चांद तक रेस में भारत का चंद्रयान-3 आगे रहेगा या रूस का लूना-25

चांद तक रेस में भारत का चंद्रयान-3 आगे रहेगा या रूस का लूना-25 

बीते महीने भारत ने एक बार फिर चांद के लिए अपना मिशन भेजा है. वहीं, क़रीब पांच दशक के लंबे अंतराल के बाद चांद तक पहुंचने की रेस में रूस भी कूद पड़ा है.


यानी एक रूसी और एक भारतीय स्पेसक्राफ्ट चांद पर उतरने के इरादे से आगे बढ़ रहे हैं.


भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना-25 अपने साथ एक-एक लैंडर लेकर अंतरिक्ष में गए हैं, ताकि चांद के दक्षिणी ध्रुव में यानी अंधेरे वाले हिस्से में उतर कर इतिहास रच सकें.


ये चांद का वो इलाक़ा है जहां अब तक कोई लैंडर सफलतापूर्वक उतर नहीं पाया है.

रूस ने 11 अगस्त 2023 (मॉस्को समय के अनुसार) को लूना-25 लॉन्च किया है, वहीं भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 चांद के लिए रवाना किया है. जानकार कहते हैं कि ये दोनों ही मिशन लगभग समान वक्त चांद पर अपना-अपना लैंडर उतारेंगे.


ऐसे में दुनिया भर में लोग ये देखने का इंतज़ार कर रहे हैं कि भारत या रूस में से कौन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर सबसे पहले और सफलतापूर्व उतारेगा?

1960 के दशक में शुरू हुई रेस

हालांकि चांद तक की ये रेस आज नहीं बल्कि 1960 के दशक में शुरू हुई थी. उस वक्त अमेरिका और सोवियत संघ के बीच ये होड़ थी कि चांद पर सबसे पहले इंसान को कौन उतार सकता है.


पृथ्वी की कक्षा में पहला सैटलाइट स्थापित करने, अंतरिक्ष में पहली बार इंसान को भेजने और मानवरहित मिशन को चांद पर उतारने के मामले में रूस बाज़ी मार ले गया. लेकिन अपोलो मिशन के ज़रिए अमेरिका ने चांद की सतह पर पहली बार इंसान को उतारा और ये बड़ी उपलब्धि अपने नाम कर ली.


अमेरिका की इस उपलब्धि को दुनियाभर के लाखों लोगों ने टेलीविज़न पर देखा. इसके बाद अमेरिका ने और भी कई मानव मिशन चांद के लिए भेजे.


अमेरिका का अपोलो कार्यक्रम 1972 में ख़त्म हुआ. इसके पांच दशक बाद भी आज तक अमेरिका के अलावा कोई और देश चांद पर इंसान को उतार नहीं पाया है.

 जुलाई 2023 को भारत के चंद्रयान ने पृथ्वी से उड़ान भरी. चांद की सतह से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने के लिए इसमें वैज्ञानिक उपकरणों के साथ-साथ छह चक्कों वाला एक रोवर भी है.


उम्मीद की जा रही है कि चांद की कक्षा में कई बार चक्कर लगाते हुए ये पहले चांद पर उतरने की तैयारी करेगा और फिर लैंडर 23 अगस्त को चांद की सतह पर उतरेगा.


वहीं रूस का लैंडर लूना-25, 11 अगस्त को चांद के लिए रवाना हुआ है. ये सीधे रास्ते से और चंद्रयान की अपेक्षा बेहद तेज़ गति से चांद की तरफ जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि ये लॉन्च होने के 10 दिनों के भीतर ही चांद तक पहुंच जाएगा.


रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने भी अपनी इस महत्वाकांक्षा को खुल कर सामने रखा है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के मामले में रूस दुनिया का पहला देश बनना चाहता हैं.


लेकिन माना जा रहा है कि लूना-25 की यात्रा थोड़ी धीमी हो सकती है और हो सकता है कि वो चांद तक पहुंचने में थोड़ा अधिक वक्त ले. ऐसे में ये बिल्कुल संभव है कि चंद्रयान-3 का लैंडर पहले चांद की सतह पर लैंड करे.


बात रूस की हो या भारत की, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चांद तक पहुंचने की होड़ में अब एक बार फिर कई देशों की दिलचस्पी बढ़ रही है.


हाल के दिनों में चांद पर पानी के होने के संकेत पाए गए हैं जिसके बाद वैज्ञानिकों में उत्साह है. उनका मानना है कि भविष्य में चांद पर बेस बनाना हो तो इस जमे हुए पानी के हाइड्रोजन से ईंधन तैयार किया जा सकता है. एक वजह ये भी है कि हो सकता है कि इस पानी को भविष्य में पीने लायक बनाया जा सकेगा.

लूना-25 बनाम चंद्रयान-3

रूस के लूना-25 और भारत के चंद्रयान-3 के बीच की रेस निस्संदेह चांद की सतह के अन्वेषण के एक नए दौर की शुरूआत कर दी है.


इसमें भारत और रूस के अलावा अमेरिका, चीन, इसराइल, जापान के अलावा निजी कंपनियां भी चांद के लिए मानवरहित और इंसान को लेकर जाने वाले कार्यक्रम की योजना बना रही हैं.


कुछ मुल्कों के लिए ये दोस्ताना प्रतिस्पर्धा है, लेकिन ये बात सच है कि अन्वेषण का हर कार्यक्रम चांद के बारे में जानकारी की किताब का एक नया चैप्टर साबित होगा. चांद पर लैंडर उतारने का हर मुल्क का छोटा कदम सौर मंडल के सदस्यों को समझने में मानव की मदद ही करेगा.


लेकिन कुछ जानकार मानते हैं कि कौन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहले उतरेगा ये बात बेहद महत्वपूर्ण है.


यूएस एयर और स्पेस फोर्ट की एयर यूनिवर्सिटी में रणनीति और सुरक्षा मामलों की प्रोफ़ेसर वेंडी व्हिटमैन कॉब कहती हैं, "ऐसा लग रहा है कि ये मात्र संयोग है कि दोनों मून लैंडर एक ही वक्त चांद पर उतर सकते हैं. लेकिन ये बेहद दिलचस्प है."


वो बताती हैं कि रूस 2021 में लूना-25 का लॉन्च करना चाहता था लेकिन किन्हीं कारणों से इसके लॉन्च में देरी होती गई और ये इस साल प्रक्षेपित किया जा सका.


वो कहती हैं कि इस मामले में भारत रूस से एक कदम आगे है क्योंकि उसका स्पेसक्राफ्ट पहले ही चांद की कक्षा में है.


वो कहती हैं, "हो सकता है कि इस कारण रूस पर चांद तक पहले पहुंचने का कुछ दवाब भी हो, क्योंकि उन्होंने इसके लिए सीधा रास्ता चुना है."

लूना-25 के मुक़ाबले चंद्रयान-3 दोगुने वज़न का है और रूसी स्पेसक्राफ्ट के मुक़ाबले उसे कम क्षमतावाले रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया है. इसका मतलब ये है कि चंद्रयान-3 पृथ्वी के चारों तरफ कक्षा में दीर्घ वृत्ताकार चक्कर काटेगा और फिर उसके बाद खुद को चांद की तरफ उछाल लेगा.


दोनों के कार्यक्रमों में सबसे अधिक दबाव ऑपरेटरों पर रहेगा जिन्हें चांद पर लैंडर उतारने से पहले उसका सटीक आकलन करना होगा ताकि टचडाउन की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी न हो.


आख़िरी वक्त पर हुई मामूली-सी तकनीकी गड़बड़ी से पूरे अभियान के नाकाम होने का ख़तरा है और दोनों ही अभियानों को तब तक सफल नहीं माना जाएगा जब तक वो अपने लैंडर को चांद की सतह पर सही तरीके से नहीं उतारते.


हालांकि ये भी सच है कि दोनों देशों के लिए ये मामला राष्ट्रीय गौरव से भी जुड़ा है. यूक्रेन के ख़िलाफ़ 'विशेष सैन्य अभियान' छेड़ने के बाद रूस कई स्तर पर पाबंदियों का सामना कर रहा है. ऐसे में वो ये साबित करना चाहता है कि स्पेस के क्षेत्र में उसकी क्षमता किसी भी कारण से प्रभावित नहीं हुई है.


व्हिटमैन कॉब कहती हैं, "इन पाबंदियों का रूस के स्पेस कार्यक्रम पर बुरा असर पड़ा है."

यूके की क्वीन मार्गरेट युनिवर्सिटी में स्पेस इंडस्ट्री की पढ़ाई कर रही स्टीफ़ानिया पालादिनी कहती हैं कि जब रूस अस्तित्व में नहीं था, उस वक्त 50 साल पहले सोवियत संघ चांद पर लैंडर और रोवर उतारने में सक्षम रहा था, ये पूरी रेस दरअसल चांद तक पहुंचने की नहीं है.


देखा जाए तो रूस ये रेस पहले ही जीत चुका है, लेकिन फिर 1976 में लूना-24 के बाद रूस ने इस मिशन पर अधिक ध्यान नहीं दिया. लूना-25 सालों बाद रूस के चांद मिशन को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश है.


माना जाता है कि रूस का लूना-1 चांद तक पहुंचने वाला पहला रोवर था. जानकार कहते हैं कि इसका डिज़ाइन कुछ ऐसा था कि ये चांद तक पहुंच कर वहां उतरे लेकिन जब 1959 में ये चांद के पास पहुंचा तो ये उसकी सतह से 3,725 मील (5,995 किलोमीटर) दूर से होता हुआ गुज़र गया.


स्टीफ़ानिया पालादिनी कहती हैं, "ऐसे में अगर भारत का चंद्रयान-3 योजना के अनुसार चांद पर उतरता है तो भारत के लिए ये सॉफ्ट लैंडिग पहली बड़ी उपलब्धि होगी."


वो कहती हैं कि 2019 में चंद्रयान-2 के साथ भी भारत ने यही कोशिश थी कि वो चांद की सतह पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग करा सके. लेकिन ये लैंडर चांद की सतह के साथ टकरा गया जिस कारण ये मिशन नाकाम हो गया.


हालांकि चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की कोशिश भारत ने इससे पहले ही की है. भारत ने अक्तूबर 2008 में चंद्रयान-1 चांद की कक्षा में स्थापित किया था, इसने मून इम्पैक्ट प्रोब भेजा था जो शैकलटन क्रेटर के पास जा कर क्रैश कर गया था. हालांकि इस प्रोब को कभी भी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तैयार नहीं किया गया था.

 इस बार क्या अलग है?

लेकिन इस बार का रूस और भारत का मिशन पहले से अलग है क्योंकि दोनों की इस बार की कोशिश है कि वो चांद के दक्षिणी ध्रुव में लैंडिंग की सही जगह खोज पाएं.


अब तक चांद के लिए जो भी मिशन भेजे गए हैं वो चांद के उत्तर में या फिर मध्य में लैंड करने के लिए भेजे गए हैं. यहां पर लैंडिंग के लिए जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी भी आती है. लेकिन दक्षिणी ध्रुव चांद का वो इलाक़ा है जहां रोशनी नहीं पहुंचती. साथ ही इस जगह पर चांद की सतह पथरीली, ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी है.


यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर में एस्ट्रोफ़िज़िक्स और प्लेनटरी साइंस के प्रोफ़ेसर जैक बर्न्स कहते हैं, "यहां पहुंचने वाली सूरज की किरणें टेढ़ी होती हैं. चांद का अधिकतर हिस्सा अपेक्षाकृत समतल है, लेकिन दक्षिणी हिस्से में सूरज की रोशनी के कारण गड्ढों की परछाईं बहुत लंबी होती है. इस कारण यहां गड्ढों और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है."


आर्टेमिस-3 के साथ साल 2025 में अमेरिका चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ इंसान को भेजना चाहता है. ऐसे में भारत और रूस के लैंडर से जो जानकारी मिलेगी वो बेहद महत्वपूर्ण होगी.


हालांकि ह्विटमैन कॉब कहती हैं कि इंसान को भेजना, मानवरहित स्पेसक्राफ्ट भेजने से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. वो कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि ये दोनों किसी तरह से एक जैसी योजनाएं हैं

असल रेस वक्त की....

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना में प्लैनेटरी साइंस के प्रोफ़ेसर विष्णु रेड्डी कहते हैं कि आने वाले वक्त में ये महत्वपूर्ण नहीं रहेगा कि कौन पहले गया और कौन बाद में.


वो कहते हैं, "आने वाले वक्त में हम ये देखेंगे कि कौन वहां अधिक देर तक मौजूदगी बना सका है. आज के वक्त में निजी कंपनियों और सरकारों के बीच की होड़ की जो चर्चा हो रही है वो बेतुकी है. प्रतियोगिता केवल आपको एक जगह तक पहुंचा सकती है, लेकिन ये वहां लंबे वक्त तक आपकी मौजूदगी सुनिश्चित नहीं कर सकेगी."


वो कहते हैं कि भारत और रूस दोनों के लैंडर लगभग एक जैसे हैं. उन्हें उम्मीद है कि इन दोनों से वैज्ञानिकों को चांद पर मौजूद पानी, खनिज, वहां के वातावरण और दूसरी चाज़ों के बारे में और जानकारी मिल सकेगी.


वो कहते हैं कि अगर दक्षिणी ध्रुव से चांद की एक साफ तस्वीर मिल सकी तो ये भी बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि मूल संघर्ष लैंडर को सफलतापूर्वक उस हिस्से में उतारने की है. Sabhar BBC.COM 

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