क्‍या वाकई अजर, अमर, अविनाशी होती है आत्‍मा? क्‍या कहता है विज्ञान

क्‍या वाकई अजर, अमर, अविनाशी होती है आत्‍मा? क्‍या कहता है विज्ञान 

Is human soul really immortal - धर्म कहता है कि आत्‍मा अजर, अमर, अविनाशी है. अलग-अलग धर्मों में इसे अलग तरीके से कहा गया है. विज्ञान व तकनीक की दुनिया में इस धारणा को बार-बार तर्कों की कसौटी पर भी परखा गया है. क्‍या विज्ञान इस धारणा को स्‍वीकार करता है? क्‍या वाकई इस धारणा में कोई दम है?

Is human soul really immortal - धर्म कहता है कि आत्‍मा अजर, अमर, अविनाशी है. अलग-अलग धर्मों में इसे अलग तरीके से कहा गया है. विज्ञान व तकनीक की दुनिया में इस धारणा को बार-बार तर्कों की कसौटी पर भी परखा गया है. क्‍या विज्ञान इस धारणा को स्‍वीकार करता है? क्‍या वाकई इस धारणा में कोई दम है?



दर्शन, धर्म और विज्ञान के लिए हमेशा से ये सवाल परेशान करता रहा है कि क्‍या आत्‍मा वाकई अमर होती है. 

दर्शन, धर्म और विज्ञान के लिए हमेशा से ये सवाल परेशान करता रहा है कि क्‍या आत्‍मा वाकई अमर होती है.

Human Soul and Science: दुनिया में सबसे ज्‍यादा पूछा जाने वाला सवाल है कि क्‍या मनुष्‍य के भौतिक शरीर के मरने के बाद भी आत्मा जीवित रहती है? दर्शन, विज्ञान और धर्म ने अलग-अलग तरह से इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है. दुनियाभर में माने जाने वाले धर्मों ने इस सवाल का जवाब अपने-अपने तरीके से दिया है. किसी धर्म में कहा जाता है कि आत्‍मा शरीर को कपड़ों की तरह बदलती है. एक शरीर के मरने के बाद आत्‍मा नए शरीर के साथ फिर जन्‍म लेती है. किसी धर्म के मुताबिक, शरीर के मरने के बाद आत्‍मा परम सत्‍ता में विलीन हो जाती है और फिर जन्‍म नहीं लेती है. हम विज्ञान के अलग-अलग सिद्धांतों और अध्‍ययनों के आधार पर जानने की कोशिश करेंगे कि क्‍या वाकई आत्‍मा अमर है?

सबसे पहले यह समझते हैं कि आत्मा का मतलब क्या है? आत्मा शब्द लैटिन एनिमा से आया है, जो ग्रीक एनीमोस से जुड़ा हुआ है, जिसका अर्थ सांस या हवा है. वहीं, सनातन परंपरा में हजारों साल पुराने वेदों, उपनिषदों और पुराणों में भी आत्‍मा का जिक्र किया गया है. भारतीय दर्शन में माना जाता है कि आत्‍मा अजर, अमर, अविनाशी है. कई आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं में आत्मा व्यक्तित्व का सार, आत्मा या मैं है. हालांकि, हाल के दिनों में आत्मा को मन या चेतना की तरह सोच-विचार का हिस्सा माना जाता है, जो विज्ञान की अलग-अलग शाखाओं के सबसे महान रहस्यों में एक है.

क्‍या है ऑर्केस्ट्रेटेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन

कुछ साल पहले एक भौतिक विज्ञानी के सहयोग से एक नया सिद्धांत विकसित किया गया, जिसमें शरीर के मरने के बाद आत्‍मा के अस्तित्‍व पर रोशनी डाली गई. इस सिद्धांत को ऑर्केस्ट्रेटेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन (ऑर्क-ओआर) कहा गया है. इसे 1990 के दशक में भौतिकविद रोजर पेनरोज और स्टुअर्ट हैमरॉफ ने विकसित किया था. शोध के मुताबिक, चेतना न्यूरॉन्स के बीच कम्‍युनिकेशन के बजाय उनके भीतर पैदा होती है. बता दें कि रोजर पेनरोज प्रतिष्ठित गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी और ब्रह्मांड विज्ञानी हैं. उन्‍हें भौतिकी में 2020 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. पेनरोज को ब्लैक होल पर उनके काम के लिए विज्ञान के सर्वोच्च सम्मानों में एक मिला है. उन्‍होंने खोज की थी कि ब्लैक होल का निर्माण आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत का नतीजा है.

आर्क-ओआर पर चल रहीं परियोजनाएं

रोजर पेनरोज ने कैंब्रिज में एक अन्य महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग के साथ लंबे समय तक काम किया था. पेनरोज ने हॉकिंग के साथ ब्लैक होल और गुरुत्वाकर्षण विलक्षणता के बारे में कुछ सिद्धांत विकसित किए थे. वैज्ञानिक स्‍टुअर्ट हैमरॉफ स्टुटिन एनेस्थेसियोलॉजिस्ट और अमेरिका में एरिजोना यूनिवर्सिटी में लेक्‍चरर हैं. वह इस सिद्धंत के लेखकों में एक हैं कि आत्‍मा क्‍या है और क्‍या ये अमर है? बता दें कि ‘ऑर्क-ओआर’ अभी केवल एक सिद्धांत है. लेकिन, माना गया कि इस सिद्धांत पर परीक्षण किया जा सकता है. लिहाजा, इसके परीक्षण और सत्यापन के लिए परियोजनाएं चल रही हैं.

एल्‍गोरिदम से काबू नहीं हो सकता दिमाग

पेनरोज और हैमरॉफ के ‘ऑर्क-ओआर’ सिद्धांत के पीछे का विचार है कि मस्तिष्क को एल्गोरिदम से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब है कि मस्तिष्क के भौतिक गुण पारंपरिक गणितीय औपचारिकताओं से निर्धारित नहीं होते हैं, बल्कि क्‍वांटम मेकेनिक्‍स के दिलचस्प सिद्धांतों ये इनकी व्‍याख्‍या की जा सकती है. सिद्धांत के दोनों लेखकों में हैमरॉफ ने चेतना के जैविक घटक का अध्ययन किया है. उनके मुताबिक, चेतना की मुख्य संरचना मस्तिष्क में माइक्रोट्यूबल सेल्‍स हैं. वहीं, भौतिक विज्ञानी पेनरोज ने आत्‍मा के अमर होने के सवाल का जवाब तलाशने के लिए क्‍वांटम अप्रोच को अपनाया है.

चेतना कहां पैदा करती है कंपन

‘ऑर्क-ओआर’ सिद्धांत के मुताबिक, चेतना सब-एटॉमिक पार्टिकल्‍स के यूनिवर्स में कंपन करने वाली एक तरंग है. वहीं, दिमाग की माइक्रोट्यूबल सेल्‍स वास्तविक क्‍वांटम कंप्यूटर के तौर पर काम करती हैं, जो इन कंपनों को इस्‍तेमाल किए जाने लायक जानकारी में तब्‍दील करती हैं. बता दें कि क्‍वांटम कंप्यूटर सामान्य कंप्यूटर से अलग तरीके से काम करता है. सामान्‍य कंप्यूटर जानकारी को बिट्स यानी ज़ीरो या वन के रूप में प्रॉसेस करता है, जबकि क्‍वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स को प्रॉसेस करता है, जो एक ही समय में शून्य और एक दोनों हो सकता है. इससे क्‍वांटम सुपरपोजिशन बनती है, जो हमारे क्‍लासिकल मेकेनिकल माइंड्स के लिए समझने में दिक्‍कतें पैदा करता है.

क्‍या है कई दुनिया का सिद्धांत

सैद्धांतिक भौतिकविद एवरेट के कई दुनियाओं के सिद्धांत के मुताबिक, जब कोई सेब या नाशपाती में से एक चीज खाने का फैसला करता है, तो सेब खाने का फैसला नाशपाती को अलग कर देता है. लेकिन, इसी फैसले के साथ नाशपाती दूसरी दुनिया में अलग से अस्तित्व में रहती है. दूसरी ओर, ‘ऑर्क-ओआर’ सिद्धांत कहता है कि नाशपाती खाने के विकल्प को चुना ही नहीं गया है. लिहाजा, नाशपाती अलग हो जाती है. लेकिन, यह एक अस्थिर स्थिति है. इसलिए कुछ समय बाद इसमें बदलाव आ जाता है.

कई दुनिया, लेकिन सिर्फ एक में चेतना

एवरेट के सिद्धांत के समर्थकों के मुता‍बिक, कई दूसरी दुनिया हैं, लेकिन केवल एक में चेतना है. वहीं, पेनरोज और हैमरॉफ के मुताबिक, हम ही एकमात्र वास्तविकता हैं, क्योंकि वैकल्पिक वास्तविकताओं का अस्तित्‍व अस्थिर होने के कारण खत्‍म हो जाता है. इस क्‍वांटम सोच को फिर मस्तिष्क में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहां चेतना को पहले सामान्य कंप्यूटर की तरह काम करने वाले न्यूरॉन्स के बीच कनेक्शन की एक श्रृंखला के रूप में माना जाता था. हैमरॉफ के मुताबिक, जब आप मस्तिष्क कोशिकाओं न्‍यूरॉन के बारे में सोचते हैं तो यह सोचना न्यूरॉन का अपमान है कि ये बंद या चालू हो जाते हैं.  Sabhar News18 India

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