चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर लैंडिंग कल:32000 सालों से कालगणना का पहला साधन है चंद्रमा, चीन-अरब ने भारत से सीखा लूनर कैलेंडर

 चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर लैंडिंग कल:32000 सालों से कालगणना का पहला साधन है चंद्रमा, चीन-अरब ने भारत से सीखा लूनर कैलेंडर

23 अगस्त की शाम चंद्रयान-3 चांद पर उतरेगा। चंद्रमा हजारों सालों से दुनिया भर के कल्चर्स में जिंदगी का अहम हिस्सा रहा है। इंसान जब आदिमानव से सामाजिक प्राणी होने की राह पर था, तभी से चांद उसके लिए समय की गणना करने का साधन रहा है। ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण ये दो ग्रंथ बताते हैं कि हजारों साल से चांद इंसानों के लिए कालगणना का साधन रहा है।

जब समय पता करने का कोई साधन नहीं था, तब चंद्रमा के घटने और बढ़ने की स्थितियों से ही दिन और महीनों का अनुमान लगाया जाता था। 15 दिन अमावस्या और 15 पूर्णिमा के ऐसे दो पक्षों को मिलाकर महीने का कैलकुलेशन किया गया जिसे चांद्रमास यानी चंद्रमा का महीना कहा जाता है।


आज भी भारतीय ज्योतिष में हिंदू कैलेंडर चांद्रमास से ही बनाया जाता है। सारे तीज-त्योहार इसी से तय होते हैं। नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाषाण युग में फ्रांस और जर्मनी की गुफाओं में रहने वाले आदिमानवों ने 32000 साल पहले चंद्रमा की गति का अध्ययन करके पहला कैलेंडर बनाया था। भारत में इसका सबसे सटीक गणित है। चीन और अरब देशों ने भी चांद से कैलेंडर बनाना भारत से सीखा है।


सूर्य से गणना मुश्किल थी तो चांद को साधन बनाया


जर्मन स्कॉलर प्रो. मैक्समूलर ने अपनी किताब “इंडिया व्हाट कैन इट टीच अस” में लिखा है- भारत ज्योतिष, आकाश मंडल और नक्षत्रों के बारे में जानने के लिए किसी दूसरे देश का ऋणी नहीं है, ये उसने खुद ईजाद किया है।


उन्होंने लिखा है कि चंद्रमा ही कालगणना का पहला साधन था। सूर्योदय के बाद नक्षत्रों और तारों को देख पाना या उनके बारे में अनुमान लगा पाना मुश्किल था। भारतीय विद्वानों ने चंद्रमा के आधार पर ही दिन, पक्ष, मास और साल की गणना की। चंद्रमा की विभिन्न कलाओं को देखते हुए आकाश को 27 नक्षत्रों में बांटा। मूल ज्योतिष का तत्व भारत से ही हजारों साल पहले उपजा है।


भारत से ही कालगणना चीन और अरब पहुंची


भारत के अलावा चीन और अरब देशों में भी कालगणना का पहला साधन चंद्रमा ही था। हिजरी संवत कैलेंडर में भी चांद से ही महीनों की गणना हुई है। अमूमन अरब देशों में सैकड़ों साल पहले दिन की बजाय चांद रातों की संख्या से ही समय तय किया जाता था। मुगल काल में भी कई कामों के लिए चांद रातों का जिक्र मिलता है। ये चंद्रमा और नक्षत्रों की गणना भारत से ही चीन और अरब देशों में पहुंची।


प्रो. कोलब्रुक और बेवर ने अपनी किताब ‘लेटर्स ऑन इंडिया’ में लिखा है कि भारत को ही सबसे पहले चंद्रमा और नक्षत्रों का ज्ञान था। चीन और अरब देशों के ज्योतिष का विकास भारत की ही देन है। उनकी कालगणना की चांद्र विधि भारत से ही प्रेरित है।

वेद और पुराणों में चंद्रमा


वैदिक काल से अब तक चंद्रमा की पूजा ग्रह और देवता, दोनों रूप में हो रही है। वहीं, ज्योतिर्विज्ञान में चंद्रमा को उपग्रह नहीं बल्कि ग्रह कहा गया है। धरती के काफी नजदीक होने से सूर्य के बाद चंद्रमा दूसरा ग्रह है, जो पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को प्रभावित करता है। चंद्रमा के कारण ही धरती पर पानी और औषधियां हैं। जिससे इंसान लंबी उम्र जी पाता है। वेदों से लेकर पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों में भी चंद्रमा को खास बताया गया है।


वेदों में चंद्रमा की गति, चमक और उसकी परिक्रमा के रास्ते के बारे में जानकारी दी गई है। वहीं, पुराणों में बताया गया है कि चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई।


चंद्रमा से कालचक्र का निर्धारण


ऋग्वेद के पहले मंडल के 84वें सूक्त मंत्र में बताया गया है कि चंद्रमा स्वत: प्रकाशमान नहीं है इस सिद्धांत की पुष्टि मंत्र में है। इसी के 105वें सूक्त में कहा है कि चंद्रमा आकाश में गतिशील है और नित्य गति करता रहता है।


एतरेय ब्राह्मण ग्रंथ के मुताबिक वैदिक काल में तिथियां चंद्रमा के उदय और अस्त होने से तय होती थी। चंद्रमा ही तिथियों के साथ महीने को शुक्ल और कृष्ण पक्ष में बांटता है। इस बारे में तैत्तरीय ब्राह्मण में बताया गया है कि चंद्रमा का एक नाम पंचदश भी है। जो 15 दिनों में क्षीण हो जाता है और 15 दिनों में पूर्ण हो जाता है।


इसके बाद ऋतुओं की बात करें तो अथर्ववेद के 14वें कांड के पहले सूक्त में कहा गया है कि चंद्रमा से ही ऋतुएं बनती हैं। वेदों में बताया गया है कि चंद्रमा के कारण ही ऋतुएं बदलती हैं। वहीं चंद्रमा के प्रभाव से ही 13 महीने हो जाते हैं, जिसे अधिकमास कहते हैं। इस बात का जिक्र वाजस्नेयी संहिता में किया गया है।


शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि पृथ्वी पर उगने वाली औषधियों और वनस्पतियों में रस चंद्रमा से ही आता है। जो सोम रस देवता पीते हैं, उस बारे में ऋग्वेद में कहा गया है कि सोम नाम की लता चंद्रमा से ही रस बनाती है। चंद्र मंडल से देवताओं तक सोम का भाग पहुंचता है। चंद्रमा से ही देवगण सोमपान करते हैं।

चंद्रमा का रथ, गति और रूप


लिंग पुराण में चंद्रमा के रथ के बारे में कहा गया है कि चंद्रमा अपने रास्ते में मौजूद नक्षत्रों की परिक्रमा करता है। उसका रथ तीन पहियों का है। रथ के दोनों ओर सफेद रंग के सुन्दर और ताकतवर मन के समान तेजी से दौड़ने वाले दस घोडे़ जुते हुए हैं। चंद्रमा पितरों और देवताओं के साथ यात्रा कर रहा है।


मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने ऋषियों के कहने पर चंद्रमा को उत्तर दिशा का लोकपाल बना दिया है। चंद्रमा देवताओं में गंधर्वों का, मनुष्यों में ब्राह्मणों का, पशुओं में शश, औषधियों में लताओं और धर्म में तप-यज्ञ का अधिष्ठाता है।


एक्सपर्ट्स और रेफरेंस


डॉ. गणेश मिश्रा, ज्योतिषाचार्य, पुरी (उड़ीसा)

भारतीय ज्योतिष, नेमीचंद शास्त्री sabhar bhaskar.com 


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