आम ही आम, अब नहीं गुठली का काम


 





बिहार के लोगों के लिए एक अच्छी खबर है. अब तक तो यहां के लोग गुठली वाला आम ही खाया करते थे लेकिन अब बगैर गुठली वाले आम का भी मजा लेंगे. बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने महाराष्ट्र में विकसित सिन्धु प्रभेद का पौध लगा कर सफल प्रयोग किया है. तीन वर्षे के पौध में पहला फलन लगा आम इसके सफलता का द्योतक है. विश्व में पहली बार कोंकण विद्यापीठ संस्थान, महाराष्ट्र ने बगैर गुठली के आम को विकसित किया है. उस प्रभेद को विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित फल परियोजना प्रक्षेत्र में लगाया गया है. पौध से इस बार बेहतर फलन प्राप्त हुए हैं. इससे इतना स्पष्ट हो गया है कि अब आने वाले समय में बिहार की धरती पर भी इसका उत्पादन किया जा सकता है. बीएयू के उद्यान विभाग (फल) के विभागाध्यक्ष डॉ. वी.बी. पटेल कहते हैं सघन बागवानी के लिए भी यह उपयुक्त प्रभेद है.इसे आम्रपाली की तरह किचन गार्डन में भी लगाया जा सकता है. तीसरे वर्ष से फलन प्रारंभ हो जाता है. यह जुलाई के मध्य तक पकता है और इसमें गुठली नहीं के बराबर होती है.



फल लाल रंग का, कम रेशायुक्त होता है. प्रत्येक वर्ष फल देने वाला होता है. फल गुच्छे में आते हैं. गुदा गहरे पीले रंग का होता है.




इसका वजन 200 ग्राम के आस पास होता है. यह किस्म रतना और अलफांसो के संकरण से विकसित की गई है






बीएयू के कुलपति डॉ. मेवालाल चौधरी ने बताया कि गुठली रहित आम बिहार के आम उत्पादकों के लिए वरदान होगा. विविद्यालय में इसका फलन इसके सफल प्रयोग का गवाह है.


उत्साहित विश्वविद्यालय सिन्धु प्रभेद के इस पौध को अब किसानों तक उपलब्ध कराने पर विचार कर रहा है. यदि सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में बिहार के किसान विश्वविद्यालय से इसका पौध आसानी से प्राप्त कर सकेंगे और देश का पहला गुठली रहित आम घर-घर के थाली में होगा.आने वाले समय में यदि बेहतर ढंग से बिहार के किसान इसका उत्पादन करें तो इस प्रभेद की मांग विदेशों में बहुत ज्यादा हो सकती है.




अपने इस प्रभेद को लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिहार की विशेष पहचान बन सकती है.यहां यह बता दें कि विश्व में पहली बार इस प्रकार के नए प्रभेद को महाराष्ट्र में विकसित किया गया है जिसके उत्पादन का सफल प्रयोग बीएयू ने किया है. sabhar :
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