जरूरत से अधिक न लेने की उनकी साझा संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है. जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय स्थानीय मंच के विवियाना फिगेरोआ कहते हैं, "स्थानीय ज्ञान की यह मान्यता ‘प्रगति' है. स्थानीय लोग किसी से कोई पैसा लिए बिना प्रजातियों के संरक्षण का काम कर रहे हैं.”  इस व्यापक योगदान के बावजूद, कई समुदायों को मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ रहा है. कई समुदायों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा, तो कुछ हिंसा के शिकार हुए. कइयों को जबरन उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया. 

फिगेरोआ कहते हैं, "सरकारों को वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण और स्थायी इस्तेमाल में हमारी सहायता करनी चाहिए. हम चाहते हैं कि इस रिपोर्ट से स्थानीय स्तर पर होने वाली कार्रवाई में भी मदद मिले.”https://m.dw.com/hi/how-can-we-protect-biodiversity/a-62491530

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शनिवार, 16 जुलाई 2022

मोटर एक्सीडेंट क्लेम कैसे लें

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 मोटर एक्सीडेंट क्लेम कैसे लें वीडियो में जानकारी दी गई है आज कल एक्सीडेंट ज्यादा हो जाते हैं इसकी भरपाई के लिए बीमा कंपनियां इंश्योरेंस करती हैं तथा क्लेम का भुगतान करती है कैसे करती हैं इसके लिए इस वीडियो को देखें




 

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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से होम लोन कैसे लें

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इस वीडियो में होम लेने की विस्तृत जानकारी की गई है आजकल लोन की आवश्यकता सबको घर बनाने के लिए होती है


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शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

सर्वाइकल कैंसर क्या होता है?

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सर्वाइकल कैंसर क्या होता है?

सर्विक्स क्या है?

गर्भाशय या गर्भाशय का निचला हिस्सा, जहां योनि समाप्त होती है और गर्भाशय शुरू होता है उसे ही सर्वाइकल कहते हैं। यहीं से शुक्राणु गर्भाशय से होकर गुजरते हैं और वहां से फैलोपियन ट्यूब में पहुंच जाते हैं जहां शुक्राणु अंडा से जुड़ जाता है और जाईगोट बन जाता है। गर्भाशय ग्रीवा अर्थ सर्वाइकल का वो ट्यूमर जो फैलता जाए उसे ही कैंसर कहा जाता है।यह धीरे-धीरे बढ़ने वाला कैंसर है जिसमें पहले चरण में गर्भाशय ग्रीवा का आकार बिगड़ जाता है। इसके चार चरण होते हैं। किसी भी स्तर पर इलाज शुरू करने से मरीज की जान बचाई जा सकती है।

महिलाओं के शरीर की यह चौथी सबसे बड़ी जगह है जहां कैंसर ज्यादा देखने को मिलता है

दुनिया भर में हर साल इस कैंसर के 570,000 नए मामले सामने आते हैं, जबकि हर साल 311,000 मौतें इसी कैंसर से हो जाती हैं।

कारण:

90% मामलों में,इस प्रकार के कैंसर का कारण एच पी वी नामक वायरस पाया गया है। यह वही वायरस है जो आपकी त्वचा पर मस्से का कारण बनता है।और इस वायरस की वजह पुरुष या महिला का एक से अधिक संभोग पार्टनर रखना है। महिलाओं में ध्रुमपान की गलत आदत इत्यादि

इलाज :

आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के काढ़ा और परहेज रख कर हर चरण में फायदा उठाया जा सकता है। मैंने कई पेसेंट को अपने काढ़ा से ठीक किया है ।और दस सालों से मैं ये सेवा कर रहा हूं।

जहां तक मेडिकल का इलाज है वो इस प्रकार है

प्रारंभिक चरणों का इलाज कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, लेजर सर्जरी और इलेक्ट्रोथेरेपी से किया जा सकता है, जबकि तीसरे और चौथे चरण में, गर्भाशय का सर्जिकल निष्कासन ही एकमात्र उपचार है।


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