कृत्रिम हाथ असली अंग जैसा अहसास


यह पहली बार हुआ है जब किसी विकलांग को नकली हाथ में संवेदना का एहसास हुआ है"
प्रोफ़ेसर सिल्वेस्त्रो मिकेरा
इटली में डेनमार्क के एक व्यक्ति को सर्जरी के बाद ऐसा हाथ लगाया गया है जो उसकी बाजू के ऊपरी हिस्से की नसों से जुड़ा है.
प्रयोगशाला में हुए परीक्षण में उन्हें आंख पर पट्टी बांधकर चीजें थमाई गईं और इस हाथ की मदद से वह इन चीजों के आकार और कड़ेपन को जानने में सफल रहे.डेनिस आबो ने एक दशक पहले आतिशबाज़ी में अपना हाथ गंवा दिया था. उन्होंने इस बायोनिक हाथ को 'अद्भुत' बताया है.
इस बारे में साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है.
एक अंतरराष्ट्रीय दल ने इस शोध परियोजना में हिस्सा लिया था, जिसमें इटली, स्विटरज़रलैंड और जर्मनी के रोबोटिक्स विशेषज्ञ शामिल थे.

परियोजना

"इकोल पॉलीटेक्नीक फ़ेडेरेल डी लुसाने और स्कूओला सुपीरिओर सेंट अन्ना, पीसा के प्रोफ़ेसर सिल्वेस्त्रो मिकेरा ने कहा, "यह पहली बार हुआ है जब किसी विकलांग को नकली हाथ में संवेदना का अहसास हुआ है."स बायोनिक हाथ में न केवल एडवांस वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है बल्कि ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेयर लगाए गए हैं जो मस्तिष्क को संदेश भेजते हैं.
मिकेरा और उनकी टीम ने इस कृत्रिम हाथ में ऐसे संवेदक लगाए जो किसी चीज को छूने पर उसके बारे में सूचना देते हैं.
कम्प्यूटर एल्गोरिदम के इस्तेमाल से वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रिकल संकेतों को एक ऐसी उत्तेजना में बदला जिसे संवेदी तंत्रिकाएं समझ सकें.
रोम में ऑपरेशन के दौरान मरीज़ के बाजू के ऊपरी हिस्से की तंत्रिकाओं में चार इलेक्ट्रोड जोड़े गए. ये इलेक्ट्रोड कृत्रिम हाथ की उंगलियों के संवेदकों से जुड़े थे जो छूने और दवाब के फीडबैक को सीधे मस्तिष्क को भेजते हैं.

प्रयोगशाला

कृत्रिम हाथ
36 साल के आबो ने एक महीने प्रयोगशाला में बिताए. प्रयोगशाला में पहले तो इस बात की जाँच की गई कि इलेक्ट्रोड काम कर रहे हैं या नहीं. फिर यह देखा गया कि ये बायोनिक हाथ से पूरी तरह जुड़े हैं या नहीं.
उन्होंने कहा, "मज़ेदार बात यह है कि इसके सहारे मैं मुझे बिना देखे ही छूने से चीज़ों का अहसास हो जाता है. मैं अंधेरे में भी इसका इस्तेमाल कर सकता हूं."
यह बायोनिक हाथ अभी शुरुआती चरण में है और सुरक्षा कारणों से आबो का एक और ऑपरेशन करना पड़ा ताकि संवेदकों को हटाया जा सके.
बायोनिक हाथ को विकसित करने वाली टीम अब इस प्रयास में जुटी है कि इसे छोटा कैसे बनाया जाए ताकि इसे घर में इस्तेमाल किया जा सके.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस हाथ के व्यावसायिक इस्तेमाल में एक दशक तक का समय लग सकता है. उनका कहना है कि इससे भविष्य में कृत्रिम अंगों का रास्ता साफ़ होगा जो वस्तुओं और तापमान का पता बता सकेंगे.

बहरहाल आबो को उनका पुराना कृत्रिम हाथ मिल गया है और वह भविष्य में इसे बायोनिक हाथ से बदलने को तैयार हैं. sabhar :http://www.bbc.co.uk/

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