क्या भविष्य में बच्चे पेट्री डिश में पैदा होंगे?

.वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल के उपयोग से प्रयोगशाला में ऐसे भ्रूण का निर्माण कर लिया है जो मानव भ्रूण के बेहद करीब है. वैज्ञानिक दृष्टि से तो यह एक मील का पत्थर है लेकिन नैतिक दृष्टि से यह कई सवालों को जन्म 

मैग्डालेना जर्निका गेट्ज का एक रिसर्च इसी साल जून में नेचर जरनल में प्रकाशित हुआ था. शोध के नतीजे प्रकाशित होने पर गेट्ज का कहना था, "हमारा लक्ष्य जीवन निर्माण करना नहीं है.”


हालांकि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में डेवलेपमेंटल बॉयोलॉजिस्ट जर्निका गेट्ज और उनकी टीम ने सही मायनों में कुछ ऐसा खोजा है जो आगे चलकर एक दिन इंसानों के बहुत करीब पहुंच सकता है. जिस दिन गेट्ज ने बॉस्टन कॉन्फ्रेंस में अपनी रिसर्च के नतीजे पेश किए, उसके अगले दिन गॉर्डियन अखबार ने इसे रिपोर्ट करते हुए लिखा था कि सिंथेटिक मानव भ्रूण का अभूतपूर्व विकास हुआ है. गॉर्डियन की इस हेडलाइन ने मीडिया में खलबली मचा दी. केंब्रिज में ये स्टडी लगभग उसी समय प्रकाशित हुई थी, जब इस्राएल में एक प्रतिद्वंदी रिसर्च टीम ने अपने अध्ययन में भी ऐसा ही कुछ पाया था.

 रिसर्च के बाद अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इससे जुड़े नैतिक मुद्दों को उठाना शुरू किया, वैसे ही मानो इसने फ्रैंकस्टीन के दैत्यों की छवियों को उभार दिया. रिसर्चरों की दोनों ही टीमों ने पहले किए गए प्रयासों की तुलना में ह्यूमन स्टेम सेल से बहुत एडवांस स्तर का भ्रूण जैसा एक स्ट्रक्चर तैयार कर लिया था. ये भ्रूण 14 दिनों के प्राकृतिक भ्रूण के बराबर था, जो प्राकृतिक निषेचन यानी फर्टिलाइज़ेशन के बाद विकसित होता है.

भ्रूण अनुसंधान का नैतिक पक्ष

हमने इंसानों को चांद पर पहुंचा दिया है, इंसानों ने समुद्रों की अनंत गहराइयों को नाप दिया है लेकिन सही मायनों में हम शुरुआती जीवन के बारे में बहुत कम जानते हैं. किसी इंसानी जीवन को खतरे में डाले बिना रिसर्चर शुरुआती जीवन के विकास के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा सकते हैं, इसीलिए उन्हें अपनी रिसर्च को किसी जानवर के भ्रूण या मानव के मॉडल भ्रूण तक सीमित करना पड़ा था. ये खोज रिसर्चरों को गर्भपात, आनुवंशिक स्थितियों और जन्मजात अंगों में होने वाले दोषों के कारणों को जानने में मददगार हो सकती हैं

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