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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

अमेरिका की बैड ग्रैंडमां, 86 साल की उम्र में छाई जवानी और मचा दी सनसनी

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अमेरिका की बैड ग्रैंडमां, 86 साल की उम्र में छाई जवानी और मचा दी सनसनी

केनटकी। कहते हैं जब दिल जवां हो, तो उम्र का भी उस पर जोर नहीं चलता। कुछ ऐसी ही हैं केनटकी के विलियम्सटाउन की 86 वर्षीय बैडी विन्कल। स्विमसूट में पोज देती, पॉपिंग पिल्स के साथ पार्टीज का मजा लेती और डांस करती उनकी तस्वीरें इन दिनों इंटरनेट पर सनसनी मचाए हुए है। इंस्टाग्राम की बैड ग्रैंडमां ने अपनी ये तस्वीरें क्या शेयर की, इंटरनेट पर छा गईं। 
 
बैडी को ट्विटर पर एक्टिव हुए एक महीने से भी कम वक्त बीता है, लेकिन इतने ही दिन में उनके 189,000 फॉलोअर बन चुके हैं। बैडी अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि 1928 से लेकर अब तक वो इसी अंदाज में जिंदगी बिता रही हैं। वो हर रंग में तरह-तरह की पोशाक पहनती आ रही हैं। 
 
हाल ही में, बैडी ने जब अपने हमउम्र लोगों को अपनी पोस्ट की नकल करते देखा, तो उन्होंने कहा कि बाकी सारी ग्रैंडमां कॉपी कैट की तरह हैं, जो नकल करती हैं। उन्होंने कहा कि वो अकेली रियल कैट हैं। एलन डेजेनरस के चैट शो में जाने के लिए बैडी कैंपेन भी चला रही है।
अमेरिका की बैड ग्रैंडमां, 86 साल की उम्र में छाई जवानी और मचा दी सनसनी

sabhar : bhaskar.com

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पचास साल बाद की दुनिया-देवेंद्र मेवाड़ी

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photo : googale


कितनी तेजी से बदल रही है हमारी यह दुनिया! जो आज है, वह कल नहीं था। जो कल होगा, वह आज नहीं है। आइए, कल्पना करते हैं कि कल क्या होगा हमारे इस खूबसूरत ग्रह का? हमारी इस दुनिया का?
काश, हमारे पास ऐसी कोई टाइम मशीन होती जो हमें समय की सैर कराती। पीछे और पीछे अतीत में ले जाती, जहां हम देखते-बियाबान जंगल, जंगल में विचरते हजारों जंगली जानवर और उनके शिकार की टोह में भटकता आदिमानव। गुफा में उन जानवरों के बच्चों को पालता उसका परिवार। घास के दाने बोती, छिटकती आदिम औरत। आसमान को ताकते, चिड़ियों को उड़ते हुए देखते आदिमानव जो शायद सोच रहे होते कि काश हम भी ऐसे उड़ते, चांद-तारों को छू सकते…
हम टाइम मशीन में आगे बढ़ते और चौंक जाते यह देख कर कि यह हम कहां आ गए? वहां हमें दिखतीं, विशाल नदियां, हरे-भरे खेत, झोपड़ियां। खेतों में काम करते आदमी, औरतें, खेलते बच्चे। भौं-भौं भौंकते कुत्ते, गायों-भैंसों के झुंड, घोड़े। हम देखते कि गुफाओं में रहने वाले परिवार बस्तियां बना कर रह रहे हैं। जंगली जानवर पालतू बना लिए गए हैं। खेतों में खेती होने लगी है। आदमी के कल के सपने साकार हो गए हैं।
हम फिर आगे बढ़ते और देखते आसमान में चिड़ियों की तरह उड़ता आदमी। उसका उड़ने का सपना सच हो गया! हम देखते सागर में तैरते, जहाजों में यात्रा करते और पनडुब्बियों में सागर तल की सैर करते आदमी। पटरियों पर धड़धड़ाता इंजन, सीटी देकर भागती रेल और मोटर-कारें।
फिर हमें दिखाई देते विकास की अंधी दौड़ में धराशायी होते सदियों के साथी हरे-भरे पेड़, उजड़ते जंगल। गांवों को लीलते शहर। सीमेंट कंक्रीट के जंगल…महानगर, जहां हवा बदली, फिजा बदली, मौसम का मिजाज बदला। आदमी परेशान, पशु परेशान, पक्षी परेशान। विकास की इस दौड़ में आखिर कहां जाएगा यह आदमी?
आज से पचास वर्ष पहले मैंने सफेद मिट्टी के घोल में नरकुल की कलम डुबा कर लकड़ी की तख्ती पर लिखना सीखा था। दिन के उजाले में या रात को छोटे-से लैंप या लालटेन के उजाले में पढ़ता था। गांव में बिजली नहीं थी। टेलीफोन भी नहीं था। पहली बार जब रेडियो का डिब्बा आया तो लोग दूर-दूर से उसे देखने-सुनने आते थे। टेलीविजन, फोन, मोबाइल के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते थे।
लेकिन, पचास वर्ष बाद आज हमारे पास शानदार पेन, कापियां हैं, केलकुलेटर हैं, मोबाइल फोन हैं, टेबलेट, कंप्यूटर और लैपटाप हैं, टेलीविजन हैं, खाना पकाने की गैस है, प्रेशर कुकर हैं, फ्रिज हैं, माइक्रोवेव और ओवन हैं। गर्मी से बचने के लिए ए सी है, कपड़े धोने-सुखाने की मशीन है। बच्चे मोबाइल और पी एस पी पर वीडियो गेम खेल रहे हैं। चारों ओर मोटरकारें, रेलगाड़ियां दौड़ रहीं हैं। हवाई जहाज उड़ रहे हैं। आदमी चांद पर पहुंच चुका है। अंतरिक्षयान ग्रह-नक्षत्रों के रहस्यों का पता लगा रहे हैं, आदमी के बनाए वाएजर यान सौरमंडल के पार अनंत अंतरिक्ष में पहुंच चुके हैं, मानव मंगल ग्रह पर विजय की तैयारियों में जुटा हुआ है। यानी, पचास वर्ष के भीतर हमारी दुनिया की तस्वीर ही बदल गई है।
यह बदलाव इतनी तेजी से हो रहा है कि पचास वर्ष बाद की दुनिया को तो शायद पहचानना भी मुश्किल हो जाएगा। वैज्ञानिक कहते हैं, कल कारें उड़ेंगी। कारों का भी दिमाग होगा, कम्प्यूटर का दिमाग। इसीलिए कार अपने आप चलेगी। उसे बस वह जगह बतानी होगी, जहां जाना है। वह न किसी से टकराएगी, न रास्ता भूलेगी। न यातायात के नियम तोड़ेगी। इसी तरह रेलगाड़ियां और हवाई जहाज भी कम्प्यूटर के दिमाग से चलेंगे। गांव और शहर सूरज की ऊर्जा से जगमगाएंगे क्योंकि धरती के गर्भ में डीजल-पेट्रोल का भंडार दिन-ब-दिन घटता ही जाएगा। डीजल-पेट्रोल ही क्या, पानी के लिए भी त्राहि-त्राहि मच जाएगी, इतनी कि शायद पानी के लिए विश्वयुद्ध छिड़ जाए।
तब मकान अपनी देखभाल खुद करेंगे। शाम होते ही उनमें अपने आप रोशनी जल जाएगी। सुबह उजाला होने पर बुझ जाएगी। सर्दियों में घर अपने आप गर्म और गर्मियों में ठंडे हो जाएंगे। घरों, कल-कारखानों और खेत-खलिहानों में काम करने के लिए रोबोट होंगे। घर में रोबोट डागी और रोबोट पूसी होगी। दिमागदार खिलौने बच्चों का मन बहलाएंगे। रोबोट बूढ़े-बुजुर्गों को सुबह-शाम की सैर कराएंगे। उनकी तीमारदारी करेंगे। उनकी संतानें आफिसों, माल-बाजारों या क्लबों में व्यस्त होंगी।  स्कूल-कालेजों में रोबोट शिक्षक पढ़ाएंगे। वे घर में कम्प्यूटर के स्क्रीन पर भी पढ़ाएंगे। पुस्तकें इंटरनेट पर भी पढ़ी जाएंगी। लाइब्रेरी नेट पर उपलब्ध होगी।
हो सकता है, आने वाले पचास वर्षों में हमारी मुलाकात किसी और ग्रह के एलियनों से हो जाए! वैज्ञानिक कहते हैं कि इस विशाल ब्रह्मांड में अरबों-खरबों ग्रह-उपग्रह हैं। हमारी पृथ्वी की तरह उनमें कहीं तो जीवन होगा। जीवन होगा तो वे भी हमारी तरह दूसरे ग्रहों में जीवन की खोज कर रहे होंगे। इसलिए हो सकता है, आने वाले समय में हमें एलियन मिल जाएं या फिर उन्हें हम मिल जाएं।
हो सकता है,तब तक मानव चांद पर कोई बस्ती बना ले और वहां के अंतरिक्ष अड्डों से अन्य ग्रहों के लिए उड़ान भरे। मंगल ग्रह पर भी तब तक विजय प्राप्त कर ली जाएगी। हो सकता है, तब तक हमारे देश के अंतरिक्ष यात्री भी चंद्रमा और मंगल पर उतर चुकें हों।
आने वाले पचास वर्षों में खेती की जमीन के घटते जाने से खाद्यान्नों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा लेकिन नए वैज्ञानिक तरीकों से उत्पादन बढ़ाने की कोशिशें की जाएंगी।  जमीन घटने के कारण विशाल खड़ी इमारतों की तमाम मंजिलों में फसलें उगाई जाएंगीं। इमारतों के भूतल के बाजार में अनाज और फल-सब्जियां बेची जाएंगी। घर की रसोई में खाना पकाने का रिवाज शायद घटता जाएगा और तुरत-फुरत भोजन का प्रचलन बढ़ता जाएगा। बची-खुची जमीन और खेत-खलिहानों में रोबोट काम करेंगे। रोबोट गाय-भैंसों का दूध भी दुहेंगे और उन्हें समय पर चारा-दाना भी देंगे।
वैज्ञानिकों को लगता है कि प्रजनन की नई तकनीकों के कारण लोग मनचाही स्वस्थ संतान पैदा कर सकेंगे और शुक्राणु बैंक से प्राप्त स्वस्थ शुक्राणुओं से किराए की कोख से संतान सुख प्राप्त कर सकेंगे। शुक्राणु तथा डिंब बैंकों से शुक्राणु और डिंब खरीद कर अविवाहित अथवा एकाकी युवतियां या ‘गे’ दम्पती भी किराए की कोख से अपनी संतान पैदा करा सकेंगे। कई कामकाजी महिलाएं नौ माह तक गर्भधारण का झंझट नहीं पालना चाहेंगीं। दिवंगत लोगों के शुक्रागुणों और डिबों से वर्षों बाद भी संताने पैदा की जा सकेंगी। लालन-पालन की कठिन जिम्मेदारी और महंगाई के कारण लोग बच्चों की संख्या एक या दो तक ही सीमित रखना चाहेंगे। इसके बावजूद विश्व की मौजू़दा 7 अरब आबादी वर्ष 2050 तक 8.5 से 10 अरब तक बढ़ जाएगी।
चिकित्सा विज्ञान की नई खोजों के कारण बेहतर स्वास्थ सेवाएं उपलब्ध होंगी और लोगों की उम्र बढ़ेगी। शतायु लोगों की संख्या बढ़ेगी। वे अपने 70-80 साल के बच्चों को सलाह देंगे। लेकिन, पुरानी पीढ़ी के उम्रदराज़ लोगों से युवा पीढ़ी में रोजगार, घरेलू सम्पत्ति और दोनों पीढ़ियों के जीने के तौर-तरीकों में अंतर होने के कारण मनमुटाव बढ़ेगा। वे साइबर मीडिया के जरिए विरोध प्रकट करके संचार सुविधाओं को ठप करने की कोशिश करेंगे। वही साइबर मीडिया का विश्वव्यापी नेटवर्क जिससे आज हमारी हवाई, रेलवे, स्वास्थ्य और बैंकिंग जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं जुड़ी हुई हैं।
टेलीविजन आया तो लगा अब रेडियो गया और सिनेमा की भी छुट्टी हो जाएगी। बुद्धू-बक्से के रूप में सारी दुनिया हमारे घर भीतर सिमट आई। लेकिन, अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ रेडियो और सिनेमा आज भी मौजूद है और पचास साल बाद भी रहेगा। एफ एम के रूप में रेडियो फिर से घर-घर में पहुंच गया है। इसी तरह कम्प्यूटर, टेबलेट और इंटरनेट से किताबें विदा नहीं होंगी। नए गैजेटों का मोह इनकी संख्या घटा भले ही दे, इन्हें गायब नहीं कर सकेगा। पचास वर्ष बाद भी किताबों के कागज की खुशबू सूंघने और उन्हें पृष्ठ-दर-पृष्ठ पढ़ने और सहेजने वाले शौकीन मौजूद रहेंगे।
आज करोड़ों लोग हथेली में समा जाने वाले नन्हें मोबाइल का उपयोग करके दुनिया के कोने-कोने में बात कर रहे हैं। इस नन्हे गैजेट ने टेलीफोन की सुविधा देने के साथ-साथ कैमरे और संगीत की सुविधा भी मुहैया कर दी है। यह अपने मालिक की मौजूदगी का पता बता रहा है। पचास वर्ष बाद यह कई और सुविधाएं दे रहा होगा। कल यह हमारे मन-मस्तिष्क के साथ ही शरीर की गतिविधियों को भी पढ़ेगा और फेमिली डाॅक्टर को हमारे दिलो-दिमाग उसकी खबर देगा।
दिलो-दिमाग की खबर वह नन्हीं-सी चिप भी देगी जो हमारे दिमाग में फिट कर दी जाएगी। वह हमें हमारे प्रियजनों और दोस्तों से ही नहीं बल्कि फेमिली डाक्टर और कम्प्यूटर, इंटरनेट से भी जोड़ देगी। तब गणित के सारे गुणा-भाग और किताबों का ज्ञान हमारे दिमाग में भरा होगा। इंटरनेट से जुड़ कर हम मन ही मन सारी दुनिया का ज्ञान टटोल रहे होंगे।
ज्ञान तो टटोल रहे होंगे, लेकिन डर यह भी है कि वह चिप हमें दुनिया सौंप कर कहीं हमारी एक अलग एकाकी दुनिया न रच दे। आज नगरों-महानगरों की भीड़ में, सड़क-चैराहों पर बसों और रेलगाड़ियों तक में कान से मोबाइल चिपकाए लोग साथ होते हुए भी अपनी-अपनी अलग दुनिया में खोए रहते हैं। उन्हें पता नहीं कि उनके आसपास भी लोग हैं, सहयात्री हैं जिनसे बातें की जा सकती हैं, यात्रा और जीवन के अनुभव बांटे जा सकते हैं, उन अनुभवों से कुछ सीखा-सिखाया जा सकता है।
लेकिन, नहीं, उनकी दुनिया मोबाइल में सिमट गई है। वे कान पर मोबाइल लगा कर गुमनाम आते हैं और मोबाइल लगाए-लगाए गुमनाम निकल जाते हैं। यह अकेलापन इस नन्हे गैजेट की देन है और मोबाइल इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इनसे आदमी के जीवन में अपरिचय और अकेलेपन का अंधेरा भी बढ़ता जा रहा है। अपने साथी मनुष्यों के साथ सुख-दुख बांटने का सहज मोह खत्म होता जा रहा है।
कम्प्यूटर, इंटरनेट और फेसबुक भी इसी तरह आदमी का अकेलापन बढ़ा रहे हैं। यह अकेलापन आदमी को धीरे-धीरे अपने आसपास ही नहीं बल्कि पूरे समाज से काटता जा रहा है। पचास वर्ष बाद इसका क्या परिणाम सामने आएगा, यह उस समय के समाज विज्ञानी और मनोवैज्ञानिक बताएंगे। उस समाज की एक झलक देखने के लिए भी काश आज हमारे पास कोई टाइम मशीन होती!
 sabhar :http://devenmewari.in/

dmewari


7 मार्च 1944 को ग्राम कालाआगर, पट्टी-चौगढ़, जिला नैनीताल (उत्तराखंड) में जन्म। एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान), एम.ए. (हिंदी), पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। विगत 45 वर्षों से हिंदी में नियमित रूप से विज्ञान लेखन, अनुवाद और संपादन। प्रमुख कृतियां: ‘मेरी यादों का पहाड़’,‘मेरी विज्ञान डायरी’, ‘भविष्य’, ‘कोख’, ‘मेरी प्रिय विज्ञान कथाएं’ (विज्ञान कथा संग्रह), ‘विज्ञान प्रसंग’, ‘हार्मोन और हम’, ‘सूरज के आंगन में’, ‘विज्ञान बारहमासा’, ‘सौरमंडल की सैर’, ‘फसल­ कहें कहानी’, ‘पशुओं की प्यारी दुनिया’ आदि (लोकप्रिय विज्ञान), हमारे पक्षी, जीन और जीवन, कहानी रसायन विज्ञान की (अनुवाद)। तेरह वर्ष तक मासिक कृषि पत्रिका ‘किसान भारती’ का संपादन। ‘विज्ञान प्रसार’ फैलो (2007-08)। आकाशवाणी तथा टेलीविजन के लिए विज्ञान नाटक पटकथा लेखन / वार्ताएं, वैज्ञानिक विषयों पर व्याख्यान। हिंदी माध्यम से विज्ञान लोकप्रियकरण में उत्कृष्ट योगदान के लिए विज्ञान परिषद् प्रयाग शताब्दी सम्मान (2012), उत्कृष्ट विज्ञान लेखन के लिए प्रतिष्ठित ‘आत्माराम पुरस्कार’ (2005), राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) का राष्ट्रीय पुरस्कार (2000), भारतेंदु हरिश्चंद्र राष्ट्रीय बाल साहित्य पुरस्कार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (1994-99 तथा 2002), मेदिनी पुरस्कार, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (2009), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार (1978-79), विज्ञान परिषद प्रयाग द्वारा स्तरीय विज्ञान लेखन के लिए सम्मानित (1986) तथा ‘विज्ञान’ का ‘देवेंद्र मेवाड़ी सम्मान अंक’ प्रकाशित (2006)। सदस्यः ‘रक्षा उत्पादन विभाग की हिंदी सलाहकार समिति’ (रक्षा मंत्रालय) , भारत सरकार,

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मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

तीन साल का बच्चा लौटा मरने के बाद

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यूके: तीन साल के एक बच्चे के अनुसार अपने जटिल ऑपरेशन के दौरान उसने महसूस किया कि उसका शरीर हवा में उठकर ऊपर की ओर जा रहा था। उसके मां-बाप इस दौरान जोर जोर से रो कर उसके ठीक होने की दुआएं मांग रहे थे।
इस दौरान सभी डॉक्टर इस बच्चे को बताने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। ऑपरेशन सफल रहा लेकिन सबसे हैरतअंगेज रहा इस बच्चे का अनुभव। उसने बताया कि ऑपरेशन के दौरान पूरे समय स्वर्ग में उसे प्रभू जीसस अपनी गोद में बैठाकर थपथपाते रहे। उसने जीसस के इंद्रधनुषी घोड़े की सवारी भी की। वहां पर वह अपनी मरी हुई दादी और बहन से भी मिला। इस बच्चे की बहन इस के जन्म से भी पहले एक हादसे में अपनी जान गंवा चुकी थी।
बच्चा धरती पर अपने शरीर के जटिल ऑपरेशन के दौरान स्वर्ग मे नीली आंखों और सुनहरे बालों वाले एक देवदूत की गोद में बैठा था। उसने इस देवदूत को प्रभू जीसस बताया है।
इस बच्चे के इस अनोखे अनुभव पर एक सुपर डुपर हिट हॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म ने अपने पहले हफ्ते में ही 22.5 मिलियन डॉलर की कमाई की और अब तक यह फिल्म 52 मिलियन डॉलर कमा चुकी है। यह फिल्म यूके में अब 9 मई को रिलीज होने जा रही है।
फिल्म का डायरेक्शन करने वाला शख्स और कोई नहीं बल्कि जाने माने लेखक रांडाल वॉलस है जिन्होंने ब्रेवहार्ट और पर्ल हार्बर जैसी मशहूर हॉलीवुड फिल्में लिखी हैं। यूके में यह फिल्म 9 मई को रिलीज होने जा रही है। इस बच्चे को नाम है कॉलटन बर्पो और अब इसकी उम्र 14 साल है। sabhar :http://khabarmantra.com/

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ड्रैकुला थेरपी: थम जाएगी उम्र

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photo :navbharattimes.indiatimes.com

ब्लड निकालकर उसे वैंपायर्स के लिए कलेक्ट करना तो हम सबने सुना है , लेकिन उसे ब्यूटी के लिए यूज करना थोड़ा नया कॉन्सेप्ट है। कॉस्मेटोलॉजी में अब अपने ही ब्लड को इंजेक्ट करके रिंकल्स को दूर किया जा रहा है। आइए जानते हैं इस ट्रेंड के बारे में-

बोटोक्स और कॉस्मेटिक फिलर्स के बाद अब बारी है , ड्रैकुला थेरपी की। आपके चेहरे पर उम्र का असर न दिखे , इसके लिए आपके ही ब्लड को आपके फेस पर इंजेक्ट किया जाता है। गौरतलब है कि ड्रैकुला थेरपी में बगैर किसी सर्जरी के बेहद यूथफुल लुक मिलता है। बता दें कि इस थेरपी को पहली बार ब्रिटेन में इंट्रोड्यूस किया गया था। लंदन - बेस्ड फ्रेंच कॉस्मेटिक डॉक्टर डेनियल सिस्टर का यह कॉन्सेप्ट अब इंडिया में अपने रिजल्ट की वजह से पॉप्युलर हो रहा है। इस थेरपी के बाद बेबी - सॉफ्ट और नेचरल स्किन मिलती है। दरअसल , इस थेरपी में आपके ही प्लेटलेट रिच प्लाज्मा को इंजेक्ट किया जाता है। इसे इंजेक्ट करने से स्किन रिजेनरेट हो जाती है और साथ में रिजुनेवेट भी। अगर आपको सिंथेटिक प्रॉडक्ट्स से प्रॉब्लम है , तो यह आपके लिए बेहतर है। 

क्या है प्रोसेस 
फोर्टिस हॉस्पिटल के सीनियर कॉस्मेटिक सर्जन डॉ . अजय कश्यप बताते हैं कि इस नॉन - सर्जिकल एज डिफाइंग ट्रीटमेंट में डॉक्टर आपका ब्लड निकालते हैं। फिर उसे उसे रेड ब्लड सेल्स , सीरम और प्लेटलेट्स में सेपरेट कर देते हैं। फिर इसे छोटे सीरिंज नीडल से पेशंट के फेस में इंजेक्ट किया जाता है। इसके बाद नए यंगर सेल्स बनने की प्रोसेस शुरू हो जाती है। चूंकि इस प्रोसेस में कोई फॉरन बॉडी इंजेक्ट नहीं की जाती , इसलिए यह सेफ है। यही नहीं , जरूरत पड़ने पर इसे दोबारा भी करवाया जा सकता है। 

बोटोक्स से अलग 
अगर बोटोक्स की बात करें , तो यह एक नर्व पारालिटिक एजेंट है। यह फेशियल लाइंस के लुक को इंप्रूव तो करता है , लेकिन सेल्स को रिजेनरेट नहीं करता , जबकि ड्रैकुला थेरपी से स्किन की कंडीशनिंग हो जाती है।

हेयर फॉल में भी 
ड्रैकुला थेरपी का यूज बालों की प्रॉब्लम्स में भी किया जाता है। स्किन स्पेशलिस्ट डॉ . रोहित बतरा बताते हैं कि अगर इसे स्कैल्प में इंजेक्ट किया जाता है , तो बहुत अच्छा रिजल्ट मिलता है। इसका रिजल्ट इंस्टैंट नहीं दिखता , लेकिन आपकी स्किन बिल्कुल इंप्रूव हो जाती है। वैसे , इसे स्टिमुलेटेड सेल्फ सीरम स्किन थेरपी भी कहते हैं। चूंकि यह अपना ही ब्लड है , इसलिए कोई एलर्जी भी नहीं होती। हां , इसे कराने के बाद एक हफ्ते तक आप सोशलाइज न करें , तो बेहतर रहता है। 

हिट है दिल्ली में 
दिल्ली में 35 से लेकर 50 की एज ग्रुप की महिलाएं इस थेरपी को पिछले कुछ महीनों से आजमा रही हैं। वैसे , कॉस्मेटिक डर्मेटॉलजिस्ट डॉ . दीप्ति ढिल्लन की मानें , तो दिल्ली में फिलहाल इसे सेलिब्रिटीज ज्यादा करा रहे हैं। हां , इंटरनेट से दिल्ली वालों को इस बारे में जानकारी मिल रही है। वैसे , इस थेरपी के लिए स्किन पर बहुत ज्यादा रिंकल्स आने का इंतजार न करें , बल्कि हल्के रिंकल्स में ही आजमाएं। आपको बेहतर रिजल्ट मिलेंगे। इस बात का खास ध्यान रखें कि आप इसे किसी एक्सपर्ट से ही कराएं। - ट्रेंड कॉस्मेटॉलजिस्ट से ही करवाएं यह थेरपी। - चूंकि थेरपी के बाद स्किन थोड़ी सेंसिटिव हो जाती है , इसलिए हमेशा घर से निकलने से पहले सनस्क्रीन का यूज जरूर करें। - आप चाहें , तो दो साल बाद इस थेरपी को रिपीट भी कर सकती हैं।

कितना है खर्च 
हालांकि यह टेक्नीक हमारे यहां अभी नई है, लेकिन बहुत तेजी से पॉपुलर हो रही है। इस थेरपी के हर सेशन में आपका 25,000 से लेकर 30,000 रुपये तक का खर्च आ सकता है। 


चूंकि यह आपका अपना ही ब्लड है , इसलिए कोई एलर्जी भी नहीं होती-डॉ.रोहित बतरा। (प्रीतंभरा प्रकाश,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,

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एंटीग्रेविटेशनल इंजन

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एंटीग्रेविटेशनल इंजन


बहुत मुमकिन है कि रूस में ही पहला एंटीग्रेविटेशनल इंजन बनेगा| उराल-अंचल के दक्षिण में स्थित नगर त्रोइत्स्क के निवासी अन्वेषक-इंजीनियर गार्री गिल्मानोव का कहना है कि उन्होंने एंटीग्रेविटी का रहस्य बूझ लिया है| वह पत्रकारों को अपनी “एंटीग्रेविटेशनल कुर्सी” दिखाते हैं|

वैसे यह कुर्सी ज़मीन से ऊपर तो नहीं उठती| किंतु इंजीनियर का कहना है कि पीठ के रोगों से पीड़ित लोगों को इससे बहुत मदद मिलती है| बात यह है कि इस कुर्सी में बैठने पर व्यक्ति अपना भार महसूस नहीं करता| गार्री गिल्मानोव बताते हैं:
“मैं गुरुत्वाकर्षण बल पर असर डाल सकता हूं, इसे घटा-बढ़ा सकता हूं| इसकी दिशा भी बदल सकता हूं| किसी एक पिंड के लिए कुछ समय के लिए गुरुत्वाकर्षण बल बिलकुल ही समाप्त कर सकता हूं”|
इस इंजीनियर के जितने भी मित्रों और परिचितों ने “एंटीग्रेविटेशनल कुर्सी” आजमाई है उन सबका यह कहना है कि यह युक्ति सौ फ़ी सदी काम करती है| बहत से लोगों को इसकी मदद से पीठ के दर्द से निजात मिली है|
गार्री गिल्मानोव अब सत्तर वर्ष के हो चले हैं| उन्होंने दो हज़ार से अधिक युक्तियां खोजी और बनाई हैं| उनका सबसे बड़ा सपना यह है कि लोगों को गुरुत्वाकर्षण बल की सहायता से एक स्थान से दूसरे पर जाना सिखा दें| उदाहरण के लिए, एक छोटी सी डिब्बी में हो उनकी युक्ति, उसे कमर पर लगाओ, बटन दबाओ और जिधर चाहो उड़ चलो| या फिर साइकिल पर बैठो, पैडल घुमाओ और उड़ने लगो|
“ज़रा सोचिए हवाई साइकिल क्या है? बैठे, पैदल घुमाए और उड़ चले, कोई इंजन नहीं, कुछ नहीं| है न ज़बरदस्त बात! बेशक, स्पीड तो हल्की सी ही होगी|”
यह सब कल्पनातीत लगता है| पर तब तक ही जब तक हम यह नहीं जान लेते कि यह बात कौन कह रहा है| गार्री गिल्मानोव ने अपनी सारी उम्र गोपनीय सैनिक कारखाने में गोपनीय अनुसंधानों और विकास-कार्यों पर ही काम किया| अभी तक वह उन दिनों के अपने काम के बारे में कुछ नहीं बताते हैं – गोपनीयता की शपथ जो ले रखी है| सोवियत काल में ही उन्हें “सोवियत संघ का सम्मानित अन्वेषक” उपाधि से विभूषित किया गया था| उन दिनों भी पूरे देश भर में ऐसी उपाधि पाने वाले गिने-चुने लोग ही थे|
गिल्मानोव के परिचितों का कहना है कि उनका जो नो-हाऊ है उसे देखते हुए उन्हें नोबल पुरस्कार आसानी से मिल सकता है| परंतु अब पेशनर गिल्मानोव अकेले में अपने विचारों को मूर्तित नहीं कर सकते| इसके लिए इंजीनियरों का पूरा दल होना चाहिए, जो सभी सटीक गणनाएं करें और टेक्नोलॉजिकल परीक्षण करें| यह सब कोई सस्ता काम नहीं है| इतनी बड़ी पूंजी कहां से लाई जाए, गिल्मानोव उदास मन से कहते हैं, लेकिन अपने को एक सच्चा देशभक्त मानते हुए वह वह अपनी खोज को विदेशियों को बेचने का कोई इरादा नहीं रखते हैं|
बस, यही उम्मीद है कि देश की सरकार गिल्मानोव की खोज की ओर ध्यान देगी| यदि वास्तव में गिल्मानोव की खोज में कोई विवेकसंगत बात है तो यह सारी मानवजाति के लिए नितांत महत्वपूर्ण है|

sabhar :http://hindi.ruvr.ru/

और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/2014_04_29/antigravitation-ingine/

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तृतीय विश्व युद्ध शुरू करना चाहता है रूस

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मास्को। यूक्रेन को लेकर रूस पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इस दबाव का ही नतीजा है कि अब उसके आक्रामक रुख में नरमी दिखने लगी है। शुक्रवार को रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यूक्रेन मसले को सुलझाने और वहां शांति कायम करने के लिए मास्को अमेरिका के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है। जबकि यूक्रेन के प्रधानमंत्री आर्सेनी यात्सेन्युक का आरोप है कि रूस शांति कायम करने की बजाय तृतीय विश्व युद्ध प्रारंभ करना चाहता है।
इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूसी रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से कहा है कि बातचीत के लिए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की ओर से कोई अनुरोध नहीं किया गया है। लेकिन यूक्रेन में स्थिति सामान्य बनाने के लिए रूस का रक्षा मंत्रालय बातचीत को तैयार है। इस बीच यूक्रेन के प्रधानमंत्री आर्सेनी यात्सेन्युक ने उनके देश को लेकर रूस पर तृतीय विश्व युद्ध प्रारंभ करने की आधारशिला रखने का आरोप लगाया है। उन्होंने रूस की आक्रामकता के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील की है।
कैबिनेट की बैठक के दौरान यात्सेन्युक ने कहा, 'यूक्रेन की धरती पर रूस की सेना द्वारा आक्रामक कार्रवाई के प्रयास से यूरोप में संघर्ष प्रारंभ हो जाएगा। दुनिया के देश द्वितीय विश्व युद्ध को नहीं भूल पाए हैं और रूस तृतीय विश्व युद्ध प्रारंभ करना चाहता है।' इंटरफैक्स ने यूक्रेन के रक्षा मंत्री मायखैलो कोवाल के हवाले से कहा है कि इस सप्ताह रूसी सेना उनके देश की सीमा से एक किलोमीटर की दूरी पर पहुंच गई है। उनका कहना है कि रूसी सेना यूक्रेन की सीमा के पास युद्धाभ्यास कर रही है और यूक्रेन की सेना किसी भी हमले को रोकने के लिए तैयार है। यूक्रेन के गृह मंत्री आर्सेन अवाकोव ने कहा है कि रूस की चेतावनी के बावजूद उनके देश के पूर्वी हिस्से में रूसी अलगाववादियों के खिलाफ अभियान जारी है। उधर शुक्रवार को यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में स्थित शहर स्लोविआंस्क में एक सैन्य हेलीकॉप्टर पर गोलीबारी की गई, जिससे उसमें आग लग गई। इस घटना में पायलट घायल हो गया। विद्रोहियों के नियंत्रण वाले शहर स्लोविआंस्क में यूक्रेन के विशेष बलों ने शुक्रवार को नाकाबंदी और मजबूत कर दी। जबकि रूस ने यूक्रेन को देश के पूर्वी हिस्से में खूनी अपराध के लिए न्याय के कठघरे में खड़ा करने की चेतावनी दी है। sabhar :http://www.jagran.com/

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महिला जज ऑफिस में न्यूड होकर करती थी एक्सरसाइज

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ये कैसी आदत?


ये कैसी आदत?


हममें से ज्यादातर लोग एक्सरसाइज करने से पहले स्पोर्टी कपड़े पहनकर किसी खुली जगह को एक्सरसाइज करने के लिए चुनते हैं।

लेकिन इस महिला की कहानी हममें से ज्यादातर लोगों की कहानी से बहुत अलग है।

ऐसा इसलिए क्योंकि ये महिला ऑफिस में ही एक्सरसाइज करती थी। एक्सरसाइज भी ऐसी अवस्‍था में जिसे देखकर किसी के भी होश उड़ जाएं।
न्यूड हो जाती वो

न्यूड हो जाती वो

वो एक महिला जज थी। उसे अक्सर ही केस को सुनने और उसपर फैसला करने के लिए वहां जाना होता था।

लेकिन कोर्ट रूम में आने से पहले वो अपने ऑफिस में न्यूड होकर एक्सरसाइज करती थी। इतना ही नहीं, वो अपने ऑफिस डेस्क पर ही न्यूड अवस्‍था में सनबाथ भी लेती थी।

उसकी इस आदत का किसी को पता नहीं था। लेकिन तभी एक दिन किसी अंजान व्यक्ति ने उसको न्‍यूड ही एक्सरसाइज करते हुए तस्वीरें खींच ली।
निकाली गई कोर्ट से

निकाली गई कोर्ट से

जज की ऐसी तस्वीरें सभी हैरान रह गए। उसके ऊपर डिस्पिलिनेरी एक्‍शन कमेटी बैठी। कमेटी ने ये तय किया कि एनिसा बिलाजैक जैसी सीनियर जज से ऐसी हरकतों की उम्मीद नहीं की जाती है।

उसे कोर्ट से निकालने का फैसला ले लिया गया। उसे ऑफिस में आपत्तिजनक काम करने के लिए बाहर से निकाल भी दिया गया।

लेकिन थोड़ी दिनों बाद उसने अपनी हरकत के लिए माफी मांगी और प्रोफेशनल रूप से अच्छा काम करने की बात करते हुए उसे रखने की बात कही। कोर्ट उसकी बात मान गई। मामला यूरोप स्थित बोस्निया के हाई कोर्ट का है। sabhar :http://www.amarujala.com/


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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

सनी ने सबके सामने उतारे कपड़े, किया स्ट्रिप डांस

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पोर्न स्टार और अभिनेत्री सनी लियोन की मुंबई-पुणे हाइवे पर स्थित किसी क्लब में स्ट्रिप डांस करती हुई तस्वींरों ने तहलका मचा दिया है. सोशल मीडिया पर सनी लियोन की कुछ तस्वीरें आजकल जबदस्त चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इन तस्वीरों में सनी मुंबई-पुणे हाइवे पर स्थित किसी क्लब में स्ट्रिप डांस करती हुई नजर आ रही है. कहा जा रहा है कि सनी ने यह हॉट डांस एक व्यापारी की प्राइवेट पार्टी में किया था और इस परफॉर्मेस के लिए सनी को 40 लाख रुपए मिले थे. इन तस्वीरों और अटकलों में कितनी सच्चाई है, यह अभी कहा नहीं जा सकता. इंटरनेट पर इन तस्वीरों का लोग जमकर मजा जरूर ले रहे हैं. आपको बता दें सनी लियोन अपने एक और हॉट ऐड के साथ तैयार हैं. सनी लियोन ने हाल ही में डियोड्रेंट का एक हॉट ऐड शूट किया है. ये ऐड जल्द ही टीवी पर आग लगाने के लिए आ रहा है.



इससे पहले सनी ने कंडोम के कई हॉट ऐड किए हैं. सनी हाल ही में फिल्म रागिनी एमएमएस-2 में नजर आईं थीं. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही.



इस ऐड में सनी बहुत ही सेक्सी और बोल्ड नजर आ रही हैं. इस ऐड में सनी बिकनी पहनकर बीच पर गीलों बालों के साथ खेल रही हैं. sabhar :http://www.samaylive.com/



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पत्नी की 6 सहेलियों समेत 18 को फंसाया प्यार जाल में

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The woman whose husband had 18 AFFAIRS... 6 of them with her friends!


वॉशिंगटन
अडेल थेरन शादी के बाद से ही अपने पति ब्रूस के साथ बहुत खुश थी। वह अपने पति पर पूरा भरोसा करती थी। इस बीच अडेल ने अपनी दोस्तों को भी घर पर बुलाना जारी रखा। उसके क्या पता था कि उसके पीछे से ब्रूस उसे किस तरह से धोखा दे रहा है। ब्रूस का अडेल की दोस्तों के साथ अफेयर शुरू हो गया। एक या दो नहीं, ब्रूस ने अपनी वाइफ की 6 दोस्तों के साथ चक्कर चला रखे थे।

काफी दिनों तक यह बात वाइफ से छुपी रही। लेकिन एक दिन उसे अपनी एक करीबी सहेली की बात से शक हुआ। उसने पता लगाना शुरू किया तो उसके होश उड़ गए। वह यह जानकर हैरान रह गई कि ब्रूस ने उसकी 6 सहेलियों को अपने जाल में फंसा रखा है और उसकी सहेलियों ने भी यह बात उससे छुपाई हुई है।

मामला यहीं नहीं खत्म हुआ। बात पर बात खुलती गई और पति देव की पोल भी। पता चला कि ब्रूस के सिर्फ 6 महिलाओं से ही नहीं बल्कि 12 और महिलाओं से भी अफेयर हैं। उसने पहले तो तलाक दिया, लेकिन बाद में खुश रहने के लिए उसने अपने पति को माफ कर दिया। मामला अमेरिका का है।
पत्नी के रहते हुए 18 महिलाओं से अफेयर की बात जानकर अडेल बुरी तरह टूट गई। उसने अपने पति को तलाक देने का फैसला कर लिया। एक दिन वह अपने पति से अलग भी हो गई और सभी सहेलियों से रिश्ता तोड़ लिया। एक दिन अकेले रहते हुए अहसास हुआ कि जिंदगी बहुत कठिन हो गई है। उसका पति भी बार-बार उससे माफी मांग रहा था।

उसने फैसला किया कि वह अपने पति को माफ कर देगी और नए सिरे से लाइफ शुरू करेगी। उसने ब्रूस को माफ भी कर दिया। यही नहीं उसने अपनी धोखेबाज सहेलियों को भी माफ कर दिया। उसका कहना है कि वह भावुक जरूर हैं, लेकिन बेवकूफ नहीं।

वह पढ़ी-लिखी और एक मजबूत महिला है। अडेल ने कहा कि वह मानती है कि ज्यादातर लोगों के लिए यह फैसला बेहद कठिन होगा, लेकिन ब्रूस को पूरी तरह माफ कर चुकी हूं।

खुश रहने के लिए सही एक रास्ता था। पुरानी बातें अपने दिलोदिमाग से निकाल कर अपनी जिंदगी खुशहाल बनाने में लगी है। बहुत सारी महिलाएं उनके इस फैसले से हैरान होंगी, लेकिन वह अपने फैसले से खुश है। sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

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बुझा सकेंगे दिमाग की बत्ती

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एजेंसियां, लंदन 
अब जब चाहें दिमाग को 'स्विच ऑफ' मोड में डाला जा सकता है। वैज्ञानिकों ने लाइट पल्स के जरिए दिमाग की न्यूरल एक्टिविटी को शटडॉउन करने का तरीका खोज निकाला है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिक कार्ल डिसरोथ ने 2005 में दिमागी कोशिकाओं को ऑन और ऑफ करने की जो तकनीक विकसित की थी, जिसे 'ऑप्टोजेनेटिक्स' नाम दिया गया। हालांकि अब डिसरोथ की टीम ने इस टेक्नॉलजी को और बेहतर बना दिया है। इसके जरिए दिमाग को अब पूरी तरह शटडाउन मोड में भेजा जा सकता है। 
ब्रिटेन के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर के अनुसार, यह टेक्नॉलजी शोधकर्ताओं को इंसानी सोच, भावनाएं और बर्ताव से जुड़े ब्रेन सर्किट को समझने में बेहतर तरीके से मदद कर सकेगी। दरअसल दिमाग के बाईं ओर ऑप्सिन नाम का पदार्थ होता है, जो कंप्यूटराइज्ड इमेज में लाल रंग का दिखता है। यह लाल रंग दिमाग में मौजूद नेगेटिव सोच वाले चार्जर्स को दिखाता है और इस तकनीक जरिए नेगेटिव सोच के चार्जर्स को पॉजिटिव में बदला जा सकता है। दरअसल नई तकनीक में कुछ चैनल बनाए गए हैं, जो नकारात्मक सोच वाले आयनों को सकारात्मक में परिवर्तित करती है। 
मिरगी के मरीजों को फायदा 
बायोइंजीनियरिंग और बिहैवियेरियल साइंस के प्रफेसर और सीनियर ऑथर डिसरोथ ने कहा कि यह कुछ ऐसा है जो हम पिछले काफी वर्षों से चाह रहे थे। उन्होंने बताया कि नई तकनीक 10 अमीनो एसिड को ऑप्टोजेनेटिक प्रोटीन में बदलने पर निर्भर होगी। इसके जरिए एक ऐसा टूल इजाद हुआ है, जिससे न्यूरोसाइंटिस्ट्स दिमाग के किसी भी सर्किट को बंद कर सकते हैं। इस टेक्नॉलजी के साथ ही साइंटिस्ट दिमागी मरीजों के लिए स्पेशल ट्रीटमेंट बना पाएंगे, जिससे दिमाग के किसी भी हिस्से को रोशनी डालकर बंद किया जाएगा। स्वीडन में लुंड यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की पीएचडी प्रफेसर मेराब कोकइया ने मिरगी की स्टडी के लिए ऑप्टोजेनेटिक्स का सहारा लिया और उन्होंने इस तकनीक की काफी सराहना भी की। उन्होंने बताया कि यह टेक्नॉलजी जानवरों में बिहेवियरल स्टडी को समझने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। यह तकनीक मिरगी की ऐसी स्थितियों में इस्तेमाल की जा सकती है जहां दवाइयां भी काम नहीं करतीं। sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

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रविवार, 27 अप्रैल 2014

डॉक्टर ने 8 साल तक किया सगी बहन से रेप

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दिल दहला देने वाली घटना

दिल दहला देने वाली घटना


यह बताने की जरूरत नहीं है कि हमारे देश्‍ा में भाई-बहन के रिश्ते को कितना पवित्र माना जाता है। पूरी दुनिया में बस हमारे यहां बहनें, भाई के हाथ में रक्षा-सूत्र बांधकर जीवनभर अपनी रक्षा करने का वचन लेती हैं।

यह बस कहने की ही बात नहीं है, हर रोज ऐसे कई उदाहरण भी हम अपने आस-पास देखते हैं, जब भाई अपनी बहन की लाज रखने के लिए जान की बाजी लगा देते हैं।

लेकिन यहीं कुछ ऐसे हैवान भी हैं, जो हवस की आग बुझाने के लिए ऐसी घटना को अंजाम दे देते, जिसे जानने-सुनने वालों का भी दिल दहल जाता है। इस सगे भाई ने ऐसी ही करतूत कर दी है।

पांच बहनों में है इकलौता भाई

सगी बहन के साथ आठ सालों से रेप करने वाला भाई अपनी पांच बहनों में इकलौता है। बहन ने शनिवार को पुलिस को बताया कि उसका भाई बारहवीं कक्षा के बाद से लगातार उससे दुष्कर्म कर रहा है।

वह समाज के डर और रिश्ते के कारण पहले कुछ नहीं बोल पाई। लेकिन अब भाई का अत्याचार इतना बढ़ गया था कि उसे सह पाना असंभव हो गया था।

दरअसल, पांच बहनों में इकलौता भाई होने के चलते पर‌िवार के लोग भी मामले की जानकारी होने के बावजूद कुछ नहीं बोल रहे थे।

इसलिए किया खुलासा

बहन लोक-लाज के डर से पिछले आठ सालों से यह अत्याचार सह रही थी। लेकिन जब भाई ने शादी के बाद भी यह शर्मनाक काम बंद नहीं किया, तब बहन को इसके खिलाफ आवाज उठानी पड़ी।

दरअसल इस हैवान भाई ने अपनी यह करतूत तब भी जारी रखी जब बहन की शादी हो गई।

रेप पीड़िता ने बताया कि पिछले आठ सालों में वह कई बार भाई का विरोध कर चुकी है। ले‌किन ऐसा करने पर भाई उसे कई तरह की धम‌कियां देने लगता है।

नामचीन अस्पताल में डॉक्टर है आरोपी

भाई-बहन के रिश्ते को कलंकित करने वाला भाई गुड़गांव के एक नामचीन निजी अस्पताल में डॉक्टर है। ताज्जुब की बात है कि डॉक्टरी जैसे पेशे में होने की बावजूद वह इस तरह की शर्मनाक हरकत कर रहा था।

परिजनों व पीड़ित की शिकायत पर मानेसर थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। मानेसर थाना प्रभारी के अनुसार मामला दर्ज होने के बाद आरोपी भूमिगत हो गया था।

लेकिन बाद में पुलिस ने लगातार छापे मारकर शनिवार देर रात उसे गिरफ्तार कर लिया। sabhar :http://www.amarujala.com/


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तो क्या पानी पर चलना हो सकता है संभव

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तो क्या पानी पर चलना हो सकता है संभव!

हम रोजाना जिन चीजों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें बनाने में विज्ञान की क्या भूमिका है।

किस तरह सामान्य प्रक्रियाओं के जरिये पदार्थ की खास प्रकृति को बदलकर तरह-तरह की चीजें बनाई जा सकती हैं। यहां तक कि पानी पर चलना संभव है। बेंगलूर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस के प्रोफेसर अजय के . सूद ने अत्यंत सरल भाषा और उदाहरणों के जरिये इस बाबत बताया।
श्रीराम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल रिसर्च के 50वें फाउंडर मेमोरियल लेक्चर में 'ड्रिवेन सॉफ्ट मैटर : कनेक्टिंग डीप साइंस टू एवरीडे लाइफ' विषय पर बोलते हुए प्रो. सूद ने कहा कि दूध, मक्खन, साबुन, शैंपू, चाकलेट, फेस क्रीम, पेंट जैसे अ‌र्द्ध ठोस-अ‌र्द्ध तरल पदार्थ ड्रिवेन या चलायमान श्रेणी में आते हैं। इनमें हलचल पैदा कर न केवल इनके गुणों में बदलाव लाया जा सकता है, बल्कि इन्हें जरूरत के मुताबिक विभिन्न आकार-प्रकार या रंग या स्वाद दिया जा सकता है।
मथने, विद्युत क्षेत्र में रखने या किसी माध्यम में घुमाने या हिलाने से इन पदार्थो की प्रकृति बदल जाती है। केवलार की शीट में सामान्य मजबूती होती है। लेकिन जब इसकी दो शीटों के बीच ऐसे खास पदार्थ को खास प्रक्रिया के तहत भरा जाता है तो यह बुलेट प्रूफ बन जाती है। पैथोलॉजी लैब में एंटीजेन कणों को एंटीबॉडी कणों संग घुमाने से वे आपस में चिपक जाते हैं और इस तरह खास बीमारियों का पता चल जाता है। यदि पानी में 50 फीसद मे की स्टार्च मिला दी जाए तो इस घोल से भरे पूल को पैदल पार किया जा सकता है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में निदेशक डॉ. केएम चाको ने श्रीराम इंस्टीट्यूट की उपलब्धियों की चर्चा की। साथ ही सर लाला श्रीराम के दूरदर्शी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। डॉ. श्रीमती मंजू शर्मा ने प्रो. सूद को धन्यवाद दिया। लेक्चर सुनने वालों में प्रो. एमजीके मेनन, प्रो. यशपाल समेत कई वैज्ञानिक, शिक्षाविद तथा इंस्टीट्यूट के छात्र व गणमान्य व्यक्ति शामिल थे। sabhar :http://hindi.ruvr.ru/
और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/news/2014_04_26/271699858/

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शनिवार, 26 अप्रैल 2014

टी-शर्ट पर ही प्रिंट होंगे सेलफोन

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smartphone printed on t-shirt study monash university


मेलबर्न: कुछ दिनों में ऐसा हो सकता है कि आपको मोबाइल पॉकेट में रखने की जरूरत ही न पड़े। आपके टी-शर्ट पर ही रिंगटोन बजे और आप टी-शर्ट पर प्रिंट किए गए मोबाइल से बात कर सकें। जी हां, वैज्ञानिक सेल फोन को बेहद पतला, फ्लेक्सिबल और कारगर बनाने पर काम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के मोनॉश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ही सेलफोन बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसे टी-शर्ट पर प्रिंट किया जा सके।

स्पासर टेक्नॉलजी की मदद
इस मोबाइल फोन को बेहद पतला बनाने में स्पासर टेक्नॉलजी की मदद ली जाएगी। मोनॉश के वैज्ञानिकों ने काबर्न से बनने वाले दुनिया के पहले स्पासर (सर्फेश प्लासमोन एम्पलिफिकेशन बाइ स्टिमुलेटेड इमिशन ऑफ रेडिएशन) को बनाने में सफलता हासिल कर ली है। इस प्रोजेक्ट के प्रमुख वैज्ञानिक चनाका रुपासिंघे ने कहा कि कार्बन बेस्ड स्पासर टेक्नॉलजी काफी कारगर साबित होगी। यह न सिर्फ सस्ती होगी, बल्कि बेहतर नतीजे भी देगी और इको फ्रैंडली भी होगी। अभी स्पासर टेक्नॉलजी में सोने और चांदी के नैनोपार्टिकल का इस्तेमाल होता है। एसिएस नैनो मैगजीन में इस संबंध में रिसर्च पेपर प्रकाशित किया गया है।

यह है स्पासर टेक्नॉलजी
स्पॉसर एक नैनोस्केल लेसर या नैनोलेसर है। इसके फ्री इलेक्ट्रॉन के वाइब्रेशन से लाइट बीम निकलती है। यह ट्रडिशनल लेसर के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वेब इमिशन की तरह जगह नहीं खाती है। इस प्रोजेक्ट में लगे वैज्ञानिकों को पहली बार पता चला कि कार्बन और ग्रैफाइट के नैनोट्यूब एक-दूसरे से प्रकाश के सहारे ऊर्जा का आदान-प्रदान कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि कार्बन नैनोट्यूब में ऑप्टिकल इंटरेक्शन काफी तेज था और यह टेक्नॉलजी कंप्यूटर चिप बनाने में इस्तेमाल की जा सकती है।
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3डी प्रिंटिग टेक्नॉलजी के जरिए सिर्फ 24 घंटे में 10 घरों का समूह तैयार कर दिया।

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3d-printed-house


पेइचिंग
3डी प्रिंटर की मदद से बहुत कुछ किया जा सकता है। इसका हालिया कमाल है एक दिन में घर तैयार करना, वह भी एक नहीं पूरे 10 घर। चीन की एक कंपनी ने 3डी प्रिंटिग टेक्नॉलजी के जरिए सिर्फ 24 घंटे में 10 घरों का समूह तैयार कर दिया। इन घरों को बनाने में रिसाइकल मटिरियल का इस्तेमाल किया गया है। शंघाई के क्विंगपू जिले में तैयार हुई यह इमारत 200 वर्गमीटर के इलाके में फैली है।

इन इमारतों को तैयार करने के लिए 500 फुट लंबा, 33 फुट चौड़ा और 20 फुट बड़ा 3डी प्रिंटर तैयार किया गया। इस प्रिंटर का इस्तेमाल कर घरों के कंपोनेंट तैयार किए गए। इस टेक्नॉलजी से बने एक घर की कीमत लगभग 4800 डॉलर यानी 2.8 लाख रुपये है।

इन इमारतों को चीन के शंघाई विनशुन डेकोरेशन डिजाइन इंजीनियरिंग कंपनी ने तैयार किया है। इमारतों के कंपोनेंट बनाने के लिए एक स्पेशल इंक का इस्तेमाल किया गया है। इस इंक को वेस्ट मटीरियल से तैयार किया गया है। कंपनी की सीईओ मा येह के अनुसार इस तरह की इमारत इकोफ्रेंडली और कॉस्ट इफेक्टिव भी है। यह कंपनी चीन में 100 से ज्यादा रिसाइकलिंग फैक्ट्री खोलने की तैयारी में है। sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

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मजाक-मजाक में पॉर्न स्टार को छत से नीचे फेंका, टूट गया पैर, देखें तस्वीरें

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मजाक-मजाक में पॉर्न स्टार को छत से नीचे फेंका, टूट गया पैर, देखें तस्वीरें

इंटरनेशनल डेस्क। डैन बिलजेरियन फोटो शेयरिंग साइट इंस्टाग्राम के सबसे बड़े प्लेब्वॉय सेलिब्रिटी हैं। डैन पेशे से पोकर प्लेयर हैं। उन्हें शायद ही इस गेम में कोई हरा पाए। डैन ने गैम्बलिंग के जरिए ही 100 मिलियन डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में 6 अरब, 6 करोड़ 40 लाख रुपए की संपत्ति बनाई है। उसने पोकर के कई टूर्नामेंट्स अपने नाम किए हैं। 2009 में वर्ल्ड सीरीज ऑफ पोकर में डैन बुलंदियों पर था। डैन ऑनलाइन पोकर रूम 'विक्टरी पोकर' का सह-संस्थापक भी है।
 
क्या है मामला?
 
डैन को पार्टी करने में बड़ा मजा आता है। अरबपति व बेहद चर्चित हस्ती होने के कारण कई हसीन व कमसिन लड़कियां उसके इर्द-गिर्द मौजूद रहती हैं। यही वजह है कि डैन इंस्टाग्राम का सबसे सेक्सी सेलिब्रिटी माना जाता है। हालांकि, बीते बुधवार पार्टी के दौरान डैन ने मजाक-मस्ती में कुछ ऐसा कर डाला कि 18 वर्षीय पॉर्न स्टार जैनिस ग्रिफित का एक पैर टूट गया। बाद में जब डैन ने अपने किए पर माफी नहीं मांगी, तो इस पॉर्न स्टार ने उस पर मुकदमा ठोक दिया। 
 
फ्लैशबैक
 
हॉलीवुड मैनसन में एक लाउड पार्टी चल रही थी। पार्टी डैन ने दी थी। उस दिन जैनिस (नग्न अवस्था) भी वहां मौजूद थी। दोनों की ये पहली मुलाकात थी। जैनिस को देख डैन के मन में शानदार फोटो शूट करने की सूझी। उसने जैनिस को उठा लिया। इस दौरान जैनिस चिल्लाई, लेकिन डैन ने मजाक-मजाक में उसे छत से नीचे फेंक दिया। हालांकि, डैन ने उसे स्वीमिंग पूल में फेंका था, लेकिन अंतिम पलों में डर से जैनिस ने उसकी टी-शर्ट पकड़ ली थी। इस कारण गिरते वक्त उसका एक पैर पूल के किनारे से टकरा गया।
 
वीडियो में चिल्लाहट साफ
 
पार्टी में मौजूद लोगों ने इसका वीडियो बना लिया था। वीडियो में जैनिस के चिल्लाने की आवाज साफ सुनाई दे रही है। जैनिस का कहना है, "मुझे पैर टूटने का जितना दुख है, उससे कहीं ज्यादा इस बात का गुस्सा है कि डैन ने मुझसे इस गलती के लिए माफी तक नहीं मांगी।" उस हादसे को याद करते हुए जैनिस कहती है, "मुझे हैरानी है कि मेरा वजन सिर्फ 40 किलो है, इसके बाद भी पूल तक पहुंच नहीं पाई।" पैर टूटने से दुखी जेनिस ने शुक्रवार को ट्वीट कर लिखा, "मैं अपने काम पर वापस लौटना चाहती हूं...बस यही सबसे बड़ी चिंता है।" जैनिस ने आगे लिखा, "क्या कोई टूटे पैर वाली लड़की बुक करना चाहता है?"
 
हादसे से चिंतित पॉर्न स्टार
 
जैनिस हादसे के बाद से काफी चिंतित है। दो हफ्ते तक अब वह टूटे पैर के साथ ही रहेगी। उसे इसके लिए इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। जैनिस के मुताबिक, एक्स रेटेड साइट किंक डॉट कॉम के लिए उसे फोटो शूट करवाना था। जैनिस डैन से बेहद गुस्सा है, क्योंकि उसे अपने किए पर जरा भी अफसोस नहीं है। डैन ने जैनिस के आरोप पर रीट्वीट किया, "डैन बिलजेरियन की एक नग्न लड़की ने लगभग हत्या कर दी थी। उसने उसे छत से खींचने की कोशिश की थी...हाहाहा...वह हल्क जैसी है।"  
मजाक-मजाक में पॉर्न स्टार को छत से नीचे फेंका, टूट गया पैर, देखें तस्वीरें

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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

गांधी वनिता आश्रम में छह बिस्तरों पर सुलाई जाती थीं 24 लड़कियां, CCTV से रखी जाती थी नजर

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छह बिस्तरों पर सुलाई जाती थीं 24 लड़कियां, CCTV से रखी जाती थी नजर
गांधी वनिता आश्रम। बेसहारा लड़कियों का घर। हर महीने लाखों का बजट। मगर अंदर कैदखाने से भी बुरे हाल। प्राइवेसी पर भी हमला। सिविल जज राणा कंवरदीप कौर वीरवार शाम यहां आईं। ताला खुलवाया तो अंदर 24 लड़कियां एक ही कमरे में बंद थीं। जज से लिपटकर कई रोने लगीं। छह बिस्तरों पर 24 लड़कियां सुलाई जाती हैं। ऊपर से कैमरे लगा दिए। लड़कियां बोलीं हम तो कमरे में कपड़े चेंज भी नहीं कर सकतीं।
जालंधर।  कपूरथला चौक के पास गांधी वनिता आश्रम में बेहद खराब हालात में रह रहीं लड़कियों ने सिविल जज को अपना दर्द सुनाया। एक कमरे में 24 लड़कियां रह रहीं थीं। उनके कमरे में वार्डन ने सीसीटीवी कैमरे लगा रखे थे। गुरुवार शाम चेकिंग के लिए जिला कानूनी सेवाएं अथॉरिटी की सचिव व सिविल जज (सीनियर डिवीजन) राणा कंवरदीप कौर को लड़कियों ने बताया कि कैमरे की वजह से उन्हें कपड़े बदलने में भी परेशानी हो गई है। जब लड़कियों ने वार्डन से सीसीटीवी कैमरे की शिकायत की तो वार्डन ने उन्हें डांट दिया। जज कंवरदीप कौर के साथ एडवोकेट हरलीन कौर और नवजोत कौर सिद्धू भी साथ थीं।
लड़कियों ने जज से बताया कि वे नरक जैसी जिंदगी जी रही हैं। सुबह चार बजे उन्हें उठा दिया जाता है और देर शाम कमरे में बंद कर दिया जाता है। लाइट बंद होने के बाद भी उन्हें बाहर आने की इजाजत नहीं। सुबह खाने में सिर्फ एक परांठा मिलता है। दो टाइम खाने में एक बार में तीन रोटियां और थोड़ी सी सब्जी। रोटियां खाने को दिल नहीं करता। जब कुछ कहती हैं तो गलत तरीके से बोला जाता है।
आश्रम में लड़कियों के खेलने का सामान और साइकिलें कमरे में बंद थे। गांधी वनिता आश्रम सीनियर सेकेंडरी स्कूल भी परिसर में ही है। ऐसा ही हाल चिल्ड्रन होम (शॉर्ट स्टे होम) में था। इसमें 20 लड़कियां थी। इसके अलावा चिल्ड्रन होम फॉर गर्ल्स में बेसहारा 52 लड़कियां थीं। वे यहां शिक्षा ले रही हैं। उन्होंने भी कई आरोप लगाए।
रिपोर्ट बनाकर भेजी जाएगी : जज
सिविल जज (सीनियर डिवीजन) राणा कंवरदीप कौर ने बताया कि वह बस्ती गुजां स्थित प्रोटेक्टिव होम गईं थीं। लड़कियों की परेशानी देखी तो लगा कि ऐसा ही गांधी वनिता आश्रम में तो नहीं हो रहा है। इसलिए वह रूटीन चेकिंग के लिए वालंटियर हरलीन और नवजोत के साथ गई थीं। यहां बच्चियों ने तरह-तरह के आरोप लगाए हैं। सभी विभागों को रिपोर्ट बनाकर भेजी जाएगी।
तीन गर्भवती लड़कियां बोलीं- खाना बनवाते हैं, नहीं मिल रहीं मेडिकल सुविधाएं
तीन लड़कियां गर्भवती थीं। उन्होंने बताया कि उनसे खाना बनवाया जाता है। एक लड़की ने तो कैल्शियम की कमी की शिकायत थी, लेकिन उसकी डाक्टरी जांच नहीं करवाई गई। एक बच्ची ने बताया कि गार्ड अंकल ने उसे थप्पड़ मारा था, जिससे उसे सुनने में परेशानी आ रही है, लेकिन उसका इलाज नहीं करवाया गया।
हमें नहीं पता था कैमरे लगाना गलत है : वार्डन
आश्रम की वार्डन पूनम और जसविंदर कौर का कहना है कि बच्चियां झूठ बोल रही हैं। पूनम ने माना कि मार्च महीने में सुरक्षा के लिए कैमरे लगाए गए थे, लेकिन किसी भी बच्ची ने कोई शिकायत नहीं की थी। पता नहीं था कि यह गलत है। अगर गलत है तो कैमरे हटवा कर सुबह परिसर में लगवा दिए जाएंगे।
मजिस्ट्रेट जांच होगी : डीसी
डिप्टी कमिश्नर वरुण रूजम ने कहा कि मामले की मजिस्ट्रेट जांच करवाई जाएगी। पूरे मामले की तह तक जाएंगे। दो दिन में जांच रिपोर्ट देनी होगी। गांधी वनिता आश्रम में कुप्रबंधन के लिए जो भी दोषी होगा उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
छह बिस्तरों पर सुलाई जाती थीं 24 लड़कियां, CCTV से रखी जाती थी नजर


छह बिस्तरों पर सुलाई जाती थीं 24 लड़कियां, CCTV से रखी जाती थी नजर

छह बिस्तरों पर सुलाई जाती थीं 24 लड़कियां, CCTV से रखी जाती थी नजर

सीसीटीवी कैमरे के जरिए यहां से होती थी निगरानी।

sabhar : bhaskar.com



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