जब देवी के सामने सबको 'सेक्स' करने की आज्ञा मिली'

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ये अंश दीवान जरमनी द्वारा रचित उपन्यास 'महाराजा' से लिया गया है। 'महाराजा' उपन्यास हिंदुस्तान के राजा-महाराजाओं की निजी जीवनचर्या, प्रेम-प्रसंग और षड्यंत्र पर आधारित है।

मोती बाग पैलैस के उत्तर-पूर्व कोने में, एकांत में, एक बहुत बड़ा हाल था। उसी में सप्ताह में दो बार तांत्रिक सभाएं होने लगीं। इनमें सिर्फ वहीं लोग शरीक हो सकते थे जो नियमानुसार दीक्षा ले चुके हों और जिनकी अच्छी तरह परीक्षा ली जा चुकी हो।अनेक युवतियां, जिनमें कुछ कुंवारी भी थीं, इस नए मत में शामिल हो गईं। महाराजा के कुछ खास मुसाहिब और नातेदार भी दीक्षा लेकर सदस्य बन गए। परंतु महाराजा एक मामले में सावधान रहे कि उनकी सीनियर महारानियों या पुराने बुद्धिमान अफसर लोगों में से कोई इस मत में शामिल ना होने पाए जो उनके असली इरादे की जानकारी हासिल कर सके।
दीक्षा लेने वालें की तादात 300 से 400 तक पहुंच गई। धर्म सभा की हर बैठक में कम से कम 150 से 200 तक व्यक्ति शरीक होते थे, जिनमें दो तिहाई तादात औरतों की और एक तिहाई मर्दों की होती थी।कौलाचार्य व्याध्रचर्म पहने, घुटे सिर, संबी शिखा और सिंदूर से चेहरे को रंगे हुए आधायात्मिक गुरु की हैसियत से धर्म सभा का संचालन करता था। देखने में वह भयानक लेकिन गंभीर और तपस्वी लगता था। उसने अपने हाथ से देवी की एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई थी जिसे भांति-भांति के रंगों से रंग कर महाराजा के खजाने से लाए गए हीरे, मोतियों और कीमती रत्नों से जड़े हुए हार, बाजूबंद और बालियां वगैरह जेवरात पहनाए गए थे।शुरू में कोलाचार्य की आज्ञा पाकर सभा में एकत्र साधक भक्त देवी की पार्थना के भजन गाते। इसके बाद हर एक को देवी के प्रसाद की तरह-तरह की तेज मदिराओं को एक में मिलाकर तैयार की हुई शराब पीने को दी जाती। मद्यपान का यह दौर जब एक-दो घंटे चल चुकता और भक्तों को नशा चढ़ता तब कौलाचार्य कुंवारी युवतियों को बुलाता कि वे आगे आकर देवी के सामने एकदम नंगी हो जाएं और प्रार्थना के गीत गाएं। सभा में हर एक समारोह के मौके पर कौलाचार्य वहां मौजूद भक्तों में से किसी को - खास तौर पर महाराजा को ही- धार्मिक कृत्यों का संचालक नियुक्त करता है। कुंड में आग जलती रहती जिसमें भांत‌ि-भांति के मसाले, घी, अनाज, धूप आदि की आहुतियों देकर हवन होता रहता।ज्यो-ज्यों रात बीतती, साधक भक्तों को नशा चढ़ता जाता और वे अपनी सुध-बुध खो बैठते। तब कौलाचार्य पुरूषों और महिलाओं को आज्ञा देता था कि वे एकदम नंगे होकर देवी के सामने मैथुन (सेक्स) करें। रनिवास के घाय घर से बुलाई हुई 12 से 16 साल तक उम्र की कुंवारी लड़कियां नशे में चूर देवी के सामने नंगी करके लाईं जातीं।ये कुंवारी लड़कियां पहाड़ी इलाकों तथारियासत के गांवों से लाकर महल के घायघर में पाली जाती थी। जब वे सयानी हो जाती तब महाराजा की खिदमत में पेश होती और धर्म सभाओं में भी उनको शरीक होना पड़ता। उनकी गर्दन पर से शराब उड़ेली जाती जो उनके स्तनों पर से बहती हुई नीचे के अंगों तक पहुंचती। महाराजा तथा दूसरे पुरूष भक्त अपने होंठ लगाकर उस बहते हुए द्रव की कुछ बूंदे पीते, क्योंकि उसे बड़ा पवित्र और आत्मा को शुद्ध करने वाला प्रसाद माना जाता था। उसी समय देवी के आगे पशुओं की बलि दी जाती थी। उस हाल में जहां देवी की पूजा होती थी, चारो तरफ लहू बहने लगता।बधिक के सधे हुए हाथ के एक ही वार से बलि होने वाले पशुओं के खून से दरबार के हट्ठे-कठ्ठे सरदारों द्वारा पूरी ताकत से बलात्कार की शिकार कुंवारी लड़कियों की योनियों से निकला खून उनके बदन के निचले अंगों पर बहता हुआ आकर मिल जाता। sabhar :http://www.amarujala.com/

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