विकृत मानसिकता है हॉरर किलिंग`


`विकृत मानसिकता है हॉरर किलिंग`

वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ इलाकों में अभी भी खाप पंचायतों का अहम रोल है। पिछले कुछ साल में खाप पंचायत की इमेज `तानाशाह` सरीखी हो गई है जो संस्कृति के नाम पर ऐसे फैसले देते हैं जिससे समाज का एक बड़ा वर्ग सहमत नहीं होता और ज्यादातर जगहों पर उसकी आलोचना की जाती है। बावजूद इसके, ना तो आम लोग, ना ही इन इलाकों के जनप्रतिनिधि खुलकर इसके विरोध में आते हैं। खाप की शुरुआत समाज में होने वाले आपसी छोटे-बड़े विवादों के निपटारे के लिए हुई थी। इससे गांव के लोगों को सालों-साल कोर्ट के चक्कर लगाने से छुटकारा मिल गया था। लिहाजा खाप पंचायतों का देश के कुछ हिस्सों में खासा रोल होता था, लेकिन अब इन पंचायतों से कई विवाद जुड़ गए हैं, खासकर प्रेमी जोड़ों को मार डालने के इनके फैसलों से। पहली बार 2007 में करनाल की एक खाप की तरफ से एक प्रेमी जोड़े को मार डालने के फरमान के बाद देश-विदेश में इस तरह की पंचायतों पर सवाल खड़े हो गए थे। तब से अब तक हॉरर किलिंग के कई मामले सामने आए हैं, ऐसा नहीं है कि सिर्फ किसी खाप पंचायत के फैसले के बाद इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं। ये दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन करनाल जैसे वाकये इन इलाकों में एक नज़ीर की तरह पेश हुए हैं और देश की राजधानी दिल्ली से महज 25-30 किलोमीटर के दायरे में ही समाज का दकियानूसी चेहरा उभर कर सामने आया है। जहां एक गोत्र, एक गांव में शादी करने के लिए समाज मौत की सज़ा देता है। ऐसा ही हाल में हरियाणा के रोहतक में हुआ जहां एक प्रेमी जोड़े को अपनी मर्जी से शादी कर लेने की सज़ा मौत के रूप में मिली। क्यों आज तक खाप के ऐसे फैसलों पर लगाम नहीं लग पाई है? इज्जत के नाम पर किसी अपने की बेरहमी से हत्या करने के पीछे कैसी मानसिकता होती है? क्या कहते हैं इन इलाकों में लंबे समय तक कानून व्यवस्था संभालने और हॉरर किलिंग के खिलाफ काम करने वाले पुलिस अधिकारी? ज़ी रीजनल चैनल्‍स के संपादक वासिंद्र मिश्र ने `सियासत की बात` में हरियाणा के पूर्व डीजीपी वीएन राय से खास बातचीत की, पेश है उसके मुख्य अंश:- 


वासिंद्र मिश्र : वीएन राय साहब आप हरियाणा में डीजी लॉ एंड ऑर्डर रह चुके हैं और अपने कार्यकाल में हॉरर किलिंग की घटनाओं को रोकने के लिए आपने काफी प्रयास किए थे। आपसे जानना चाहेंगे कि ऑनर किलिंग कि घटनाएं आखिर रुक क्यों नहीं रहीं, और तमाम प्रयासों के बावजूद खासतौर से हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटना आए दिन सुनने और देखने को मिल रही हैं, आखिर ये किस तरह की साइकोलॉजी है? ऐसी वारदातों को अंजाम देने के पीछे किस तरह की सोच काम करती है? 
वीएन राय : देखिए काफी विकृत मानसिकता है ये, हम ये कह सकते हैं कि लोग ये मानते हैं इस समाज में लड़की को अपने फैसले लेने का हक नही है, उनके फैसले हमें लेने हैं। जब भी कोई लड़की अपने जिंदगी के फैसले लेती है तो समाज पूरी तरीके से गोलबंद हो जाता है। ये काफी विकृत मानसिकता है। मैं समझता हूं कि जबसे मैंने हरियाणा ज्वाइन किया, तबसे लगातार ये चीजें रही हैं। अब आजकल हम कह सकते हैं मीडिया के प्रभाव से ये चीजें बाहर आने लगी हैं। पहले ऐसी घटनाएं बाहर नहीं आ पाती थीं, लोग ये मानते थे कि समाज ही लड़कियों से जुड़े फैसले लेगा।

वासिंद्र मिश्र : इसके पीछे किस तरह की साइकोलॉजी काम करती है। इकोनॉमिक डिसपैरिटी, शिक्षा की कमी है या फिर कास्ट सिस्टम इतना ज्यादा मजबूत है, जो हावी रहता है? 
वीएन राय : नहीं इसमें इकोनॉमिक डिसपैरिटी की बात नहीं है। इसके लिए कास्ट सिस्टम भी इतना ज़िम्मेदार नहीं है। इसमें मुख्य बात है खाप का सिस्टम, गोत्र का सिस्टम, वो ये मानते हैं कि एक गोत्र में आपस में शादियां नहीं होनी चाहिए। पुराने ज़माने में जब मोबिलिटी नहीं थी लोग बाहर नहीं जाते थे, इतनी एज्‍यूकेशन नहीं थी, लड़कियां बाहर नहीं निकलती थी तब ये चीजें संभव थीं। आज के जमाने में जब मूवमेंट इतना बढ़ गया है, काफी मेल मुलाकात लड़के-लड़कियों की होती है। उसी गांव के लड़के-लड़कियां उसी गांव में नहीं रहते हैं बल्कि वो बाहर जाते हैं पढ़ने के लिए, उनकी आपस में मुलाकात होती, है दोस्ती होती है और स्वाभाविक रूप से दोस्ती कई बार प्यार में बदल जाती है। इस तरह की चीजें चलती रहती हैं। बच्चे मां-बाप से शेयर नहीं करते, अगर वो शेयर करें तो भी मां-बाप उनको सुनेंगे नहीं। इसलिए एक दिन वो अचानक घर छोड़कर चले जाते हैं।

वासिंद्र मिश्र : जहां तक गोत्र का सवाल है, इस तरह की व्यवस्था तो पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भी है। वहां भी एक गोत्र में शादी अच्छी नहीं मानी जाती, अब भी कोई शादी तय होती है, तो उसमें लड़के-लड़की दोनों का गोत्र देखा जाता है, और कोशिश होती है कि शादी एक गोत्र में ना हो, तो सिर्फ गोत्र के नाते इस तरह की हिंसक वारदात होती है या कोई और कारण है। एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में जो आपने देखा आपको क्या लगता है? 
वीएन राय : देखिए, एक लड़की को हिदुस्तानी समाज में दो तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है। एक लैंगिक हिंसा, जिसे हम जेंडर वायलेंस कहते हैं, दूसरा सेक्सुअल वायलेंस और वास्तव में सबकी जड़ में तो लैंगिक हिंसा ही है। बचपन से ही चाहे वो चाहे पूर्वी उत्तर प्रदेश हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश या फिर हरियाणा, हर जगह लड़कियां कई चीजों से वंचित रहती हैं। हमेशा कहा जाता है कि तुम्हें घर से बाहर ही जाना है। इस घर में जो भी एसेट्स हैं उसमें तुम्हारी कोई हिस्सेदारी नहीं है, वगैरह-वगैरह। आप ये कह सकते हैं कि यहां पर जो कृषक समाज है जो कृषि आधारित जो इकोनॉमी है उसमे ये चीजें काफी मैटर करती हैं। किसानों के लिए ज़मीन बहुत मायने रखती है, इसीलिए वो कोशिश करते हैं कि लड़की की शादी करो और बाहर भेजो।

वासिंद्र मिश्र : तो जैसे हरियाणा है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश है, अगर देखा जाय तो एनसीआर का जो हिस्सा है, वो दुनिया के कुछ बड़े विकसित शहरों में से आता है, चाहे वो शिक्षा का सवाल हो, फैशन का सवाल हो, इंडिविजुअल फ्रीडम का सवाल हो, लाइफस्टाइल हो। क्या कारण है कि इसके 25 किलोमीटर के दायरे में आने वाले दिल्ली में इस मानसिकता की चीजें देखने को कम मिलती हैं, और 25 किलोमीटर के रेडियस में ये चीजें बहुत ज्यादा हैं, क्या दिल्ली के विकास का असर इस 25 किलोमीटर के रेडियस में नहीं पड़ रहा है? 
वीएन राय: नहीं विकास का जीवन के तमाम क्षेत्रों में असर तो पड़ ही रहा है। देखो एक बहुत बड़ा गैप हमारे समाज में क्या है, हमारे यहां सेक्सुअल एक्सपोजर तो बहुत तगड़ा हुआ है, लेकिन सेक्स एज्यूकेशन नहीं है। दोनों के बीच में बहुत बड़ा गैप है। परिवार में आप पाएंगे कि इन विषयों पर बात ही नहीं होती है, स्कूलों में भी बात नहीं होती है, और कोई प्लेटफॉर्म नहीं है जहां इस तरह की बातें होती हों, लड़के-लड़कियां अपने इस फ्रीडम में या तो उनके पास ऑप्शंस अवेलेबल हैं। उसका वो इस्तेमाल भी करते हैं, गलतियां भी करते हैं। जो महानगर हैं वहां काफी हद तक चीजें बदल चुकी हैं मूवमेंट ज्यादा है, तो चलता रहता है, लेकिन आप ठीक कह रहे हैं जैसे ही इंटीरियर इलाके में जाते हैं चाहे वो दिल्ली से 40-50 किलोमीटर ही दूर क्यों ना हो, वहां समाज अभी इन चीजों से काफी अछूता है।

वासिंद्र मिश्र : राय साहब, जब आप नौकरी में थे तो आपने इस तरह की घटनाओं को देखते हुए हरियाणा में सेफ हाउसेज बनाने का प्रपोजल रखा था और उसको शायद वहां की सरकार ने और बाद पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी एनडोर्स किया था कि आपका निर्णय सही है। आज उन सेफ हाउसेज की क्या स्थिति है?
वीएन राय : देखिए, पुलिस विभाग की तरफ से इस तरह के काफी केसेज आते थे, हाईकोर्ट में भी ऐसे काफी मामले पहुंचने लगे थे कि कई जोड़े जान का डर जताते थे, उसमें समस्या ये होती थी कि उनको आप प्रोटेक्शन कैसे दें, इसलिए ये सोचा गया कि सेफ हाउसेज बनाए जाएं। हमने ये कहा था कि पुलिस लाइन में एक क्वार्टर जो है उसको अलग से रख लेते हैं, क्योंकि पुलिस लाइन एक सेफ जगह है, फिर कुछ दिनों में जब मामला ठंडा हो जाए तो वो अपनी जगह जा सकें। कई मामलों में मां-बाप उस कदर शामिल नहीं होते हैं जितना कि उनको समाज शामिल कर लेता है। मां-बाप चाहते हैं कि बच्चे किसी तरह शांति से रह सकें, लेकिन समाज उनके पीछे लगा ही रहता है। कई बार मामला महीने 10 दिन, 15 दिन में शांत हो जाता था, हमने ये भी पाया कि ये जोड़े अगर गांव में वापस ना जाएं तो कई मामलों में बात आई गई हो जाती है। इस लिहाज से सेफ हाउसेज चलाए गए थे। अब तो एक तरह से सरकार ने ही उनको ले लिया है। उनके आंकड़े भी हैं और सभी जगह कुछ न कुछ लोग आते-जाते रहते हैं। लेकिन सभी वहां नहीं पहुंचते ये समस्या है, जैसे हाल का रोहतक वाला मामला। वो सेफ हाउस में नहीं पहुंचे और बहला-फुसला कर उन्हें गांव में वापस ले जाया गया और मार दिया गया।

वासिंद्र मिश्र : राय साहब, जिस खाप की बात की जाती है, कई बार खाप का समाज में बहुत पॉजिटिव रोल भी सामने आता है। खासतौर से उन इलाकों में जहां इस तरह की परंपरा है। आपसी विवाद, तमाम जीवन से जुड़े हुए फैसले खाप के जरिए तय हो जाते हैं और उनको कोर्ट-कचहरी तक नहीं जाना पड़ता। आपको नहीं लगता है इस तरह की जो ऑनर किलिंग के फैसले हैं, उनके पीछे भी कोई राजनीति काम कर रही है?
वीएन राय : इसके पीछे पॉलिटिकल तो कुछ नहीं हो सकता है। दरअसल पॉलिटिशियन किसी भी स्टेट के हैं वो इससे बचना चाहते हैं, वो इसकी ओर देखना ही नहीं चाहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कमरे में हाथी है और आप हाथी को देखना ही नहीं चाहते हैं। वैसे आपने ठीक कहा कि एतिहासिक रूप से खाप पंचायतों ने काफी अच्छे काम भी किए हैं। वो एक तरीके की एक ऐसी पंचायत है जो काफी मामलों में आपको सुलभ जस्टिस या सुलभ निर्णय दे दिया करती हैं, लेकिन ये मेल डोमिनेटेड होती हैं। शायद अब कुछ छूट दे दी हो, नहीं तो पहले महिलाओं का पंचायत घर में जाना भी संभव नहीं होता था। अब तो खैर रिजर्वेशन आ गया है तो महिलाओं की सीट भी हो गई है। खाप की भूमिका कई मामलों में अच्छी रही है, लेकिन आज के दिन वो कोई ऐसी भूमिका अदा कर पा रहे हैं ऐसा नहीं है।`विकृत मानसिकता है हॉरर किलिंग`

वासिंद्र मिश्र: यानि आपके मुताबिक आपका जो अनुभव रहा है, उसमें खाप का रोल महज इस तरह के फैसलों तक सीमित रह गया है कि अगर लड़का और लड़की अपनी मर्जी से शादी करना चाहते हैं और एक ही गोत्र के हैं, तो उनको सजा सुनाना खाप अपनी शान समझता है, इसके अलावा और जो सामाजिक बुराई है, राजनैतिक बुराई है उसके मामले में खाप की दखलअंदाजी या रोल नहीं के बराबर है?
वीएन रॉय : हां, मतलब ऐसा कोई पॉजिटिव रोल नहीं है, जैसे गांव-गांव में शराब की दिक्कतें हैं, अक्सर लोग इसकी शिकायत करते हैं, लोग शराब पीते हैं, महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुर्व्यवहार होता है, मैं तो नहीं पाता कि कहीं भी खाप इसमें दखल दे पाता हो और भी कुछ चीजें हैं जिनमें खाप दखल नहीं दे पाता, समाज की बुराइयों को रोकने में सकारात्मक रोल नहीं रख पाता।

वासिंद्र मिश्र : तो क्या ये माना जाए कि जिन इलाकों में खाप बहुत ज्यादा प्रभावी है उन एरिया में कोई रूल ऑफ लॉ नहीं है, या जो लोग सरकार में हैं, प्रशासन में है। वो लोग ऐसी ताकतों के सामने घुटने टेके हुए हैं, अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते, वोट की राजनीति की वजह से?
वीएन रॉय : नहीं, खाप हर क्षेत्र में प्रभावी भी नहीं है, हम ये नहीं मान सकते कि खाप हर क्षेत्र में प्रभावी है औऱ ऐसा भी नहीं है कि पॉलिटिक्स या एडमिनिस्ट्रेशन ने उनके सामने घुटने टेके हों। मुख्य चीज ये है कि ऐसे मुद्दों पर पॉलिटिशियन, या एडमिनिस्ट्रेटर स्किप करना चाहता है वो उधर-देखना भी नहीं चाहता।

वासिंद्र मिश्र : इसके पीछे मकसद तो राजनति है ना? 
वीएन रॉय : नहीं इसके पीछे मकसद सीधा है, मकसद ये है कि जो फीमेल जेंडर है वो बहुत कमजोर है। देखो इसका सॉल्यूशन भी यही है कि आपको फीमेल जेंडर को एम्पॉवर करना पड़ेगा आपको तरीके ढूंढने पड़ेंगे जिससे कि फीमेल जेंडर एम्पॉवर हो।

वासिंद्र मिश्र : जो भी कानून है वो तो पूरे देश के लिए है, देश के बाकी हिस्सों में इस तरह की प्रॉब्लम देखने को नही मिल रही है?
वीएन रॉय : नहीं देश के तमाम हिस्सों में ऐसी प्रॉब्लम है, आप साऊथ में जाइए, वेस्ट में जाइए, ईस्ट में जाइये, जिसे आप हॉरर किलिग कहते हैं, ऐसी इक्का दुक्का वारदातें हर जगह होती हैं, यहां पर ज्यादा होती हैं। 

वासिंद्र मिश्र : यहां चाहे तो इसे परंपरा कहें या फिर शान की परिभाषा, इसके लिए तो जो लोग सत्ता में हैं वो जिम्मेदार है, जो प्रशासन में हैं वो जिम्मेदार हैं?
वीएन रॉय : असल में इसमें जिस तरह के रिफॉर्म चाहिए, जैसे हमें जो ज्यूडिशियल रिफॉर्म चाहिए वो नहीं हुए हैं। लॉ एंड ऑर्डर मशीनरी है, न्याय व्यवस्था की मशीनरी है जिसमें अदालतें भी शामिल है, पुलिस भी शामिल है अगर उनको वो टूल्स ही नहीं देगें, जिनके मार्फत वो ऑनर किलिंग को प्रभावी कार्रवाई कर सकते हैं, तो वो क्या करेंगे। आपको वही पैरामीटर्स लाने पड़ेंगे जो दूसरे अपराधों के हैं। उन पैरामीटर्स को लाने में दिक्कत ये है कि जो ओरल एविडेंस है जो तमाम लोगों को आकर के अपने बयान देने हैं, बताना है कि कैसे इंसीडेंट हुआ, क्या हुआ वो चीजें इसमें संभव नहीं हैं, क्योंकि कोई भी आगे आकर कहता नहीं है। इसके लिए हमको थोड़ा बहुत बदलाव लाना पड़ेगा। जैसे हमने वर्मा कमेटी बनाई थी सेक्सुअल वायलेंस के खिलाफ, वैसी ही एक कमेटी बननी चाहिए जेंडर वायलेंस के खिलाफ, जो बकायदा ये तय करे कि सिद्ध करने की जिम्मेदारी किसकी है। रोहतक वाले मामले को देखिए, अगर कोई लड़का-लड़की संदिग्ध परस्थितियों में मारे गए और उनकी कोई रिपोर्ट नहीं दी गई, तो ऐसे में उनके मां-बाप से पूछा जाए कि आप बताइये कि किन परिस्थितयों में उनकी मौत हुई, फिर उनके ऊपर जिम्मेदारी होनी चाहिए बजाय कि प्रासिक्यूशन के ऊपर जिम्मेदारी हो, और ये माना जाए कि आप इसमें इन्वॉल्व हैं, आपने कुछ ना कुछ इसमें गड़बड़ की हुई है।

वासिंद्र मिश्र : तो क्या ये मानें कि विल पॉवर की कमी है, जो लोग सत्ता में हैं उनमें, जिनके हाथ में कानून व्यवस्था कि जिम्मेदारी है उनमें विल पॉवर की कमी है?
वीएन रॉय : हमारे प्रोटोकॉल बदलने चाहिए, अगर हमको बदमाशों को सज़ा देनी है और सजा का कोई असर होना है। आजकल क्या होता है, वो समझते हैं कि हमने ये कर दिया है और हमारा कुछ होना भी नहीं है। जो ज्यूडिशियल प्रोटोकाल्स हैं, जो प्रासिक्यूशन के प्रोटोकाल्‍स हैं वो बदलने पड़ेंगे।

वासिंद्र मिश्र : तो इसकी शुरुआत कहां से होगी, प्रशासन की तरफ से?
वीएन रॉय : इसकी शुरुआत तो प्रशासन की तरफ से होनी चाहिए। लॉ कमीशन है हिंदुस्तान में। जब आप देख रहे हैं केस के बाद केस छूटते जा रहे हैं, जब हम पा रहे हैं कि एक केस के बाद दूसरा भी केस हो रहा है, चौथा भी केस हो रहा है, दसवां भी हो रहा है, बीसवां भी हो रहा है, तो उसको रोकने के लिए जो संस्थाएं बनी हुई हैं, उन संस्थाओं को विचार करना चाहिए और वैसा प्रोटोकॉल देना चाहिए। क्योंकि, ये संभव नहीं है कि केस के बाद केस छूटते जाएं और आप उम्मीद करें कि इस पर काबू हो जाएगा, ऐसा मुमकिन नहीं है। अगर सजा मिलेगी तो उसका जो असर हो सकता है वो भी होगा, लेकिन सजा के साथ जागरुकता फैलाना भी बहुत जरूरी है, जब तक लोगों को जागरुक नहीं किया जाएगा, तब तक उन्हें समझ में नहीं आएगा कि वो क्या बेवकूफियां कर रहे हैं, और उनके समाज पर इसका क्या असर हो सकता है।

वासिंद्र मिश्र : रॉय साहब, हमसे महत्वपूर्ण जानकारियां शेयर करने के लिए शुक्रिया। 
वीएन राय : थैंक यू।
sabhar :http://zeenews.india.com

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