कमसिन लड़कियां, कामोत्तेजक महफिल और...खेल खत्म




भोपाल। नॉलेज पैकेज के अंतर्गत आज हम आपको विश्व विख्यात मध्यकालीन भारतीय ठगों के खूनी खेल के आश्चर्यचकित करने वाले तरीके बारे में बताने जा रहे हैं। सोलहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी के शुरुआती समय तक इनका खूनी खेल चलता रहा। आपको थोड़ा आश्चर्य होगा कि कहने के लिए ठग और खेल खूनी? यह क्या है? इन्हें तो सीधे-सीधे खूनी कहा जाना चाहिए।
 
लेकिन नहीं, उन्हें इसीलिए ठग कहा जाता था, क्योंकि लोगों की हत्याएं करने से अधिक उनका तरीका मशहूर था, जिसे ठग की संज्ञा दी गई थी। उनका मायाजाल ऐसा होता कि बड़े-से-बड़े शूरवीर, पराक्रमी और योद्धा भी आसानी से उनके जाल में फंस जाते। उनकी सबसे खासियत यह थी कि वे हत्यारों की तरह सीधे किसी की हत्या नहीं करते, बल्कि इसके लिए पूरी प्लानिंग के साथ अच्छे समय का इंतजार करते।
 
इस तरह से करते थे शिकार
इन ठगों का पूरा जाल मध्यभारत में फैला हुआ था। यहां तक कि अंग्रेज भी इन ठगों के आगे नतमस्तक थे। विश्विख्यात ये खूनी ठग पहले किसी व्यक्ति यानि अपने शिकार से जान-पहचान करते और उन्हें मित्र बनाते। इसके बाद साथ में सफर करने लगते। उनकी प्लानिंग इतनी जबरदस्त होती कि अपने-आप को तीस्मार खां समझने वाला व्यक्ति भी उनके आगे बेवकूफ बन जाता।
 
कई लोगों का एकसाथ शिकार
वे एक साथ कई लोगों को अपना शिकार बनाते थे। वे अलग-अलग ग्रुप में बंटे होते और सभी की जिम्मेदारी पहले से ही तय रहती। पहला ग्रुप जब शिकार के साथ सफर की शुरुआत करता, तब बीच रास्ते में ठगों का दूसरा ग्रुप उनसे अजनबियों की तरह मिलता और मित्रवत व्यवहार करते हुए बहुत जल्द सबसे घुल-मिल जाता। शिकार भी अपनी काबिलियत समझता कि सब उनसे प्रभावित हो रहे हैं।
 
रात को होता था मुख्य काम
इसके बाद जब रात होती तो ठगों का मुखिया विश्राम करने का इशारा करता। इसके बाद सभी विश्राम करते। फिर उनमें से एक ग्रुप अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए शिकारों की संख्या के अनुसार कब्र खोदने चला जाता। काम पूरा होने पर वह इशारा करता। वहीं, बाकी के ठग आसानी से शिकार को जाल में फंसाए रखते। हंसी ठिठोली और बहादुरी के किस्से शुरू हो जाते थे।
 
कमसिन लड़कियों का नृत्य
इतना ही नहीं, यदि शिकार उस समय अधिक होशियारी दिखाने लगता, तो ठगों के दल में कमसिन लड़कियां भी रहती थीं, जो अपने कामोत्तेजक नृत्य से उनका शिकार करतीं। इसके बाद वे भी मदहोश होकर सबकुछ भूल जाते। बस, अब आता था अंतिम काम। यानि शिकार को ठिकाने लगाना।
 
..और पलभर में काम तमाम
ठगों का मुखिया इशारा करता, पान का रूमाल लाओ। दरअसल, यह उनका प्रमुख हथियार होता था। यह रूमाल ही होता, जिसके एक कोने पर धातु का सिक्का बंधा होता था। मुखिया के एक इशारे पर हर शिकार के पीछे रूमाल लेकर एक ठग खड़ा हो जाता और एक बड़ी आवाज के बाद पलभर में शिकार का गला घोंट दिया जाता।
 
अंतिम काम
आलम यह होता कि उन्हें सांस ले जाने की भी फुर्सत नहीं होती। इसके बाद दूसरे ठग लाशों को घसीटते हुए गड्ढ़ों तक ले जाता। इसके बाद शिकार के सिर और घुटनों को मिलाकर बांध देते थे। यदि इसके बावजूद काम नहीं बनता, तो घुटने के नीचे से पैर काट दिया जाता था। इतना ही नहीं, दल के अंतिम सदस्य द्वारा शिकार के पेट में चाकू से अंतिम वार किया जाता था, जिससे उनके जिंदा रहने की पूरी संभावना की खत्म हो जाए।
 
इसके बाद वे गड्ढों को भर देते थे और समतल बना देते थे। वे उनका सारी धन-दौलत लूट लेते थे। इस दरम्यान उन्होंने कई मासूमों की भी जान ली। ये चाहते तो एक झटके में ही किसी को भी लूट लेते, लेकिन अपने इसी अनोखे तरीके के कारण विश्व विख्यात हो गए।
 sabhar : bhaskar.com

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