क्या सोचते हैं पीडोफील

बाल यौन शोषण एक क्रूर अपराध है और ये प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन अभी तक ये साफ नहीं हो सका है कि बच्चों का यौन शोषण करने वालों के दिमाग में गड़बड़ी होती कहां हैं.



जर्मनी के कील यूनिवर्सिटी क्लीनिक की एक टीम एमआरआई जांच से पता लगा रही है कि पीडोफिल क्यों बच्चों के प्रति आकर्षित होते हैं. भले ही फ्रांस, कनाडा, स्कैंडेनेवियाई देशों में इस मुद्दे पर शोध हो रहा हो लेकिन पीडोफिल के दिमाग के बारे में बहुत कम शोध हुए हैं. मनोवैज्ञानिक योर्ग पोनसेटी बताते हैं, "एमआरआई से मस्तिष्क की सक्रियता और संरचना का अच्छे से पता चल सकता है. अच्छी बात ये है कि खोपड़ी खोले बिना ही हम दिमाग के बारे में सटीकता से बता सकते हैं कि कौन सा हिस्सा सक्रिय है और कौन सा नहीं. फिलहाल हम एक मिलीमीटर के हिस्से तक को देख सकते हैं."
एमआरआई के कारण पीडोफिल लोगों के बारे में कई तरह की जानकारियां इकट्ठी हुई हैं. और पता लग गया है कि उनके दिमाग में कुछ अलग होता है, "पीडोफिल के दिमाग में कई तरह की न्यूरोसाइकोलॉजिकल असामान्यताएं देखी जाती हैं. उनका बुद्धिमत्ता औसत से आठ फीसदी कम होती है. यह भी रोचक है कि यौन दुराचार करने वाले अपराधियों की उम्र और आईक्यू एक दूसरे से जुड़े हैं." आसान शब्दों में पोनसेटी कहते हैं, "जितना मूर्ख अपराधी होगा, शिकार बच्चा उतना ही छोटा होगा."
बीमारी या और कुछ?
शोध के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं दी जाती. अगर कोई विस्तार से जानकारी पाना चाहता है तो वह यूनिवर्सिटी क्लीनिक के हॉटलाइन पर फोन कर सकता है या फिर इंटरनेट से जानकारी हासिल कर सकता है. पोनसेटी कहते हैं, "हर पीडोफिल बच्चों का यौन शोषण नहीं करता और इसलिए अपराधी भी नहीं पोता." लेकिन वो यह भी मानते हैं कि पीड़ित माता पिता को ये समझाना मुश्किल होता है. कई लोग नहीं जानते कि यौन चिकित्सा में पीडोफिल भी मानसिक रूप से बीमार के तौर पर गिने जाते हैं. लेकिन ये मानसिक बीमारी या पीडोफिल मानसिक रूप से बीमार के तौर पर तभी माना जाता है जब वह ऐसा कोई काम करे यानि बच्चों के साथ दुराचार करे.
तंदुरुस्त और पीडोफिल में फर्क
पोनसेटी और उनकी टीम ने बायोलॉजी लेटर्स नाम की पत्रिका में शोध छापा है. नए शोध के मुताबिक पीडोफिल जब बच्चों को देखते हैं तो उनके दिमाग का वो हिस्सा सक्रिय हो जाता है जो सामान्य इंसान में तब सक्रिय होता है जब वह विपरीतलिंगी या किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिनके प्रति वो कामुक हों. पोनसेटी के मुताबिक शायद सामान्य व्यक्ति में उम्र को आंकने की क्षमता होती और इसिलिए वो बच्चों के प्रति काम भाव से नहीं देखते.
पोनसेटी बताते हैं,"हम दिमाग के हर हिस्से की सक्रियता को देखते हैं. इसलिए हमें एक आंकड़ा मिल जाता है. अलग अलग लोगों के साथ हम जान सकते हैं कि कोई पीडोफिल है या नहीं. इसमें करीब दो साल लग जाते हैं हालांकि नतीजा 95 फीसदी सटीक रहता है." लेकिन दिमाग की सक्रियता के अलावा और भी जांच की जाती हैं. कंप्यूटर पर खास प्रोग्रामों के जरिए व्यक्ति की मानसिक उत्तेजना और दूसरे के प्रति दया दिखाने की क्षमता को आंका जाता है. इतना ही नहीं, खून की भी जांच की जाती है और जेनेटिक के साथ ही न्यूरोट्रांसमीटरों के साथ जांच भी. क्योंकि सिर्फ एमआरआई से पीडोफिल का पता नहीं लगाया जा सकता.
रिपोर्टः फ्रांक हायाष/एएम sabhar :http://www.dw.de/

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