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रविवार, 28 नवंबर 2021

ब्रिटेन के किसान अब गाय के गोबर से बिजली पैदा कर के अच्छी कमाई कर रहे हैं

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 [28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: ब्रिटेन के किसान अब गाय के गोबर से बिजली पैदा कर के अच्छी कमाई कर रहे हैं। ये किसान गाय के गोबर का इस्तेमाल कर के AA साइज की ‘पैटरी (बैटरी)’ तैयार कर रहे हैं। इन ‘Patteries’ को रिचार्ज भी किया जा सकता है। अब माना जा रहा है कि ये रिचार्जेबल ‘पैटरीज’ ब्रिटेन की रिन्यूवेबल एनर्जी की दिशा में एक बड़ा योगदान दे सकते हैं। अनुसंधान में सामने आया है कि 1 किलो गाय के गोबर से 3.75 kWh (किलोवॉट ऑवर) बिजली पैदा की जा सकती है।

[28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: इसे कुछ यूँ समझिए कि एक किलो गाय के गोबर से पैदा हुई बिजली से एक वैक्यूम क्लीनर को 5 घंटे तक संचालित किया जा सकता है, या फिर 3.5 घंटे तक आप आयरन का इस्तेमाल करते हुए कपड़ों पर इस्त्री कर सकते हैं। इन बैटरियों को ‘Arla’ नाम की डेयरी कोऑपरेटिव संस्था ने बनाया है। इस कार्य में ‘GP बैटरीज’ नाम की बैटरी कंपनी ने किसानों की मदद की है। दोनों कंपनियों ने बताया है कि एक गाय से मिलने वाले गोबर से 1 साल तक 3 घरों को बिजली दी जा सकती है।

[28/11, 13:35] Akhilesh Bahadur Pal: इस हिसाब से देखा जाए तो अगर 4.6 लाख गायों के गोबर को एकत्रित किया जाए और ऊर्जा के उत्पादन में उनका उपयोग किया जाए तो इससे यूनाइटेड किंगडम के (UK) के 12 लाख घरों में साल भर बिजली की कमी नहीं होगी। विशेषज्ञ इसे ‘विश्वसनीय और सुसंगत’ स्रोत बता रहे हैं, जिससे बिजली पैदा हो सकती है। अकेले ‘Arla’ कंपनी की गायों से हर साल 10 लाख टन गोबर मिलता है। ‘Anaerobic Digestion (अवायवीय पाचन)’ की प्रक्रिया द्वारा गोबर से ऊर्जा प्राप्त की जा रही है।

[28/11, 13:36] Akhilesh Bahadur Pal: इस प्रक्रिया के तहत गोबर को बायोगैस और बायो-फर्टिलाइजर में तोड़ दिया जाता है। ब्रिटिश किसानों का कहना है कि ये एक इनोवेटिव प्रयास है, जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध गोबर का सदुपयोग कर के ब्रिटेन की एक बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है। उनका कहना है कि अपने खेतों और पूरे एस्टेट में वो इसी ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसकी क्षमता इससे कहीं ज्यादा है। यहाँ तक कि गोबर से ऊर्जा बनाने के बाद जो वेस्ट बचता है, उसका उपयोग खेतों में खाद के रूप में किया जाता है। sabhar up india

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

छाया पुरुष सिद्ध योगी एक ही समय में कई स्थानों में एक साथ छाया शरीर के माध्यम से प्रकट हो सकता है और अलग अलग कार्य-सम्पादन भी कर सकता है

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----------:छाया पुरुष सिद्ध योगी एक ही समय में कई स्थानों में एक साथ छाया शरीर के माध्यम से प्रकट हो सकता है और अलग अलग कार्य-सम्पादन भी कर सकता है:-------------
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                      भाग--तीन
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन

पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

       
        साधारणतया शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का छाया शरीर बहुत कम ही बाहर निकलता है। यदि कभी किसी कारणवश निकलना पड़ा तो बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है छाया शरीर को। धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक व्यक्ति के अलावा उच्च विचार रखने वाले तथा प्रबल इच्छा-शक्ति सम्पन्न व्यक्ति का छाया शरीर शीघ्र अलग नहीं होता और यही कारण है कि इस प्रकार के लोग कभी बीमार नहीं पड़ते।
       यह समझ लेना चाहिए कि स्थूल शरीर और छाया शरीर एक दूसरे के पूरक शरीर हैं। दोनों की भौतिक एकता इतनी घनिष्ठ है कि छाया शरीर में लगी चोट स्थूल शरीर की क्षति के रूप में देखी जा सकती है। इस क्रिया को प्रतिप्रभाव कहते हैं। कमज़ोर, शिथिल, रोगग्रस्त व्यक्ति का छाया शरीर स्थूल शरीर से थोड़ी दूरी  बनाकर रहता है, लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति स्वस्थ होता जाता है, वैसे-ही-वैसे उसका छाया शरीर भी उसके स्थूल शरीर में समाने लग जाता है और जब वह पूरी तरह समा जाता है, तभी रोगी पूर्ण स्वस्थ होता है। कहने का आशय यह है कि मनुष्य की स्वस्थता-अस्वस्थता उसके छाया शरीर पर निर्भर करती है।
       छाया शरीर बिना स्थूल शरीर अधूरा है। छाया शरीर उस समय अलग होता है जब हम मिलन करते हैं, नशा करते हैं, क्रोध या चिन्ता करते हैं, चोरी करते हैं, झूठ बोलते हैं, लड़ाई-झगड़ा करते हैं, आवेश करते हैं, भय की स्थिति में होते हैं या किसी बड़े और प्रभावशाली व्यक्ति के सामने जाते हैं। ऐसी स्थिति में छाया शरीर स्थूल शरीर से थोड़ा अलग हो जाता है। समझ लेना चाहिए कि दोनों शरीरों की सामंजस्यता में कमी होने पर मनुष्य को कमजोरी, मानसिक दुर्बलता का अनुभव तुरंत होने लगता है। दोनों में थोड़ा-सा भी अन्तर होने पर कोई-न कोई-रोग उत्पन्न होता है। सभी प्रकार के रोगों का एकमात्र कारण स्थूल शरीर और छाया शरीर में वैषम्य उत्पन्न हो जाना ही होता है। उचित सामंजस्य होने के लिए उचित आहार, निद्रा, मानसिक सन्तुलन बनाये रखना आवश्यक है। वाणी का कम-से-कम उपयोग ,अधिक-से-अधिक एकान्त का सेवन और अल्प भोजन आवश्यक है।sabhar Shiva ram Tiwari Facebook wall

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तीसरी श्रेणी अपदेवता

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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन


    (कई दिन पूर्व की पोस्ट में यह बताया जा चुका है कि देवताओं की तीन श्रेणियाँ होती हैं--सात्विक, राजस और तामस। इसी कड़ी में अब आगे--)


      तीसरी श्रेणी में आते हैं--अपदेवता। हाकिनी, डाकिनी, शाकिनी, पिशाच, बेताल आदि गुह्य योनि के अपदेवता हैं। गुह्य्योनि मानव योनि के बाद एक विशिष्ट योनि है। इस योनि की आत्माएं कभी भी मानव योनि में जन्म नहीं लेतीं। वे अपनी योनि में ही जन्म लेती हैं। पिशाच से पिशाच ही जन्म लेगा, दूसरा और कोई नहीं। हाकिनियों, डाकिनियों और शाकिनियों की सोलह-सोलह जातियां हैं। ग्यारह जातियां पिशाचों की हैं और बेतालों की हैं सोलह जातियां। सभी की जातियों के नाम अलग-अलग हैं और प्रत्येक जाति की साधना-उपासना आदि भी भिन्न भिन्न है।

       अपदेवताओं के शरीर का निर्माण अग्नि तत्व से हुआ रहता है। उनके स्वभाव में रजोगुण और तमोगुण --दोनों का मिश्रण रहता है। वे क्रोधी होते हैं और दयालु भी। कल्याण करते हैं और अकल्याण भी। इनमें मनोबल और प्राणबल --दोनों की अधिकता रहती है। कहाँ क्या हो रहा है?--वे अपने मनोबल से तत्काल जान जाते हैं। यही नहीं, कहाँ कौन सी घटना घटने वाली है ?-- यही भी अपने मनोबल से जान जाते हैं वे। उनका स्वभाव अति उग्र होता है। तमोगुणी तांत्रिक विधि से की गयी 'आत्माकर्षिणी विद्या' की साधना से आकर्षित होकर वे भी साधक के मनोमय या प्राणमय शरीर द्वारा उससे संपर्क करते हैं और साधक का मनोरथ पूर्ण करते हैं। कभी-कभी अपने निज रूप में, तो कभी-कभी साधक के इच्छित रूप में प्रत्यक्ष प्रकट भी होते हैं। sabhar Facebook wall dharana dhyan samadi

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