कैसी होंगी आने वाली समय की दवाएं

अगर इस संदेशवाहक आरएनए के साथ बैक्टीरिया या वायरस के प्रोटीन को शरीर में भेजा जाए तो शरीर का प्रतिरोधी तंत्र ऐसे प्रोटीन की पहचान करना सीख जाता है और उसके लिए प्रतिक्रिया देता है. नए तरह के इलाज में किसी कृत्रिम चीज को शरीर में नहीं डाला जाएगा, बल्कि प्राकृतिक रूप से संदेशवाहक आरएनए में कुछ ऐसे अंश मिलाए जा रहे हैं, जिससे उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सके.रिसर्चर इन बायोमॉलिक्यूल्स की मदद से कैंसर के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता तक हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मानना है कि इससे कई तरह के संक्रमण वाली बीमारियों के खिलाफ टीके विकसित किए जा सकते हैं. बायोकेमिस्ट्री के विशेषज्ञ फ्लोरियान फॉन डेय मुएलबे बताते हैं, "आरएनए के इस्तेमाल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यहां हम एक ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिसमें हर बार एक ही तरीके का इस्तेमाल होगा. चाहे कैंसर हो या फिर कोई और बीमारी, टीका बनाने का तरीका हमेशा एक जैसा ही होगा. फर्क सिर्फ इतना होगा कि हम प्रक्रिया को शुरू करने के लिए मैसेंजर आरएनए को जानकारी अलग अलग तरह की देंगे.2014 में इस रिसर्च कॉन्सेप्ट को यूरोपीय संघ ने अपने पहले 'इनोवेशन इंड्यूसमेंट प्राइज' से सम्मानित किया. यह पुरस्कार ऐसी रिसर्चरों को दिया जाता है जो पूरी दुनिया के सामने खड़ी समस्याओं के नए हल खोजने में जुटे हैं. इसकी संभावनाएं अपार हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इसे उत्पाद यानि दवाइयों और टीकों में कैसे बदला जाए. इस पर जर्मन फार्मा कंपनी क्योर वैक के सीईओ, इंगमार होएर कहते हैं, "फिलहाल हम प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों पर टेस्ट कर रहे हैं. शुरुआती नतीजे अच्छे हैं. अगर शोध के नतीजे ऐसे ही रहे, तो इसका मतलब होगा कि हम इस तकनीक पर आधारित पहली दवा को बाजार में उतारने के अपने लक्ष्य के बहुत करीब हैं."भविष्य में ऐसी दवाओं और टीकों पर भी काम शुरू हो सकता है, जिन्हें रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत ना हो. खास कर फेफड़ों के कैंसर के इलाज में यह तरीका मील का पत्थर साबित हो सकता ह

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट