समर ओलंपिक में भारत

समर ओलंपिक में भारत सदैव से एक फिसड्डी देश रहा है। ओलंपिक के 120 साल के इतिहास में इसे अब तक कुल 31 मेडल मिले हैं। इसमें स्वर्ण पदक सदैव हॉकी में ही मिलता रहा है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के शूटर अभिनव बिन्द्रा ने गोल्ड मेडल हासिल करके इतिहास रच दिया था। वरना समर  ओलंपिक में भारत एक दो रजत या कांस्य के साथ वापस लौट आता है। 

ये दशकों की कहानी है। फिर भी ओलंपिक में एकाध मेडल पर भी हमारी राष्ट्रीयता ऐसे हिलोरे मारती है जैसे हम ओलंपिक में सब देशों से आगे हैं। इस बार भी हम अभी 63वें नंबर पर हैं। खेल खत्म होते होते पता नहीं कितना ऊपर नीचे जाएंगे। 

यह भारत जैसे सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश के लिए अपमानजनक स्थिति है। इतने बड़े देश में खेलों का ये हाल है कि एक दो कांस्य और रजत को ही अपनी जीत समझ लेते हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक बधाई देने के लिए लाइन में लग जाते हैं। 

ये भावनात्मक ज्वार जनता को मूर्ख बनाने के लिए तो अच्छा है लेकिन इससे ओलंपिक की पदक तालिका में कहीं खड़े नहीं हो पाते। जब तक खिलाड़ियों पर नौकरशाही की अय्याशियां हावी रहेंगी तब तक ओलंपिक में भारत की स्थिति बेहतर हो भी नहीं सकती। जिस देश में ओलंपिक नौकरशाही के फॉरेन टूर और टीए/डीए का हिसाब किताब हो उस देश से भला कोई क्या उम्मीद करेगा? अच्छा हो कि फर्जी की खुशी मनाने की बजाय खेलों में निजीकरण करें। खेलों को जितना हो सके ब्यूरोक्रेसी के चंगुल से बाहर निकालें। कुछ ऐसा करें जैसा चीन ने किया है। चार दिन के लिए सिर्फ भावनात्मक रूप से देश को च्यूतिया बनाने से ओलंपिक में भारत कभी बेहतर नहीं कर पायेगा। sabhar sanjay Tiwari Facebook wall

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