भय आत्मा को कमजोर करता है :ओशो



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शरीर के बिना कुछ आनंद लिए जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आंनद तब भी लिया जा सकता है। 

लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, वह शरीर के बिना भोजन का रस नहीं ले सकता है। उसके प्राण छटपटाने लगते हैं कि वह कैसे शरीर में प्रवेश कर जाए। और जब उसके योग्य गर्भ नही मिलता है, तब वह कमजोर आत्मा -कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर का मालिक नहीं है-उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।

और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तो आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड़ जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। 

एक नहीं, बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में जाती है। और ऐसा करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वह शरीर से बंधे हैं। इसलिए वह दूसरे के शरीर में प्रवेश करके रस लेने की कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। 

इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मेहमान बन सकते हैं। कभी-कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी-कभी। 

लेकिन उनका प्रवेश दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करूणा के, जो शरीर के बिना नहीं किये जा सकते। जैसे समझें, एक घर में आग लगी है और कोई उस घर को आग से बचाने नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती है कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है। और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। 

मेरी तो हिम्मत न थी। और वह बढ़ जाता है, और आग बुझाने लगता है, और आग बुझा लेता है, और किसी को बचाकर बाहर निकल आता है। वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, किसी और ने मुझसे करवा लिया है। ऐसी किसी घड़ी में जहां कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत नहीं जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।

साभारः ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली
पुस्तकः मैं मृत्यु सिखाता हूं
प्रवचन नं. 5 से संकलित

परिचय

ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्य प्रदेश में रायसेन जिला के अंतर्गत कुचवाड़ा ग्राम में हुआ। ओशो अपने पिता की ग्यारह संतान में सबसे बड़े थे। 1960 के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' एवं 'ओशो भगवान श्री रजनीश' नाम से जाने गये।

ओशो ने सम्पूर्ण विश्व के रहस्यवादियो, दार्शनिको और धार्मिक विचारधाराओं को नवीन अर्थ दिया। अपने क्रान्तिकारी विचारों से इन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। 19 जनवरी 1990 को ओशो परमात्मा में विलीन हो गये।sdabhar :http://www.amarujala.com

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