अब जल्द बड़े होंगे पेड़


Tree
रांची। 20 साल में पूर्ण रूप से विकसित होने वाला सागवान अब महज 10 सालों में ही तैयार हो जाएगा। प्राकृतिक रूप से बढ़ने वाले पेड़ों को समय से पूर्व विकसित करने की तकनीक झारखंड के वन विभाग ने इजाद की है। इस तकनीक को रूट ट्रेनर का नाम दिया गया है। वन विभाग की नर्सरी में सागवान के अलावा शीशम, गम्हार, आंवला और एकेसिया पर इसका सफल प्रयोग किया जा चुका है। इससे पेड़ लगाने वाले किसानों को बहुत बड़ा फायदा होगा। अब वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलेगा।
क्या है रूट ट्रेनर
रूट ट्रेनर काले रंग के प्लास्टिक की कड़ी टैपरिंगवाली ग्लासनुमा संरचना है। जो एक भी हो सकती है और ट्रे नुमा फ्रेम में समान दूरी पर ढली हुई भी। प्रत्येक संरचना में नीचे की ओर छिद्र होते हैं। इन्हें जमीन से ऊपर स्टैंड पर रखा जाता है।
कैसे कार्य करता है रूट ट्रेनर
आम तौर पर पौधों की तैयारी पॉलिथीन बैग में की जाती है। पॉली बैग में पौधों की तैयारी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसमें पौधों की जड़ें घुमावदार हो जाती है। इससे उनकी उत्तरजीवता पर खराब प्रभाव पड़ा है। रूट ट्रेनर में ऐसा नहीं होता। पौधे की मूसला जड़ जब विकसित होकर रूट ट्रेनर के पेंदे पर स्थित छिद्र के पास पहुंचती है तो रूट ट्रेनर के जमीन के ऊपर स्टैंड पर रखे होने के कारण हवा के संपर्क में आती हैं। इससे मूसला जड़ों की वृद्धि स्वाभाविक रूप से रूक जाती है। ऐसा होने से मूसला जड़ में घुमाव की समस्या खत्म हो जाती है और उसमें प्रतिस्थानी जड़ें विकसित होने लगती हैं। 60 से 90 दिनों में रूट ट्रेनर में तैयार पौधों को जमीन में गढ्डा कर रोपा जा सकता है। बंजर भूमि में कारगर साबित हो सकती है यह तकनीक : झारखंड के कुल भू-भाग 79.14 हजार वर्ग किमी की 20 प्रतिशत भूमि बंजर है। हालांकि वन भूमि के लिहाज से झारखंड काफी समृद्ध है। यहां 29 फीसद भू-भाग में जंगल है लेकिन गैर वन भूमि में पेड़ नहीं के बराबर हैं। वन विभाग की योजना गैर वानिकी क्षेत्र और बंजर भूमि में अधिक से अधिक वृक्षारोपण की है।
आय का जरिया भी यह तकनीक
भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित कमेटी ने गैर वन क्षेत्र में पेड़ लगाने और ट्रांजिट रूल में परिवर्तन की वकालत की है। यदि कमेटी के सुझावों को भारत सरकार मान लेती है तो निजी जमीन में फसल की तरह पेड़ लगाए और काट कर बेचे जा सकते हैं। ऐसे में वन विभाग की यह तकनीक बहुत उपयोगी साबित होगी। कम समय में पेड़ तैयार होंगे और उन्हें बेचकर किसान मोटा मुनाफा अर्जित कर सकेंगे। sabhar : jagaran.com

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