Poverty In India: भारत में गरीबी तेजी से घट रही है, तो क्या सब अमीर हो रहे हैं? आंकड़े देख लीजिए

Poverty In India: भारत में गरीबी तेजी से घट रही है, तो क्या सब अमीर हो रहे हैं? आंकड़े देख लीजिए
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में गरीबी घटने की रफ्तार उत्साहजनक है। हालांकि, कुछ वर्षों में यह रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ी है। कोविड भी एक इसका बड़ा कारण हो सकता है। इस मोर्च पर हम अपने पड़ोसी देशों में चीन और श्रीलंका के बाद तीसरे स्थान पर हैं।
दिल्ली: गरीब सिर्फ वह नहीं होता जिसकी आमदनी बहुत कम होती है बल्कि इसका संबंध रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ शिक्षा की उपलब्धता से भी है। भारत में वर्ष 2005-06 और 2015-16 के बीच गरीब आबादी को ये सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में बेशक प्रगति की, लेकिन उसके बाद से इस तरह बढ़ रहे कदम की रफ्तार धीमी हो गई। इसके पीछे कई वजहे हैं। हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) के अतुल ठाकुर बता रहे हैं देश में गरीबी और नौकरी का हाल...

भारत में बहुआयामी गरीबी
देश अपने यहां गरीबों की गिनती लोगों की आय के आधार पर करता है। वो यह तय करते हैं कि बेसिक कैलरी लेवल का खाना जुटाने के लिए औसतन कितनी आमदनी की जरूरत होती है। उसी के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण कर दिया जाता है। इस स्तर से कम कमाने वाला हर व्यक्ति गरीब है। गरीबी रेखा निर्धारण के इस पैमाने में एक खामी है। वो यह कि वह गरीबी के अन्य आयामों को नजरअंदाज कर देता है। उदाहरण के लिए, एक तरफ बेघर व्यक्ति और दूसरी तरफ वो जिसके पास बिजली कनेक्शन वाला हवादार मकान हो, दोनों ही आमदनी के आधार पर गरीबी रेखा से नीचे हो सकते हैं, लेकिन सच्चाई में बेघर व्यक्ति की हालत मकान वाले के मुकाबले बदतर है।

यूएनडीपी का वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index या MPI) आय के अलावा गरीबी के अन्य पहलुओं पर भी गौर करता है। इसके सबसे हालिया संस्करण में भारत के बारे में चिंताजनक नतीजे दिए हैं। इसमें कहा गया है कि भले ही वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच बहुआयामी गरीबी (Multidimensional Poverty यानी MDP) 2.7 प्रतिशत अंक (पर्सेंटेज पॉइंट या पीपी) प्रति वर्ष की औसत दर से गिरी, लेकिन वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच आंकड़ा 2.3 प्रतिशत अंक रह गया। आंकड़े में यह गिरावट इसलिए संभव है कि बाकी गरीब परिवार दूरदराज या सबसे गरीब इलाकों में स्थित हैं। साथ ही, 2019-21 की अवधि में वैश्विक महामारी कोविड का भी असर रहा है।

यूं तो नीति आयोग और यूएनडीपी, दोनों अपनी रिपोर्ट में बहुआयामी गरीबी की गणना करने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों का उपयोग करते हैं, लेकिन दोनों के गणना का सिस्टम अलग है। यही वजह है कि दोनों की रिपोर्ट में गरीबी को लेकर अलग-अलग आंकड़े हैं। नीति आयोग का अनुमान है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच 13.5 करोड़ लोग एमडीपी से बच गए जबकि यूएनडीपी ने इसे 14 करोड़ बताया है।

कुल मिलाकर, 15 वर्षों में तेजी से कमी
2005-06 में 55% से थोड़ा अधिक भारतीयों को बहुआयामी रूप से गरीब माना गया था। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, यह अनुपात 2015-16 में घटकर 27.7 प्रतिशत और 2019-21 में 16.4 प्रतिशत रह गया।

* 2015-16 और 2019-21 के बीच गिरावट की धीमी दर के बावजूद जनसंख्या वृद्धि के कारण 2005-06 और 2015-16 के बीच के वर्षों की तुलना में इस अवधि के दौरान सालाना अधिक लोग बहुआयामी गरीबी (एमडीपी) से बच गए।

गरीबी के आयाम : स्वास्थ्य
इस आयाम में पोषण और बाल मृत्यु दर शामिल हैं। इस पैमाने में यदि किसी परिवार में अविकसित (उम्र के लिहाज से कम शारीरिक आकार का) या कम वजन वाला बच्चा, या फिर कम बॉडी मास इंडेक्स (BMI) वाला वयस्क है तो उस परिवार को गरीब माना जाता है। इसी तरह, जिस परिवार में सर्वे से पहले पांच वर्षों के भीतर किसी बच्चे की मृत्यु हो गई है, उसे भी गरीब ही माना जाता है।

आंकड़ों के मुताबिक, 2005-06 में 44.3% भारतीय परिवार उचित पोषण से वंचित थे। 2015-16 में कुपोषण की दर 21.1 प्रतिशत थी जो 2019-21 में 11.8 प्रतिशत तक गिर गई। 2005-06 और 2015-16 के बीच गिरावट की औसत दर 2.3 पीपी प्रति वर्ष और अगले पांच वर्षों में 1.9 पीपी थी। बाल मृत्यु दर 2005-06 में 4.5% से गिरकर 2015-16 में 2.2% और 2019-21 में 1.5% हो गई।


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