पिछले जन्मों के पाप इस जन्म में रोग बनते हैं

Sins of past lives are formed in disease

ज्योतिर्मय

रोग शरीर में हों या मन में इनके बीज अचेतन मन की परतों में छुपे होते हैं। आयुर्वेद को व्यवस्थित रूप देने वाले महर्षि चरक के अनुसार पिछले जन्मों के पाप इस जन्म में रोग बन कर सताते हैं।

आयुर्वेद की इस मान्यता को को विज्ञान अभी तक यूं ही मानता था। पर अब इस बात को जांचा परखा और सही पाया जाने लगा है। आयुर्विज्ञान के पिछले सौ साल के अनुभव बताने लगे हैं कि रोग की जड़ें अचेतन मन में छुपी हुई है।

अचेतन मन क्या है? सामान्य उत्तर है कि और कुछ नहीं बस हमारा बीता हुआ कल। उस कल की अनुभूतियों में कटुता, संताप. पछतावा या कोई कसक है, तो वह रोग-शोक के रूप में प्रकट होती है।

आध्यात्मिक चिकित्सकों का कहना है कि बीते हुए कल की सीमाएँ वर्तमान से लेकर बचपन तक ही सिमटी नहीं हैं। इसके दायरे में हमारे पूर्वजन्म की अनुभूतियाँ भी आ जाती हैं। �

इस सिद्धान्त को कई आधुनिक मनोचिकित्सकों ने स्वीकारा है। अमेरिका में फ्लोरिडा क्षेत्र के मियामी शहर में मनोचिकित्सा कर रहे डॉ. ब्रायन वीज़ की कहना है कि जटिल रोगों को उपचार करते समय रोग के लक्षणों पर गौर करने से ज्यादा रोगी की ज्ञात अज्ञात स्मृतियों को भी जांचना चाहिए।

अपने कई रोगियों का इलाज करते समय� उन्होंने पाया कि रोगी के दुःख द्वन्द्व के कारण उसके व्यक्तित्व की अतल गहराइयों में है। पहले तो उन्होंने प्रचलित विधियों का प्रयोग करके तह तक जाने की कोशिश की।

कोई खास सफलता नहीं मिली तो नई विधियों के जरिए उन्होंने रोगी के पिछले जीवन को खगाला और पाया कि रोग की जडें पिछले जन्म में हैं। इस तरह वे पूर्वजन्म की वैज्ञानिकता को जानने में सफल रहे। �

डॉ. वीज़ ने अपने निष्कर्षों को अलग-अलग ढंग से पुस्तकों में प्रकाशित किया। इन पुस्तकों में 'मैसेजेस फ्राम दि मास्टर्स मैनी लाइव्स, मैनी मास्टर्स ओनली लव इज़ रियल एवं थ्रू टाइम इन्टू हीलिंग' मुख्य है।

उनकी इस आध्यात्मिक चिकित्सा के दौरान रोगियों के पूर्वजन्म को भी समझा जा सकता है। पुराने जमाने में उपनिषदों, बौद्ध साधनाओं, चीन में मेंग पो नामक देवी के अनुग्रहों, जापान में जातिस्मरण के प्रयोगों को इस चिकित्सा विधि का उल्लेख मिलता हैं।

नए जमाने में थियोसोफिकल सोसायटी की जनक मैडम ब्लेव्ट्सकी ने शुरु किया और आधुनिक चिकित्सावि‌आनियों ने इस विधा में तरह तरह के प्रयोग किए।

इयान स्टीवेन्स, पाल एडवर्ड्स, जिम बी टकर, गोडविन एर मार्टन और एर्लर हेरल्डसन� जैसे विज्ञानियों मे ढाई से चार हजार मामलों या रोगों की जांच पड़ताल इस विधि से की और सकारात्मक परिणाम हासिल किए हैं।

डॉ. राबर्ट ने इस तरह के केसों को साइटोमेंन्शिया और कान्फेबुलेशन जैसे मनोरोगों की श्रेणा में रखा है। वजह सिर्फ इतनी है कि उनके धार्मिक विश्वास पुनर्जन्म से इत्तफाक नहीं रखते। लेकिन वह जो विधि अपनाते हैं वह भी अवचेतन और अचेतन में छुप कर बैठी पिछली स्मृतियों मे ही ले जाती हैं। sabhar :http://www.amarujala.com/

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