टोपी से तैयार कीजिए धुन

ब्रेन म्यूज़िक

शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के दौरान मैं ख़ाली पन्ने को घूरती रहती और उम्मीद करती कि कोई शॉर्टकट हो जिससे मैं "सोच" कर संगीत को पेज पर उतार सकूँ.
अब मैं कंप्यूटर पर संगीत तैयार करती हूं और पिक्सल्स के ऊपर पेंसिल घुमाती रहती हूं.

तो प्लीमथ विश्वविद्यालय में एक लैपटॉप को घूरते हुए मैं एक ऐसी तकनीक की जांच करने जा रही हूं जो मेरे संगीत के सपने को हक़ीक़त बनाने का वादा करता है.लेकिन मैं हमेशी ही सोचती थी कि एक दिन मैं सीधे अपने दिमाग से अपने संगीतमय विचारों को रिकॉर्ड कर पाउंगी.
यह परियोजना प्रोफ़ेसर एडुआर्डो मिरांडा के दिमाग़ की उपज है. वह एक संगीतकार हैं जिनकी जीविका का साधन संगीत न्यूरोटेक्नॉलॉजी है.

दिमाग से कंप्यूटर में

एक ब्रेन कैप के माध्यम से उनका उपकरण दिमाग में चल रहे विचारों को पढ़ता है और उन्हें संगीत में बदल देता है.
उनकी योजना चार लोगों के दिमाग से विचार लेकर उन्हें एक साथ पिरोने की है. इसी के आधार पर उनकी नवीनतम संगीत रचना तैयार होगी - जिसका नाम, एक्टिवेटिंग मेमोरी है.
इस संगीत रचना को इसी हफ़्ते के अंत में प्लीमथ में होने वाले साल 2014 पेनिसुला आर्ट्स कंटप्रेरी म्यूज़िक फ़ेस्टिवल में पेश किया जाएगा.
वह मुझे भी अपनी मशीन का इस्तेमाल करने देने को तैयार हो गए और मैं इसके लिए उत्सुक थी.
शोधकर्ता और अभियंता जोएल ईटोन ने मुझे ब्रेन कैप पहनने में मदद की जिसमें से तार और एलेक्ट्रॉड्स निकल रहे थे. उन्होंने मुझे समझाया कि न्यूरोटेक्नॉलॉजी कैसे काम करती है.
जोएल ने मुझे बताया कि दिमाग के पीछे लगा मुख्य इलेक्ट्रॉड मेरे विज़ुअल कॉरटेक्स से दिमाग की तरंगों को चुनेगा जबकि अन्य इलेक्ट्रॉड्स पीछे के शोर को कम करने में मदद करेंगे.
इस उपकरण के काम करने के लिए उपयोगकर्ता को चार रंग बिरंगे आकारों में से किसी एक पर ध्यान केंद्रित करना होता है. यह सब अलग-अलग गति से टिमटिमाते हैं और हर आकार से विद्युत तरंग पैदा होती है.
इस सिग्नल को ब्रेन कैप पकड़ लेता है और कंप्यूटर में भेज देता है. यह उपकरण सही ढंग से तभी काम करता है जब बाक़ी का दिमाग शांत हो. इसलिए लोगों से कहा जाता है कि "दिमाग़ को शांत रखें."
दिमाग़ के इलेक्ट्रिक सिग्नलों को बढ़ाया जाता है और फिर लैपटॉप में डाला जाता है.
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जोएल मुझे उत्साहित करते हैं कि मैं आकार को एक ख़ास ढंग से घूरूं - ध्यान केंद्रित और विकेंद्रित करने की तरह. कई बार मुझे स्क्रीन से नज़र हटाकर, फिर वापस देखना होता है - ताकि दिमाग़ ताज़ा हो जाए.
आप इसे सही ढंग से समझ गए तो चयनित आकार जेन के सामने रखी स्क्रीन पर एक संगीत का टुकड़ा भेज देता है. जेन एक व्यावसायिक सेलोवादक हैं, जो उसके बाद मेरे द्वारा भेजे गए संगीत के टुकड़े को बजाती हैं.
शुरू-शुरू में तो यह बहुत मुश्किल था - ध्यान केंद्रित करना, विकेंद्रित करना और आराम करना. जब यह हो गया तो मैं बहुत उत्साहित नहीं हो सकती थी क्योंकि यह मेरे दिमाग़ को सिग्नल पैदा करने की स्थिति से बाहर कर देता.
यह बहुत मुश्किल काम था क्योंकि मुझे यह सारा विचार ही बहुत उत्साहजनक लग रहा था.

अन्य फ़ायदे

यकीनन मैं चाहती थी कि यह सिस्टम सीधे मेरे दिमाग से ही संगीत तैयार कर देता लेकिन ऐसा नहीं था.
सीधे धुन बनाने के बजाय यह पूर्व-निर्मित धुनों में से ही एक चुनता है. आप कह सकते हैं मैं धुन बनाने के बजाए उसे बजाने वाली थी, जहां मेरा दिमाग जेन के सेलो की तरह एक उपकरण बन गया था. लेकिन यह उपकरण इसी काम के लिए तैयार किया गया था.
जब मैंने प्रोफ़ेसर मिरांडा से सीधे धुन बनाने की अपनी इच्छा के बारे में बात की तो उनका कहना था कि शुरुआत में यह बहुत अच्छा लग सकता है लेकिन उन्हें लगता है कि कुछ समय बाद यह उकताहट भरा हो जाएगा.
वह चार चार लोगों के दिमाग से विचार लेंगी और फिर उन्हें मिलाकर संगीत तैयार करेंगी. उन्हें अपूर्ण समाधान की चुनौतियां पसंद हैं.
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वह कहते हैं, "इंसान चीजों में हेर-फेर करना पसंद करते हैं - मैं इसे ख़त्म नहीं करना चाहता, मैं संगीतकारों के लिए ज़्यादा परिष्कृत उपकरण बनाना चाहता हूं."
जिन लोगों को चलने-फिरने में दिक्क़त होती है उन लोगों को इस उपकरण से काफ़ी फ़ायदे हैं, इस शुरुआती स्तर पर भी.
कंप्यूटर संगीत शोध के बहुविषयक केंद्र (आईसीसीएमआर) में लॉक्ड-इन सिंड्रॉम (ऐसी समस्या जिसमें मरीज़ होश में रहते हुए भी आंखों के सिवा कोई और अंग नहीं हिला पाता) के मरीज़ों के साथ किए गए प्रयोग में उत्सावहवर्धक नतीजे सामने आए हैं.
फिर भी मेरी उम्मीद के विपरीत इसके आम-आदमी के इस्तेमाल में आने की बात अभी दूर है.
उधर प्रयोगशाला में इस तकनीक पर महारथ हासिल करना बेहद मुश्किल नज़र आ रहा थ. इस प्रक्रिया के दौरान मेरे दिमागी तरंगे तब उल्लेखनीय रूप से कम हो गईं जब सेलो बज रहा था.
दो घंटे की मुश्किल के बाद मैं ठीक ढंग से तरंगें पैदा करने में कामयाब हो गई. जोएल और एडुआर्डो दोनों ने मुझे बताया कि दो घंटे का समय कम है - अक्सर इसमें कुछ दिन लग जाते हैं.
तमाम चुनौतियों और सीमाओं के बावजूद मौजूदा दिमाग-कंप्यूटर-संगीत इंटरफ़ेस से अपने दिमाग के भीतर झांकना मुझे बेहद आदी करने वाला लगा. और मैं यकीनन इस तकनीक के विकास पर नज़र रखूंगी.
हालांकि इतना ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने से हुई थकान के बावजूद मैं ख़ुशी-ख़ुशी कई घंटे और स्क्रीन को घूर सकती हूं.

लेकिन संगीतकारों का खाना तैयार था और उन्हें निकलना था इसलिए मैंने अपनी ब्रेन कैप निकाली और चल दी वापस पुराने ढंग से धुन तैयार करने के लिए. sabhar :http://www.bbc.co.uk/

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