राजदरबार में रखा रावण का सिंहासन
श्रीलंका की 10 दिनी सांस्कृतिक यात्रा से लौटकर ललित निबंधकार डॉ. श्रीराम परिहार ने अपने संस्मरण सुनाए। बकौल डॉ. परिहार वहां रामकालीन इतने अवशेष और प्राच्य सामग्री है जो इसे धार्मिक मान्यता और आस्था तक सीमित नहीं करती, बल्कि इसके ऐतिहासिक होना भी प्रमाणित करती है। यह सांस्कृतिक यात्रा अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने कराई। यात्रा का उद्देश्य श्रीलंका में फैले राम कालीन अवशेष को दिखाना और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना था। सांस्कृतिक दल में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र गुजरात, उड़ीसा प्रदेशों के 10 विद्वान गए थे।रावण का खंडित हो चुका महल। उसका राज सिंहासन। अशोक वाटिका। वहां बहता प्राकृतिक झरना। झरने के पानी के पास ही पत्थरों पर विशालकाय पैरों के निशान जो हनुमानजी के बताए जाते हैं। जली हुई लंका के अवशेष। मैं यह अवशेष देखता तो रामचरितमानस की चौपाइयां जेहन में गूंजने लगती। लगा जैसे राम-रावण युग में पहुंच गया। सीता यहीं रही। हनुमानजी यहां संजीवनी लेकर आए थे और वहां लक्ष्मण ने विभीषण का राजतिलक किया था। सब कुछ तो है जो रामायण और मानस में लिखा है
चट्टान पर हनुमानजी के पैरों के निशान
जमीन के जले होने के निशान : समुद्र किनारे वह स्थान हैं जहां लंका जलाने के बाद हुनमानजी ने पूंछ बुझाई थी। यहां 10 किलोमीटर क्षेत्र में जलने के निशान है। कोई पेड़ नहीं। जमीन व चट्टानें जली हैं।
गायत्री शक्तिपीठ में नर्मदा के शिवलिंग : नारवाएलिया में स्थिति गायत्री शक्तिपीठ में नर्मदा नदी से ले जाए शिवलिंग है। विधिविधान से हर रोज पूजा-अर्चना होती है। श्रीलंका में तमिल भाषी हिंदू 18 प्रतिशत हैं। यह शिव व राम के उपासक है। प्रत्येक हिंदू मंदिर के आसपास बौद्ध मंदिर हैं।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें