मध्य प्रदेश: हिंदुत्व की सबसे पुरानी प्रयोगशाला में बुलडोज़र के प्रयोग

 बात साल 1956 के एक नवंबर की है जब 337 सदस्यों के साथ मध्य प्रदेश की ‘एकीकृत’ और पहली विधानसभा का गठन हुआ था. उससे पहले ये इलाका चार प्रांतों में बँटा हुआ था–मध्य प्रदेश, मध्य भारत, विन्ध्य प्रदेश और भोपाल. फिर इनके विलय के बाद मध्य प्रदेश राज्य का औपचारिक गठन हुआ.


चुनाव आयोग के आंकड़ों के हिसाब से इस नई विधानसभा में उस समय के सबसे प्रमुख राजनीतिक दल, यानी कांग्रेस के 258 विधायक थे. इस सदन में सबसे बड़ा विपक्षी दल था सोशलिस्ट पार्टी जिसके 16 विधायक थे.


मगर इस नई विधानसभा के सदन की सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि इसमें हिंदू महासभा के 12 विधायक थे जबकि भारतीय जनसंघ के छह.


ये प्रदेश की पहली अंतरिम सरकार थी.

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक गिरिजा शंकर कहते हैं कि नागपुर से निकटता की वजह से मध्य प्रदेश में संघ ने अपनी पैठ आज़ादी से पहले से ही बनानी शुरू कर दी थी. पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे हिन्दुत्ववादी संगठनों का प्रभाव मालवा के इलाक़ों में रहा. फिर इनका प्रभाव भिंड और चंबल के अलावा प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी तेज़ी से फैलता गया.

जल्द ही मध्य प्रदेश की एक छवि बन गई और कहा जाने लगा कि ये पूरे भारत में हिंदुत्व की 'सबसे पुरानी' प्रयोगशाला है.


तीन ‘हिन्दुत्ववादी राजनीतिक’ संगठन यहाँ पूरी तरह से काम कर रहे थे – हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद और भारतीय जनसंघ.


ये चुनाव भी लड़ रहे थे, जबकि राजनीति से ख़ुद को अलग रखने का दावा करने वाला संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ज़मीनी स्तर पर हिन्दुओं को लामबंद करने का काम कर रहा था और लोगों को ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ की तरफ़ ‘प्रेरित’ कर रहा था.

हिन्दू महासभा

गिरिजा शंकर कहते हैं कि शुरू में हिन्दू महासभा एक ग़ैर-राजनीतिक संगठन हुआ करता था जिससे कांग्रेस के भी कई बड़े नेता जुड़े हुए थे. मगर वर्ष 1930 में हिन्दू महासभा ने ख़ुद को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करवा लिया था.


गिरिजा शंकर बताते हैं कि नए मध्य प्रदेश में शामिल पुराने प्रांतों में से मध्य भारत प्रांत ऐसा था जहां हिन्दू महासभा ने पहले से ही अच्छी पैठ बना ली थी.


हिन्दू महासभा को मध्य भारत में विधानसभा के चुनावों में मिली सफलता की वजह से सिंधिया राजघराने और दूसरे राजवाड़ों का इसे ख़ूब समर्थन भी मिल गया था.

रामराज्य परिषद

हिन्दुत्ववादी संगठन रामराज्य परिषद की स्थापना 1948 में स्वामी करपात्री ने की थी और संगठन ने 1952 में हुए आम चुनावों में मध्य प्रदेश, विन्ध्य प्रदेश और मध्य भारत में अपने प्रत्याशी खड़े किए जिनका प्रदर्शन अच्छा रहा.

गिरिजा शंकर कहते हैं कि स्वामी करपात्री को उन रियासतों का भरपूर समर्थन हासिल था जो उनके अनुयायी थे और विधानसभा के चुनावों में रामराज्य परिषद को मध्य भारत में 2, विन्ध्य प्रदेश में 2 और मध्य प्रदेश में 3 सीटों पर कामयाबी भी मिली.

वैसे मध्य प्रदेश की जिन तीन सीटों पर राम राज्य पार्टी के उम्मीदवार जीते थे वो अब के छत्तीसगढ़ के रियासती इलाक़े थे जैसे पंडरिया, कवर्धा और जशपुर. इसके अलावा लोकसभा के चुनावों में भी राम राज्य परिषद के उम्मीदवारों का बेहतर प्रदर्शन रहा था जिसमें 6 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे.

1952 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश और भोपाल में भारतीय जनसंघ का खाता तक खुल नहीं पाया था. अलबत्ता मध्य भारत में उसे चार और विन्ध्य प्रदेश में दो सीटें मिलीं थीं.


गिरिजा शंकर ने अपनी क़िताब में भी इसका उल्लेख किया है. वो लिखते हैं, “1952 के लोकसभा के चुनावों में देश में जिन तीन सीटों पर भारतीय जनसंघ को सफलता मिली थी उनमें से एक सीट राजस्थान के चित्तौड़ की थी, लेकिन वहाँ से चुनाव लड़ने वाले सांसद उमाशंकर त्रिवेदी मध्य भारत के मंदसौर से थे."


इस चुनाव में तीनों ही हिन्दुत्ववादी दल एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे. मगर विधानसभा चुनावों में जनसंघ को मध्य भारत के ग्वालियर इलाक़े में हिन्दू महासभा के बड़े प्रभाव की वजह से सफलता नहीं मिली सकी थी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रभाव की वजह से जनसंघ का खाता नहीं खुल पाया था लेकिन मालवा में उसकी पकड़ अच्छी थी जिसकी वजह से उसकी झोली में सात सीटें आ गई थीं..आख़िरकार हिंदूवादी संगठनों ने जड़ें जमा ही ली इन संगठनों ने कांग्रेस का गढ़ रहे मध्य प्रदेश में अपनी जड़ें इतनी मज़बूत कर लीं कि 1990 में पहली बार ऐसा हुआ जब भारतीय जनता पार्टी ने भारी बहुमत के साथ प्रदेश में सरकार बना ली.

अपनी क़िताब 'समकालीन राजनीति: मध्य प्रदेश' में गिरिजा शंकर लिखते हैं कि 1990 के विधानसभा के चुनावों से पहले कांग्रेस के सदन में 250 विधायक थे. जनता दल के गठबंधन से चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सभी समीकरणों को उलट दिया था और भारतीय जनता पार्टी को 220 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस 56 सीटों पर सिमटकर रह गई थी.

गिरिजा शंकर कहते हैं कि हिंदुत्व को लेकर जो काम इन दक्षिणपंथी संगठनों ने किया, 1990 के विधानसभा के चुनावों में पहली बार भारी बहुमत मिलना उसी का परिणाम था.

वो कहते हैं, “भाजपा को मिली जीत इस मायने में ऐतिहासिक रही, कि उसके प्रत्याशियों की जीत का आंकड़ा 82 प्रतिशत था जो अपने आप में एक रिकार्ड था. ये चुनाव, कांग्रेस के लिए प्रदेश में आपातकाल के बाद वाले विधानसभा के चुनावों से भी ज़्यादा निराशाजनक थे.”

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस भारी जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी और संघ को हिंदुत्व के अपने एजेंडे का विस्तार करने के लिए ‘एक तरह से खुला मैदान’ मिल गया और देखते ही देखते हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अपनी पैठ दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाक़ों तक मज़बूत करनी शुरू कर दी.

मध्य प्रदेश में मुसलामानों की आबादी 6 से 7 प्रतिशत के बीच है.विश्लेषक ये भी कहते हैं कि नब्बे के दशक से लगातार हिन्दुत्ववादी संगठनों के काम का भारतीय जनता पार्टी को भरपूर फ़ायदा होता रहा और उसने सत्ता में अपनी मज़बूत पैठ बना ली जिसे भेद पाना मुश्किल हो गया था. Sabhar BBC.COM 

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