विज्ञान की नई शाखा सिंथेटिक बायोलॉजी

हाल के सालों के दौरान विज्ञान की एक नई शाखा का विकास हुआ है, जिसे सिंथेटिक बायोलॉजी कहा जा रहा है. बायोलॉजिस्ट, केमिस्ट और इंजिनीयर इस क्षेत्र में एक साथ काम करते हैं.
 खुलेंगे कुछ और राज़
यूं कहा जा सकता है कि पहले जीवजगत के सूक्ष्म विश्लेषण के ज़रिए उनके छोटे से छोटे हिस्से - अणु तक पहुंचा जा रहा था. इस नए विषय के तहत इन सूक्ष्म हिस्सों को जोड़ने व उनके नए यौगिक के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है. कुछ वैज्ञानिक तो नए जीवन के विकास का सपना तक देख रहे हैं. लेकिन सिंथेटिक बायोलॉजी का दायरा परंपरागत जीन तकनीक से कहीं परे तक जाता है. यह सिर्फ़ जीन्स का स्थानांतरण नहीं है, बल्कि यूं कहा जा सकता है कि इसके अंतर्गत टेबल पर या कंप्युटर में नए जीवों की संरचनाएं तैयार की जाती है.
इस सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण हैं जेनेटिक या आनुवंशिक अणु, जिन्हें डीएनए कहा जाता है. त्स्युरिष के तकनीकी महाविद्यालय के इंजीनियर स्वेन पांके का कहना है कि यह एक जटिल प्रक्रिया है. वह कहते हैं, "हमें सोचना पड़ेगा कि कैसे बड़ी मात्रा में डीएनए के नए सिंथेसिस बनाए जाएं. कैसे उन्हें जोड़ा जाए और कोशिका में उन्हें डाला जाए. यानी दो काम हैं - पहले डीएनए को जोड़ना और फिर उन्हें कोशिका में डालना. क्या हम डीएनए को पर्याप्त रूप से समझते हैं, ताकि उनके नए कोड तैयार किए जा सकें? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका संबंध सिंथेसिस से है."
प्रयोगशालों में तैयार डीएनए के ज़रिए कभी न कभी नए टीके या नई दवाइयां बनाई जा सकेंगी, जैविक कूड़े से उर्जा का उत्पादन संभव होगा. कभी न कभी सिंथेटिक बायोलॉजी के आधार पर बिल्कुल नए जीव भी बनाए जा सकेंगे. यह अमेरिका के क्रेग वेंटर का घोषित लक्ष्य है. वह बायो तकनीक के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उद्योगपति हैं, और सिंथेटिक बायोलॉजी के क्षेत्र में काफ़ी कुछ हासिल करना चाहते हैं. वह कहते हैं, "अगर हम पूरी तरह से सिंथेटिक क्रोमोसोम बना सकें और उसके जीन्स का सेट अलग हो, तो यह पूरी तरह से सिंथेटिक जीव होगा."
क्रेग वेटर इस नए जीव के लिए एक नाम भी ढूंढ़ चुके हैं. इसका नाम होगा माइकोबैक्टेरियम लैबोरेटोरियम. एक प्राकृतिक जीव माइकोबैक्टेरियम जेनिटालियम के साथ इसका रिश्ता होगा. वेंटर की टीम प्रयोगशाला में इस आनुवंशिक तत्व के निर्माण में सफल रही है. अब इसी विधि से कृत्रिम जीव भी तैयार किया जाएगा. वेंटर का दावा है कि इससे कोई ख़तरा नहीं पैदा होगा. वह कहते हैं, "जो कुछ भी हम तैयार करते हैं, हम उसे ख़ास तरीके से तैयार करते हैं और प्रयोगशाला के बाहर वह जी नहीं सकता."
वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर मतभेद है कि इन्हें कृत्रिम जीव कहा जा सकता है या नहीं. मिसाल के तौर विटोर मार्टिन्स डोस सांतोस इससे सहमत नहीं हैं. संक्रमण पर शोध के लिए जर्मनी के हेल्महोल्त्ज़ संस्थान के वैज्ञानिक कहते हैं, "कृत्रिम जीवन नहीं हो सकता है, क्योंकि परिभाषा के अनुसार जीवन कृत्रिम नहीं होता. करोड़ों साल की प्रक्रिया से बैक्टेरिया बने हैं. अब सिंथेटिक बायोलॉजी के ज़रिए प्राकृतिक विकास की प्रक्रिया को किसी ख़ास दिशा में तेज़ किया जा रहा है. लेकिन यह कृत्रिम जीवन नहीं है."
विज्ञान की इस नई शाखा पर बहस जारी है. सिर्फ़ वैज्ञानिकों के बीच ही नहीं. अगर ये तकनीकें आतंकवादियों के हाथ आ जाएं? साथ ही यह सवाल भी कि क्या इंसान को खुद सृष्टिकर्ता बनना चाहिए.
रिपोर्टः मिशाएल लांगे/उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादनः ए कुमार sabhar :http://jamanadekhega.blogspot.in/

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