एंटीग्रेविटेशनल इंजन

एंटीग्रेविटेशनल इंजन


बहुत मुमकिन है कि रूस में ही पहला एंटीग्रेविटेशनल इंजन बनेगा| उराल-अंचल के दक्षिण में स्थित नगर त्रोइत्स्क के निवासी अन्वेषक-इंजीनियर गार्री गिल्मानोव का कहना है कि उन्होंने एंटीग्रेविटी का रहस्य बूझ लिया है| वह पत्रकारों को अपनी “एंटीग्रेविटेशनल कुर्सी” दिखाते हैं|

वैसे यह कुर्सी ज़मीन से ऊपर तो नहीं उठती| किंतु इंजीनियर का कहना है कि पीठ के रोगों से पीड़ित लोगों को इससे बहुत मदद मिलती है| बात यह है कि इस कुर्सी में बैठने पर व्यक्ति अपना भार महसूस नहीं करता| गार्री गिल्मानोव बताते हैं:
“मैं गुरुत्वाकर्षण बल पर असर डाल सकता हूं, इसे घटा-बढ़ा सकता हूं| इसकी दिशा भी बदल सकता हूं| किसी एक पिंड के लिए कुछ समय के लिए गुरुत्वाकर्षण बल बिलकुल ही समाप्त कर सकता हूं”|
इस इंजीनियर के जितने भी मित्रों और परिचितों ने “एंटीग्रेविटेशनल कुर्सी” आजमाई है उन सबका यह कहना है कि यह युक्ति सौ फ़ी सदी काम करती है| बहत से लोगों को इसकी मदद से पीठ के दर्द से निजात मिली है|
गार्री गिल्मानोव अब सत्तर वर्ष के हो चले हैं| उन्होंने दो हज़ार से अधिक युक्तियां खोजी और बनाई हैं| उनका सबसे बड़ा सपना यह है कि लोगों को गुरुत्वाकर्षण बल की सहायता से एक स्थान से दूसरे पर जाना सिखा दें| उदाहरण के लिए, एक छोटी सी डिब्बी में हो उनकी युक्ति, उसे कमर पर लगाओ, बटन दबाओ और जिधर चाहो उड़ चलो| या फिर साइकिल पर बैठो, पैडल घुमाओ और उड़ने लगो|
“ज़रा सोचिए हवाई साइकिल क्या है? बैठे, पैदल घुमाए और उड़ चले, कोई इंजन नहीं, कुछ नहीं| है न ज़बरदस्त बात! बेशक, स्पीड तो हल्की सी ही होगी|”
यह सब कल्पनातीत लगता है| पर तब तक ही जब तक हम यह नहीं जान लेते कि यह बात कौन कह रहा है| गार्री गिल्मानोव ने अपनी सारी उम्र गोपनीय सैनिक कारखाने में गोपनीय अनुसंधानों और विकास-कार्यों पर ही काम किया| अभी तक वह उन दिनों के अपने काम के बारे में कुछ नहीं बताते हैं – गोपनीयता की शपथ जो ले रखी है| सोवियत काल में ही उन्हें “सोवियत संघ का सम्मानित अन्वेषक” उपाधि से विभूषित किया गया था| उन दिनों भी पूरे देश भर में ऐसी उपाधि पाने वाले गिने-चुने लोग ही थे|
गिल्मानोव के परिचितों का कहना है कि उनका जो नो-हाऊ है उसे देखते हुए उन्हें नोबल पुरस्कार आसानी से मिल सकता है| परंतु अब पेशनर गिल्मानोव अकेले में अपने विचारों को मूर्तित नहीं कर सकते| इसके लिए इंजीनियरों का पूरा दल होना चाहिए, जो सभी सटीक गणनाएं करें और टेक्नोलॉजिकल परीक्षण करें| यह सब कोई सस्ता काम नहीं है| इतनी बड़ी पूंजी कहां से लाई जाए, गिल्मानोव उदास मन से कहते हैं, लेकिन अपने को एक सच्चा देशभक्त मानते हुए वह वह अपनी खोज को विदेशियों को बेचने का कोई इरादा नहीं रखते हैं|
बस, यही उम्मीद है कि देश की सरकार गिल्मानोव की खोज की ओर ध्यान देगी| यदि वास्तव में गिल्मानोव की खोज में कोई विवेकसंगत बात है तो यह सारी मानवजाति के लिए नितांत महत्वपूर्ण है|

sabhar :http://hindi.ruvr.ru/

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