शराब को हाथ तक नहीं लगाया फिर भी 38% भारतीय इस बीमारी के शिकार, चौंका देगी AIIMS की रिपोर्ट

 

Sat. Jul 29th, 2023 01:22:08

vartatv

शराब को हाथ तक नहीं लगाया फिर भी 38% भारतीय इस बीमारी के शिकार, चौंका देगी AIIMS की रिपोर्ट

SRN Info Soft Technology

BySRN Info Soft Technology

 JUL 29, 2023
राष्ट्रीय राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 38 फीसदी लोग गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत (फैटी लीवर) की बीमारी से पीड़ित हैं. यानी यह बीमारी उन लोगों को होती है जो मदिरा का उपयोग नहीं करते या न के बराबर करते हैं. यह बीमारी केवल वयस्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे करीब 35 फीसदी बच्चे भी प्रभावित हैं. इस रिपोर्ट में भारत में गैर-अल्कोहलिक ‘फैटी लीवर’ रोग पर प्रकाशित विभिन्न रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया है. यह अध्ययन रिपोर्ट जून, 2022 में ‘जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी’ में प्रकाशित हुई. गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत रोग (एनएएफएलडी) अकसर पकड़ में नहीं आता क्योंकि शुरुआती चरण में इसके लक्षण नहीं दिखते, लेकिन कुछ मरीजों में यह यकृत के गंभीर रोग के रूप में दिख सकता है. उदर रोग विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप सराया ने कहा, ‘‘वसायुक्त यकृत या ‘स्टीटोहेपेटाइटिस’ का कारण हमारे आहार का हालिया पश्चिमीकरण है जिसमें फास्ट फूड का बढ़ता सेवन, स्वास्थ्यवर्धक फलों और सब्जियों का कम सेवन और एक अस्वास्थ्यकर तथा गतिहीन जीवन शैली शामिल है.’’ उन्होंने कहा कि ‘फैटी लीवर’ के उपचार के लिए वर्तमान में कोई अनुमोदित दवा नहीं है, लेकिन बीमारी को ठीक किया जा सकता है. सराया ने कहा, ‘‘इस बीमारी को हराने का केवल एक तरीका है कि हम स्वास्थ्यवर्धक जीवन शैली अपनाएं और मोटापे से पीड़ित लोगों को पर्याप्त आहार मुहैया कराते हुए उनका वजन घटाएं.’’ विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में वसायुक्त यकृत का एक आम कारण मदिरा का सेवन है. डॉ. सराया ने कहा, ‘‘यकृत की गंभीर क्षति के अधिकतर मामले शराब के कारण होते हैं. 'एक्यूट क्रॉनिक लीवर फेल्योर' के ऐसे मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है, तो इनमें मृत्यु दर अधिक होती है.’’ उन्होंने कहा कि जो चीज इस मामले को बदतर बनाती है, वह है इस बीमारी से ठीक हुए रोगियों के दोबारा इस बीमारी से पीड़ित होने की उच्च दर. उन्होंने कहा कि अल्कोहलिक हेपेटाइटिस के इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा उपलब्ध नहीं है. सराया ने कहा कि इस घातक बीमारी से बचने का एकमात्र तरीका शराब के सेवन से बचना है क्योंकि कोई भी शराब यकृत के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि तपेदिक के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं, एंटीबॉयोटिक, एंटीपाइलेप्टिक दवाओं और कीमोथेरेपी से भी यकृत को नुकसान पहुंचता है. तपेदिक रोधी दवा से संबंधित ‘तीव्र यकृत विफलता’ वाले रोगियों में 67 प्रतिशत की मौत हो जाती है.

राष्ट्रीय राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 38 फीसदी लोग गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत (फैटी लीवर) की बीमारी से पीड़ित हैं. यानी यह बीमारी उन लोगों को होती है जो मदिरा का उपयोग नहीं करते या न के बराबर करते हैं.

यह बीमारी केवल वयस्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे करीब 35 फीसदी बच्चे भी प्रभावित हैं. इस रिपोर्ट में भारत में गैर-अल्कोहलिक ‘फैटी लीवर’ रोग पर प्रकाशित विभिन्न रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया है. यह अध्ययन रिपोर्ट जून, 2022 में ‘जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी’ में प्रकाशित हुई.

गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत रोग (एनएएफएलडी) अकसर पकड़ में नहीं आता क्योंकि शुरुआती चरण में इसके लक्षण नहीं दिखते, लेकिन कुछ मरीजों में यह यकृत के गंभीर रोग के रूप में दिख सकता है. उदर रोग विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप सराया ने कहा, ‘‘वसायुक्त यकृत या ‘स्टीटोहेपेटाइटिस’ का कारण हमारे आहार का हालिया पश्चिमीकरण है जिसमें फास्ट फूड का बढ़ता सेवन, स्वास्थ्यवर्धक फलों और सब्जियों का कम सेवन और एक अस्वास्थ्यकर तथा गतिहीन जीवन शैली शामिल है.’’

उन्होंने कहा कि ‘फैटी लीवर’ के उपचार के लिए वर्तमान में कोई अनुमोदित दवा नहीं है, लेकिन बीमारी को ठीक किया जा सकता है. सराया ने कहा, ‘‘इस बीमारी को हराने का केवल एक तरीका है कि हम स्वास्थ्यवर्धक जीवन शैली अपनाएं और मोटापे से पीड़ित लोगों को पर्याप्त आहार मुहैया कराते हुए उनका वजन घटाएं.’’

विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में वसायुक्त यकृत का एक आम कारण मदिरा का सेवन है. डॉ. सराया ने कहा, ‘‘यकृत की गंभीर क्षति के अधिकतर मामले शराब के कारण होते हैं. ‘एक्यूट क्रॉनिक लीवर फेल्योर’ के ऐसे मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है, तो इनमें मृत्यु दर अधिक होती है.’’ उन्होंने कहा कि जो चीज इस मामले को बदतर बनाती है, वह है इस बीमारी से ठीक हुए रोगियों के दोबारा इस बीमारी से पीड़ित होने की उच्च दर. उन्होंने कहा कि अल्कोहलिक हेपेटाइटिस के इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा उपलब्ध नहीं है.

सराया ने कहा कि इस घातक बीमारी से बचने का एकमात्र तरीका शराब के सेवन से बचना है क्योंकि कोई भी शराब यकृत के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि तपेदिक के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं, एंटीबॉयोटिक, एंटीपाइलेप्टिक दवाओं और कीमोथेरेपी से भी यकृत को नुकसान पहुंचता है. तपेदिक रोधी दवा से संबंधित ‘तीव्र यकृत विफलता’ वाले रोगियों में 67 प्रतिशत की मौत हो जाती है.

Post navigation

By SRN Info Soft Technology

News Post Agency Call- 9411668535 www.srninfosoft.com

RELATED POST

Rahul Gandhi की शादी कराइए, उसके लिए लड़की ढूंढिए’, सोनिया गांधी ने किससे कही ये बात?

HRA से लोगों को होगा फायदा, ITR में बचेगा पैसा

विपक्षी एकता को झटका, I.N.D.I.A. पीएम मोदी के साथ नजर आएगा गठबंधन का ये दिग्गज

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

 

 

 

YOU MISSED

Rahul Gandhi की शादी कराइए, उसके लिए लड़की ढूंढिए’, सोनिया गांधी ने किससे कही ये बात?

HRA से लोगों को होगा फायदा, ITR में बचेगा पैसा

विपक्षी एकता को झटका, I.N.D.I.A. पीएम मोदी के साथ नजर आएगा गठबंधन का ये दिग्गज

Diabetes के मरीजों को Chia Seeds खाना चाहिए या नहीं?

vartatv

टिप्पणियाँ