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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

ये बच्चा पूर्वाभास से जान जाता है सबकुछ

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छठी इंद्रिय का कमाल

छठी इंद्रिय का कमाल

आपने हॉलीवुड फिल्म sixth sense देखी होगी, जिसमें एक बच्चे की छठी इंद्रिय अति विकसित होती है। लेकिन ये कोई फिल्म नहीं है बल्कि एक चार साल के बच्चे की असलियत है।

इस बात की पुष्टि खुद बच्चे के मां-बाप करते हैं। उनका कहना है कि उनका बच्चा sixth sense मूवी के चरित्र 'कोल' जैसा है।

फ्लोरिडा में रहता है ये परिवार

फ्लोरिडा के नैपल्स में रहने वाले ग्रेग और हिदर होवेल का कहना है कि उन्होंने ध्यान दिया कि उनका बेटा एलिजाह औरों से काफी अलग है। महज दस महीने की उम्र में उसने पूरे-पूरे वाक्य बोलना शुरू कर दिया था।

जब बच्चे के माता-पिता ने मनोचिकित्सक से संपर्क किया तो उसने बताया कि बच्चे के अंदर कुछ सुपरनैचुरल ताकत है।
क्या कहना है मां का?

क्या कहना है मां का?

एलिजाह की मां होवेल का कहना है कि पहले उन्हें लगता था कि उनका बच्चा यूं ही बातें बनाता है लेकिन वो कई बातें होने से पहले ही जान जाता है।

होवेल ने बताया कि एलिजाह को उनके गर्भपात होने का पता पहले ही चल गया था। इतना ही नहीं उसे इस बात का भ पूर्वाभास हो गया था कि वो इसके बाद जुड़वा बच्चों को जन्म देगी।

वो बताती हैं कि जिस समय वो गर्भवती थी उनका बेटा उनसे कहता था कि, 'मां, आपका बेटा भगवान के पास चला जाएगा।'

क्या हुआ उसके बाद?

एलिजाह के ऐसा कहने के दो दिन बाद ही होवेल का गर्भपात हो गया और उनका गर्भ गिर गया। लेकिन उसके बाद एलिजाह ने कहना शुरू कर दिया कि वो जल्दी ही दो बच्चों को जन्म देगी और दोनों ही लड़के होंगे।

महीनेभर बाद उन्हें पता चला कि उनके गर्भ में जुड़वा बच्चे हैं। इसके बाद एलिजाह के मां-बाप ने मनोचिकित्सक को संपर्क किया और ये जानने की कोशिश की, कहीं वाकई उसे भूत-प्रेत तो नहीं दिखते या फिर वो किसी मानसिक बीमारी से तो पीड़ित नहीं।

इतना ही नहीं एलिजाह अपने मृत दादा जी से भी बात कर सकता है।

क्या कहना है परिवार का?

डेली मेल के अनुसार, एलिजाह के मां-बाप का कहना है कि उनका बेटा कई पुरानी बातों का जिक्र करता है और उसका कहना है गर्भ्ज्ञपात वाली बात उसे उसकी मृत नानी ने बताई थी।

मां-बाप अपने बेटे पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और चाहते हैं कि उसकी ये क्षमता सही दिशा में विकसित हो।   sabhar :
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झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च

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40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर

लाइफस्टाइल डेस्क. धरती पर जीवन की शुरुआत से ही इंसान यात्राएं कर रहा है। इन यात्राओं की ही बदौलत उसका दुनिया के दूसरे देशों से संपर्क हुआ। उसने अपने यात्रा अनुभवों से लोगों को रोमांचित किया। उन्हें यात्राओं के लिए प्रेरित किया। प्राचीन काल में ये यात्राएं साहित्यक, धार्मिक और वैज्ञानिक खोजों के लिए की गईं और धीरे-धीरे इनका स्वरूप बदलता गया, लेकिन यात्राओं के प्रति लोगों का लगाव हमेशा बरकरार रहा।
दैनिक भास्कर डॉट कॉम ट्रैवलिंग के माध्यम से पाठकों को इस रहस्यमयी दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहा है। पाठकों को बेहतरीन ट्रैवलिंग डेस्टिनेशन के बारे में बता रहा है। इसी क्रम में आज हम यात्रा प्रेमियों को दुनिया के ऐसे चर्च के बारे में बता रहे हैं, जो मानव कंकालों से बना है। साथ ही, एक ऐसी झील के सफर पर ले जा रहे हैं, जिसे छूते ही सब कुछ पत्थर बन जाता है।
सबसे पहले हड्डियों से बने चर्च के बारे में पढ़िए...
क्या है चर्च का नाम
सेडलेक ऑस्युअरी
कहां है स्थित
चेक गणराज्य
क्या है ख़ास
इस चर्च में 40 हजार लोगों की हड्डियों को कलात्मक रूप से सजा कर रखा गया है। इसे The Church of Bones भी कहा जाता है।
क्या है ऑस्युअरी
कंकालों को सहेज कर रखने की जगह को ऑस्युअरी कहते हैं। सबसे पहले शवों की अस्थाई रूप से क्रब बनाई जाती है और उसके बाद उन्हें निकाल कर ऑस्युअरी में रखा जाता है।
40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर

13 वीं शताब्दी में यहां से एक संत हेनरी फिलिस्तीन गए। हेनरी जब वहां से वापस आए तो अपने साथ एक जार में उस जगह की मिट्टी भर के लाए, जहां प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था। हेनरी ने इस जार की मिट्टी को चेक गणराज्य के सेडलेक चर्च के पास एक जगह डाल दिया। इसके बाद यह स्थान लोगों को दफनाने की जगह बन गई।
14वीं और 15वीं शताब्दी में यहां प्लेग और युद्धों की वजह से बहुत ज्यादा मौतें हुईं। इनमें से ज़्यादातर लोगों को सेडलिक में ही दफनाया गया। एक दिन ऐसा आया कि इस क्रबिस्तान में लोगों को दफनाने के लिए जगह ही नहीं बची। इसके बाद पादरियों को यहां ऑस्युअरी (ossuary) बनाने का ख़्याल आया। इसे बनाने के लिए पादरी कब्र से हड्डियों को निकाल कर ऑस्युअरी में रख देते। सन् 1870 में इस ऑस्युअरी में 40 हज़ार हड्डियों को कलात्मक रूप से सजाया गया। चर्च को हड्डियों से सजाने का यह काम Frantisek Rind ने किया। 1970 में फिल्मकार Jan Svankmajer ने इस चर्च पर 10 मिनट की डॉक्युमेंटरी फिल्म बनाई। हर साल बड़ी तादाद में सैलानी इस चर्च को देखने के लिए आते हैं। 
40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर
आपने बचपन में उस राजा की कहानी तो ज़रूर सुनी होगी जो जिस चीज़ को छूता था, वह सोना बन जाती थी, लेकिन ऐसी झील के बारे में नहीं सुना होगा जिसका पानी हर चीज़ को पत्थर बना देता है।
कहां स्थित है यह झील
उत्तरी तंजानिया
झील का नाम
नेट्रान लेक
फोटोग्राफर निक ब्रांड्ट जब उत्तरी तंजानिया की नेट्रान लेक के किनारे पहुंचे, तो वहां के दृश्य ने उन्हें चौंका दिया। झील के किनारे जगह-जगह पशु-पक्षियों के स्टैचू नजर आए। ये स्टैचू मृत पक्षियों के थे। दरअसल, इस झील में जाने वाले जानवर और पशु-पक्षी कुछ ही देर में जमकर पत्थर बन जाते हैं। ब्रांड्ट ने अपनी किताब 'Across the Ravaged Land' में इस बात का जिक्र किया है।
अपनी किताब में ब्रांड्ट लिखते हैं कि यह कोई नहीं जानता कि ये पक्षी मरे कैसे? हो सकता है कि लेक के रिफ्लेक्टिव नेचर ने इन्हें भ्रमित किया हो और यह पानी में गिर गए हों। वो बताते हैं कि पाना में नमक और सोडा की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि इसने मेरी कोडक फिल्म बॉक्स की स्याही को कुछ ही सेकंड में जमा दिया। पानी में नमक और सोडा की ज़्यादा मात्रा ही इन पक्षियों के मृत शरीर को सुरक्षित रखती है।
ब्रांड्स ने अपनी किताब में इन पक्षियों के फोटोज का संकलन किया है। यह किताब उस फोटोग्राफी डाक्युमेंट का तीसरा वॉल्यूम है, जिसे निक ने पूर्वी अफ्रीका में जानवरों के गायब होने पर लिखा है।

40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर
40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर

40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर

40 हजार इंसानी हड्डियों से बना है यह चर्च, झील में पक्षी बन जाते हैं पत्थर

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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

देश-विदेश में रिसर्च के लिए प्राचीन ग्रंथों का अनमोल खजाना है साधु आश्रम

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प्राचीन ग्रंथों का अनमोल खजाना है साधु आश्रम, देश-विदेश में रिसर्च के लिए है प्रसिद्ध


होशियारपुर। पंजाब की पावन धरा होशियारपुर में उना मार्ग स्थित साधु आश्रम में विश्वेश्वरानंद वैदिक रिसर्च इंस्टिट्यूट को समर्पित इस संस्थान का इतिहास गौरवमय रहा है। वैदिक साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए आज भी यह केंद्र देश में ही नहीं विदेशों में भी रिसर्च के लिए प्रसिद्ध है।
 
साधु आश्रम में स्थित इस केंद्र में अनगिनत प्राचीन ग्रंथ व दक्षिण भारतीय लिपि में लिखे संस्कृति के अनेक ग्रंथ पड़े हैं। देश-विदेश से विद्वान, अध्यापक व खोजकर्ता खोज करने के लिए आते रहते हैं। इस संस्था में चारों वेदों के अंग्रेजी व फ्रैंच भाषा में अनुवाद मौजूद हैं। वेदों से संबधित साहित्य भी यहां रखा हुआ है।
 
ज्ञान का विशाल भंडार है यह केंद्र
 
ब्रिटेन के इनसाइक्लोपीडिया विश्व की प्रमुख भाषाओं की डिक्शनरियां व प्रसिद्ध विद्वानों की आत्मकथा सहित यहां पर करीब डेढ़ लाख पुस्तकें मिल जाती है। पंडित जवाहर लाल नेहरु व महात्मा गांधी की आत्मकथा का अंग्रेजी व हिंदी अनुवाद यहां मौजूद है। धर्मसूत्र, ब्राह्मण व आर्य साहित्य यहां उपलब्ध है।
 
उल्लेखनीय है कि पुणे के भंडारा रिसर्च इंस्टीट्यूट के बाद बीबीआरआई भारत का दूसरा ऐसा संस्थान है, जिसके पास ज्ञान का इतना विशाल भंडार है। धार्मिक शास्त्रों के अलावा साहित्य, कला, दर्शन शास्त्र, ज्योतिष, भाषा व लिपि से संबधित हजारों पुस्तकें यहां हैं।
 
गुरमुखी लिपि में लिखा हुआ श्री राम चरित मानस ग्रंथ, संस्कृत में लिखे श्री गुरु ग्रंथ साहिब व बाइबल के एडीशन यहां देखे जा सकते हैं। मुगल बादशाह औरंगजेब की हस्त लिखित कुरान के अंशों के चित्र, कुरान मजीद का हिंदी में अनुवाद, पबूची लिपि में लिखी गई एक पुस्तक, जिसे अब तक पढ़ा नहीं जा सका है व अनेक हस्त लिखित पुस्तकें ऐसी हैं, जिनको कैमिकल ट्रीटमेंट से बचाने की जरुरत है।
 
चरक संहिता व भाव प्रकाश ग्रंथ यहां पड़े हैं, जिनसे आयुर्वेद का असीमित ज्ञान लिया जा सकता है। इन ग्रंथों में बिमारियों व उनके इलाज को चित्रों द्वारा पेश किया गया है। कई प्राचीन सिक्के यहां की अनमोल धरोहर हैं। 
 
इस संस्था के निर्माण के लिए होशियारपुर के गांव बजवाड़ा निवासी धनी राम भल्ला ने पिता की याद में अपने गांव के नजदीक बने साधु आश्रम में जगह दी थी। 1957 में वैदिक संस्था का यहां निर्माण करने वाले आचार्य विश्वबंधु को महाराजा पटियाला, गोपी चंद भार्गव व संस्कृति के प्रति रूचि रखने वाली अनेक शख्सियतों ने धन का सहयोग दिया। 
 विभाजन के समय लाहौर से होशियारपुर आया था यह केंद्र
 
देश के बंटवारे से पहले यह केंद्र लाहौर के डीएवी संस्थान परिसर में स्थापित था। जब देश का विभाजन हुआ तो इस संस्थान के तत्कालीन डायरेक्टर विश्व बंधु जी ने पाकिस्तान सरकार को कहा, "हम इस धरोहर को हिंदुस्तान ले जाते हैं, क्योंकि यहां तो अब इस्लाम धर्म स्थापित हो गया है।" पाकिस्तान सरकार इसके लिए यह कहते हुए राजी नहीं हुआ कि यह तो देश की धरोहर हैं और वे नहीं ले जाने देंगे।
 
कहते हैं कि यह बात सुन विश्वबंधु जी ने योजना के तहत रातोंरात हिंदुस्तान की तरफ आ रहे घोड़ागाड़ी, बैलगाड़ी, ट्रक व रेल में किसी तरह दुर्लभ ग्रंथों को रखते हुए सभी को यही बताया कि इसे हिंदुस्तानी सीमा में किसी सुरक्षित स्थानों पर रखवा देना। 
प्राचीन ग्रंथों का अनमोल खजाना है साधू आश्रम, देश-विदेश में रिसर्च के लिए है प्रसिद्ध
बजवाड़ा के धनीराम भल्ला के सहयोग से साधु आश्रम में बना यह केंद्र
 
साधु आश्रम में आज संस्थान के चेयरमैन प्रोफेसर प्रेमलाल शर्मा के साथ-साथ प्रोफेसर कृष्ण मुरारी शर्मा, पीयू के रजिस्ट्रार सुरजीत सिंह ठाकुर व डॉ. वेदप्रकाश ने बताया कि इस केंद्र के साथ लगते हुए ऐतिहासिक गांव के रहने वाले धनीराम भल्ला, जो कानपुर के बड़े उद्योगपति थे, ने विश्वबंधु जी को यह निमंत्रण दिया,  "आप इस केंद्र का स्थापना होशियारपुर में करें, तो मैं जमीन देने को तैयार हूं।"
 
विश्वबंधु जी, जो तमाम कष्ट व परेशानियों को झेलते हुए लाहौर से इस प्राचीन ग्रंथों को संभालकर लाए थे, ने होशियारपुर में इस केंद्र की नींव रखी। पद्म विभूषण से सम्मानित आचार्य विश्ववंधु के प्रयासों से 1965 में इस संस्था का एक भाग पंजाब यूनीवर्सिटी चंडीगढ़ से जुड़ गया, जिसका नाम विश्वेश्वरानंद विश्व बंधु संस्कृत व भारत भारती अनुशीलन संस्थान रखा गया। इसके तहत शिक्षा विभाग, लाइब्रेरी, वैदिक खोज व निर्माण, शोध व प्रकाश का काम यहां शुरू हुआ।
 
19.42 मीटर लंबी जन्मकुंडली व अश्वफल प्रकाश ग्रंथ है अमूल्य धरोहर
 
शास्त्री, आचार्य व एमए संस्कृत यहां पढ़ाई जाती है। पुरातन धरोहरों को वैज्ञानिक ढंग से बचाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। कॉम्प्लेक्स में विद्यार्थियों के लिए होस्टल व खोजकर्ताओं के लिए रेस्ट हाउस तथा कैंटीन की सुविधा है। दूर-दराज व पास से आए शोधकर्ता व विद्यार्थी कई दिन यहां रह कर शोध करते हैं। लाइब्रेरी के साथ ही यहां बना संग्रहालय सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। संग्रहालय का काम पुरातत्व विभाग देखता है। महाराजा पटियाला की पुरानी देवनागरी लिपि में लिखी 19.42 मीटर लंबी जन्म कुंडली व अश्वफल प्रकाश ग्रंथ यहां की अमूल्य धरोहरों में से एक है।


ग्रंथ भारत पहुंचने पर ही आचार्य विश्वबंधु जी ने छोड़ा था पाकिस्तान
 
विशेश्वरानंद वैदिक शोध संस्थान का आगाज सरकारी रुप से इसके संस्थापक स्वर्गीय आचार्य विश्वेश्वरानंद और स्वामी नित्यानंद जी ने शिमला में शांतिकुटि के स्थान पर सन 1903 में किया। सन 1916 में स्वामी नित्यानंद परकोलवासी हुए। स्वामी विश्वेश्वरानंद से सन 1918 तक शिमला में ही इस केंद्र को संचालित किया।
 
होल्कर दरबार की ओर से आर्थिक सहायता का वचन मिलने पर सन 1918 में इस पहले मैसूर और बाद में इंदौर में स्थानांतरित कर दिया गया। पांच वर्ष के बाद इसे लाहौर ले जाया गया। यहां वो अराजकीय रूप में सन 1947 तक बड़ी सफलतापूर्वक चलता रहा।
 
देश विभाजन के समय इस संस्थान का अस्तित्व लाहौर में मिट जाता, यह भांप आचार्य विश्वबंधु जी ने इसे भारत लाने की ठान ली। उन्होंने इस अनमोल धरोहर राष्ट्रीय संपदा को अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय समझकर संगीनों के साये और गोलियों की बौछार में भी छाती से लगाए रखा। इसकी पांडुलिपियों, पुस्तकों, रजिस्टरों तथा अन्य संबधि कागजों को मिलाकर कुल वजन 4000 क्विंटल बनता था। जब तक एक-एक वस्तु भारत नहीं पंहुच गई, तब तक आचार्य जी वहीं बैठे रहे। 
 आचार्य विश्व बंधु का संक्षिप्त परिचय
 
आचार्य विश्वबंधु जी का जन्म 30 सितंबर, 1898 को जिला शाहपुर में हुआ। उन्होंने सन 1918 में पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से बीए व 1919 में एमए शास्त्री की परीक्षाएं विश्वविद्यालय में प्रथम रहकर उत्तीर्ण की। सन 1920 में इटली सरकार की शिक्षा परिषद ने उन्हें नाइट कमांडर का अवॉर्ड प्रदान किया। सन 1950 में फ्रांस की ओर से उन्हें उच्चतम आदरी उपाधि दी गई। सन 1968 में शोध कार्यों के लिए पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। एशियेटिक सोसायटी ने वेदों का अध्ययन करने के लिए उन्हें सन 1968 में स्वर्णपदक प्रदान किया। वह जीवन के अंतिम क्षण 1 अगस्त, 1973 तक इस संस्थान के डायरेक्टर पद पर अपनी भूमिका बखूबी निभाते रहे।
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आखिर शिव जी को ही क्यों जल चढ़ाते हैं भक्त?

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mahashivratri shiv jalabheshek shiv puran

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जल और बेलपत्र से शिव जी का अभिषेक करते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण है जिसका उल्लेख पुराणों में किया गया है।

शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि सागर मंथन के समय जब हालाहल नाम का विष निकलने लग तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया।

विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे।

लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव जी के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई।

बेल के पत्तों की तासीर भी ठंढ़ी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी।

बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं। sabhar :http://www.amarujala.com/

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पूनम की फेसबुक वॉल न्यूड फिल्म से ज्यादा बोल्ड

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पूनम की फेसबुक वॉल न्यूड फिल्म से ज्यादा बोल्ड हैं।फेसबुक और ट्वीटर उन्हें चर्चा भी देते रहे हैं।
जब-जब पूनम पांडेय चर्चाओं से बाहर होती हैं उनकी कोई तस्वीर आ धमकती है।तस्वीर आते ही पूनम चर्चाओं में आ जाती हैं।पूनम पांडेय के लिए फेसबुक अपने एक्सपोजर का एक ठिकाना बन गया है।अपने फेसबुक और ट्वीटर एकाउंट को पूनम अपने लिए प्रोफशनली बहुत इस्तेमाल करती हैं।पूनम पांडेय अपनी फिल्म नशा का प्रमोशन भी इसी अंदाज में करती रही हैं।फेसबुक और ट्वीटर उन्हें चर्चा भी देते रहे हैं।


तस्वीर आते ही पूनम चर्चाओं में आ जाती हैं।


जबजब-जब पूनम पांडेय चर्चाओं से बाहर होती हैं उनकी कोई तस्वीर आ धमकती है।जब-जब पूनम पांडेय चर्चाओं से बाहर होती हैं उनकी कोई तस्वीर आ धमकती है।ब पूनम पांडेय चर्चाओं से बाहर होती हैं उनकी कोई तस्वीर आ धमकती है।


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रविवार, 23 फ़रवरी 2014

टीनएज गर्ल से 6 घंटे में 30 मर्दों ने किया बलात्कार!

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बर्मिंगम : एक टीनएज गर्ल से कम से कम 30 एशियाई मर्दों ने बलात्कार किया। रिपोर्ट के मुताबिक बलात्कार करने वालों में एक पिता और स्कूली छात्र उसका बेटा भी शामिल था। यह सब करीब छह घंटे तक चला और महत्वपूर्ण बात यह है कि सब लड़की को बड़ी करने के नाम पर किया गया। ब्रिटेन के एक अखबार में इस बारे में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। 

मुस्लिम समाज में काम कर रहीं ब्रिटेन की कार्यकर्ता शाइस्ता गोहिर ने दावा किया है कि ऐसा बहुत सारी लड़कियों के साथ हो चुका है। गोहिर का दावा है कि एशियाई समाज की कुछ खास नस्लों में लड़कियों के साथ दुर्दांत सेक्स क्राइम हो रहे हैं, जिन्हें पुलिस अधिकारी जानबूझ कर नजर अंदाज कर देते हैं। इन अपराधों को समुदायों के नेता, स्कूल और परिवार तक नजर अंदाज कर रहे हैं।

अपनी रिपोर्ट में गोहिर ने ब्रिटेन के बर्मिंगम का एक केस स्टडी पेश किया है। इस केस में एक टीनएज गर्ल के साथ 6 घंटे तक 20 से 30 पुरुषों ने बलात्कार किया। बर्मिंगम की सिटी काउंसिल को सौंपी गई रिपोर्ट 35 पीड़ितों के साथ की गई बातचीत पर आधारित है। इस रिपोर्ट में सेक्स क्राइम करने वाले मर्दों का भी साक्षात्कार किया गया है।

रिपोर्ट के बहाने शाइस्ता गोहिर ने संबंधित अधिकारियों से अपील की है कि कुछ विशेष समुदायों में हो रहे इन अपराधों को उनका निजी मुद्दा मानकर नजरअंदाज न किया जाए बल्कि ऐसे मामलों में गंभीर कार्रवाई की जाना चाहिए। (एजेंसियां) sabhar :http://zeenews.india.com/

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देखिए, ‌कैसे दर्शकों को घर बैठे उत्तेजित करेगी ये लड़की

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Supermodel Helena Christensen 'seduces the a

डैनिश सुपर मॉडल हेलेना क्रिस्टेंसेन इस महीने वीएस मैग्जीन के कवर पेज पर दिखाई दी थी साथ ही इस मैग्जीन की वे गेस्ट एडिटर भी बनी थी। फोटोः डेली मेल



Supermodel Helena Christensen 'seduces the a

अब जल्द ही हेलेना दर्शकों को घर बैठे उत्तेजित करती नजर आएंगी।
अब जल्द ही हेलेना दर्शकों को घर बैठे उत्तेजित करती नजर आएंगी।

Supermodel Helena Christensen 'seduces the a


45 वर्षीय हेलेना एक शॉर्ट फिल्म में मादक अंदाज में लोगों को उकसाएंगी।हेलेना कहती हैं कि इस शॉर्ट फिल्म को बयां करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं लेकिन फिर भी लोग उन्हें देखते ही एक्साइटेड हो जाएंगे।


Supermodel Helena Christensen 'seduces the a



इस फिल्म में हेलेना ने काफी उल्टे-सीधे पोज दिए हैं जो लोगों की इच्छाओं को जाग्रत करेंगे।

Supermodel Helena Christensen 'seduces the a


हेलेना ने इस शॉर्ट फिल्म का एक वीडियो भी जारी किया है। जिसमें वे किसी कॉल गर्ल से कम नहीं लग रही

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45 वर्षीय हे45 वर्षीय हेइस फिल्म में हेलेना ने काफी उल्टे-सीधे पोज दिए हैं जो


 लोगों की इच्छाओं को जाग्रत करेंगे।लेना एक शॉर्ट फिल्म में मादक अंदाज में लोगों को उकसाएंगी।


लेना एक शॉर्ट फिल्म में मादक अंदाज में लोगों को उकसाएंगी।



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दुनिया का सबसे खतरनाक पेड़ मौत का छोटा सेब

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दुनिया का सबसे खतरनाक पेड़, इसके पास जाना है मना
यह मैंचीनील नाम का पेड़ है और इसे दुनिया के सबसे जहरीले वृक्ष के तौर पर गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है। मैंचीनील इतना जहरीला है कि इसके पास भी जाना मना है।
सबसे खतरनाक माने जाने वाले पेड़ पर या उसके आसपास चेतावनी वाले बोर्ड और तख्तियां नजर आती हैं। बेहतर है कि लोग यह पढ़कर इससे दूरी बनाकर रखते हैं। इसके सेब जैसे दिखने वाले फल को यदि किसी ने खाया, तो यह उसे मौत की नींद जल्द सुला सकता है।
 इस विषैले पेड़ का नाम कैसे पड़ा मैंचीनील :
विज्ञान में आधिकारिक रूप से इसे Hippomane mancinella कहा जाता है। मैंचीनील (Manchineel) शब्द स्पेनिश के  Manzanilla से बना है। Manzanilla का अर्थ 'little apple' होता है।
कोलंबस ने मैंचीनील के फल को बताया था मौत का छोटा सेब :
माना जाता है कि क्रिस्टोफर कोलंबस ने मैंचीनील के सेब जैसे फल को 'manzanilla de l muerte' (मौत का छोटा सेब) का नाम दिया था।
वैज्ञानिक चख चुके हैं इसका स्वाद : एक रेडियोलॉजिस्ट निकोला एच स्ट्रिकलैंड ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित लेख में मैंचीनील के बारे में बताया है। उन्होंने इसके फल का स्वाद भी चखा था। स्ट्रिकलैंड ने बताया है कि टोबैगो के कैरेबियन द्वीप के बीच पर उन्हें एक गोलाकार फल पड़ा मिला था। यह एक काफी लंबे पेड़ से गिरा था। इसमें सिल्वर कलर तिरछी की लाइनें थीं। उन्होंने इसे उठाया और जरा सा खाया। उनके दोस्तों ने भी इसे थोड़ा खाया। बस, कुछ पलों के बाद मुंह में विचित्र ढंग का स्वाद महसूस हुआ और भारी जलन होने लगी। काटने वाली संवेदना हो रही थी और गला बुरी तरह अकडऩे लगा। दो घंटे तक उनकी स्थिति अधिक खराब रही। 8 घंटे बाद सूजन कम हुई। गले में सूजन के कारण वह दूध के अलावा कुछ भी नहीं ले पा रहे थे।
 
दुनिया का सबसे खतरनाक पेड़, इसके पास जाना है मना

दुनिया का सबसे खतरनाक पेड़, इसके पास जाना है मना

कितना है जहरीला : मैंचीनील के फल का रस भयंकर जहरीला औरकास्टिक (जलन पैदा करने वाला) होता है। यदि इसकी एक बंदू भी त्वचा पर गिर जाए तो यह बुरी तरह फट जाती है। स्किन में भारी सूजन और भयंकर जलन होती है। इसे जलाने पर निकला धुआं किसी को हमेशा के लिए अंधा कर सकता है। मतलब, यह पेड़ आपको हर तरह से नुकसान पहुंचा सकता है।किंवदंती  : स्पेन ने 16वीं शताब्दी में मैक्सिको और पेरू के इलाके जीत लिए थे। विश्व के सबसे जहरीले पेड़ मैंचीनील के बारे में यह किंवदंती प्रचलित है। स्पेन का जुआन पोन्स डी लियोन 1521 में फ्लोरिडा आया और दावा किया कि यहां उसने सोने के बड़े भंडार वाले इलाके की तलाश कर ली है। किंतु, यहां के लोग उसे यह जमीन देने के लिए तैयार नहीं थे। इसको लेकर स्थानीय लोगों और पोन्स डी लियोन के बीच संघर्ष हुआ। इसमें उसकी मौत एक जहरीले तीर से हुई थी। कहा जाता है कि इस तीर में मैंचीनील के विषैले रस का प्रयोग किया गया था। यह तीर उसके पैर में लगा था।
दुनिया का सबसे खतरनाक पेड़, इसके पास जाना है मना

सा होता है मैंचीनील : यह पेड़ करीब 50 फीट तक ऊंचा होता है। यह चमकदार दिखाई देता है। इसकी पत्तियां अंडाकार होती हैं। यह पेड़ लोगों को छाया और शुरुआती मिठास से ललचता है, लेकिन इसके परिणाम भयंकर हैं। सौभाग्य से इस सबसे खतरनाक पेड़ से कोई बड़ी दुर्घटना या मौत दर्ज नहीं हुई है।

कहां पाया जाता है : दुनिया का सबसे जहरीला पेड़ मैंचीनील फ्लोरिडा, कैरेबियन सागर के आसपास और बहमास में पाया जाता है। sabhar : bhaskar.com


 

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शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

नैनो रोबो करेगा काया की सैर

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 तकनीक के क्षेत्र में अगली क्रांति का नाम है नैनो टैक्नोलॉजी। वैज्ञानिकों का दावा है कि नैनो के दम पर इस सदी के मध्य तक पूरी दुनिया का कायाकल्प हो जाएगा, बड़े-बड़े काम बेहद छोटे उपकरण कर देंगे। नैनो की दास्तान बता रहे हैं कुलदीप शर्मा




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लिलिपुट जैसे बौनों की दुनिया की कल्पना सबने की है। इस बारे में सोचें तो अजीब-सी सिहरन होती है। दरअसल सूक्ष्म से सूक्ष्मतर की क्रांतिकारी खोज ही नैनो टैक्नोलॉजी है। नैनो एक मीटर का अरबवां हिस्सा होता है। मोटे तौर पर कहें तो मानव के बाल का अस्सी हजारवां भाग। अभी तक परमाणु को सबसे छोटा कण माना जाता रहा है, मगर नैनो उससे भी सूक्ष्म है। इसी सूक्ष्मतम भाग को लेकर हल्की मगर मजबूत वस्तुओं का निर्माण किया जाएगा। इससे करिश्मायी उपकरण तैयार होंगे, जो हैरान करेंगे, मगर सच्चाई लिए होंगे। ऐसे नैनो रोबो तैयार होंगे, जो दिल के लिए खतरा बनी रुकी हुई रक्त धमनियों को खोलते चले जाएंगे। ऐसी मिनी माइक्रोचिप, जो बड़ी मात्रा में सूचनाएं समोएगी, कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी की दुनिया ही बदल जाएगी। खानपान, सुरक्षा के नए रूप होंगे।
नैनो रोबो करेगा काया की सैर आज चिकित्सा जगत में इलाज के लिए ‘हिट एंड ट्रायल’ पद्धति है यानी अंदाज के आधार पर रोग की दवा दी जाती है। मगर अब नैनो पद्धति द्वारा दवा ठीक ठिकाने पर पहुंचेगी। इस दिशा में तेल अवीव यूनिवर्सिटी की महत्वपूर्ण सफलता सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार मात्र एक परमाणु की मोटाई का एक ऐसा नैनो कण आधारित नैनो रोबो तैयार कर लिया गया है, जो स्टील की तरह मजबूत है और रबड़ की तरह एकदम लचीला। विश्वविद्यालय के रिसर्च एंड इम्यूनोलॉजी विभाग में कार्यरत शोधकर्ता प्रो. डेन पीयर के अनुसार यह ‘मिनी सबमेरिन’ शरीर के कोने-कोने की खबर लेने में सक्षम है। इसके द्वारा धमनियों-शिराओं की रुकावट को खोल पाना संभव है तो वहीं पूरे इम्यून सिस्टम में यह दवा भी ठिकाने पर पहुंचा देता है।
नैनो कणों में उसके आकार के अनुरूप रंग प्रदर्शित करने की क्षमता है, अत: इसके द्वारा कैंसर कोशिकाओं की पकड़ भी संभव हो चली है। दो नैनो मीटर आकार के कण चमकीले हरे होते हैं तो वहीं 5 नैनो मीटर आकार के कण गहरा लाल रंग प्रदर्शित करते हैं। लंबे समय से इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि कोई इतना सूक्ष्म उपकरण मिल जाए, जो कोशिका में प्रवेश कर वहां उपस्थित डी.एन.ए.और प्रोटीन से सम्पर्क कर पाए। नैनो कण ने यह सपना साकार कर दिखाया है। इसके आधार पर कैंसर प्रभावित कोशिकाओं को बेहद प्रारंभिक अवस्था में पकड़ पाना संभव होगा। इसके बाद नैनो कणों के सहारे ही कैंसर कोशिका तक दवा पहुंचाना संभव हो जाएगा। इससे अन्य कोशिकाएं प्रभावित नहीं होंगी। 
इसके आगे की सफलता जिऑर्जियाई वैज्ञानिकों ने प्राप्त की है। जिऑर्जिया स्थित ओबेरियन कैंसर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा कैंसर प्रभावित कोशिकाओं को धोकर उन्हें तैराते हुए शरीर से बाहर करने की प्रभावी तकनीक विकसित की गई है। यहां के स्कूल ऑफ बायोलॉजी के डॉ. जॉन मैकडॉनल्ड द्वारा चुम्बकीय नैनो कणों का प्रयोग करते हुए रक्त में तैरती कैंसर कोशिकाओं की धरपकड़ की और उन्हें तैराते हुए शरीर से बाहर ले आए। रिपोर्ट के अनुसार ट्यूमर से कैंसर कोशिकाओं को निकाल उदर में पहुंचाना भी संभव हुआ है। इस तकनीक का प्रयोग ओवेरियन कैंसर के इलाज के लिए प्रभावी होगा।
इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों की एक उल्लेखनीय दर्द निवारक सफलता सामने आई है। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों द्वारा इलेक्ट्रिक शॉक के लिए मैगनेटिक नैनो पार्टिकल्स का प्रभावी प्रयोग कर दर्द को घटाया है। यहां के चीफ कंट्रोलर (आर एंड डी) डॉ. ए. एस. पिल्लई के अनुसार मनोचिकित्सा की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण सफलता है। आने वाले समय में नैनो टैक्नोलॉजी का प्रयोग कर एड्स जैसे गंभीर रोग का भी इलाज संभव होगा। 
नैनो भरेगी अधिक सूचनाहालांकि कंप्यूटर चिप आज भी भरपूर सूचना संजोने में सक्षम है, मगर आने वाले समय में नैनो इसे कई गुना बढ़ा देगी। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की कंपनी आइसिस इनोवेशन द्वारा ‘द ऑक्सफोर्ड इन्वेंशन’ नामक एक प्रभावी तकनीक विकसित की गई है, जिससे कार्बन नैनोट्यूब को शुद्ध कर इसे सिलिकॉन चिप के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा। नैनोट्यूब वर्तमान ट्रांजिस्टर के आकार के 500वें भाग के बराबर होती है और इसमें बेहतर विद्युतीय गुण होते हैं। ब्रिटेन और स्पेन के वैज्ञानिक नैनोमीटर ड्रिल का प्रयोग कर चिप में इलैक्ट्रॉन के स्थान पर प्रकाश का प्रयोग करने की दिशा में कार्यरत हैं।
मोबाइल की कीमतें कमनैनो तकनीक आधारित मोबाइल अत्यंत संवेदी, सूचना से भरपूर, अनेक फीचर वाले तो होंगे ही, साथ ही इसकी कीमत भी बहुत कम होगी। इस दिशा में न्यूकासल विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ नैनोस्केल साइंस एंड टेक्नोलॉजी - आईएनइएक्स के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने उत्तरी ब्रिटेन के दो पर्यटक स्थान इतने छोटे पैमाने पर बना लिए हैं, जो कोरी आंखों से दिखाई भी नहीं देते। वैज्ञानिकों के इस दल ने रसायनशास्त्र, भौतिकी और मैकेनिकल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करते हुए ‘द एंजल ऑफ द नॉर्थ’ और ‘द टाइन ब्रिज’ नामक दो नन्हे ढांचे बनाए हैं। दोनों ही सिलिकॉन से बने हैं और करीब चार सौ माइक्रॉन चौड़े हैं। इन मॉडलों को बनाने में इस्तेमाल टैक्नोलॉजी को अगली पीढ़ी के मोबाइल फोन के सूक्ष्म एंटीना बनाने के काम में लाया जा सकता है। 
होंगे करिश्मे भी.!जर्मन वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों नैनो पार्टिकल्स आधारित ऐसा स्प्रे तैयार किया है, जो सफाई के लिए विशेष तौर पर सहायक होगा। नैनोपूल नामक फर्म द्वारा तैयार यह स्प्रे मानव बाल से भी छोटे स्थान की सफाई कर उसे कीटाणु रहित कर डालता है। स्नानगृह यह स्प्रे आनन-फानन में उन्हें साफ कर डालेगा। यही नहीं, फर्म का दावा है कि ओवन, गैस चूल्हा, बर्तन आदि में जले खाद्य, जले के दाग, पत्थर पर जमी गंदगी हो, कार का शीशा या कपड़े, दाग इस नैनो स्प्रे के आगे टिक नहीं पाएंगे।
भारत में जारी नैनो परियोजनाएंवर्ष 2003 के अंत में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा कोलकाता में ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन नैनो साइंस एंड टैक्नोलॉजी’ का आयोजन किया गया था। बंगलौर स्थित जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च में नैनो विज्ञान पर उल्लेखनीय कार्य किये जा रहे हैं। यहां से 1.5 नैनोमीटर व्यास की नैनो ट्यूब तैयार की गई। पुणे स्थित राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला द्वारा नैनो कणों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। यहां नीम आधारित स्नव के प्रयोग हुए क्रायोजैनिक मैटल और बायोमैटेलिक नैनो कणों का निर्माण किया गया है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग संस्थान, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय प्रयोगशाला जैसे देश के विभिन्न संस्थान व विश्वविद्यालय भी नैनो तकनीक की दिशा में शोधरत हैं।
क्या है नैनो टैक्नोलॉजीनैनो तकनीक के सहारे वस्तुओं को अतिसूक्ष्म तरीके से बनाया जा सकेगा। इसका प्रयोग व्यापक रूप में होगा। यह शब्द ग्रीक भाषा से आया है। हालांकि वहां भी यह मूलत: नैनो न होकर ‘नैनोज’ है। इसी नैनोज को प्रारंभिक स्तर पर वैज्ञानिकों ने किसी विशिष्ट अभिप्राय और भविष्य की सूक्ष्मतर कणों से संबंधित शाखा को स्पष्ट करने के लिए प्रयोग किया। लम्बे समय तक इस शब्द को अपनाने के लिए बहस भी हुई, मगर अंतत: इसका प्रयोग सूक्ष्म से सूक्ष्मतर अंश के लिए किया गया। असल में ग्रीक भाषा में नैनोज का शाब्दिक अर्थ बौना (ड्वार्फ) है। sabhar :http://www.livehindustan.com/


नैनों तकनीक यानि इंजीनियरिंग की ऐसी विधा जिसमें एक कण से भी छोटे पदार्थों का अध्ययन किया जाता है, शोध किए जाते हैं। इस तकनीक का इंसान के हित में कैसे इस्तेमाल किया जाए ये एक बड़ा सवाल रहा है।

अगर आप दांत की समस्या से परेशान हैं तो नैनों तकनीक के जरिए इलाज कराना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। सिंगापुर की बायोमर्स कंपनी ने इस दिशा में काफी काम भी किया है। सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों की मदद से कंपनी ने दंत चिकित्सा के लिए ऐसे तार विकसित किए हैं जिनके इस्तेमाल के बाद दांतों को कसने के लिए धातु के तार लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

बायोमर्स के सह संस्थापक और उपाध्यक्ष जॉर्ज एलिफट्रियास कहते हैं, 'हमारी ये सोच है कि पॉलीमर दांत के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। दांतों पर कोई भी ट्रैने के आकार वाले धातु के तार नहीं देखना चाहता।'

कई वैज्ञानिक और शोधकर्ता मानते हैं कि नैनों तकनीक की मदद से इंसान के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव किए जा सकते हैं। रिजर्ववायर और नहरों में पानी की पारगम्यता कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल फायदेमंद साबित हो सकता है।

कपड़ा उद्योग, जंग प्रतिरोधक सामान तैयार करने में और दवाएं बनाने में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है। सिंगापुर के मैटेरियल रिसर्च एंड इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर एंडी होर कहते हैं, 'पिछले पांच सालों में इस क्षेत्र में काफी काम हुआ है।'

नुकसान भी कम नहीं : नैनो तकनीक के अगर फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं। प्रोफसर होर कहते हैं, 'अभी तक वैज्ञानिक मानते थे कि अगर किसी पदार्थ की रासायनिक संरचना के बारे में पता चल जाए तो उसके व्यवहार के बारे में पता लगाया जा सकता है। जैसे कि नमक का स्वाद नमकीन ही होता है फिर चाहे नमक का टुकड़ा छोटा हो या बड़ा। लेकिन आज ऐसा नहीं है। अब साबित हो चुका है कि आकार प्रकार का पदार्थ के व्यवहार पर असर पड़ता है। अगर ज्यादा बड़ा आकार है तो पदार्थ नए तरीके का व्यवहार कर सकता है।'

नैनो तकनीक का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है अभी तक इसके बारे में ठीक से पता नहीं किया जा सका है।

बदलता रहा नजरिया : नैनो तकनीक के बारे में दुनिया का नजरिया पिछले दो दशकों में काफी बदला है। नोबेल विजेता वैज्ञानिक एरिक द्रेक्सलर ने दुनिया के खात्मे का एक काल्पनिक सीन तैयार किया था।

इसमें उन्होंने मॉलिक्यूलर नैनो तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ऐसे रोबोट की कल्पना की थी जो पूरी धरती को खा सकता है। इस पूरी तस्वीर में दिखाया गया था कि दुनिया का विनाश करने के दौरान रोबोट स्वयं का विकास भी करता रहता है। हालांकि यह एक तरह की कोरी कल्पना थी लेकिन इससे साबित होता है कि नैनो तकनीक का इस्तेमाल कितना खतरनाक हो सकता है।

स्वास्थ्य पर नैनो तकनीक के प्रभाव का सटीक आंकलन अभी किया जाना बाकी है। जर्मनी के फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ रिस्क एसेसमेंट का कहना है कि अभी तक इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलें हैं कि नैनो तकनीक के इस्तेमाल का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

अगर देशों की बात की जाए तो 2006 के बाद से ही सिंगापुर नैनो तकनीक के क्षेत्र में काफी आगे रहा है। इस देश में नैनो तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों का स्वागत किया जाता है। फिलहास यहां 13 कंपनियां काम कर रही हैं।

सिंगापुर इकोनॉमिक डेवलपमेंट बोर्ड के निर्देशक यी सेन गियान कहते हैं, '2011 से 2015 के बीच सरकार ने इसके शोध के बजट में 25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। हम लोग टैक्स में छूट देते हैं, विकास के लिए कर्ज देते हैं।' sabhar :http://hindi.webdunia.com/

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4G की फास्ट स्पीड का मजा 3G के दाम में

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Airtel launches 4G services on smartphones at 3G prices

टेलीकॉम ऑपरेटर एयरटेल ने बेंगलुरु में मोबाइल पर अपनी 4जी सर्विस लॉन्च करके भारत का पहला 4जी सर्विस प्रदाता बन गया है। सबसे पहले यह सेवा बेंगलुरु में शुरू की गई है।

अब एयरटेल ने अपनी 4जी सेवाएं मोबाइल पर देने के लिए एप्पल के साथ हाथ मिलाया है। कंपनी ने 3जी के दाम पर ही 4 जी की सेवा देने का फैसला किया है। 4जी सर्विस के जरिए यूजर्स हाई-डेफिनिशन विडियो बिना बफर किए देख सकेंगे और सिर्फ 3 मिनट में फोन पर पूरी मूवी डाउनलोड कर सकेंगे।

ऐयरटेल का कहना है कि ऐयरटेल यूजर्स अपना इंटरनेट प्लान बदले बिना 3जी के दाम में 4 जी स्पीड का आनंद उठा सकते हैं। ऐयरटेल की ये सेवा प्रीपेड और पोस्टपेड दोनों यूजर्स के लिए उपलब्ध है।
ऐयरटेल में 4जी नेटवर्क के तहत 1,000 रुपए का इंटरनेट प्लान शुरू किया है जिसमें कस्टमर्स को 4जी स्पीड के साथ 10जीबी डेटा एक महीने के लिए इस्तेमाल करने को मिलेगा।फिलहाल यह सर्विस सिर्फ एप्पल के नए स्मार्टफोन आईफोन 5S और 5C पर ही दे जा रही है। भारत में 4जी सर्विस 2300 मेगाहर्ट्ज के फ्रीक्वेंसी बैंड पर मिल रही है जिस पर भारत में सिर्फ ये दो फोन ही सपोर्ट करते हैं। 

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खुद की ब्लू फिल्में बना रोजाना हजारों रूपए कमा रही हैं

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रात 11 बजे से रात दो बजे पीक टाइम


कौन हैं ये लड़कियां



ये है ऑनलाइन सेक्स की दुनिया


इंटरनेट की दुनिया अगर चमकदार है तो साथ में गंदी भी। इन दिनों वेबकेम के माध्यम से सेक्स का खुल्लम खुल्ला धंधा चल रहा है। और तो और टीनेज गर्ल्स वेबकैम के जरिये खुद की ब्लू फिल्में बना रोजाना हजारों रूपए कमा रही हैं।

कौन हैं ये लड़कियां

वेब के माध्यम से पैसे कमाने वाली ये लड़कियां कोई और नहीं बल्कि वही हैं जो अपना करियर बनाना चाहती हैं, अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करना चाहती हैं।

बीबीसी पर प्रसारित कार्यक्रम 'द ट्रूथ अबाउट वेबकेम गर्ल्स' में शामिल एक लड़की ने बताया कि इन पैसों से वह अपनी यूनिवर्सिटी की पढा़ई पूरी करना चाहती है।

प्रति मिनट मिलते हैं 350 रूपए

डेली मेल की खबर के मुताबिक, 25 साल की पूर्व पोर्न स्टार सैमी प्रति मिनट अपने वेब दर्शकों के सामने न्यूड होने के लिए तकरीबन 350-400 रूपए लेती है। सैमी एक एडल्ट वेबसाइट के जुडी है जिसकी पहुंच एक लाख दर्शकों तक है।

वैसे 18 साल की उम्र से इस पेशे में लगी सैमी अब इस पेशे से बाहर निकलना चाहती है और यूनिवर्सिटी में साइक्लोजी की पढा़ई करने वालों की मदद करना चाहती है।

कुछ घंटों में 35 से 40 हजार रूपए 
सैमी अपनी कमाई का 30 फीसदी वेबकेम पर खर्च करती है और अगर वो रात के दो बजे तक काम न भी करे तो भी वह कम से कम 35 से 40 हजार रूपए कमा लेती है।

दोस्तों के घर से होता है ऐसा काम


दोस्तों के घर से होता है ऐसा काम

सैमी बताती हैं कि वे अपनी गर्लफ्रेंड अमरा के साथ रहती हैं। लेकिन वे ये भी कहती हैं कि घर पर ऐसा काम करने में कई दिक्कतें होती हैं तो आप दोस्त के घर पर ये काम कर सकते हैं।

सैमी की गर्लफ्रेंड अमरा मजाक करते हुए कहती है, 'मुझे अच्छा लगता है मैं अपनी सहेली को छू सकती हूं, जबकि लोग उसे स्क्रीन पर देखने के लिए पैसे देते है'।
न्यूड नहीं होती बाकी सब करती है

रात 11 बजे से रात दो बजे पीक टाइम

सैमी अपनी दोस्त के साथ रात दो बजे के बाद ही खाना खाती है क्योंकि रात 11 बजे से रात दो बजे तक सैमी सबसे ज्यादा व्यस्त रहती हैं और ये उसके काम का पीक टाइम होता है। सैमी का टारगेट होता है एक दिन में कम से कम 15-16 हजार रूपए कमाना।

हालांकि यूनिवर्सिटी में सैमी को अपने काम की वजह से ताने भी सुनने पड़ते हैं लेकिन सैमी उन्हें पलट कर जवाब देती है, क्या पता मुझे देखने वालों में से कल कोई तुम्हारा हसबैंड भी हो सकता है।

सच्चा प्यार करना चाहती हैं ये



न्यूड नहीं होती बाकी सब करती है

सैमी के अलावा 21 साल की ओलिवा कैमरे के सामने सब करती है सिवा नग्न होने के। ओलिवा बताती है कि कमर के नीचे का हिस्सा वो सबको नहीं दिखाती है। उन हिस्सों को वही देख सकता है जिनके पास पैसा है।

उसने चेहरे और ब्रेस्ट की कॉस्मेटिक सर्जरी पर 5 लाख रूपए से भी ज्यादा खर्च कि हैए। अगर कोई कस्टमर स्टॉकिंग्स निकालने के लिए कहता है तो मुझे हंसी आती है क्योंकि चेहरे और बूब्स पर पैसे खर्च करने के बावजूद लोग मेरी टांगों को देखना चाहते हैं। 


सच्चा प्यार करना चाहती हैं ये

इन तीनों में से सबसे चौंका देने वाली है एसेक्स की 25 साल की कार्ला।

कार्ला अपनी 16 साल वाली वीडियो दिखाती है। कार्ला कहती हैं कि टीनेज से ही मैं पोर्न फिल्मों में काम करना चाहती थी। ‌कार्ला अपने आपको बेहद सेक्सुअल लड़की मानती है जिसकी सेक्स एपीयरेंस बहुत ज्यादा है।

कार्ला की इच्छा है निजी जीवन में कोई मिले जिससे उसका सच्चा प्यार हो और साथ-साथ जीवन बिताये। sabhar :http://www.amarujala.com/



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छात्रा ने क्लासरूम में दिया बच्चे को जन्म

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कभी गाड़ी तो कभी चलती ट्रेन के टॉयलेट में डिलिवरी



अक्सर ऐसी खबरें तो आती रहती हैं कि एक गर्भवती महिला अस्पताल जाते समय ट्रैफिक जाम में फंस गई और उसे गाड़ी में ही अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा।

या फिर चलती ट्रेन के ‌टॉयलेट में शौच करते समय महिला की डिलिवरी हो गई और नवजात शिशु टॉयलेट के रास्ते से रेलवे ट्रैक पर जा गिरा और उसके बाद ट्रैन रुकवाकर बच्चे को उठाया गया।

लेकिन...यहां मामला एकदम अलग है। एक मां को टीचरों के बीच ऐसी जगह पर अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा, जहां ना कोई डॉक्‍टर था ना कोई नर्स। आखिर क्या है पूरा मामला? पढ़िए।
क्लासरूम में दिया बच्चे को जन्म



बिहार के सारण जिले में एक महिला ने एक कॉलेज के परीक्षा हॉल में अपने बच्चे को जन्म दिया। महिला 12वीं कक्षा की परीक्षा देने गई थी, जहां अचानक उसकी डिलिवरी हो गई।

मनीषा देवी नाम की इस महिला की उम्र करीब 20 वर्ष है और पिछले ही वर्ष उसकी शादी हुई थी। गुरुवार को वह अपनी 12वीं की परीक्षा देने गई थी।

कॉलेज के अधिकारियों के मुताबिक परीक्षा देते समय अचानक मनीषा के पेट में तेज दर्द होने लगा। कॉलेज प्रशासन ने जानकारी मिलते ही तुरंत एंबुलेंस के लिए फोन किया। लेकिन इससे पहले की एंबुलेंस आती, महिला ने बच्चे को जन्म दे दिया। इसके बाद महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया।

कैसे हैं मां और उसका बच्चा?

महिला की देखभाल कर रहे अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि डिलिवरी सामान्य थी। बच्चा और उसकी मां स्वस्‍थ व सुरक्षित हैं। दोनों के स्वास्‍थ्य में तेजी से सुधार हो रहा है।

यह पहली बार नहीं है कि जब बच्चे का जन्म अस्पताल या घर से बाहर हुआ है। पिछले वर्ष ही गाजियाबाद में एक महिला ने चलती ट्रेन के टॉयलेट में शिशु का जन्म दिया था।

बच्चा टॉयलेट के जरिए रेलवे ट्रैक पर जा गिरा। इसके बाद ट्रेन रुकवाकर बच्चे को उठाया गया था। हालांकि बच्चा और मां दोनों स्वस्थ थे।



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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

एलियंस के होने-न होने का पता

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चंद्रवासी हमारे नाम रेडियो मैसेज भेज रहे हैं- 'हम चांद से बोल रहे हैं। क्या आपको हमारी आवाज सुनाई दे रही है?' हम इंसान इस मैसेज को सुन नहीं पाते, क्योंकि हमें नहीं मालूम कि वे किस फ्रीक्वेंसी पर हैं। यह आप को किसी साइंस फिक्शन का हिस्सा लगता है, तो दिल थाम लीजिए। पिछले दिनों लंदन के एक सम्मेलन में चंद्रवासियों के बारे में चर्चा हुई और कहा गया कि चांद में ऐसी चीजें मौजूद हैं, जो किसी एलियन या एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल (ईटी) सभ्यता की निशानी हैं। कुछ साइंटिस्ट मानते हैं कि चांद का यह हिस्सा, जो पृथ्वी से दिखाई नहीं देता, एलियंस का बेस हो सकता है। अब तक सभी चंद्रयान उस हिस्से में उतरे हैं, जो पृथ्वी से दिखाई देता है। बाकी हिस्सा, जो अंधेरे में खोया रहता है, रहस्यमय बना हुआ है। 

चलिए, चांद का किस्सा छोडि़ए। वहां एलियंस की बात करना ज्यादती ही है, लेकिन वहां नहीं तो और कहीं? इंसान का मन यह मानने को कभी तैयार नहीं होगा कि इस अनंत युनिवर्स में वह अकेला है, कि अरबों-खरबों ग्रहों में कहीं जीवन नाम का चमत्कार दोहराया नहीं जा सका। इसलिए एलियंस की खोज हमेशा हमारी साइंस पर हावी रही है। परग्रही प्राणियों की खोज, यानी सेटी प्रोजेक्ट के जरिए अनजान रेडियो संकेतों को पकड़ने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं। विशाल रेडियो टेलिस्कोप स्पेस की गहराइयों में कान लगाए हुए हैं। उस क्षण का बेसब्री से इंतजार है, जब किसी एलियन का संकेत देती एक अजनबी क्लिक सुनाई देगी और विस्मय की एक कौंध के साथ हमारी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी। वह क्षण इस ग्रह के इतिहास को दो हिस्सों में बांट देगा। 
वह क्षण कब आएगा, कोई नहीं जानता। आज अभी या फिर सदियों बाद, लेकिन उसके लिए मुहिम कई मोर्चों पर जारी है। इसी फरवरी में साइंटिस्टों ने हमारी आकाशगंगा में एक तारे की खोज की है, जिसका एक पृथ्वी जैसा ग्रह है, यानी वहां बुद्धिमान परग्रही जीवन की संभावना बनती है। यह तारा २६ प्रकाश वर्ष, यानी १५३ खरब मील दूर है। वॉशिंगटन के कानेर्गी इंस्टीट्यूट की एस्ट्रोनॉमिस्ट मार्ग्रेट टम्बुल इस खोज से इतनी उत्साहित हैं कि परग्रही बुद्धिमान प्राणियों से संपर्क साधने का सिलसिला जारी रखना चाहती हैं। १७,१२९ तारों की लिस्ट में से उन्होंने पांच ऐसे तारे चुने हैं, जहां जीवन की संभावनाएं सबसे अधिक हैं और जहां बुद्धिमान प्राणियों के विकास की सभी भौतिक परिस्थितियां मौजूद हैं। जीवन पनपने के लिए पहली शर्त यह है कि तारा तीन अरब वर्ष पुराना होना चाहिए। इतने ही समय में पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ। अगर मार्ग्रेट की सलाह पर चलें तो बुद्धिमान जीवन का विकास एक नहीं, कई सौर मंडलों पर हुआ होगा। अब यह भी क्या साइंस फिक्शन माना जाएगा कि इन सौर मंडलों के प्राणी चंद्रमा पर किसी तरह आए हों और वहां अपनी निशानियां छोड़ गए हों, जिनकी चर्चा हमने शुरू में की थी। 

परग्रही जीवन की खोज इस साल और भी तेज हो गई दिखती है। अमेरिका में मेसाच्युसेट्स वेधशाला ने एक ऐसा ताकतवर टेलिस्कोप बनाया है, जो एक बड़े इलाके में स्पेस से आ रहे बारीक संकेतों को पकड़ सकेगा। यह मौजूदा टेलिस्कोपों की तुलना में एक लाख गुना बड़े स्पेस को कवर कर लेगा। हालांकि रेडियो संकेत पकड़ने की कोशिश १९६० से जारी है, लेकिन इस नए टेलिस्कोप से भारी उम्मीदें हैं। एक साइंटिस्ट का कहना है कि इस टेलिस्कोप का जन्म होना साइंटिफिक फील्ड में ऐसा दुर्लभ क्षण है, जबकि इंसान एक लंबी छलांग लगा सकता है। जाहिर है, अगर चंद्रवासी हैं और संदेश भेज रहे हैं, तो वे इस बार पकड़ में आ जाएंगे। 

यह सिर्फ संयोग नहीं कि हम बार-बार घूमकर चांद पर आ जाते हैं। चंद्रमा और धरती का साथ बहुत गहरा है, बल्कि चांद धरती का ही टुकड़ा है। तो यह कैसे हुआ कि जीवन सिर्फ धरती पर पैदा हुआ? चंद्रमा के बिना पृथ्वी पर जीवन हो ही नहीं सकता था। चार अरब साल पहले चांद हमसे अब की तुलना में ज्यादा करीब था। इसके कारण कुछ ही घंटों के अंतर से ज्वार आते थे। इन ज्वार से तटों पर लवणता (सेलिनिटी) में नाटकीय उतार-चढ़ाव होता था, जिससे डीनएन जैसे शुरुआती जैव अणुओं का विकास हुआ होगा। सोचिए, क्या चांद को इसी तरह पृथ्वी जीवन नहीं दे सकती थी? 

लगभग ढाई साल पहले अमेरिकी प्रेजिडेंट बुश ने कहा था- 'आदमी की अंतरिक्ष यात्राओं का कहां अंत होगा, हम नहीं कह सकते, लेकिन हम एक बात जानते हैं कि आदमी ब्रह्मांड में जा रहा है।' तब उन्होंने २०१५ तक चंद्रमा पर लौटने का पक्का इरादा जताया था

अपोलो के बाद के ३५ वर्ष में चंद्रमा की काफी पड़ताल हुई है, लेकिन इसके अंधेरे हिस्से पर रोशनी पड़नी अभी बाकी है। यह काम अब होगा और इससे हमें चांद पर एलियंस के होने-न होने का पता चल जाएगा। यकीनन चंद्रमा पर हालात इतने खराब हैं कि वहां आदमी का रहना मुश्किल है। वहां सांस लेने के लिए हवा नहीं है, दिन में तापमान १०० डिग्री और रात में माइनस १५० डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन ये बातें वहां जीवन होने की संभावना को खत्म नहीं करतीं। हमारे लिए कहना मुश्किल है कि परग्रही जीवन कैसा होगा और यह कतई जरूरी नहीं कि वह हूबहू हमारी तरह हो। दरअसल चांद और मंगल जैसी जगहों पर गहरी पड़ताल के लिए वहां इंसानों का लंबे समय तक रहना जरूरी है, जो अभी मुमकिन नहीं हो पा रहा है। लेकिन अब खबर है कि साइंटिस्टों ने चंद्रमा के वातावरण के मुताबिक ट्रांसहेब नाम के मल्टीस्टोरी आवास बनाने शुरू कर दिए हैं, जो २०१५ तक तैयार हो जाएंगे। 

एक सवाल, जो हमें अंतिम समय तक स्थगित रखना होगा, वह यह है कि क्या एलियंस हमसे दोस्ती करेंगे? फिल्मों की बात अलग है, लेकिन इस सवाल का जवाब हमें तभी मिलेगा, जब हमारी उनसे सचमुच मुलाकात होगी। यह खयाल हमें हैरानी, उत्साह और खौफ जैसे अहसासों से भर देता है, लेकिन यकीन मानिए एलियंस का हाल भी हमारे जैसा ही होगा। 

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अपोलो 11 मिशन हो या चांद पर पहुंचने वाले तीन अंतरिक्ष यात्रियों की तिकड़ी। हर बार उन्हें एलियंस या यूएफओ के दर्शन हुए। लेकिन हर बार ये बात छुपा ली गई। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर एलियंस की बात क्यों छिपाई गई। एलियंस पर खास रिपोर्ट
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अगले दो दशकों में दूसरे ग्रहों के निवासी यानी एलियंस से इंसानों का संपर्क हो सकता है। ये एलियंस इंसानों की तरह या उनसे ज्यादा बुद्धिमान हो सकते हैं। हमारे सौरमंडल से बाहर हाल में पृथ्वी जैसे ग्रहों का पता चलने के बाद यह अवधारणा और मजबूत होती है।बीबीसी की एक डॉक्युमेंटरी में जानेमाने अमेरिकी खगोलशास्त्री डॉक्टर फ्रैंक ड्रेक ने कहा- सभी कोशिशों के बाद हमें इस दिशा में कामयाबी मिलने की पूरी उम्मीद है। 76 साल के फ्रैंक ने 1961 में सर्च फॉर एक्स्ट्राटिरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट (एसईटीआई) की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि हमें सचमुच भरोसा है कि अगले करीब 20 साल में पृथ्वी से बाहर जीवन की मौजूदगी के बारे में बहुत बड़ी जानकारी हासिल होने जा रही है। हमें अहसास है कि आकाशगंगा में कहीं और जीवन मौजूद है, जो शायद कहीं ज्यादा इंटेलिजेंट भी है।
करीब 50 साल पहले डॉक्टर ड्रेक ने आकाशगंगा में मौजूद एलियंस सभ्यताओं के बारे में अनुमान लगाने की शुरुआत की थी। इसके लिए सात फैक्टर्स की जांच की। मिल्की वे में तारों के जन्म की दर, उनके ग्रहों की संख्या और वहां जीवन की मौजूदगी के बारे में अनुमान इनमें शामिल हैं।
साथ ही वह इस बात की भी पड़ताल करते रहे कि अगर दूसरे ग्रह पर जीवन मौजूद है तो वह कितना इंटेलिजेंट हो सकता है। डॉक्टर ड्रेक ने कहा कि आकाशगंगा में औसतन तकनीकी रूप से करीब 10,000 अडवांस फॉर्म में जीवन मौजूद होने का अनुमान है। पिछले अप्रैल तक इस थ्योरी को कई एक्सपर्ट्स खारिज करते रहे।
लेकिन जब स्विस टीम ने सौरमंडल से बाहर दो ग्रहों की खोज की तब इस थ्योरी को बल मिला। डॉक्टर ड्रेक ने कहा कि इससे जीवन वाले दूसरे ग्रहों की मौजूदगी की संभावना मजबूत होती है। उन्होंने कहा कि करीब 100 अरब दूसरी आकाशगंगाएं और 500 ग्रह हो सकते हैं। अगर हम यह मान कर चलें कि सिर्फ पृथ्वी पर ही जीवन है, तो यह नजरिया ठीक नहीं होगा।
अगले साल नासा के केपलर टेलीस्कोप लॉन्च के बाद दूसरे ग्रहों पर जीवन की मौजूदगी की तलाश में अहम मोड़ आएगा। अपने चार साल के मिशन में वह करीब 1 लाख तारों की जांच करेगा।
अगर आपका सामना एलियंस से हो, तो आप उनसे बात कैसे करेंगे? है ना मौजूं सवाल। अमेरिकी राज्य वायोमिंग के लैरमी शहर में मौजूद वायोमिंग यूनिवर्सिटी में कुछ इसी जवाब की तैयारी चल रही है।
वायोमिंग यूनिवर्सिटी के नैचरल साइंस ऐंड ह्यूमैनिटीज डिपार्टमेंट के प्रोफेसर जेफ्री लॉकवुड ने क्रिएटिव राइटिंग की क्लास में अपने स्टूडेंट्स के सामने यही सवाल रखा, जो हम सभी के लिए भी प्रासंगिक है। क्योंकि, दुनियाभर के खगोलविद अपनी अत्याधुनिक तकनीकों और टेलिस्कोपों के जरिए परग्रही जीवन की तलाश में जुटे हैं।
देर-सबेर अगर एलियंस हमें मिल गए तो हम उनसे क्या बात करेंगे और कैसे? अब बात करते हैं लॉकवुड की क्लास की। आखिर वह इस सवाल का जवाब कैसे तलाश रहे हैं। तो चलिए हम भी उनके शिष्यों की पहली कॉस्मिक डेट पर चलते हैं। उनके 11 स्टूडेंट इसी बात पर डिस्कशन कर रहे हैं कि दूसरे ग्रहों की सभ्यताओं को अपने और अपनी मानवता के बारे में कैसे समझाया जाए। कुछ ने कहा कि उन्हें इलस्ट्रेशन के जरिए परहित के कामों और रोमांटिक लव का पाठ पढ़ाना चाहिए। डर यह भी है कि कहीं वह हमें युद्धों की भाषा तो नहीं समझाने लगेंगे?
इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं। लॉकवुड की स्टूडेंट क्रिश्चियाना कहती हैं कि हम हमेशा अपने टारगेट ऑडियंस को तय करते हैं, लेकिन हम अभी उस भाषा की कल्पना नहीं कर सकते, जिससे कि उन्हें समझाया जा सके।
सच कहें तो हम अभी इस बारे में कुछ नहीं सोच सकते। खुद लॉकवुड भी इस परेशानी को समझते हैं। इससे पहले की एक क्लास में उन्होंने 250 शब्दों में इंसान की उस स्थिति की कल्पना करने को कहा जब उसका सामना एलियंस से होता है। इसके बाद उन्होंने इसी स्थिति का बखान 50 शब्दों में फिर 10 शब्दों में करने को कहा।
कुछ छात्रों के जवाब काफी काव्यात्मक रहे। इन्गोग्लिया लिखती हैं - हम किशोर प्रजाति के हैं और अपनी पहचान तलाश रहे हैं। एक ने लिखा - दो बांह, दो टांग, सिर और सुडौल धड़। इसके बाद उन्होंने ज्यादा सुरक्षित रेडियो संदेश भेजने की सोची।
लॉकवुड कहते हैं कि हम इस बारे में काफी सोच सकते हैं कि दूसरे शब्दों में कैसे कम्यूनिकेट किया जाए, पर शायद हम इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते कि हमने असल में कहा क्या? खैर, कैलिफॉर्निया के माउंटेन व्यू इंस्टिट्यूट के डगलस वेकॉक्स कहते हैं कि आज नहीं तो कल हमें एलियंस से बात करने की जरूरत पड़ेगी ही और हमें क्या बात करनी है इसके लिए तैयार होना होगा। sabhar :http://khabar.ibnlive.in.com/

यह माना जाता है कि यूएफओ उड़ान का उद्गम मूल प्राचीन भारत और अटलांटिस है | यूएफओ पहेली में कई शोधकर्ता इस बहुत महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज करते हैं | 


क्या हम प्राचीन भारतीय उड़ान वाहनों के बारे में पता है ???

|प्राचीन भारतीय स्रोतों ग्रंथो के माध्यम से हमको इन सभी ( जैसे आकाश मार्ग गमन ) की वास्तविकता पर विश्वास है | संभवत: पुष्पक विमान तो सबने सुना ही होगा | रावण ने सीता जी को ले जाने के लिये कौन-सा मार्ग चुना था , आप सभी जानते ही है | प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय महाकाव्य स्वयं इसका उल्लेख कर रहे हैं , इसमें कोई शक नहीं है कि ये ग्रंथों सबसे ज्यादा प्रामाणिक
महान भारतीय वैज्ञानिकों की सूची में भारतीय सम्राट अशोकभी आते थे | उन्होंने नौ अज्ञात पुरुष की गुप्त सोसायटी शुरू की | अशोक अपने काम गुप्त रखा क्योंकि उनको डर था कि प्राचीन भारतीय स्रोतों द्वारा प्राप्त सूचीबद्ध विज्ञान , युद्ध में बुराई उद्देश्यसे युद्ध में प्रयोग न हो | 

एक प्रतिद्वंद्वी सेना को हराने के बाद उन्होंने अपना धर्म बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया | ( धर्म परिवर्तन का कारण : अशोका फिल्म देखी ही होगी | )
'नौ अज्ञात पुरुष' ने कुल नौ पुस्तकों को लिखा है | गुरुत्व का राज ! यह पुस्तक , इतिहासकारों के लिए भी खोज का विषय है | 
गुरुत्वाकर्षण नियंत्रण पुस्तक का प्रमुख केन्द्र है | यह संभाव्यतः अभी भी कहीं आस-पास है | भारत, तिब्बत में या कहीं और (शायद यह भी उत्तरी अमेरिका में कहीं) के पुस्तकालय में रखी है | निश्चित रूप से इस तरह के ज्ञान को गुप्त रखने के लिए मै क्या आप सभी भी अशोक के तर्क को समझ सकते है |

अशोक को विनाशकारी युद्ध के समय ऐसे उन्नत वाहनों और अन्य 'भविष्य हथियार' का उपयोग के बारे में पता था जो कि प्राचीन भारतीय 'राम' साम्राज्य में कई हजार साल पहले नष्ट कर दिये गए थे |

कुछ साल पहले चीन , तिब्बत में , कुछ संस्कृत दस्तावेजों की खोज की और उन्हें चंडीगढ़ के विश्वविद्यालय में अनुवाद किया जा करने के लिए भेजा |विश्वविद्यालय के डॉ. रूथ ने हाल ही में कहा है कि दस्तावेजों के आधार पर तारों के बीच से ग्रहों के निर्माण के लिए निर्देश होते हैं | उनके प्रणोदन की विधि भी दी हुई है | 

'विरोधी गुरुत्वाकर्षण' आदमी की शारीरिक अज्ञात आकाश शक्ति प्रणाली पर आधारित था | एक केन्द्रापसारक बल सभी गुरुत्वाकर्षण प्रतिक्रिया के विरोध में पर्याप्त है | हिंदू योगियों के अनुसार, यह आसान उत्थान और आकाश गमन है जो व्यक्ति उड़ने के लिए सक्षम बनाता है | (यदि अधिक जानना चाहते है या स्वयं पढ़ना चाहते है तो मेरे को बताये | मै इस विषय के लिये पुस्तक बता सकता हूँ | )


उन्होंने बताया कि प्राचीन भारतीय पाठ के द्वारा किसी भी ग्रह पर पुरुषों की एक टुकड़ी भेजी सकते थे | दस्तावेज़, जो हजारों साल पुराने माना जाता है उनके अनुसार पांडुलिपियों में भी रहस्य को प्रकट किया गया | स्वाभाविक रूप से, भारतीय वैज्ञानिकों ने ग्रंथों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया , लेकिन वे तब उन के मूल्य के बारे में अधिक सकारात्मक हो गये जब चीन ने घोषणा की , कि वे अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में अध्ययन के लिए डेटा के कुछ भागों रहे है | यह एक सरकार का विरोधी गुरुत्व शोध स्वीकारने का पहला उदाहरण था |

उड़न तश्तरी आकाश में उड़ती किसी अज्ञात उड़ती वस्तु (यूएफओ ) को कहा जाता है। इन अज्ञात उड़ती वस्तुओं का आकार किसी डिस्क या तश्तरी के समान होता है या ऐसा दिखाई देता है, जिस कारण इन्हें उड़न तश्तरीयों का नाम मिला। कई चश्मदीद गवाहों के अनुसार इन अज्ञात उड़ती वस्तुओं के बाहरी आवरण पर तेज़ प्रकाश होता है और ये या तो अकेले घुमते हैं या एक प्रकार से लयबद्ध होकर और इनमें बहुत गतिशीलता होती है। ये उड़न तश्तरीयाँ बहुत छोटे से लेकर बहुत विशाल आकार तक हो सकतीं हैं।"
उड़न तश्तरी शब्द १९४० के दशक में निर्मित किया गया था और ऐसी वस्तुओं को दर्शाने या बताने के लिए प्रयुक्त किया गया था जिनके उस दशक में बहुतायत में देखे जानें के मामले प्रकाश में आए। तब से लिकर अब तक इन अज्ञात वस्तुओं के रंग-रूप में बहुत परिवर्तन आया है लेकिन उड़न तश्तरी शब्द अभी भी प्रयोग में है और ऐसी उड़ती वस्तुओं के लिए प्रयुक्त होता है जो दिखनें में किसी तश्तरी जैसी दिखाई देती हैं और जिन्हें धरती की आवश्यकता नहीं होती।उड़न तश्तरीयों के अस्तित्व को आधिकारिक तौर पर दुनिया भर की अधिकांश सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन कुछ गवाह उड़न तश्तरीयों के देखे जाने का दावा करते हैं। इनके देखे जाने के बहुतेरे रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं। ऐसा माना जाता है की इन उड़ती वस्तुओं का संबंध परग्रही दुनिया से है क्योंकि इनके संचालन की असाधारण और प्रभावशाली क्षमता मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त किसी भी उपकरण से बिल्कुल मेल नहीं खाती, चाहे वह सैन्य उपकरण हों या नागरिक।यू॰एफ॰ओ उड़न तश्तरीयों को अन्य यू॰एफ॰ओ समझ लेना एक आम बात है। जैसे इरिडियम नक्षत्र की निचली घुमावदार कक्षाओं में घूमते कृत्रिम उपग्रह और पृथ्वी के चारों ओर तेज़ गती से चक्कर लगाते जीपीएस के उच्च घुमावदार परिसंचारी, जो अपने पैनलों द्वारा सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करते हैं जो विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस उत्सुकता के पीछे एक छोटा चमकदार बिन्दु है जो शाम से लेकर लगभग रात ८ से ९ बजे तक किसी के द्वारा भी देखा जा सकता है।१ जुलाई, १९३१ को न्यू जर्सी, अमेरिका में एक अभिकथित उड़न तश्तरी का खींचा गया छायाचित्र।
मानव इतिहास के प्राचीन काल से ही उड़न तश्तरीयों के देखे जाने के प्रतिवेदन हैं, लेकिन ये पिछले ५०-६० वर्षों में अधिक प्रकाश में आई हैं। इनके अध्ययन को यूफ़ोलॉजी कहा जाता है। ये वे लोग होते हैं जो इस प्रकार के घटनावृत की खोज करते हैं। अन्य वस्तुएं जिन्हें उड़न तश्तरी समझ लिया जाता है, वे हैं: आपातकालीन झंडे, मौसमी गुब्बारे, उल्काएं, चमकदार बादल इत्यादि।
अमेरिका के पेंसिलवेनिया राज्य में पीट्सबर्ग से ६४ किमी दूर दक्षिण पूर्व में केक्सबर्ग के जंगलों के उपर एक अज्ञात वस्तु बहुत देर तक मंडराती रही। जिसने इसे देखा वो देखता ही रह गया। लेकिन देखते देखते ये अज्ञात वस्तु आग की लपटों से घिर गई। फिर इसमें एक भयंकर विस्फोट हुआ। आसपास का क्षेत्र हिल उठा। इस घटना के तुरंत बाद इस क्षेत्र को घेर लिया गया। और किसी को भी वहीं जाने नहीं दिया गया। बाद में उड़न तश्तरी की बात सामने आई। हालांकि नासा ने इसे उल्का पिंड का नाम दिया।१९९१ में एलिटालिया विमान सेवा के एक यात्री विमान ने उड़न तश्तरी का दर्शन काफी समिप से किया था।बीबीसी के मुताबिक इटली के राष्ट्रीय अभिलेखागार की ओर से जारी रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों में इस बात का वर्णन दिया गया है।
रूस में तिकोने आकार की दूसरे ग्रह से आई एक उड़नतश्तरी के कारण रूसवासी हैरत में पड़ गए थे। डेली मेल के अनुसार, यह उड़नतश्तरी कथित तौर पर ९ दिसंबर, २००९ को दिखाई दी। इसी दिन नार्वे के आसमान में नीले रंग का वृत्ताकार प्रकाश देखा गया था लेकिन बाद में बताया गया कि यह रूस से प्रक्षेपित एक असफल रॉकेट था।
रूस के इतिहास में 1989 का साल काफी दिलचस्प रहा है। इस साल यहां कई बार यूएफओ देखे जाने की खबर मिली थी। सबसे पहले 14 अप्रैल के दिन चेरेपोवेस्क के इवान वेसेलोवा ने बहुत बड़ा यूएफओ देखने का दावा किया। फिर 6 जून के दिन कोनेंटसेवो में बहुत से बच्चों ने ऐसा दावा किया। 11 जून के दिन वोलागडा की एक महिला ने 17 मिनट तक उड़न तश्तरी देखने की बात कही। एक और मामले में करीब 500 लोगों ने ऐसा दावा किया। सबसे ज्यादा रोमांचक किस्सा 17 सितंबर 1989 का है। इस दिन वोरोनेज़ के एक पार्क में बच्चे खेल रहे थे। ऐसे में बहुत बड़ा लाल रंग का अंडाकार यान उतरा था। देखते ही देखते वहां बहुत से लोग जमा हो गए। कुछ देर बाद यान में से दो एलियन निकले। एक करीब 12 से 14 फीट लंबा था और उसकी तीन आंखें थीं। दूसरा रोबोट जैसा लग रहा था। बच्चे उसे देखकर चीखने लगे तो उसने एक बच्चे पर लाइट की बीम छोड़ी और बच्च लकवे जैसी स्थिति में पहुंच गया। उस जगह की रिसर्च करने पर वहां मिट्टी में रेडिएशन के निशान मिले। वहां फॉस्फोरस की मात्रा ज्यादा पाई गई। वैज्ञानिकों के अनुसार यूएफओ का वजन कई टन था।
तकरीबन 42 साल पहले अमेरिका के आकाश में एक ऐसी ही घटना घटी थी। अमेरिका का पेंसिलवेनिया राज्य पीट्सबर्ग से 40 मील दूर दक्षिण पूर्व में केक्सबर्ग के जंगलों के उपर एक अनजानी चीज काफी देर तक मंडराती रही। जिसने इसे देखा वो देखता ही रह गया। लेकिन देखते देखते ये अनजानी चीज आग की लपटों से घिर गई
फिर इसमें एक भयंकर विस्फोट हुआ। आसपास का इलाका हिल उठा। इस घटना के तुरंत बाद इस इलाके को घेर लिया गया। और किसी को भी वहीं जाने नहीं दिया गया।
किसी की कुछ समझ में नहीं आया कि वो चीज क्या थी। बाद में उड़न तश्तरी की थ्योरी सामने आई। लेकिन अमेरिकी सरकार इस पर चुप्पी साधे रही। बेशक अमेरिकी एयर फोर्स ने इसे उल्का पिंड करार दिया लेकिन लोगों को अमेरिकी एयर पोर्स की इस बात पर भरोसा नहीं हुआ।
क्योंकि जो लोग इस घटना के चश्मदीद थे उनका कहना था कि विस्फोट के बाद एक ट्रक से किसी बड़ी चीज को ढो कर ले जाया गया। जाहिर ये अल्का पिंड नहीं हो सकता। जरुर कुछ ऐसा था जिसे सरकार और नासा के वैज्ञानिक छिपाना चाहते थे।
जब सरकार इस पर लंबे वक्त तक चुप्पी साधी रही तो न्यूयार्क की एक पत्रकार लेजली केयन ने इस बारे में लोगों को और बताने के लिए चार साल पहले नासा पर मुकदमा कर दिया।
वैसे तो नासा ने कई दलीलें दी। लेकिन जज भी नासा की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने नासा की उस अपील को ठुकरा दिया जिसमें नासा ने इस केस को खत्म करने की गुहार की थी।
जबकि कहीं से कोई चारा नजर नहीं आया तो अब नासा ने मान लिया है कि वो इस मुद्दे पर और खोजबीन करेगा और सच्चाई को सबके सामने जाहिर कर दिया जाएगा। यानी अब उड़न तश्तरी की सच्चाई से पर्दा उठने ही वाला है।

इसके साथ ही हम आपको ये भी बता दें कि हाल ही में रुस ने प्राब्दा एजेंसी के हवाले से कहा था कि अमेरिका जब चांद पर पहुंचा तो उसका सामना वहां एलिएंस से हुआ था। प्राब्दा के हवाले से ये भी कहा गया था कि अमेरिका एलियंस और उड़नतश्तरी जैसे मामलों पर लगातार पर्दा डालता रहा है।एलिटालिया के एक यात्री विमान ने वर्ष 1991 में उड़न तश्तरी का दीदार काफी करीब से किया था।
बीबीसी के मुताबिक इटली के राष्ट्रीय अभिलेखागार की ओर से जारी रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों में इस बात का खुलासा किया गया है |
इसके मुताबिक केंट के समीप लिड में एलिटालिया के एक यात्री विमान के चालक ने जब आसमान में काफी करीब मिसाइल के आकार की कोई वस्तु बड़ी तेजी के साथ उड़ते देखी तो वह अपने सहचालक की ओर मुड़कर आश्चर्य से चिल्लाया-वह देखो कैसी अजीब-सी वस्तु आसमान में तैर रही है। उसे ऐसा लगा कि संभवतः यह कोई मिसाइल ही है, जो विमान से टकराने जा रही है।
विमान के पायलट की इस बात की उस समय रक्षा मंत्रालय और नागरिक विमान मंत्रालय की ओर से कोई जाँच नहीं की गई। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि विमान और हेलिकॉप्टर के चालकों को उस समय ऐसी किसी वस्तु की तस्वीर उतारने की सख्त मनाही थी।
शायद ऐसा इसलिए था कि सरकार और सेना इस मामले में गोपनीयता बनाए रख सके और उनसे यह न पूछा जाए कि आखिर ऐसे मामलों की जाँच क्यों नहीं की गई।
शेफ्लि हल्लाम विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ और पत्रकारिता के प्रोफेसर डेविड क्लार्क के मुताबिक अभिलेखागार की ओर से जो दस्तावेज जारी किए जा रहे हैं, उनसे उड़न तश्तरियों के बारे में काफी अहम जानकारी मिलेगी।

रूस में तिकोने आकार की दूसरे ग्रह से आई एक उड़नतश्तरी के कारण रूसवासी हैरत में पड़ गए और यू-ट्यूब पर सनसनी के तौर पर छाई हुई है।


एक कार से रात में बनाई गई और एक अन्य वीडियो की हालाँकि फिलहाल पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन इंटरनेट फोरम इस अनूठी घटना से पटे हुए हैं।


रूसी खबरों में इसके उड़नतश्तरी होने से इनकार किया गया है। पुलिस ने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।


डेली मेल के अनुसार, यह उड़नतश्तरी कथित तौर पर नौ दिसंबर को दिखाई दी। इसी दिन नार्वे के आसमान में नीले रंग का वृत्ताकार प्रकाश देखा गया था लेकिन बाद में बताया गया कि यह रूस से प्रक्षेपित एक असफल रॉकेट था।


इस बीच विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रूस की राजधानी में रेड स्क्वायर के उपर उड़ रही इस उड़नतश्तरी का वास्तव में अस्तित्व था, तो इसका आकार एक मील रहा होगा।
बीजिग.चीन में एक हवाई अड्डे पर उड़न तश्तरी (यूएफओ) दिखने के कारण हवाई यातायात करीब एक घंटे तक बाधित रहा। यह बात गुरुवार को मीडिया की खबरों में कही गई। समाचार पत्र 'शंघाई डेली' के अनुसार उड़नतश्तरी चोंगकिंग नगरपालिका क्षेत्र स्थित जियांगबेई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के ऊपर दिखाई दी।


समाचार पत्र के अनुसार 12.30 बजे दोपहर से एक घंटे लिए हवाई यातायात ठप्प रहा।चोंगकिंग के अधिकारियों ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।


हवाई अड्डा के अधिकारियों के अनुसार यह 'आकाशीय लालटेन' या 'बड़ा गुब्बारा' हो सकता है। चीन में खुशकिस्मती के लिए पूजा में 'आकाशीय लालटेन' का प्रयोग किया जाता है |
एविएशन जर्नल डेली रिकॉर्ड के एडीटर और पायलट जॉन एच जेनसीन ने 10 जुलाई 1947 को न्यूजर्सी के मरिस्टोन एयरपोर्ट से उड़ान के दौरान 6 चमकदार गोलाकार क्राफ्ट को उड़ते हुए देखा।उन्होंने अपने कैमरे से इसे कैद किया। पिक्चर की गुणवत्ता सही न होने के कारण बाद में ये सवाल उठाए गए कि वे छह क्राफ्ट थे या एक ही क्राफ्ट था, जिसमें छह लाइट जल रहीं थीं। दूसरी बार उन्होंने यूएफओ को 23 जुलाई को देखा, जो उनके जहाज के ठीक ऊपर था। इस दौरान उनके प्लेन का स्पीडोमीटर क् स्पीड दिखा रहा था।इसके अलावा सेवानिवृत्त अमेरिकी सैन्य अधिकारी कर्नल फिलिप जे कार्सो ने दावा किया कि उन्होंने 1947 में रूसवेल मलबे से मृत एलियन को बरामद किया। उन्होंने प्रसिद्ध न्यू मैक्सिको क्रैश की पूरी जानकारी दी। उन्होंने दावा किया कि न्यू मैक्सिको में मिला मलबा किसी गुब्बारे का नहीं है।यह एक अंतरिक्षयान है। कार्सो के दावे के बारे में जानकारी उनकी किताब ‘द डे ऑफ्टर रूसवेल’ से मिलती है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस घटना को इसलिए दबा दिया गया क्योंकि वे इसे छुपाना चाहते थे।
इंग्लैंड के वेस्ट ससेक्स के जंगलों को क्लैपहैम वुड कहा जाता है। इस इलाके के साथ कई रहस्यमयी घटनाएं जुड़ी हुई हैं। यहां कई बार विचित्र चीजें देखी गईं, कई लोगों को अजीब-सा अहसास हुआ, कई बार जानवर गायब हो गए या फिर अनोखी बीमारी के शिकार हुए। इसी तरह बहुत से लोगों की मौत का कारण भी समझा नहीं जा सका।1960 के बाद से यहां कई बार यूएफओ देखे जाने की बात भी कही गई। कई लोगों का कहना था कि किसी अनदेखी ताकत ने उन्हें धक्का दिया। जंगलों से गुजरने वाले इन रास्तों पर अचानक ग्रे रंग की धुंध छा जाती थी। कई लोगों ने महसूस किया कि कोई अनदेखी ताकत उनका पीछा कर रही है।इस इलाके में जंगल काफी घना है इसलिए रिसर्च करना भी आसान नहीं था। रिसर्च से पता चला कि यहां एक तरह का रेडिएशन है। ये आश्चर्य की बात थी क्योंकि ये इलाका खड़िया मिट्टी वाला है। ऐसे इलाकों में पोटैशियम 40 का लेवल कम होता है, इसलिए रेडिएशन नहीं होना चाहिए।इस इलाके में चार लोगों की मौत होने के बाद यह विवादों में घिर गया था। पहला मामला जून 1972 का है। एक पुलिस अफसर पीटर गोल्डस्मिथ यहां से गायब हो गया था। उसका शरीर छह महीने बाद जंगलों में मिला था। दूसरे केस में लियॉन फॉस्टर का शरीर अगस्त 1975 में मिला। तीसरे में हैरी नील की जान गई और चौथे केस में क्लैपहैम के पूर्व वाइसर का शव तीन साल बाद मिला। बहुत से जानवर भी यहां से गायब हो गए थे।कुछ जानवर काफी समय बाद वापस मिले तो उनमें अजीब-सी बीमारी देखी गई। 1987 में इस पर द डेमोनिक कनेक्शन किताब लिखी गई थी। इसी साल यहां भयानक तूफान आया था। इस सब के पीछे क्या था, यह आज तक कोई नहीं समझ सका।राज है गहराइंग्लैंड के क्लैपहैम वुड जंगलों में अब तक कई लोगों की जानें गईं, कई जानवर गायब हुए, लोगों को कई रहस्यमयी अनुभव हुए और यूएफओ देखे जाने के दावे भी किए गए। फिर भी वहां क्या होता है, यह आज तक राज ही है।

वैज्ञानिक सोलर सिस्टम में एककोशकीय जीवों के सबूतों की खोज के लिए मंगल और चंद्रमा की सतह का अध्ययन कर रहे हैं। बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा में भी जीवन की खोज के लिए एक अभियान शुरु करने का प्रस्ताव है। यहां सतह के नीचे जल के होने की संभावना है, जहां जीवन हो सकता है। इस बात के भी थोड़े सबूत हैं कि मंगल ग्रह पर सूक्ष्म जीव हैं। हालांकि, फरवरी २क्क्५ में नासा के दो वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उन्होंने मंगल ग्रह पर जीवन के मजबूत सबूत पाए हैं।

इंग्लैंड के वेस्ट ससेक्स के जंगलों को क्लैपहैम वुड कहा जाता है। इस इलाके के साथ कई रहस्यमयी घटनाएं जुड़ी हुई हैं। यहां कई बार विचित्र चीजें देखी गईं, कई लोगों को अजीब-सा अहसास हुआ, कई बार जानवर गायब हो गए या फिर अनोखी बीमारी के शिकार हुए। इसी तरह बहुत से लोगों की मौत का कारण भी समझा नहीं जा सका।1960 के बाद से यहां कई बार यूएफओ देखे जाने की बात भी कही गई। कई लोगों का कहना था कि किसी अनदेखी ताकत ने उन्हें धक्का दिया। जंगलों से गुजरने वाले इन रास्तों पर अचानक ग्रे रंग की धुंध छा जाती थी। कई लोगों ने महसूस किया कि कोई अनदेखी ताकत उनका पीछा कर रही है।इस इलाके में जंगल काफी घना है इसलिए रिसर्च करना भी आसान नहीं था। रिसर्च से पता चला कि यहां एक तरह का रेडिएशन है। ये आश्चर्य की बात थी क्योंकि ये इलाका खड़िया मिट्टी वाला है। ऐसे इलाकों में पोटैशियम 40 का लेवल कम होता है, इसलिए रेडिएशन नहीं होना चाहिए।इस इलाके में चार लोगों की मौत होने के बाद यह विवादों में घिर गया था। पहला मामला जून 1972 का है। एक पुलिस अफसर पीटर गोल्डस्मिथ यहां से गायब हो गया था। उसका शरीर छह महीने बाद जंगलों में मिला था। दूसरे केस में लियॉन फॉस्टर का शरीर अगस्त 1975 में मिला। तीसरे में हैरी नील की जान गई और चौथे केस में क्लैपहैम के पूर्व वाइसर का शव तीन साल बाद मिला। बहुत से जानवर भी यहां से गायब हो गए थे।कुछ जानवर काफी समय बाद वापस मिले तो उनमें अजीब-सी बीमारी देखी गई। 1987 में इस पर द डेमोनिक कनेक्शन किताब लिखी गई थी। इसी साल यहां भयानक तूफान आया था। इस सब के पीछे क्या था, यह आज तक कोई नहीं समझ सका।राज है गहराइंग्लैंड के क्लैपहैम वुड जंगलों में अब तक कई लोगों की जानें गईं, कई जानवर गायब हुए, लोगों को कई रहस्यमयी अनुभव हुए और यूएफओ देखे जाने के दावे भी किए गए। फिर भी वहां क्या होता है, यह आज तक राज ही है।

कहते हैं मनुष्य की जिज्ञासा का कोई अंत नहीं है | इसे जितना दबाओ यह उतना ही अपने पंख फैलाने लगती है | यही वजह है कि पृथ्वी से बहुत दूर और अलग-थलग रहने वाला मंगल ग्रह हमेशा से ही पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के लिए जिज्ञासा और रोमांच का केंद्र रहा है | एलियन से जुड़ी अफवाहें हों या मंगल पर जीवन होने जैसा मुद्दा, वैज्ञानिकों से लेकर आम जन तक लगभग सभी के लिए लाल रंग का यह ग्रह एक रोमांचक पहेली बन गया है जिसे सुलझाने के लिए पिछले काफी समय से कोशिशें की जा रही हैं | आम जनता के लिए भले ही यह दिलचस्प मसला हो लेकिन वैज्ञानिकों के लिए मंगल ग्रह और इससे जुड़े रहस्य अब चुनौती बन गए हैं, जिसका सामना उन्हें यदा-कदा करना ही होता आखिर मंगल ग्रह की सच्चाई है क्या? क्या वाकई यहां जीवन मुमकिन है? जिस प्रकार पृथ्वी पर इंसान रहते हैं क्या उसी प्रकार मंगल ग्रह पर भी एलियन वास करते हैं, जो समय-समय पर धरती का चक्कर लगाते रहते हैं? ऐसे ही कई सवाल हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना मानव के लिए चुनौती बन गया है | यूं तो थोड़े अंतराल के बीच देशी और अंतरराष्ट्रीय स्पेस संस्थाओं द्वारा मंगल पर उपग्रह भेजे जाते रहे हैं लेकिन हाल ही में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने अपना अत्याधिक हाइटेक मार्स रोवर क्यूरियोसिटी मंगल की सतह पर सफलतापूर्वक पर उतारा है जिसके बाद यह उम्मीद लगाई जा सकती है कि अब शायद मंगल की हकीकत ज्यादा दिन तक छिपी नहीं रह सकती भूवैज्ञानिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मंगल ग्रह को विभिन्न अवधियों में विभाजित किया जा सकता है | आज से 4.5 अरब वर्ष पूर्व से लेकर 3.5 अरब वर्ष पूर्व तक की एक अवधि है जिसेनोएचियन काल के नाम से जाना जाता है, इनमें सबसे अधिक प्रमुख है | वैज्ञानिकों के अनुसार इस दौरान मंगल की सबसे पुरानी सतह का गठन हुआ था | दूसरा है हेस्पेरियन काल, जो 3.5 अरब वर्ष पूर्व से लेकर 2.9-3.3 अरब वर्ष पूर्व तक की अवधि है | इस काल में व्यापक तौर पर लावा मैदानों का गठन हुआ था | तीसरे स्थान पर है अमेजोनियन युग, जो 2.9-3.3 अरब वर्ष पूर्व से वर्तमान तक की अवधि को कहा जाता है | सौरमंडल का सबसे बड़ा पर्वत ओलंपस मोन्स इसी दौरान बना था | sabhar : http://hariyanainfo.com/


ब्लैक होल में रहते हैं एलियन

हालाँकि यह दूर की कौड़ी लगती है लेकिन इस बात की संभावना है कि एलियन कुछेक ब्लैक होल के भीतर मौजूद ग्रहों में रह रहे हों।

डेली मेल के अनुसार, रशियन अकादमी साइंसेंज के प्रोफेसर व्याचेस्लाव दोकुचाएव के अनुसार, कुछ ब्लैक होल की जटिल आंतरिक संरचना होती है जिसके कारण फोटोन, कण और ग्रह एक ‘केन्द्रीय एकलता’ में घूमने लगते हैं। यह ब्लैक होल का वह क्षेत्र है जहाँ समय और काल अनंत हो जाता है।

प्रो. दोकुचाएव ने कहा, हालाँकि कुछेक ब्लैक होल के केन्द्र पर और उपयुक्त परिस्थितियों के तहत एक ऐसा क्षेत्र भी होता है जहाँ समय और काल का तंतु मौजूद होता है।

उन्होंने दावा किया कि यदि कोई आवेशित और घूर्णन करता ब्लैक होल काफी बड़ा है तो तो यह उन ताकतों को कमजोर कर सकती है जो उस बिन्दु के परे हैं जहाँ ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण से कुछ भी, यहाँ तक कि प्रकाश भी, बाहर नहीं निकल सकता। (भाषा)

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