Sakshatkar.com : Sakshatkartv.com

.

रविवार, 29 अगस्त 2021

बंगाल का पाल वंश

0

ह पूर्व-मध्यकालीन राजवंश था। जब हर्षवर्धन काल के बाद समस्त उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक गहरा संकट उत्पनन्न हो गया, तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा के सम्पूर्ण क्षेत्र में पूरी तरह अराजकत फैली थी। इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य घोषित किया। जनता द्वारा गोपाल को सिंहासन पर आसीन किया गया जो कि एक गडरिया था। वह योग्य और कुशल शासक था, जिसने ७५० ई. से ७७० ई. तक शासन किया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बिहार शरीफ) में एक मठ तथा विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया।

गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल ७७० ई. में सिंहासन पर बैठा। धर्मपाल ने ४० वर्षों तक शासन किया। धर्मपाल ने कन्‍नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा रहा। उसने कन्‍नौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन किया। चक्रायुध को गद्दी पर बैठाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तथा उत्तरापथ स्वामिन की उपाधि धारण की। धर्मपाल बौद्ध धर्मावलम्बी था। उसने काफी मठ व बौद्ध विहार बनवाये। धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध समर्थक था उसके लेखों में उसे परम सौगात कहा गया है। उसने विक्रमशिला व सोमपुरी प्रसिद्ध बिहारों की स्थापना की। भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय का निर्माण करवाया था। उसके देखभाल के लिए सौ गाँव दान में दिये थे। उल्लेखनीय है कि प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने धर्मपाल को पराजित किया थ (2000-2050 ई.)

धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देवपाल गद्दी पर बैठा। इसने अपने पिता के अनुसार विस्तारवादी नीति का अनुसरण किया। इसी के शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान आया था। उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूर्वोत्तर में प्राज्योतिषपुर, उत्तर में नेपाल, पूर्वी तट पर उड़ीसा तक विस्तार किया। कन्‍नौज के संघर्ष में देवपाल ने भाग लिया था। उसके शासनकाल में दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे। उसने जावा के शासक शैलेंद्र के आग्रह पर नालन्दा में एक विहार की देखरेख के लिए ५ गाँव अनुदान में दिए।

देवपाल ने ८५० ई. तक शासन किया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवनति प्रारम्भ हो गयी। मिहिरभोज और महेन्द्रपाल के शासनकाल में प्रतिहारों ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया।

Sabhar vikipidia 

Read more

बुधवार, 11 अगस्त 2021

घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई दवा

0

पुणे: भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus in India) का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है और अब तक देशभर में 3.2 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं. इस बीच अच्छी खबर आई है और महाराष्ट्र के कोल्हापुर की कंपनी आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कोविड-19 की नई दवा (Covid-19 Medicine) का परीक्षण कर रही है, जिससे कोरोना संक्रमित मरीज सिर्फ 90 घंटे में ठीक हो जाएंगे. घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई दवा आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) की कोरोना की दवा घोड़ों की एंटीबॉडी से बनाई गई है, जो कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षणों वाले मरीजों के इलाज अहम भूमिका निभाएगी. अगर यह दवा सभी परीक्षणों में सफल होती है तो यह इस तरह की भारत की पहली स्वदेशी दवा होगी, जिसका इस्तेमाल संक्रमण के इलाज के लिए किया जाएगा. ये भी पढ़ें- कोरोना से जंग: कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मिक्सिंग पर स्टडी को मिली मंजूरी 72 से 90 घंटे में ठीक हो जाएंगे मरीज इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कंपनी के अधिकारियों का दावा है कि दवा का पहले फेज का ट्रायल चल रहा है और अभी तक जो नतीजे सामने आए हैं, वो काफी अच्छे रहे हैं. शुरुआती परीक्षण में इस दवा के इस्तेमाल से कोरोना संक्रमित रोगियों की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट 72 से 90 घंटों के अंदर ही निगेटिव हो जा रही है. सीरम इंस्टीट्यूट ने की दवा बनाने में मदद रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस की दवा बनाने वाली आईसेरा बॉयोलॉजिकल (iSera Biological) कंपनी सिर्फ चार साल पुरानी है और कोरोना रोधी दवा बनाने में पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) ने भी मदद की है. दावा है कि कंपनी ने एंटीबॉडीज (Antibodies) का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया है, जो कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण को फैलने से रोक सकता है और शरीर में मौजूदा वायरस को भी खत्म कर सकता है. sabhar zeenewsindia.com

Read more

सोमवार, 9 अगस्त 2021

प्रोस्टेट कैंसर का 100 फीसदी इलाज संभव

0

जयपुर.
प्रोस्टेट कैंसर में रेडिएशन इंप्लांट करके इसे 100 फीसदी ठीक किया जा सकता है। यह इंप्लांट स्थायी और अस्थायी दोनों तरह से होता है। इसमें रेडियोएक्टिव आयोडीन सोर्स स्थायी इंप्लांट किया जाता है, जबकि इरिडियम सोर्स कंप्यूटराइज सिस्टम से तय समय के लिए इंप्लांट किया जाता है। बिड़ला ऑडिटोरियम में चल रही एरोइकॉन-2011 में शनिवार को अमेरिका से आए डॉ. डी.नूरी ने इंप्लांटेशन पर प्रजेंटेशन दिया। एसएमएस हॉस्पिटल में रेडियो थैरेपी डिपार्टमेंट के यूनिट हैड डॉ. ओपी शर्मा ने कहा कि ब्रेकी थैरेपी के जरिए इंप्लांट किए जाते हैं। एक महीने में इसके रिजल्ट आने शुरू हो जाते हैं। इसके बाद कीमो और रेडियो थैरेपी की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ एक हार्मोन टैबलेट लेने की जरूरत होती है। हालांकि, अभी यह सुविधा एम्स और टाटा मैमोरियल मुंबई में उपलब्ध है। जयपुर में महंगी मशीनें होने के साथ-साथ उपकरण भी महंगे हैं। कम पैसे में बेहतर इलाज संभव आस्ट्रेलिया से आए डॉ. कैलाश नारायण ने कहा, अक्सर डॉक्टर्स की यह धारणा होती है कि क्लीनिकल ट्रायल से ट्रीटमेंट में बदलाव आता है, जबकि ऐसा नहीं है। प्रेक्टिस में देखे जा रहे पेशेंट्स के ट्रीटमेंट में बदलाव आ सकता है, लेकिन इंडिया में टाटा मेमोरियल को छोड़कर ऐसा कोई इंस्टीट्यूट नहीं है, जहां पर पेशेंट्स के आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। कितने पेशेंट्स ठीक हुए? कितने नहीं? यहां ऐसा कोई पब्लिकेशन भी नहीं छपता, जिसके आधार पर यह बताया जा सके कि अभी तक किए गए ट्रीटमेंट के रिजल्ट क्या हैं? महंगी मशीनों से बेहतर ट्रीटमेंट मिल पाएगा, यह जरूरी नहीं है। ट्रीटमेंट जरूर महंगा हो जाता है। साधारण टेक्निक से भी कम पैसों में बेहतर ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। यह मालूम चला है कि पैट स्कैन से ट्यूमर की सही स्टेजिंग नहीं हो पाती। एमआरआई से यह जरूर संभव है। बिना एमआरआई कराए भी ट्रीटमेंट के रिजल्ट अच्छे आते हैं। स्मोकर्स में जल्द फैलता है कैंसर डॉ. नारायण ने कहा कि अन्य लोगों की बजाय स्मोकर्स में कैंसर पूरे शरीर में जल्दी फैलता है। इससे सर्विक्स कैंसर भी हो सकता है। स्मोकर्स में कार्बन मोनो ऑक्साइड ज्यादा रहती है। ऑक्सीजन का लेवल कम रहता है। ट्यूमर का साइज भी जल्दी बढ़ता है। उनकी रिकवरी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है। sabhar : bhaskar.com

Read more

वफादार और खूंखार कुत्तों की यहां बसी है शानदार दुनिया

0

लुधियाना.
वफादार होने के साथ बेहद खतरनाक भी। हमला बोल दें तो अच्छे -अच्छे बहादुर भी मैदान छोड़ जाएं। एक-दो नहीं कुत्तों की पूरी फौज। एक ही घर में 33। जी हां, अपने शहर में ही एक घर ऐसा भी है, जहां बसी है इन जानदार कुत्तों की शानदार दुनिया। रॉट वेलर, डैशंड और शारपेई जैसी प्रजाति के 33 कुत्तों का यह रोमांचक संसार बसाया है शहर के एनआरआई अमनिंदर सिंह ग्रेवाल ने।

कनाडा में एक निजी कंपनी के साथ जुड़े अमनिंदर साल के छह महीने अपनी इस खतरनाक फौज के साथ लुधियाना में बिताते हैं। रॉट वेलर प्रजाति के 28 कुत्तों की ग्रेवाल से मोहब्बत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कैनन लॉन में घुसते ही उन्हें गले लगाने को यह फौज यूं टूट पड़ती है कि कोई अंजान देखे तो सहम जाए।

फिरोजपुर रोड पर शमशेर एवेन्यू में रह रहे इन डॉग्स के ठाठ भी निराले हैं। इनके पालन-पोषण का मासिक खर्च एक लाख रुपये से भी ऊपर है।ग्रेवाल देश में हो या विदेश में,पैट्स की शान ओ शौकत में कोई फर्क नहीं पड़ता। देखभाल और प्रशिक्षण के लिए चार मास्टर हैं। लुधियाना में कनाडा जैसी मौज तो नहीं है, लेकिन अपने इन वफादारों से मिलने की खुशी उससे कहीं ज्यादा है। रॉट वेलर नस्ल का 10 वर्षीय टाइटन तो उनके प्यार में काफी बिगड़ा हुआ है। टाइटन जिद कर बैठे तो ग्रेवाल को उसे अपने साथ बेड पर सुलाना ही पड़ता है।

यह है खानपान का हिसाब

600 ग्राम फीड प्रतिदिन एक कुत्ते को (कीमत 140 रुपये प्रति किलोग्राम) 250 ग्राम दही दिन में (कीमत 25 रुपये) छह अंडे रोज (30 रुपये) फूड सप्लीमेंट रोजाना सुबह (15 रुपये एक गोली) प्रत्येक मास्टर पर खर्च 8 से 20 हजार

इन नस्ल के डॉग्स हैं ग्रेवाल के पास

रॉट वेलर : 28 शारपेई : 3 डेशन्ड हाउंड : 1 लैब्राडोर : 1

मुझे इनसे उतना ही प्यार है, जितना अपने बच्चों से। यह मेरा परिवार है। इनका सौदा करने का सवाल ही नहीं उठता। रॉट वेलर खतरनाक नहीं बदनाम ज्यादा हैं।

sabhar : bhaskar.com

Read more

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

समर ओलंपिक में भारत

0

समर ओलंपिक में भारत सदैव से एक फिसड्डी देश रहा है। ओलंपिक के 120 साल के इतिहास में इसे अब तक कुल 31 मेडल मिले हैं। इसमें स्वर्ण पदक सदैव हॉकी में ही मिलता रहा है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के शूटर अभिनव बिन्द्रा ने गोल्ड मेडल हासिल करके इतिहास रच दिया था। वरना समर  ओलंपिक में भारत एक दो रजत या कांस्य के साथ वापस लौट आता है। 

ये दशकों की कहानी है। फिर भी ओलंपिक में एकाध मेडल पर भी हमारी राष्ट्रीयता ऐसे हिलोरे मारती है जैसे हम ओलंपिक में सब देशों से आगे हैं। इस बार भी हम अभी 63वें नंबर पर हैं। खेल खत्म होते होते पता नहीं कितना ऊपर नीचे जाएंगे। 

यह भारत जैसे सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश के लिए अपमानजनक स्थिति है। इतने बड़े देश में खेलों का ये हाल है कि एक दो कांस्य और रजत को ही अपनी जीत समझ लेते हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बधाई देने के लिए लाइन में लग जाते हैं। 

ये भावनात्मक ज्वार जनता को मूर्ख बनाने के लिए तो अच्छा है लेकिन इससे ओलंपिक की पदक तालिका में कहीं खड़े नहीं हो पाते। जब तक खिलाड़ियों पर नौकरशाही की अय्याशियां हावी रहेंगी तब तक ओलंपिक में भारत की स्थिति बेहतर हो भी नहीं सकती। जिस देश में ओलंपिक नौकरशाही के फॉरेन टूर और टीए/डीए का हिसाब किताब हो उस देश से भला कोई क्या उम्मीद करेगा? अच्छा हो कि फर्जी की खुशी मनाने की बजाय खेलों में निजीकरण करें। खेलों को जितना हो सके ब्यूरोक्रेसी के चंगुल से बाहर निकालें। कुछ ऐसा करें जैसा चीन ने किया है। चार दिन के लिए सिर्फ भावनात्मक रूप से देश को च्यूतिया बनाने से ओलंपिक में भारत कभी बेहतर नहीं कर पायेगा। sabhar sanjay Tiwari Facebook wall

Read more

Ads