दस नयी तकनीकें, जो बदलेंगी दुनिया



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आज के नॉलेज में चर्चा 2013 में सामने आयी उम्मीद जगानेवाली दस ऐसी तकनीकों की, जो आनेवाले वर्षो में हमारे जीने का अंदाज बदल सकती है.
नया सोलर पैनल
मौजूदा समय में बाजार में उपलब्ध सोलर पैनल में सिंगल सेमीकंडक्टिंग सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे आम तौर पर सिलिकॉन के रूप में जाना जाता है. चूंकि सोलर स्पेक्ट्रम के संकरे बैंड महज कुछ ही सामग्री को अवशोषित कर पाते हैं, इसलिए सूर्य से हासिल होनेवाली अधिकांश गरमी ऊर्जा के तौर पर परिवर्तित नहीं हो पाती है और वह विनष्ट हो जाती है. इस तरह ये पैनल 20 फीसदी से भी कम ऊर्जा को इलेक्ट्रिसिटी में तब्दील कर पाते हैं. हाल ही में ईजाद की गयी नयी तकनीक के माध्यम से अब इसकी क्षमता को कम से कम 50 फीसदी तक बढ़ाया जा सकेगा. इसे कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसमें छह से आठ कम्पोनेंट वेवलेंथ लगाये गये हैं. इसके माध्यम से प्रत्येक अलग तरह प्रकाश का रंग बिखेरेगा और प्रिज्म की भांति यह कार्य करेगा. इसके बाद प्रत्येक रंग को सेमीकंडक्टर निर्मित सेल को भेजेगा, जो इसे अवशोषित करेगा. जैसे ही प्रकाश इस सामग्री में दाखिल होगा, तो पतले ऑप्टिकल फिल्टरों की श्रृंखला से यह टकरायेगा.
हालांकि, इस दिशा में कार्यरत टीम ने कई अलग प्रकार के डिजाइनों का विकास किया है. अब तक पूरी तरह से यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि किस डिजाइन का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. यह टीम सोलर पैनल की लागत कम करने की दिशा में काम कर रही है. उम्मीद है कि इसकी कीमत कम करने में भी कामयाबी मिलेगी. इसके ज्यादा सक्षम मॉड्यूल का निर्माण करते हुए पहले के मुकाबले कम पैनलों के माध्यम से ही समान मात्र में ऊर्जा उत्पन्न की जायेगी. ऐसा होने से हार्डवेयर और इसे स्थापित करने की लागत में कमी आ सकती है. माना जा रहा है कि सोलर उपकरण की क्षमता दोगुनी होने से नवीकरणी ऊर्जा के अर्थशास्त्र में व्यापक बदलाव आ सकता है.
 टेम्पररी सोशल मीडिया
निजता का एक आवश्यक तत्व यह है कि दूसरों को जिन तथ्यों की हम जानकारी दे रहे हैं, उन पर हमारा कितना नियंत्रण है. आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. दुर्भाग्य से हम अपने जिस फोटो को सोशल मीडिया साइट पर पोस्ट करते हैं या अपने स्टेटस को अपडेट करते हैं; वह सभी चीजें आपके नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं. इतना ही नहीं, वह इंटरनेट के संजाल में स्टोर भी हो सकता है. पिछले वर्षो के दौरान स्नेपचैट मोबाइल फोन एप की लोकप्रियता में बेहद नाटकीय तरीके से बढ़ोतरी देखी गयी है. बताया गया है कि स्नेपचैट के माध्यम से रोजाना दस करोड़ से ज्यादा फोटो और वीडियो भेजे जा रहे हैं. मार्क जुकरबर्ग ने   इसे लेकर फेसबुक की निजता पर चिंता जतायी है.
सवाल है कि आखिर टेम्पररी सोशल मीडिया लोगों को अपनी ओर इतना क्यों खींचती है? स्नेपचैट के संस्थापकों का मानना है कि वे लोगों को उनकी सोच के मुताबिक कुछ भी अभिव्यक्त करने की आजादी प्रदान करते हैं. अन्य सोशल मीडिया पोस्ट्स की तुलना में भेजने और प्राप्त करने के दृष्टिकोण से यह ज्यादा रोचक है, क्योंकि यह अल्पकालिक होते हैं. लेकिन इसे वाकई में आजकल संवाद करने का एक स्वाभाविक तरीका माना जाने लगा है. जहां एक ओर फेसबुक और ट्विटर आपके प्रत्येक ऑब्जर्वेशन और गतिविधियों को स्टोर करते हैं, वहीं टेम्पररी सोशल मीडिया में ऐसा नहीं होता. स्नेपचैट की तकनीक कुछ मायनों में बेहद उल्लेखनीय है. इस तकनीक के माध्यम से प्रदर्शित होनेवाली चीजें कुछ ही समय के लिए स्टोर करके रखी जा सकती हैं. इसमें कुछ खास कमांड का बारीकी से ख्याल रखने पर भेजनेवाले को यह पता चल जाता है कि जिसे भेजा गया है, उसने तस्वीर को सुरक्षित रखा है या फिर किसी दूसरे को भेजा है. हालांकि, कंपनी की प्राइवेसी पॉलिसी में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती कि सभी मैसेज डाटा को अनिवार्य रूप से नष्ट कर दिया गया होगा.
 चिप फोन्स
सामान्य मोबाइल फोन्स से एकत्र की गयी सूचना के विश्लेषण से लोगों में व्यापक जागरूकता कायम की जा सकती है और यह हमें बीमारियों के फैलने की जानकारी मुहैया कराता है. दुनियाभर में तकरीबन छह अरब मोबाइल फोन्स से भारी तादाद में आंकड़ों का सृजन होता है. इसमें कॉमर्शियल गतिविधियों की सूचना और स्थान को ट्रैक करने समेत सोशल नेटवर्क के लिंक मौजूद रहते हैं. ज्यादातर इस्तेमाल होनेवाले मोबाइल फोन चिप आधारित हैं. इनके माध्यम से किये जा रहे कॉल और टेक्स्ट मैसेज के अलावा अन्य गतिविधियों में भी ये व्यापक बदलाव ला सकते हैं.  पर ऐसी गतिविधियों को सेल-फ ोन टावर ट्रैक कर सकता है और किसी व्यक्ति की सामान्य गतिविधियों को आसानी से समझ सकता है. मोबाइल भुगतान तकनीक के विस्तार से सामान्य कारोबार का स्वरूप बदल रहा है और इससे रोजगार की नयी प्रवृत्तियां सामने आ रही हैं. हाल ही में केन्या में लोगों के आपसी टेक्स्ट मैसेज से यह जानने में सहायता मिली है कि किस खास इलाके में ज्यादा मच्छर पैदा हो रहे हैं. इससे वहां मलेरिया जैसी बीमारी से निबटने में जरूरी रसायनों के छिड़काव के लिए स्थानों की पहचान की जाती है. अन्य कई देशों में भी कई तरीकों से इन आंकड़ों का इस्तेमाल नागरिक सुविधा के लिए लागू की जानेवाली योजनाओं के कार्यान्वयन में किया जा रहा है.
 स्मार्ट वॉच
यदि आप सामान्य जानकारी हासिल करने, इमेल चेक करने आदि के लिए कंप्यूटर तक नहीं जाना चाहते, तो आप के लिए खास हैं ये स्मार्ट वॉच. नीदरलैंड में डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के एक छात्र ने पांच वर्ष पहले ही इसका डिजाइन तैयार कर लिया था. पेबल वॉच के नाम से मशहूर ये घड़ियां बेहद उपयोगी हैं. पेबल का इस्तेमाल आइफोन या एंड्रोयड फोन से बिना तार के ब्लूटूथ से संपर्क में लाने में मदद करता है और इस्तेमाल करनेवाले की इच्छा के मुताबिक जरूरी सूचना, संदेशों और सामान्य आंकड़ों को प्रदर्शित करता है. संगीतकारों के समूह को प्रस्तुति के दौरान यह उन्हें नियंत्रित रखने के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है. बिना किसी बैटरी के इसकी ब्लैक एंड व्हाइट स्क्रीन को सूर्य की रोशनी में आसानी से देखा जा सकता है. बताया गया है कि ये घड़ियां कुछ ही महीनों में बाजार में लोगों के लिए मुहैया करायी जानेवाली हैं. इसकी खासियतों को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि यह लोगों के बीच लोकप्रिय होगी.
 मेमोरी इंप्लांट्स
अब वह दिन दूर नहीं जब किसी कारणवश किसी व्यक्ति की याददाश्त खोने पर इलेक्ट्रॉनिक इंप्लांट्स की मदद से उसे मदद हासिल हो सकती है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न कैलिफोर्निया, लॉस एंजिल्स के एक बायोमेडिकल इंजीनियर और न्यूरोसाइंटिस्ट ने इस तकनीक का इजाद किया है. अलजाइमर, स्ट्रोक या किसी दुर्घटना से न्यूरोनल नेटवर्क के बाधित होने की दशा में यह फायदेमेंद साबित होगा. आरंभिक शोध के दौरान चूहे और बंदर के मस्तिष्क को इलेक्ट्रॉड्स के द्वारा कनेक्ट करते हुए यह दर्शाया गया कि यह तकनीक किस प्रकार काम करती है. बताया गया है कि इससे इससे याददाश्त की क्षमता को फिर से दिमाग में सृजित किया जाता है. एक शोधकर्ता का दावा है कि यह दो लाख से ज्यादा सुनने में अक्षम लोगों के लिए मददगार साबित हो रहा है. ध्वनि को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में तब्दील करते हुए इनके ऑडियोटोरी नर्व तक इसे भेजा जाता है, जो इन्हें सुनने में मदद करता है. हालांकि, पूर्व के प्रयोगों में इसका इस्तेमाल केवल लकवाग्रस्त लोगों तक ही सीमित था, जिनमें इलेक्ट्रॉड्स प्रत्यारोपित करते हुए इधर-उधर घूमने में सहायता करता था. बताया गया है कि एक न्यूरोसाइंटिस्ट ने दिमाग में लंबी अवधि तक याददाश्त को कायम रखनेवाली चीज को समझने में सफलता पायी है. इसी चीज को इंप्लांट करते हुए यह कारनामा करने में कामयाबी हासिल हुई है.
 बाक्टर रोबोट
बाक्टर के नाम से जाना जानेवाला यह रोबोट अधिकतर औद्योगिक रोबोट के मुकाबले ज्यादा सस्ता है. इसके सॉफ्टवेयर सामान्य कंप्यूटर से संचालित किये जाते हैं, जो इसके बीच में लगा होता है. इसे सेंट्रल कमांड के नाम से जाना जाता है. इसका फेस ही इसके स्टेटस को सूचित करता है. यह अपने आसपास मौजूद लोगों को भांप लेता है. यह कामगारों को अपना कार्य पूरा करना भी सिखाता है. निर्माणकार्यो में मददगार मौजूदा रोबोट में से ज्यादातर साथ-साथ काम करने में खतरनाक होते हैं, लेकिन बाक्टर बेहद सजहता से गतिविधियों को अंजाम देता है और गड़बड़ियों को आसानी से समझ लेता है. इसमें दोनों तरफ से कैमरे लगे होते हैं, जिससे इसकी देखरेख भी ज्यादा आसान है.
 भाषाओं की समझ
गणना करने की क्षमता में बढ़ोतरी होने के बीच मशीन अब चीजों को पहचान सकता है और उसे निर्धारित समयसीमा में बोलते हुए बता भी सकता है. कृत्रिम प्रतिभा आखिरकार बेहद स्मार्ट हो चुकी है. दुनिया में इंटरनेट खोज से जुड़ी बड़ी सेवा प्रदाता कंपनी गूगल इस दिशा में कार्य कर रहा है. यह कंपनी एक खास तरह का सॉफ्टवेयर इजाद कर रही है, जिससे इनसान को कंप्यूटर माध्यम से काम करने में बेहद आसानी होगी. सही मायने में यह सॉफ्टवेयर ध्वनि, तसवीर और अन्य आंकड़ों के डिजीटल प्रस्तुतिकरण में तरीकों की पहचान करने में सक्षम है. माना जा रहा है कि ऐसा होने से किसी एक भाषा से दूसरी भाषा में चीजों को रूपांतरित करने में यह मददगार साबित होगा. गूगल ने कम-से-कम गलतियों के साथ शब्दों की पहचान के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल हालिया लॉन्च की गयी एंड्रॉयड मोबाइल सॉफ्टवेयर में किया है. इतना ही नहीं, माइक्रोसॉफ्ट ने इसे एक व्याख्यान को अंगरेजी भाषा से चीनी भाषा में रूपांतरित किया है.
 3-डी प्रिंटिंग
जनरल इलेक्ट्रिक ने इस क्षेत्र में एक नयी क्रांति का सूत्रपात करते हुए पारंपरिक तौर पर निर्मित की जा रही चीजों को बिल्कुल बदल दिया है. दुनिया में सबसे ज्यादा जेट इंजनों की आपूर्ति करनेवाली इस कंपनी की एविएशन डिवीजन ने नये एयरक्राफ्ट इंजन की मरम्मत के लिए फ्यूज नोजल का पिंट्र तैयार करते हुए इसे ठीक किया. पहले इसके लिए धातु की वेल्डिंग की जाती थी. इस तकनीक को ‘एडीटिव मैन्यूफैक्चरिंग’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें किसी मेटेरियल को बेहद पतले लेयर में विभाजित करते हुए उस खास वस्तु को बनाया जाता है. 3-डी पिंट्रिंग का औद्योगिक वजर्न, जिसे एडीटिव मैन्यूफैक्चरिंग के नाम से जाना जाता है, मेडिकल इंप्लांट्स के कार्यो में भी मददगार साबित हो रहा है. साथ ही, यह इंजीनियरों और डिजाइनरों के लिए प्लास्टिक प्रोटोटाइप का भी उत्पादन कर रहा है. किसी मशीन या उपकरण के पार्ट्स को शीघ्रता से कहीं भी बनाने में इसकी अहम भूमिका देखी जा रही है. पारंपरिक तकनीक से होनेवाली निर्माण प्रक्रिया के मुकाबले इस तकनीक से की जानेवाली निर्माण प्रक्रिया में कम सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है. बताया गया है कि इससे जीइ कंपनी की वस्तुओं के निर्माण की लागत कम हुई है. आम लोगों के लिए भी यह तकनीक बहुत ही उपयोगी साबित हो रही है. कंप्यूटर नियंत्रित इस तकनीक के माध्यम से किसी भी चीज का नमूना बना कर उसका निर्माण करना बेहद आसान हो गया है.
 प्रसवपूर्व डीएनए अनुक्रमण
भ्रूण का डीएनए पढ़ना जीनोम क्रांति की अगली सीमा है. क्या आप वास्तविक में अपने अजन्मे बच्चे के आनुवंशिक भाग्य के बारे में जानना चाहते हैं? दुनियाभर में इस्तेमाल हो रही डीएनए सिक्वेंसिंग मशीन का निर्माण करनेवाली कंपनी इल्यूमिना ने इस वर्ष एक अन्य कंपनी वेरीनाटा को तकरीबन 50 करोड़ डॉलर का भुगतान किया है. दरअसल, वेरीनाटा के पास ऐसी तकनीक है, जिससे जन्म से पहले ही मानवीय भ्रूण के डीएनए को समग्रता से समझा जा सकता है. अमेरिका की इस कंपनी का दावा है कि गर्भवती माताओं का परीक्षण करते हुए यह घातक डीएनए के बारे में पता लगाने में सीरींज से ही सक्षम है. इससे इन माताओं में डाउन सिंड्रोम के बारे में भी आसानी से पता लगाया जा सकता है. अब तक, डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए गर्भनाल से घातक कोशिकाओं या तरल पदार्थो को निकाला जाता था. इस प्रक्रिया में बहुत जोखिम हुआ करता था. शरीर विज्ञान में क्रोमोसोम 21 एक ऐसी परिघटना में, जिसमें भ्रूण पर इसका घातक प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है. देखा गया है कि अमेरिका में ही इस तरह के मामलों में तकरीबन 65 फीसदी महिलाएं इसका इलाज कराने की बजाय गर्भपात कराने को तवज्जो देती हैं. इस समस्या के निदान के तौर पर भी इस तकनीक को बेहद कारगर माना जा रहा है.
 सुपर ग्रिड्स
उच्च-वोल्टेज डीसी पावर लाइन्स से हजारों किलोमीटर की दूरी तक काफी सक्षम तरीके से बिजली का संचरण किया जा सकता है. नये ट्रांसमिशन ग्रिड से लंबी दूरी तक पानी की सतह से नीचे से होकर भी एसी पावर लाइन्स को गुजारा जा सकता है. लेकिन अब तक बिंदु से बिंदु तक विद्युत संचरण के लिए उच्च-वोल्टेज डीसी का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसलिए इसका ग्रिड बनाने में दिक्कत होती है.

एक स्विस कंपनी ने इसका समाधान किया है और इस तरह के ग्रिड के निर्माण में आनेवाली बाधाओं को दूर किया है. इसने एक व्यवहारिक उच्च-वोल्टेज डीसी सर्किट ब्रेकर का विकास किया है, जो ग्रिड में बाधा उत्पन्न करने वाले पार्ट्स को डिसकनेक्ट कर देता है. माना जा रहा है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा को ज्यादा सक्षमता से सुदूर इलाकों तक संचरण में सहायक होगा. इससे सौर ऊर्जा का संग्रहण करते हुए हजारों किमी दूर देश तक पहुंचाया जा सकेगा. इतना ही नहीं, ‘विंड पावर’ से पैदा हुई बिजली से समूचे यूरोप की सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था की जा सकती है. sabhar : http://www.prabhatkhabar.com

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