इस निर्वस्त्र बाबा के चमत्कारों को देख अचंभित रह जाते थे लोग, देखें तस्वीरें

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संत शोभन सरकार को अनुयायी चमत्कारी मानते हैं। उनके सोने के खजाने संबंधी दावों ने एक बार फिर भारतीय बाबाओं को सुर्खियों में ला दिया है। इनसे पहले भी यहां कई ऐसे साधु-संत हुए हैं, जिनकी चर्चाएं रही हैं। इनमें नीम करोली बाबा और देवरहा बाबा का नाम प्रमुख है। दैनिकभास्कर.कॉम ऐेसे ही बाबाओं पर प्रस्तुत कर रहा है एक विशेष सीरिज। 
 
इसी कड़ी में प्रस्तुत है त्रैलंग स्वामी की कहानी
 
विचित्रता के लिए मशहूर भारत को साधु-संतों की भूमि के रूप में जाना जाता है। अपनी साधना, अलौकिक शक्ति और चमत्कार के लिए कई संत पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इनमें त्रैलंग स्वामी का नाम सम्मान से लिया जाता है।
 
300 साल जीवित रहे त्रैलंग स्वामी ने अपनी साधना की शुरूआत शमशान घाट से की। उनके बारे में कहा जाता है कि कई बार जहर पीने के बाद भी वह जीवित रहे। वह कई बार गंगा के ऊपर बैठे रहते तो कभी कई-कई दिनों के लिए गंगा नदी के अंदर रहते। वह गर्मी के दिनों भी दिन के समय की कड़ी धूप में मणिकर्णिका घाट की गर्म शिलाओं पर बैठे रहते थे। 
 
त्रैलंग स्वामी ने बनारस पुलिस को अपने चमत्कार के रूबरू कराया। एक बार बनारस पुलिस ने उन्हें जेल डाल दिया था। जिस कोठरी में पुलिस ने स्वामी को ताला बंद कर रखा गया था। वहां से स्वामी बार-बार छत पर पहुंच जाया करते थे। हताश होकर पुलिस अधिकारियों ने कोठरी के सामने पहरा भी बैठा दिया था। किन्तु हर बार स्वामी छत पर टहलते दिखाई पड़ते थे।  
आगे जानिए इस चमत्कारी बाबा की अनोखी कहानियां...
 
DISCLAIMER- बाबाओं के चमत्कार संबंधी तथ्य उनके अनुयायियों की मान्यता और कुछ पुस्तकों पर आधारित हैं। vartabook.com किसी भी तरह के अंधविश्वास का विरोध करता है।

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त्रैलंग स्वामी कई हफ्तों तक बिना भोजन के रहा करते थे। उनके चमत्कारों के संबंध में यह भी कहा जाता है कि उनका शरीर बहुत विशाल था, वजन करीब 137 किलो का था। इसके बावजूद वह जिस भी रूप में चाहते, अपने शरीर का उपयोग कर लेते थे। 

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स्वामी जी लीला इतनी प्रचलित है कि उनके ऊपर बंगाली भाषा में दो फिल्मे भी बन चुकी हैं। 1971 में बनी यह दोनों फिल्मों में उनके जीवन का एक-एक घटना का वर्णन मिलता है। लेखक रॉबर्ट अर्नेट ने भी त्रैलंग स्वामी के चमत्कारों का बखान किया है। साथ ही उन्होंने स्वामी जी के बारे में बताते हुए यह भी कहा है कि वह लोगों या अपने नास्तिक आस्तिक भक्तों के मन को किताबों की तरह पढ़ लिया करते थे।
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गणपति सरस्वती का त्रैलंग स्वामी नाम उत्तर प्रदेश के वाराणसी की साधना के दौरान ही पड़ा था। 1887 में वाराणसी में मृत्यु से पहले स्वामी असी घाट. हनुमान घाट, दाशेश्वमेध घाट सहित कई यहां के कई अलग-अलग घाटों पर रहे। यही पर कई प्रमुख समकालीन बंगाली संतों जैसे रामकृष्ण, स्वामी विवेकानंद, महेन्द्रनाथ गुप्ता, लाहिरी महाशय और स्वामी अंभेदानंद, स्वामी भास्करानंद सरस्वती जैसे कई महान संतों ने उनसे मुलाकात की।
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त्रैलंग स्वामी का जन्म 1601 में हुआ। उन्हें गणपति सरस्वती भी कहा जाता है। उनके पिता का नृसिंह राव और माता का नाम विद्यावती था। अपनी माता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। 52 तक घर में रहने के बाद वह बाहर निकले और गुरू की खोज में जुट गए। शमशान घाट पर अपनी साधना की शुरूआत की, यहां उन्होंने 20 साल तक तपस्या की। इसके बाद वह कई स्थानों में घूमते हुए वाराणसी पहुंचे।

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वाराणसी में उन्होंने 150 वर्ष तक साधना की। इनकी बंगाल में बड़ी मान्यता थी। वहां स्वामी अपनी यौगिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों एवं लंबी आयु के लिए खासा प्रसिद्ध रहे हैं। इन्हें भगवान शिव का एवं रामकृष्ण का अवतार माना जाता है। साथ ही इन्हें वाराणसी के चलते फिरते शिव की उपाधि भी दी गई है। अपने जन्म के 300 साल बाद पौष की एकादशी 1881 में उन्होंने उनकी मृत्यु हुई। 
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त्रैलंग स्वामी की रोचक बातें
 
त्रैलंग स्वामी हमेशा नग्न रहा करते थे। इस वजह से उन्हें कई बार बनारस पुलिस ने जेल में भी डाला था। जिस कोठरी में पुलिस ने स्वामी को ताला बंद कर रखा गया था। वहां से स्वामी त्रैलंग बार-बार छत पर पहुंच जाया करते थे। पुलिस बार-बार कोठरी के ताले लगवाती और स्वामी शीघ्र ही छत पर टहलते दिखाई देते। हताश होकर पुलिस अधिकारियों ने कोठरी के सामने पहरा भी बैठा दिया किन्तु इस बार भी स्वामी शीघ्र छत पर टहलते दिखाई दिए।

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त्रैलंग स्वामी सदा मौन धारण किए रहते थे। वह निराहार रहने थे, इसके बावजूद भी यदि कोई भक्त कुछ पेय पदार्थ लाते तो उसे वह बहुत प्यार से गृहण कर अपना उपवास तोड़ते थे। एक बार एक नास्तिक ने एक बाल्टी चूना घोलकर स्वामी जी के सामने रख दिया और उसे गाढ़ा दही बताया। स्वामी जी ने तो उसे पी लिया लेकिन कुछ ही देर बाद वह नास्तिक व्यक्ति छटपटाने लगा। स्वामी जी से अपने प्राणो की रक्षा की भीख मांगने लगा। 

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त्रैलंग स्वामी ने अपना मौन भंग करते हुए कहा कि तुमने मुझे विष पीने के लिए दिया। तुमने यह नही जाना कि तुम्हारा जीवन मेरे जीवन के साथ एकाकार है। यदि मैं यह नही जानता होता कि मेरे पेट में उसी तरह ईश्वर विराजमान है जिस तरह वह विश्व के अणु-परमाणु में है तब तो चूने के घोल ने मुझे मार ही डाला होता। अब तो तुमने कर्म का देवी अर्थ समझ लिया है, अत: फिर कभी किसी के साथ चालाकी करने की कोशिश मत करना। इसके बाद वह नास्तिक कष्ट मुक्त हो गया। sabhar : bhaskar.com




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