अब बच्चों के होंगे तीन मां बाप

तीन लोगों के डीएनए से भ्रूण तैयार करने की रिसर्च को हरी झंडी मिलती नजर आ रही है. ब्रिटेन का कहना है कि इस तकनीक में कोई खतरा नहीं है और जल्द ही ऐसा मुमकिन होगा.

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यह तकनीक इस्तेमाल से पहले ही विवादों में घिरी है. कुछ महीनों से अमेरिका भी इस पर विचार कर रहा है. अब ब्रिटेन भी इसमें शामिल हो गया है. एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि इस तकनीक से कोई नुकसान पहुंच सकता है. रिपोर्ट की अध्यक्षता करने वाले डॉक्टर एंडी ग्रीनफील्ड ने बताया कि नतीजे लैब में हुए प्रयोगों और जानवरों पर किए गए टेस्ट के आधार पर तैयार किए गए हैं. उन्होंने कहा, "जब तक एक स्वस्थ शिशु पैदा नहीं हो जाता, तब तक हम 100 फीसदी कुछ नहीं कह सकते."
बच्चे की दो मांएं
इस तरह की तकनीक का मकसद है मां से बच्चे में आनुवंशिक बीमारियों के खतरे को रोकना. खून की जांच से पता लगाया जाएगा कि महिला को किसी तरह की आनुवंशिक बीमारी तो नहीं है. अगर उसके डीएनए में कोई गड़बड़ मिलती है, तो किसी और महिला के डीएनए का इस्तेमाल कर मां के अंडाणु में मिला दिया जाएगा. इसके बाद लैब में ही इसे शुक्राणु के साथ मिला कर फर्टिलाइज किया जाएगा और फिर मां के शरीर में डाल दिया जाएगा. इस तरह से सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मां की आनुवंशिक बीमारी भ्रूण तक न पहुंचे.रिसर्च के मकसद से इस तरह की तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति पहले से है. अब लंदन के स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि उसे उम्मीद है कि इस साल के अंत तक देश में ऐसे कानून को पारित कर दिया जाएगा जिसकी मदद से अस्पतालों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ करेगा. अगर ऐसा हुआ तो ब्रिटेन दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जहां तीन व्यक्तियों के डीएनए वाले भ्रूण को अनुमति होगी.
डिजाइनर बेबी का खतरा
इस तकनीक के आलोचकों का कहना है कि यह एक अनैतिक और खतरनाक तरीका है. इसके जवाब में डॉक्टर ग्रीनफील्ड ने कहा कि 1970 के दशक में जब आईवीएफ को ले कर चर्चा शुरू हुई थी, तब भी लोगों में सुरक्षा को लेकर इसी तरह के डर थे लेकिन पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के बाद से यह बहस धीरे धीरे कम होने लगी. वहीं अमेरिका के सेंटर फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी के मेर्सी डेरनोव्स्की का कहना है कि इस तरह की तकनीक डॉक्टरों और दंपतियों को डिजाइनर बेबी बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी.
जानकार बताते हैं कि कानून पारित होने के बाद से ब्रिटेन में हर साल कम से कम एक दर्जन महिलाओं को इसका फायदा मिलेगा, जिनके माइटोकॉन्ड्रिया में गड़बड़ है. इस तरह की गड़बड़ी से भ्रूण में दिल के रोग और मानसिक बीमारियों का खतरा होता है.
आईबी/एजेए (एपी)
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