इंटलिजेंट रोबोट्स किराने की दुकानों में

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ये सच है कि इंटलिजेंट रोबोट्स हमें सबसे पहले शायद किराने की दुकानों में भुगतान की क़तारों के पास नजर आएं।

किराना दुकानों में काम करने के लिए तैयार किए जा रहे पीआर-2 रोबोट्स फैक्ट्रियों में काम करने वाले रोबोट से अधिक होशियार हैं।

फैक्ट्रियों में काम करने वाले रोबोट को बस एक ही काम को बार-बार दोहराने के लिए तैयार किया गया है।

अमरीका के कोर्नेल विश्वविद्यालय में पीआर-2 पर काम कर रहे असिस्टेंट प्रोफेसर आशुतोष सक्सेना का कहना है कि इन रोबोट्स को अभी भी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

रोबोट्स के लिए आज भी सबसे बड़ी चुनौती है, परिवेश और परिस्थितियों को समझ पाना और अगर किसी वजह से उनमें थोड़ी तबदीली हो गई हो तो भी उसके मुताबिक़ काम को अंजाम दे पाने की क्षमता रखना।

रोबोट में आपराधिक प्रवृत्ति

लेकिन घबराए नहीं बैक्सटर में वैसी आपराधिक प्रवृत्ति नहीं पैदा होगी कि वो किसी का कत्ल कर दें, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो ये महज़ एक दुर्घटना का नतीजा होगी।

कोर्नेल विश्वविद्यालय के छात्र इनमें कॉमन सेंस या व्यावहारिक बुद्दि की क्षमता विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि किसी धारदार चीज़ को हाथ में लेते वक्त उनमें इससे पैदा होने वाले ख़तरे का एहसास हो सके।

बैक्सटर में इस तरह का एहसास पैदा करने की कोशिश भी की जा रही है कि वो ये जान सके कि आसानी से टूट सकने वाले सामानों को किस तरह संभालना है।

अगर कोई रोबोट स्थिति को समझने में चूक करता है तो साथ मौजूद ह्यूमन हैंडलर उसके हाथ की दिशा ठीक कर देता है। ऐसा करना तब तक जारी रहता है जब तक रोबोट में कुछ खास किस्म के काम कर सकने की समझ विकसित नहीं हो जाती है।
समझने की क्षमता
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कोर्नेल विश्वविद्यालय में शोध कर रहे छात्र आशीष जैन कहते हैं, "ये चीज़ों में फर्क करना सीख जाता है। जैसे अगर वो एक स्क्रू ड्राइवर को मूव कर रहा है तो वो सीख ले कि उसे इसके साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। अगर वो अंडे के डब्बों को एक जगह से दूसरी जगह उठाकर रख रहा है तो उसे ये समझना होगा कि ये आसानी से टूट सकता है और उसे रखते वक्त हाथ को मेज की सतह के बहुत क़रीब ले जाना होगा।"

लेकिन रोबोट में अगल अलग चीज़ों को देखकर उनकी पहचान करने की क्षमता विकसित करना आसान काम नहीं है।

उसे ये सब कुछ सेंसर और कैमरों की मदद से करना सीखना है। इस काम में उसे तब बहुत आसानी होती है जब किसी जगह मौजूद सामान अलग-अलग रंग के हों। मशीनों में इस तरह की क्षमता तो दशकों से मौजूद रही है कि वो पहले से तय की गई चीज़ों को हैंडल कर पाएं।

लेकिन उनमें अभी भी मेज पर पड़ी अलग-अलग तरह की वस्तुओं में फर्क करने की समक्ष विकसित होने में समय लगेगा।

थ्रीडी कैमरों का इस्तेमाल

कोर्नेल विश्वविद्यालय के एक अन्य छात्र ईयान लेन्ज़ कहते हैं, "हमने थ्रीडी कैमरों का इस्तेमाल किया है लेकिन अभी भी इतने सूक्ष्म कैमरे नहीं तैयार हो पाए हैं कि हम उन्हें रोबोट्स के हाथों पर फिट कर पाएं। सोनार की सुविधा भी है लेकिन वो इस तरह के काम में बहुत सफल नहीं हो पाता है।"

रोबोट्स को विकसित करने वाले पिछले कुछ समय से उनमें पूर्वानिमान की क्षमता पैदा करने की कोशिश की जा रही है। मनुष्य अपनी जिंदगी का बहुत सारा काम हर क्षण इसके सहारे करते हैं, लेकिन मशीन में इस सामर्थ्य को विकसित करने के लिए हज़ारों कोड्स डालने पड़ते हैं।

हेमा कपुल्ला बताती हैं कि मनुष्यों के वीडियो को लगातार देखने के बाद इन रोबोट्स में इस बात की 75 फ़ीसद समझ विकसित हो गई है कि आनेवाले तीन सेकंड के भीतर क्या होने जा रहा है, लेकिन अगर समय तीन सेकंड से ज्यादा का होता है तो फिर इनकी सफलता का प्रतिशत कम हो जाता है।

उन्होंने बताया कि इंसानों के कामकाज दिखाने वाली ढेर सारी सामग्री इक्ठ्टा करते हैं और कोशिश करते हैं कि ये उससे सीखे। अगर एक व्यक्ति एक प्याली उठा रहा है तो इसका इस्तेमाल वो कुछ पीने के लिए करेगा या किसी और जगह रखेगा।

रोबोट को लेकर आशंकाएं

तो क्या ऐसा वक्त आएगा जब रोबोट्स दुनियां पर कब्जा कर लेंगे और इंसानों का वजूद ख़त्म हो जाएगा। अगर ऐसा हो सकता है तो भी ये कम से कम हमारे जीवनकाल में तो नहीं होने जा रहा है।

प्रोफेसर आशुतोष सक्सेना का मानना है कि ये हो सकता है कि वो किसी खास काम में इंसानों के साथ-साथ रहकर उनकी मदद करें। जैसे किसी सुपर मार्केट की आलमारियों में सामान रखने का काम।

उन्होंने बताया, "आने वाले दिनों में ये होगा कि इंसान और रोबोट्स मिलकर काम करेंगे जिससे काम में तेज़ी आएगी।"

हो सकता है कि ये सब आनेवाले कुछ दिनों में संभव हो जाए क्योंकि रोबोट पर रिसर्च करने और उन्हें विकसित करने की कीमतों में गिरावट आ रही है। जैसे पीआरटू को तैयार करने में तीन लाख डॉलर का ख़र्च आया। जैसे जैसे इस खर्च में कमी आती जाएगी अधिक से अधिक प्रयोगशालाओं इनपर काम करना शुरू कर देंगी। sabhar :http://www.amarujala.com

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