तीर्थों में अद्भुत शक्ति आखिर कहां से और कैसे आती है

eternal power of tirth

ज्योतिर्मय

पृथ्वी पर कुछ स्थान ऐसे हैं जो व्यक्ति की ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो नीचे की ओर ले जाते है। चेतना को अनायास ही ऊपर ले जाने वाले स्थान तीर्थ कहे जाते हैं। योग को विज्ञान की कसौटी पर कसने वाले विज्ञानियों का मानना है कि पृथ्वी पर कुछ स्थान तो स्वयंसिद्ध हैं।कुछ प्रयोगों और व्यवस्थाओं के जरिए संस्कारित किए जाते हैं। प्रसिद्ध थियोसोफिस्ट बेंजामिन जूइस के अनुसार भारत में इस तरह की जागृत जगहों की भरमार है। हिमालय को इस तरह के स्थानों का ध्रुव प्रदेश बताते हुए उन्होंने दावा किया कि हजार साल बाद मैडम ब्लैवटस्की, लेडबीटर, एनीबिसेंट आदि सिद्ध आत्माओं ने हिमालय के इन सिद्धकेंद्रों की खोज की।

वहां से आध्यात्मिक ऊर्जा की तरंगे भी फैलाई। कोयंबटूर के ईशा योग फाउंडेशन के अऩुसंधान कर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी पर उस तरह के नैसर्गिक केंद्रों की भरमार है। अगर आप ऐसे स्वयंसिद्ध केंद्र पर हों तो ऊर्जा अपने आप ऊपर की तरफ जाएगी। और इस केंद्र या स्थान से दूर जाने पर चेतना के उत्थान की विशेषता कम होती जाती है।ईशा फाउंडेशन के अनुसार भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में 33 डिग्री तक का क्षेत्र पवित्र होता है। इस केंद्र के दक्षिण में ज्यादा भूमि नहीं है, इसलिए मुख्य रूप से हम उत्तरी गोलार्ध पर ध्यान केंद्रित करते हैं। भूमध्य रेखा से 11 डिग्री का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

फाउंडेशन के विज्ञानियों के अनुसार यह शक्ति इसलिए है क्योंकि पृथ्वी घड़ी की उलटी दिशा में घूमती है। इस तरह वह अपकेन्द्री बल या फिर सेंट्रीफ्यूगल फोर्स उत्पन्न करती है। जो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को उसकी अधिकतम सीमा तक ऊपर उठाना चाहता है, वह इस स्थिति से बहुत लाभ उठा सकता है।तीर्थों में जिस तरह की दिव्य ऊर्जा होती है उसे जगाए और जिलाए रखना पड़ता है। इन स्थानो में होने वाले पूजा पाठ, जप तप और योगध्यान तीर्थों या इऩ स्थानों को संस्कारित रखने की ही व्यवस्था है।

यह बात अलग है कि उस व्यवस्था की अस्सी प्रतिशत से ज्यादा कड़ियां लुप्त हो गई हैं।
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