लंबी प्रक्रिया के बाद खुद ही ममी में परिवर्तित हो जाते थे जापानी भिक्षु




उत्तरी जापान में लगभग दो दर्जन से अधिक जापानी भिक्षुओं की ममी मिली थी। इतिहासकारों के अनुसार इन बौद्ध भिक्षुओं को 'सोकूसिनबुत्सू' के नाम से जाना जाता था। शूगेन्दों (बौद्ध धर्म का पुराना पंथ) के अनुयायियों के अनुसार जापान के ये भिक्षु अपने पापों से मुक्ति के लिए आत्मबलिदान दिया करते थे और स्वयं को ममी में परिवर्तित किया करते थे।
इतिहासकारों के अनुसार देह त्यागने की इस प्रथा की शुरूआत 1000 साल पहले माउंट कोया स्थित मंदिर के कुकई नामक एक भिक्षु ने की थी। 'सेल्फ ममीफिकेशन' (जीवित शरीर को ममी में बदलना) की इस प्रथा को तीन प्रक्रियाओं के अनुसार अंजाम दिया जाता था और इस प्रक्रिया को पूरी होने में दस साल का समय लगता था।
सेल्फ ममीफिकेशन की प्रक्रिया -
इस प्रक्रिया का पहला चरण था खान-पान बदलना। इस चरण में भिक्षु मंदिर के आस-पास जंगलों में मिलने वाले बीज आदि खाया करते थे। इस तरह का आहार भिक्षुओं द्वारा 1000 दिनों तक लिया जाता था। लंबे समय तक इस तरह के आहार लेने से उनके शरीर की चर्बी कम हो जाती थी।
इसके बाद की प्रक्रिया-
भिक्षु खाने में सिर्फ देवदार के पेड़ की जड़ें खाया करते थे। परिणामस्वरूप उनके शरीर की नमी ख़त्म होने लगती थी और उनका शरीर सूखने लगता था और शरीर पर कंकाल मात्र शेष रह जाता था।
1000 दिनों की इस प्रक्रिया में भिक्षु ऊरूषि नामक पेड़ के पत्तों से बनी चाय का सेवन किया करते थे। यह काफी जहरीला होता है।
अंतिम प्रक्रिया-
इस अंतिम प्रक्रिया में भिक्षु एक बंद कमरे में खुद को कैद कर लिया करते थे, जहां कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो जाती थी और भिक्षु का शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था।
ममी बनने की अनोखी प्रक्रिया-
मिस्त्र के इतिहास में झांका जाए तो ममी बनाने के लिए मृतकों की देह पर रासायनिक लेप लगाया जाता था, लेकिन इन भिक्षुओं के द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी प्रक्रिया और अनोखे आहार सेवन के कारण इनका शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था। कई चरणों में होने वाली सेल्फ ममीफिकेशन में हर प्रक्रिया 1000 दिनों की होती थी, जिसके कारण इसे पूरा होने में लगभग 10 सालों का समय लगता था। sabhar : bhaskar.com
 
 
 
 
 
 
 
 

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