खुल जाएंगे दिमाग़ के रहस्य

पॉल मैक्ग्रा
बीबीसी हेल्थ चेक
इंसानी दिमाग

सदियों से इंसानी दिमाग़ एक रहस्य रहा है. हालांकि पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिक इसके कुछ रहस्यों से पर्दा उठाने में सफल रहे हैं.
हाल के कुछ सालों में नई तकनीक और शक्तिशाली कंप्यूटरों की मदद से कुछ प्रमुख खोजें हो सकी हैं.
हालांकि इंसान के दिमाग़ के बारे में अभी भी बहुत कुछ समझना बाक़ी है. यहाँ हम आपको उन पांच महत्पूर्ण विषयों के बारे में बता रहे हैं जिनके पता लगने पर इंसानी दिमाग़ के अनसुलझे रहस्यों का राज़ जाना जा सकता है.

इसे ठीक कैसे करें?

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वैज्ञानिक डॉ एटीकस हैंसवर्थ का कहना है कि दिमाग के व्हाइट मैटर और इसमें होने वाली ख़ून की सप्लाई महत्वपूर्ण है.
जब हम सोचते हैं, चलते हैं, बोलते हैं, सपने देखते हैं और जब हम प्रेम करते हैं तो यह सब दिमाग़ के ग्रे मैटर में होते हैं. लेकिन हमारे क्लिक करेंदिमाग़ में केवल ग्रे मैटर ही नहीं है बल्कि व्हाइट मैटर की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
डिमेंशिया नाम की बीमारी के बारे में जब शोध किया जाता है तो क्लिक करेंदिमाग़ में मौजूद ग्रे मैटर के भीतर बीटा एमिलॉइड और टाउ प्रोटीन के एक दूसरे के साथ होने वाले रिएक्शन पर ग़ौर किया जाता है.
लेकिन एक ब्रितानी वैज्ञानिक डॉ. एटीकस हैंसवर्थ का कहना है कि दिमाग़ के व्हाइट मैटर और इसमें होने वाली ख़ून की सप्लाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.
व्हाइट मैटर तंत्रिका कोशिका के आख़िरी छोर 'एक्जॉन' के आसपास चर्बी के कारण बनता है. एक्जॉन तंत्रिका कोशिकाओं को एक दूसरे से जोड़ते हैं. यही तंत्रिका तंत्र को आपस में तालमेल बिठाने में मदद करते हैं.
डॉ. एटीकस हैंसवर्थ इसके बारे में अधिक जानकारी का पता लगाने के लिए ऑक्सफ़ोर्ड और शीफ़ील्ड में दान दिए गए क्लिक करेंमस्तिष्क के बैंक का प्रयोग कर रहे हैं.
वह कहते हैं, "कुछ मामलों में हमारे पास सीटी स्कैन और एमआरआई मौजूद हैं. इनसे हमें यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि क्या बीमारी की वजह व्हाइट मैटर था और अगर था तो इसकी क्या वजह हो सकती है ?
अगर डिमेंशिया की वजह ख़ून ले जाने वाली नाड़ियों में रिसाव है तो यह नई चिकित्सा प्रणालियों के लिए नया रास्ता मुहैया करा सकती है.

होनहार कैसे बनें ?

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कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के तंत्रिका तंत्र पर काम करने वाली वैज्ञानिक बारबरा सहाकियान ऐसी दवाइयों का पता लगा रही हैं जो हमें और बुद्दिमान बना सकती हैं.
कई सालों तक सतर्कता बढ़ाने के लिए कैफ़ीन का प्रयोग होता था. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के तंत्रिका तंत्र पर काम करने वाली वैज्ञानिक बारबरा सहाकियान ऐसी दवाओं का पता लगा रही हैं, जो हमें और बुद्धिमान बना सकती हैं.
वह इस बात का अध्ययन कर रही हैं कि इन दवाओं का प्रयोग कर सर्जनों और पायलेटों का प्रदर्शन कैसे सुधारा जा सकता है और क्या इनसे आम इंसान की काम करने की क्षमता में भी बढ़ोतरी की जा सकती है ?
लेकिन वह चेतावनी देती हैं कि इन दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल करने का बुरा असर भी हो सकता है. एक समाज के तौर पर हमें इस बारे में चर्चा करने की आवश्यकता है.
उनका कहना है कि मस्तिष्क में डोपामाइन और नॉरएड्रीनलीन जैसे रसायनों के बनने को प्रभावित करने वाली दवाओं से सामने आई वैज्ञानिक और नैतिक चुनौतियों पर बहस की आवश्यकता है. इस बहस में किसी परीक्षा से पहले परीक्षा देने वाले का टेस्ट होना भी शामिल है, जिसमें पता लगाया जाएगा कि कहीं उसने इन दवाओं का प्रयोग तो नहीं किया है.
डॉक्टर सहाकियान कहती हैं, "मैं विद्यार्थियों से इन दवाओं के बारे में अक्सर बात करती हूँ और बहुत से विद्यार्थी पढ़ने और परीक्षा देने के लिए यह दवाएं खाते हैं."
साथ ही उन्होंने कहा, "मगर बहुत से विद्यार्थी इससे नाराज़ होते हैं. उन्हें लगता है कि दवाएं लेने वाले विद्यार्थी बेईमानी कर रहे हैं."

अवचेतन से काम कैसे लें?

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बार बार संगीत की एक ही धुन बजाने से उसके सबसे मुश्किल हिस्से को भी बेहतरीन ढंग से बजाया जा सकता है.
किसी वाद्ययंत्र को बजाने के लिए या किसी बम को निष्क्रिय करने जैसे काम के लिए बहुत अच्छी कुशलता चाहिए होती है.
शोध यह बताते हैं कि हमारा अवचेतन दिमाग़ हमें सबसे बेहतर प्रदर्शन करने में मदद कर सकता है.
बार-बार संगीत की एक ही धुन बजाने से उसके सबसे मुश्किल हिस्से को भी बेहतरीन ढंग से बजाया जा सकता है.
लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ म्यूज़िक के सेंटर फॉर परफॉर्मेस साइंस में काम करने वाली सेलिएस्ट तानिया लिस्बोआ कहती हैं, "इससे संगीत की धुन का सबसे मुश्किल हिस्सा हमारे दिमाग़ के चेतन हिस्से से अवचेतन हिस्से में भी चला जाता है."
वह कहती हैं, "कई घंटे तक रियाज़ करने के बाद एक पारंगत संगीतज्ञ के दिमाग़ के पिछले हिस्से सेरेब्रम में इसकी जानकारी चली जाती है."
ससेक्स विश्विद्यालय के तंत्रिका वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर अनिल सेठ कहते हैं," सेरेब्रम में दिमाग़ के बाक़ी हिस्से की तुलना में ज़्यादा ब्रेन सेल होती हैं. "

सपने किसके लिए?

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प्रोफ़ेसर रॉबर्ट स्टिकगोल्ड का मानना है कि याददाश्त से संबंधित कार्य को आगे बढ़ाने में सपनों की अहम भूमिका होती है.
सपनों को लेकर हमारा आकर्षण तक़रीबन पांच हज़ार साल पुराना है. प्राचीन मेसोपिटामिया की सभ्यता के दौरान मान्यता थी कि सपने में हम जिस जगह को देखते हैं वहाँ हमारी आत्मा सोते हुए शरीर से निकलकर विचरण करती है.
बोस्टन के बेथ इस्राइल डिएकोनेस मेडिकल सेंटर फ़ॉर स्लीप एंड कॉग्निशन के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट स्टिकगोल्ड का मानना है कि याददाश्त से संबंधित कार्य को आगे बढ़ाने में सपनों की अहम भूमिका होती है.
वह जापान की स्कैनिंग रिसर्च के मुरीद हैं. इसमें वैज्ञानिक किसी एमआरआई स्कैन की तरह सपनों को पढ़ सकते हैं.
लेकिन उनका कहना है कि शोर-शराबे वाले महंगे स्कैनर में किसी व्यक्ति को सुलाना मुश्किल है.
तो भविष्य में क्या? प्रोफ़ेसर रॉबर्ट स्टिकगोल्ड कहते हैं, " मैं ऐसे अध्ययन होते देखना चाहूँगा, जहाँ सपनों के बनने के नियम पता लगाए जा सकें और यह पता लगाया जाए कि नींद के दौरान याददाश्त कैसे काम करती है?"
अगर ऐसा होता है, तो यह भी पता लगा सकते हैं कि केवल अच्छे सपने कैसे देखें और बुरे सपनों से कैसे बचें?

दर्द दूर हो सकता है?

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बहुत तेज़ दर्द से निपटना चिकित्सा विज्ञान के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
बहुत तेज़ दर्द से निपटना चिकित्सा विज्ञान के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
सर्जक अब इस सिद्धांत का परीक्षण कर रहे हैं कि डीप ब्रेन स्टिमुलेशन से दर्द से राहत दिलाई जा सकती है.
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन मस्तिष्क के ऑपरेशन की वह तकनीक है, जिसमें दिमाग़ के भीतर गहरे में अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए दिमाग़ में इलेक्ट्रोड्स डाले जाते हैं.
इससे पहले इस तकनीक का प्रयोग पर्किंसन और अवसाद जैसी बीमारियां ठीक करने में किया गया है. अब इसका प्रयोग ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर और असहनीय दर्द को ठीक करने में भी किया जा रहा है.
ऑक्सफ़ोर्ड के जॉन रेडक्लिफ अस्पताल के प्रोफ़ेसर टीपू अज़ीज़ इस तकनीक की शुरुआत करने वालों में से एक हैं. इस तकनीक के प्रयोग से वह अपने मरीज़ों का दर्द भी काफ़ी हद तक दूर कर रहे हैं.

वह कहते हैं, "दिमाग़ में इलेक्ट्रोड डालकर याददाश्त सुधारी जा सकती है या फिर आप सैनिकों पर इसका प्रयोग कर उन्हें ख़तरे से बेख़बर भी बना सकते हैं." sabhar :http://www.bbc.co.uk

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