तँत्र क्यो महत्वपूर्ण है
तंत्र कहता है ”जब तक तुम स्वयं प्रकाश से नहीं भर जाते तुम दूसरों को प्रकाशित होने में कैसे सहायक होओगे?” स्वार्थी हो जाओ–तभी, केवल तभी परार्थी हो सकोगे; नहीं तो परार्थ, परोपकार की धारणा मूर्खतापूर्ण है। आनंदित होओ–तभी तुम दूसरों को आनंदित होने में सहायता दे सकोगे। अगर तुम उदास हो दुखी हो, कड़वाहट से भरे हो, तुम निश्चित ही दूसरे के प्रति हिंसक हो जाओगे और दूसरों के लिए दुख पैदा करोगे।” स्वयं को प्रसन्न रखने में क्या बुराई है? सुखी होने में क्या बुराई है? अगर कुछ बुराई है तो वह तुम्हारे दुखी होने में है क्योंकि दुखी व्यक्ति अपने चारों ओर दुख की तरंगें निर्मित कर लेता है। तंत्र कामुकता नहीं सिखाता। वह तो केवल यही कहता है कि काम सुख का स्रोत हो सकता है। एक बार जब तुम्हें उस सुख का पता चल जाता है तो तुम आगे बढ़ सकते हो, क्योंकि अब तुम सत्य की भूमि पर खड़े हो। व्यक्ति को सदा काम में नहीं अटके रहना है। बल्कि काम का तालाब में कूदने के लिए जंपिंग बोर्ड की तरह उपयोग किया जा सकता है। तंत्र का यही अभिप्राय है: ”तुम इसे जंपिंग बोर्ड समझो।” और जब एक बार तुम्हें काम-सुख का अनुभव हो जाए तुम समझ सकोगे क