तँत्र क्यो महत्वपूर्ण है



तंत्र कहता है ”जब तक तुम स्वयं प्रकाश से नहीं भर जाते तुम दूसरों को प्रकाशित होने में कैसे सहायक होओगे?” स्वार्थी हो जाओ–तभी, केवल तभी परार्थी हो सकोगे; नहीं तो परार्थ, परोपकार की धारणा मूर्खतापूर्ण है।


आनंदित होओ–तभी तुम दूसरों को आनंदित होने में सहायता दे सकोगे। अगर तुम उदास हो दुखी हो, कड़वाहट से भरे हो, तुम निश्चित ही दूसरे के प्रति हिंसक हो जाओगे और दूसरों के लिए दुख पैदा करोगे।”


स्वयं को प्रसन्न रखने में क्या बुराई है? सुखी होने में क्या बुराई है? अगर कुछ बुराई है तो वह तुम्हारे दुखी होने में है क्योंकि दुखी व्यक्ति अपने चारों ओर दुख की तरंगें निर्मित कर लेता है। 


तंत्र कामुकता नहीं सिखाता। वह तो केवल यही कहता है कि काम सुख का स्रोत हो सकता है। एक बार जब तुम्हें उस सुख का पता चल जाता है तो तुम आगे बढ़ सकते हो, क्योंकि अब तुम सत्य की भूमि पर खड़े हो।


व्यक्ति को सदा काम में नहीं अटके रहना है। बल्कि काम का तालाब में कूदने के लिए जंपिंग बोर्ड की तरह उपयोग किया जा सकता है। तंत्र का यही अभिप्राय है: ”तुम इसे जंपिंग बोर्ड समझो।” 


और जब एक बार तुम्हें काम-सुख का अनुभव हो जाए तुम समझ सकोगे कि रहस्यदर्शी  किस की बात करते रहे हैं–एक परम, एक ब्रह्मांडीय  काम-कृत्य की। मीरा नाच रही है। तुम उसे समझ न पाओगे। 


तुम उसके गीतों को भी समझ न पाओगे। वे कामुकता पूर्ण हैं। ऐसा होगा ही, क्योंकि आदमी के जीवन में काम-कृत्य ही एक ऐसा कृत्य है जिसमें अद्वैत की प्रतीति होती जिसमें तुम एक गहन अनुभव करते हो।


जिसमें अतीत मिट जाता है और भविष्य खो जाता है और बचता केवल वर्तमान–केवल सत्य वास्तविक क्षण।उन सभी रहस्यदर्शियों ने जिन्हें परमात्मा के साथ संपूर्ण अस्तित्व के साथ एक हो जाने की अनुभूति हुई है।


उन्होंने अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए काम प्रतीकों का उपयोग किया है। और कोई भी प्रतीक इतने निकट नहीं हैं। काम केवल प्रारंभ है अंत नहीं। लेकिन अगर तुम प्रारंभ को ही चूक गए ।


तो अंत को भी चूक जाओगे। और तुम अंत तक पहुंचने के लिए आरंभ से बच नहीं सकते। तंत्र कहता है ”जीवन को उसके प्राकृतिक रूप में, सत्य रूप में ग्रहण करो। अप्राकृतिक झूठ मत होओ। 


काम-वासना एक गहनतम संभावना है, उसका उपयोग करो। वास्तव में, सभी नैतिकताएं प्रसन्नता-विरोधी हैं। कोई व्यक्ति प्रसन्न है तो तुम्हें लगता है कि जरूर कहीं कुछ गलत है। जब कोई उदास है तब सब ठीक है।


हम एक स्नायु-रोग-ग्रस्त समाज में जीते है जहां हर व्यक्ति उदास है। जब तुम उदास हो ,दुखी हो, तब सब प्रसन्न है; क्योंकि अब सबको तुमसे सहानुभूति प्रकट करने का अवसर मिलेगा। 


जब तुम प्रसन्न हो तो उनको समझ नहीं आएगा कि वे क्या करें? जब कोई तुमसे सहानुभूति प्रकट करता है तब उसका चेहरा देखना। एक सूक्ष्म चमक चेहरे पर आ जाती है। वह सहानुभूति दिखाते समय प्रसन्न है। 


अगर तुम खुश हो, तब कोई संभावना नहीं।तुम्हारी प्रसन्नता दूसरों को उदास कर देती है। यह स्नायुरोग न्यूरोसिस है। इसका आधार ही पागलपन है। तंत्र कहता है ”तुम जो हो, प्रामाणिक रूप से वही हो जाओ। 


तुम्हारी प्रसन्नता बुरी नहीं अच्छी है। वह पाप नहीं। केवल उदासी पाप है केवल दुखी होना पाप है। प्रसन्न होना पुण्य है क्योंकि एक प्रसन्न और प्रफुल्लित व्यक्ति ही दूसरों के लिए दुख पैदा नहीं करेगा। 


केवल प्रफुल्लित और प्रसन्न व्यक्ति ही दूसरों की प्रसन्नता के लिए भूमि तैयार कर सकता है।” तंत्र विज्ञान है। तंत्र कहता है ”पहले जानो कि यथार्थ क्या है वास्तविकता क्या है आदमी क्या है? 


और पहले से मूल्य निर्धारित मत करो और आदर्श मत स्थापित करो पहले उसे जानो जो है। जो होना चाहिए उसके संबंध में मत सोचो, जो है केवल उसके संबंध में सोचो।” 


और जब एक बार उसे जान लिया जाता है जो है तब तुम उसे रूपांतरित भी कर सकते हो। अब तुम रहस्य समझ गए। तंत्र कहता है ”काम के विरुद्ध जाने की चेष्टा मत करो 


अगर तुम काम के विरुद्ध जाकर ब्रह्मचर्य को, साधने की कोशिश करते हो तो यह असंभव है। यह मात्र जादू की भांति है। बिना यह जाने कि काम-ऊर्जा क्या है बिना यह जाने कि काम-वासना की उत्पत्ति किस प्रकार होती है। sabhar tantra shadana kundalni sakti Facebook wall


बिना उसकी प्रकृति की गहराई में गए बिना उसके रहस्य को जाने। तुम ब्रह्मचर्य का एक आदर्श अवश्य स्थापित कर सकते हो लेकिन तुम क्या करोगे?” तुम केवल दमन करोगे। 


और जो व्यक्ति इसका दमन करता है वह उस व्यक्ति से अधिक कामुक है जो इसका भोग करता है। क्योंकि भोग से ऊर्जा शांत हो जाती है क्योंकि दमन से वह तुम्हारे शरीर-तंत्र में निरंतर संचार करती रहती है।


                                                            

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