पेड़ :जिसको छूने मात्र से ही आपकी सारी थकान गायब हो जाए

PICS: हजारों साल पुराने चमत्कारी पेड़ के बारे में जान, रह जाएंगे हैरान!

अभी तक आपने कई पेड़ पौधों के बारे में सुना होगा। उनकी चमत्कारिक शक्तियों के बारे में भी जानते होंगे। पर क्या किसी ऐसे पेड़ के बारे में भी सुना है जिसको छूने मात्र से ही आपकी सारी थकान गायब हो जाए। आपकी मांगी हुई सारी मन्नतें भी पूरी हो जाए जी हां बाराबंकी जिले में एक ऐसा ही पेड़ है जो कई सालों से श्रद्धा और आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है। उसका नाम है परिजात। आइए पहले हम आपको परिजात की विशेषताओं के बारे में बता दें। राजधानी लखनऊ से 28 किमी दूर बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में बोरोलिया गांव में परिजात वृक्ष स्थित है। करीब पैंतालिस फीट ऊंचे और पचास फीट मोटे इस परिजात की अधिकांश शाखाएं धरती की और मुड़ जाती हैं। धरती छूते ही यह शाखाएं अपने आप सूख जाती है। यह भी कहा जाता है कि परिजात वृक्ष की प्रजाति भारत में नहीं मिलती। पूरे भारत में एक मात्र यही परिजात है। इसकी आयु करीब पांच हज़ार से एक हज़ार साल तक होती हैमान्यता है की परिजात पेड़ की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। जिसे भगवान इंद्रा ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। माना जाता है जब पांडव पुत्र कुंती के साथ अज्ञातवास कर रहे थे, तब उन्होंने ही सत्यभामा की वाटिका से उसे लाकर बोरोलिया गांव में रोपित किया था। तब से ही यह वृक्ष आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह भी मान्यता है कि अर्जुन परिजात को स्वर्ग से लेकर आए थे।यह भी कहा जाता है समुद्र मंथन के बाद स्वर्गलोक के राजा इंद्र ने नारद ऋषि को पारिजात के कुछ फूल भेंट में दिए थे। नारद जी ने उन फूलों में से एक भगवान कृष्ण को दिया। जिसे उन्होंने अपनी पत्नी रुकमणी को भेंट कर दिया। यह देख नारद जी श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और सारा हाल उन्हे बतलाया। यह सुनकर सत्यभामा के मन में द्वेष की भावना आ गई। नारद जी ने उन्हें सुझाव दिया कि वह भी श्रीकृष्ण से वैसा ही फूल ला कर देने का अनुरोध करें। साथ ही नारद जी ने इंद्र को भी सावधान कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा परिजात वृक्ष की एक डाल ले जा रहे थे तभी वहां इंद्र आ गए और कृष्ण से वृक्ष न ले जाने का अनुरोध किया। कृष्ण के ना मानने पर युद्ध छिड़ गया और इंद्र को हार का मुंह देखना पड़ा।परिजात वृक्ष को कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह सभी की कामनाओं को पूर्ण करता है। यह वृक्ष उन 14 रत्नों में से एक है जो समुद्र मंथन द्वारा देवताओं और असुरों ने प्राप्त किए थे। यह वृक्ष महाभारत काल से मौजूद हैबाराबंकी के बोरोलिया में यह पेड़ पिछले कई वर्षों से कई लोगों की जहां थकान दूर कर रहा है। वहीं कईयों की मनौतियां भी पूरी कर रहा है। ऐसे में यदि आप लखनऊ घूमने आ रहे हैं, तो आप की भी कोई इच्छा हो तो बोरोलिया गांव आकर स्वर्ग से आए इस पेड़ से अपनी मनौतियों को मान सकते हैं। sabhar : bhaskar.com

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