ओशो: अष्टावक्र महागीता
अष्टावक्र महागीता पहला सूत्र : जनक ने कहा, ‘हे प्रभो, पुरुष ज्ञान को कैसे प्राप्त होता है। और मुक्ति कैसे होगी और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? यह मुझे कहिए! एतत मम लूहि प्रभो! मुझे समझायें प्रभो!’ बारह साल के लड़के से सम्राट जनक का कहना है : ‘हे प्रभु! भगवान! मुझे समझायें! एतत मम लूहि! मुझ नासमझ को कुछ समझ दें! मुझ अज्ञानी को जगायें!’ तीन प्रश्न पूछे हैं— ‘कथं ज्ञानम्! कैसे होगा ज्ञान!’ साधारणत: तो हम सोचेंगे कि ‘यह भी कोई पूछने की बात है? किताबों में भरा पड़ा है।’ जनक भी जानता था। जो किताबों में भरा पड़ा है, वह ज्ञान नहीं; वह केवल ज्ञान की धूल है, राख है! ज्ञान की ज्योति जब जलती है तो पीछे राख छूट जाती है। राख इकट्ठी होती चली जाती है, शास्त्र बन जाती है। वेद राख हैं—कभी जलते हुए अंगारे थे। ऋषियों ने उन्हें अपनी आत्मा में जलाया था। फिर राख रह गये। फिर राख संयोजित की जाती है, संगृहीत की जाती है, सुव्यवस्थित की जाती है। जैसे जब आदमी मर जाता है तो हम उसकी राख इकट्ठी कर लेते हैं—उसको फूल कहते हैं। बड़े मजेदार लोग हैं! जिंदगी में जिसको फूल नहीं कहा, उसकी हड्डिया—वड्डिया इकट्ठी कर लाते हैं—कहते ह