इस सत्य तक जाना हो, तो निर्वस्त्र जाना होगा

osho pravachan on knowledge

यह मजे की बात है। जिस दिन तुमने जो-जो जाना है, यदि उसे बिल्कुल विस्मरण कर दोगे, उस दिन तुम्हें आत्म स्मरण आएगा कि गुरु देता है ध्यान। इसका अर्थ है कि गुरु छीन लेता है ज्ञान। और जहां तुम्हें ऐसा गुरु मिले, जो तुमसे ज्ञान छीनता हो, वहां हिम्मत करके रुक जाना।

क्योंकि वहां से भागने का मन होगा। सोचेंगे, यहां हम तो कुछ लेने आए थे, उल्टा और गंवाने लगे। आदमी लेने के लिए घूम रहा है। कहीं से कुछ मिल जाए तो थोड़ा और अपनी संपत्ति बढ़ा ले। अपनी तिजोरी में थोड़ी जानकारी और रख लें, थोड़ा और पंडित हो जाएं।एक जर्मन खोजी रमण के पास आया और उसने कहा कि मैं आपके चरणों में आया हूं कुछ सीखने। आप मुझे सिखाएं। रमण ने कहा, तुम गलत जगह आ गए। अगर सीखना है, तो कहीं और जाओ। अगर भूलना है, तो हम राजी हैं। रमण के वचन हैं--‘इफ यू हैव कम टू लर्न देन यू हैव कम टु दि रांग परसन।

इफ यू आर रेडी टु अनलर्न देन आई एक रेडी टू हेल्प यू।’ वह जो तुमने जाना है, उसी के कारण तुम्हें अपना पता नहीं चल पा रहा है। तुम्हारे और तुम्हारे जानने के बीच में तुम्हारी जानकारी की दीवार खड़ी हो गई है।अगर तुम्हें स्वयं को जानना है तो और सब जानने के वस्त्र उतारकर रख दो। स्वयं का जानना तभी घटता है, जब भीतर और कुछ जानने का उपद्रव नहीं रह जाता। जब सब जानना शून्य हो जाता है, तब आती है आत्म-स्मृति; कबीर उसको ‘सुरति’ कहते हैं। तब होता है आत्म-स्मरण। तब आदमी स्व-विवेक से भर जाता है, आत्मज्ञान से।

आत्मज्ञान कोई जानकारी नहीं है। क्योंकि वह तो तुम हो ही। तुम्हारी जानकारियों के पर्दे जरा हट जाएं, थोड़ा तुम घूंघट के पट खालो, तुम्हें अपनी छवि दिखाई पड़नी शुरू हो जाएगी। यह सारा अस्तित्व दर्पण है। जिस दिन तुम्हारी आंख पर घूंघट नहीं होता, उस दिन तुम्हें अपनी छवि सब जगह दिखाई पड़ने लगती है।

चांद-तारे तुम्हीं को गुंजाते हैं। पक्षी तुम्हारा ही गीत गाते हैं। झरने तुम्हारा ही कल-कल नाद करते हैं। फूल तुम्हीं को खिलाते हैं। तुम ही इस अस्तित्व में फूले-फले समाए होते हो। लेकिन एक शर्त अनिवार्य है; कि सब जानकारी हटा कर रख दी जाए। सत्य तक जाना हो, तो निर्वस्त्र जाना होगा। सत्य तक जाना हो, तो जानने के सारे वस्त्र छोड़े देने होंगे। सत्य तक कोई नग्न होकर, शून्य होकर ही पहुंचता है। शून्यता यानी ध्यान।
ओशो

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