कंप्यूटर से जुड़ेगा दिमाग का रिश्ता
एक नई तकनीकी की मदद से कंप्यूटर जल्द ही यूजर के दिमाग को समझने लगेंगे. साइंस फिक्शन लगने वाली यह बात फ्लाइट सिमुलेटर में किए गए अपने पहले असली टेस्ट में कामयाब रही है
विमान उड़ाना सिर्फ कंट्रोल पैनल संभालना नहीं होता, लेकिन हाल ही में एक फ्लाइट सिमुलेटर में बैठे पायलट को हाथ का इस्तेमाल किए बिना विमान को अपने रास्ते पर रखने में कामयाबी मिली है. पायलट ने दिमागी गतिविधियों को मापने वाला इलेक्ट्रोड कैप पहन रखा था और पायलट ने दिमागी आंख में जॉय स्टिक की मदद से विमान का उड़ानपथ तय किया. हालांकि इस परीक्षण ने साइंस फिक्शन स्टाइल के दिमागी कंट्रोल को हकीकत बना दिया है लेकिन इस तकनीकी का इस्तेमाल अभी सालों दूर है. और वह भी सिर्फ असमर्थ पायलटों के लिए होगा.
यूरोपीय संघ की वित्तीय मदद से हुए ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट के पांच दलों को अलग अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी. म्यूनिख के फ्लाइट सिस्टम डायनामिक्स इंस्टीट्यूट के समन्वयक टिम फ्रीके ने बताया, "मैं समझता हूं कि इस तकनीकी को दूसरे इलाकों में इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण है और निश्चित तौर पर इसका इस्तेमाल पहले दूसरे इलाकों में ही होगा."
लोगों की दिलचस्पी
ब्रेनफ्लाइट प्रोजेक्ट के प्रेस रिलीज में प्रोजेक्ट की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए साइंस फिक्शन वाले मामले को उठाया गया था. टिम फ्रीके मानते हैं कि ऐसा जानबूझ कर किया गया. एरोप्लेन वाले स्टंट से पहले ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट के लिए बहुत सारा शोध किया गया था लेकिन फ्रीके का कहना है कि प्रयोगशालाओं में होने वाले शोध में मीडिया की दिलचस्पी नहीं होती. भले ही रिपोर्टरों के लिए लैब को दिखाना दिलचस्प न हो, लेकिन फ्रीके और उनके साथियों द्वारा विकसित तकनीक के लिए अच्छी संभावनाएं हैं. यह कंप्यूटर को ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस के जरिए हमारे विचारों और भावनाओं तक पहुंच की संभावना देकर उन पर काम करना और आसान बना सकता है.
बर्लिन की तकनीकी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉर्स्टन सांडर का मानना है कि इस प्रोजेक्ट का यही मकसद भी था. "मैं समझता हूं कि हम नए इंटरफेस बना सकते हैं जो आवाज की लय, संकेतों और नकल करने की आदतों जैसी यूजर की बहुत सारी सूचनाओं को इस्तेमाल करते हैं." उनका कहना है कि इस समय हम टाइप कर या कर्सर घुमाकर सीधे कमांड के साथ कम्प्यूटर के साथ कम्युनिकेट करते हैं.
कंप्यूटर कुछ सही न होने पर किसी यूजर की झल्लाहट को रिकॉर्ड नहीं करता है और न ही प्रोग्राम के धीमे चलने पर होने वाली बेचैनी को दर्ज करता है. सांडर कहते हैं कि ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस के साथ इस तरह की खोई हुई सूचनाएं कंप्यूटर को दी जा सकेगी. "मशीन यह तय कर लेगी कि क्या मैं इस समय व्यस्त हूं, क्या मैं स्थिति से संतुष्ट हूं, क्या मैं समस्याओं से परिचित हूं." यह तकनीकी माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस प्रोग्राम के एनिमेटेड पेपरक्लिप प्रोग्राम क्लिपी का स्मार्ट वर्जन होगा.
मरीजों की मदद
ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट के कॉर्डिनेटर टिम फ्रीके बताते हैं कि अतीत में अक्सर विमानन के क्षेत्र में हुए रिसर्च का फायदा नई तकनीकी विकास में होता रहा है. वह ब्रेनफ्लाइट के नतीजों को अस्पतालों में इस्तेमाल होते देखना चाहते हैं. वे इस समय एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे हैं जिसमें सर्जन ऑपरेशन थिएटर में ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस की मदद ले पाएंगे. योजना यह है कि एक कंप्यूटर सर्जन की दिमागी हालत का आकलन करेगा और उसे उसके सहायकों को बताएगा.
सांडर बताते हैं, "अगर सर्जन किसी चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहा है या कोई जटिल ऑपरेशन कर रहा है तो इसे एक छोटी लाल बत्ती के जरिए दिखाया जा सकता है ताकि सहायकों को पता होगा कि उस समय कोई सवाल नहीं करना है." इस सिस्टम के जरिए मानव दिमाग के बारे में सीधे संवाद या बोले बिना कंप्यूटर को बताया जा सकता है.
ब्रेन कंप्यूटर इंटरएक्शन का परीक्षण सिर्फ हवाई उड़ान के मामले में ही नहीं हुआ है. उसका कार ड्राइवरों के दिमाग की गतिविधि मॉनीटर करने के लिए प्रयोग हुआ है. ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइंस विभाग के एलन ब्लैकवेल कहते हैं, "कार निर्माताओं की दिलचस्पी इस बात का पता करने में है कि किस समय ड्राइवर कार चलाते हुए ध्यान एकदम केंद्रित नहीं कर रहा है, क्योंकि वह सो जा रहा है." टेस्ट ड्राइवरों पर इलेक्ट्रोड कैप या चमड़े से लगे कंडक्टर के जरिए रिसर्च की गई है लेकिन पाया गया है कि आंखों पर लक्षित कैमरे सबसे सटीक होते हैं.
कुछ कारों में इस बीच वह तकनीक बेची जा रही है जो ड्राइवर को उनींदे होने की स्थिति में चेतावनी देता है. ब्लैकवेल चेतावनी देते हैं कि रिसर्चरों को अपने समय से बहुत आगे नहीं होना चाहिए. "मैं समझता हूं कि तकनीक हमारे लिए भविष्य में क्या कर सकता है, यह सोचना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें अपना दिमाग बादलों में और पांव जमीन पर रखना होगा."
रिपोर्ट: मार्कुस कोस्टेलो/एमजे
संपादन: ए जमाल sabhar :http://www.dw.de/
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