तीसरी श्रेणी अपदेवता

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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन


    (कई दिन पूर्व की पोस्ट में यह बताया जा चुका है कि देवताओं की तीन श्रेणियाँ होती हैं--सात्विक, राजस और तामस। इसी कड़ी में अब आगे--)


      तीसरी श्रेणी में आते हैं--अपदेवता। हाकिनी, डाकिनी, शाकिनी, पिशाच, बेताल आदि गुह्य योनि के अपदेवता हैं। गुह्य्योनि मानव योनि के बाद एक विशिष्ट योनि है। इस योनि की आत्माएं कभी भी मानव योनि में जन्म नहीं लेतीं। वे अपनी योनि में ही जन्म लेती हैं। पिशाच से पिशाच ही जन्म लेगा, दूसरा और कोई नहीं। हाकिनियों, डाकिनियों और शाकिनियों की सोलह-सोलह जातियां हैं। ग्यारह जातियां पिशाचों की हैं और बेतालों की हैं सोलह जातियां। सभी की जातियों के नाम अलग-अलग हैं और प्रत्येक जाति की साधना-उपासना आदि भी भिन्न भिन्न है।

       अपदेवताओं के शरीर का निर्माण अग्नि तत्व से हुआ रहता है। उनके स्वभाव में रजोगुण और तमोगुण --दोनों का मिश्रण रहता है। वे क्रोधी होते हैं और दयालु भी। कल्याण करते हैं और अकल्याण भी। इनमें मनोबल और प्राणबल --दोनों की अधिकता रहती है। कहाँ क्या हो रहा है?--वे अपने मनोबल से तत्काल जान जाते हैं। यही नहीं, कहाँ कौन सी घटना घटने वाली है ?-- यही भी अपने मनोबल से जान जाते हैं वे। उनका स्वभाव अति उग्र होता है। तमोगुणी तांत्रिक विधि से की गयी 'आत्माकर्षिणी विद्या' की साधना से आकर्षित होकर वे भी साधक के मनोमय या प्राणमय शरीर द्वारा उससे संपर्क करते हैं और साधक का मनोरथ पूर्ण करते हैं। कभी-कभी अपने निज रूप में, तो कभी-कभी साधक के इच्छित रूप में प्रत्यक्ष प्रकट भी होते हैं। sabhar Facebook wall dharana dhyan samadi

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