बुझा सकेंगे दिमाग की बत्ती




एजेंसियां, लंदन 
अब जब चाहें दिमाग को 'स्विच ऑफ' मोड में डाला जा सकता है। वैज्ञानिकों ने लाइट पल्स के जरिए दिमाग की न्यूरल एक्टिविटी को शटडॉउन करने का तरीका खोज निकाला है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिक कार्ल डिसरोथ ने 2005 में दिमागी कोशिकाओं को ऑन और ऑफ करने की जो तकनीक विकसित की थी, जिसे 'ऑप्टोजेनेटिक्स' नाम दिया गया। हालांकि अब डिसरोथ की टीम ने इस टेक्नॉलजी को और बेहतर बना दिया है। इसके जरिए दिमाग को अब पूरी तरह शटडाउन मोड में भेजा जा सकता है। 
ब्रिटेन के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर के अनुसार, यह टेक्नॉलजी शोधकर्ताओं को इंसानी सोच, भावनाएं और बर्ताव से जुड़े ब्रेन सर्किट को समझने में बेहतर तरीके से मदद कर सकेगी। दरअसल दिमाग के बाईं ओर ऑप्सिन नाम का पदार्थ होता है, जो कंप्यूटराइज्ड इमेज में लाल रंग का दिखता है। यह लाल रंग दिमाग में मौजूद नेगेटिव सोच वाले चार्जर्स को दिखाता है और इस तकनीक जरिए नेगेटिव सोच के चार्जर्स को पॉजिटिव में बदला जा सकता है। दरअसल नई तकनीक में कुछ चैनल बनाए गए हैं, जो नकारात्मक सोच वाले आयनों को सकारात्मक में परिवर्तित करती है। 
मिरगी के मरीजों को फायदा 
बायोइंजीनियरिंग और बिहैवियेरियल साइंस के प्रफेसर और सीनियर ऑथर डिसरोथ ने कहा कि यह कुछ ऐसा है जो हम पिछले काफी वर्षों से चाह रहे थे। उन्होंने बताया कि नई तकनीक 10 अमीनो एसिड को ऑप्टोजेनेटिक प्रोटीन में बदलने पर निर्भर होगी। इसके जरिए एक ऐसा टूल इजाद हुआ है, जिससे न्यूरोसाइंटिस्ट्स दिमाग के किसी भी सर्किट को बंद कर सकते हैं। इस टेक्नॉलजी के साथ ही साइंटिस्ट दिमागी मरीजों के लिए स्पेशल ट्रीटमेंट बना पाएंगे, जिससे दिमाग के किसी भी हिस्से को रोशनी डालकर बंद किया जाएगा। स्वीडन में लुंड यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की पीएचडी प्रफेसर मेराब कोकइया ने मिरगी की स्टडी के लिए ऑप्टोजेनेटिक्स का सहारा लिया और उन्होंने इस तकनीक की काफी सराहना भी की। उन्होंने बताया कि यह टेक्नॉलजी जानवरों में बिहेवियरल स्टडी को समझने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। यह तकनीक मिरगी की ऐसी स्थितियों में इस्तेमाल की जा सकती है जहां दवाइयां भी काम नहीं करतीं। sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

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