जानें, बार-बार झूठ बोलने वाले ओबामा के अमेरिका की हैरान करने वाली सच्चाई!

जानें, बार-बार झूठ बोलने वाले ओबामा के अमेरिका की हैरान करने वाली सच्चाई!

पिछले कई दिनों से अमेरिकन एजेंसियों से लेकर वहां के सरकारी विभाग और बाकी लोग इस देश को गरीब साबित करने में लगे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि अमेरिका को मिल रही आर्थिक राहत जारी रहे। आपको बताते चलें कि ओबामा के अमेरिका की असली सच्चई कुछ और ही है। ये देश खुद को अभी गरीब ही साबित करने के लिए एक के बाद एक झूठ बोल रहा है। ये झूठ पैसों की जरूरतों को पूरा करने और चीन-पाकिस्तान जैसे देशों के सामने खुद को ताकतवर दिखाने के लिए बोला जा रहा है। 
आज हम आपको ओबामा के उस झूठ का काला सच बताने जा रहे हैं जो वो कई सालों से बोल रहे हैं। ये सच आपकी आंखें खोलने के लिए काफी है। आगे की स्लाइड पर एक के बाद क्लिक कर जानें दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान ओबामा के अमेरिका की पोल खोलती असलियत..
(तस्वीर: अमेरिका में गरीबी को लेकर प्रोटेस्ट करती एक महिला को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाती अमेरिकी पुलिस।)
 जानें, बार-बार झूठ बोलने वाले ओबामा के अमेरिका की हैरान करने वाली सच्चाई!

अमेरिका के जनगणना ब्यूरो ने कहा है कि अमेरिकी परिवारों की औसत आय 1989 की तुलना में 2012 में 1.3 फीसदी कम हो गई है। यह वास्तविक आय है, यानि महंगाई को समायोजित कर इसका आंकड़ा निकाला गया है। इससे पता चलता है कि पिछले 24 साल में अमेरिकियों की खपत भी लगभग स्थिर है। लेकिन ब्यूरो के यह आंकड़े कई लिहाज से संदिग्ध लगते हैं।
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अमेरिका आज इलेक्ट्रॉनिक्स की टेक्नोलॉजी में हुई कई बड़ी खोजों का मजा चख रहा है। वर्ष 1989 तक तो वहां मोबाइल फोन भी नहीं थे। पेव इंटरनेट एंड अमेरिकन लाइफ प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार आज वहां के 90 फीसदी से ज्यादा वयस्कों के पास मोबाइल फोन हैं और इनमें से आधे के पास स्मार्टफोन हैं। इस प्रोजेक्ट के अनुमान के अनुसार अमेरिका के करीब 70 फीसदी वयस्क हर दिन इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 1989 में वहां इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाला कोई नहीं था
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इलेक्ट्रॉनिक सामान के बढ़े खपत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज सामान्य अमेरिकी परिवार को पहले की तुलना में गरीब तब ही माना जा सकता है, यदि अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं की खपत में गिरावट से तुलना की जाए। लेकिन विडंबना यह है कि इसको भी दिखाने के लिए मेरे पास कोई आंकड़े नहीं हैं।
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अब सवाल उठता है कि खपत में कमी कहां आई है। अगर आवास की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 1985 से 2005 के बीच प्रति व्यक्ति रहने का औसत स्थान 15 फीसदी बढ़ा है। नये और बड़े मकान अब भी खड़े दिख रहे हैं। इसलिए बाद में जो हाउसिंग बाजार का जो बुलबुला फूटा वह इस सेक्टर के फायदों को पूरी तरह से साफ नहीं कर सका और अभी तक जो कुछ बढ़त हुई है वह काफी हद तक जनसंख्या के सबसे धनी हिस्से के लिए बने तथाकथित मैकमैन्सन की वहज से हो सकता है।
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तो क्या यात्रा में कमी आई है? बिल्कुल नहीं। वर्ष 1989 से अब तक देखें तो प्रति व्यक्ति कार और एयरलाइंस यात्रा में 12 फीसदी की गिरावट आई है। चलिए स्वाथ्य क्षेत्र यानि हेल्थकेयर की बात करते हैं। वर्ष 1989 की तुलना में अब तक अमेरिकी जीडीपी में हेल्थकेयर का हिस्स 11 फीसदी से बढ़कर 18 फीसदी हुआ है। हेल्थकेयर पर कितना खर्च हुआ इसकी गणना करना आसान है, लेकिन इस सब रकम से वास्तव में क्या खरीदा गया है। मोटापे में अच्छी बढ़त के बावजूद बुनियादी स्वास्थ्य का रुख सकारात्मक दिख रहा है। उदाहरण के लिए वर्ष 1989 अब तक अमेरिका में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 4 फीसदी की बढ़त हुई है।
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अब बात पर्यावरण की करते हैं। अमेरिका के पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (टीईपीए) की गणना के मुताबिक वर्ष 1989 से अब तक छह बड़े प्रदूषक उद्योगों के उत्सर्जन में 60 फीसदी तक की गिरावट आई है। परिवारों की आय बढ़ने की गति से तो साफ हवा और पानी की खपत नहीं बढ़ी है, लेकिन पर्यावरणीय फायदों में सबने साझेदारी की है। 
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स्कूलों में बिताए जाने वाले औसत वर्षो के दौरान उपभोग किये जाने वाले कैलोरी में भी लगातार बढ़त हुई है। तो इस तरह से अगर जनगणना ब्यूरो कुछ भी कहे, सच तो यह है कि अमेरिका में वर्ष 1989 की तुलना में वर्ष 2012 में औसत पारिवारिक आय पर्याह्रश्वत रही है और लोगों गुणवत्ता और मात्रा, दोनों लिहाज से खपत भी ज्यादा की है। यह बढ़त कोई चकित करने वाली बात नहीं है। यह औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में जीवनशैली सुधरते रहने के पिछली दो शताब्दियों के रुख के मुताबिक ही है।
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अन्य लोगों की तरह, अर्थशास्त्री भी यह देख रहे हैं कि नए और सुधरे हुए उत्पाद आ रहे हैं। लेकिन जनगणना ब्यूरो की आमदनी रिपोर्ट को बहुत से मीडिया रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था में लंबे दौर के ठहराव का संकेत माना गया  है। तकनीकी रूप से इस तरह के ठहराव के संकेतों को सुखदायक या गुणवत्तापूर्ण समयोजन के द्वारा खारिज किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अब किसी नये कार की कीमत पहले के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा हो सकती है। कुछ तो उच्च गुणवत्ता और कुछ महंगाई की वजह से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। अर्थशास्त्रियों को यह तय करना पड़ेगा कि कितनी बढ़त महंगाई की वजह से हुई है और कितनी गुणवत्ता की वजह से। मान लीजिए कि कार की कीमत में इस बढ़त को 3 फीसदी महंगाई की वजह से और 2 फीसदी गुणवत्ता की वजह से माना जाता।
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अन्य लोगों की तरह, अर्थशास्त्री भी यह देख रहे हैं कि नए और सुधरे हुए उत्पाद आ रहे हैं। लेकिन जनगणना ब्यूरो की आमदनी रिपोर्ट को बहुत से मीडिया रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था में लंबे दौर के ठहराव का संकेत माना गया  है। तकनीकी रूप से इस तरह के ठहराव के संकेतों को सुखदायक या गुणवत्तापूर्ण समयोजन के द्वारा खारिज किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अब किसी नये कार की कीमत पहले के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा हो सकती है। कुछ तो उच्च गुणवत्ता और कुछ महंगाई की वजह से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। अर्थशास्त्रियों को यह तय करना पड़ेगा कि कितनी बढ़त महंगाई की वजह से हुई है और कितनी गुणवत्ता की वजह से। मान लीजिए कि कार की कीमत में इस बढ़त को 3 फीसदी महंगाई की वजह से और 2 फीसदी गुणवत्ता की वजह से माना जाता।
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अर्थशास्त्रियों को इस तरह के आंकड़े पेश करने में इस्तेमाल किये गए तकनीक के बारे में कुछ कठिन सवालों का जवाब देना होगा। संभवत: उन्होंने गुणवत्ता में बढ़त और आम कीमत रुख को एक ही आंकड़े में रखने की जरूरत न महसूस की हो। लेकिन उनकी इस समस्या की वजह से जनगणना ब्यूरो के रिपोर्ट का तो मजाक बनता ही है।
मैं पूरी तरह से यह तो नहीं कह सकता कि क्या हो रहा है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि लोग पहले की तुलना में थोड़ा गरीब कहा जाना पसंद करते हैं या हो सकता है कि अमेरिका में जिस तरह से आर्थिक असमानता बढ़ रही है, उसकी वजह से अमेरिकी किसी भी संदिग्ध आंकड़े पर भी भरोसा करने लगते हैं। जो भी हो, इसमें सुधार की जरूरत तो है।

(लेखक एडवर्ड हदास न्यूज एजेंसी रायटर्स से जुड़े हैं।) sabhar : bhaskar.com

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