मार्कोस रॉड्रिग्ज पेंटोजा :जिसे बाप ने बेचा और भेड़ियों सांपो ने बचाया

मार्कोस रॉड्रिग्ज पेंटोजा


मार्कोस को याद है वह बहुत छोटे थे, क़रीब छह या सात साल के, जब उनके पिता ने उन्हें एक किसान को बेच दिया था.
वह किसान उन्हें एक बूढ़े चरवाहे की मदद करने के लिए सिएरा मोरेना के पहाड़ों में ले गया. जल्द ही उस बूढ़े व्यक्ति की मौत हो गई और मार्कोस अकेला रह गए.
कई सालों तक अपनी सौतेली मां से पिटने के डर से मार्कोस ने भी इंसानों की संगत के बजाए पहाड़ों में एकांत में रहने की ठान ली और वहां से जाने की कोई कोशिश नहीं की.
मरने से पहले उस बूढ़े चरवाहे ने एक बात मार्कोस को ज़रूर सीखा दी थी की कभी भी भूखे मत रहो.
मार्कोस लकड़ियों और पत्तियों का जाल बना कर ख़रग़ोश और तीतरों का शिकार करना सीख चुके थे.मार्कोस के अनुसार "जानवरों ने मुझे सिखाया की क्या खाना है. जो कुछ भी वह खाते थे, मैं भी वही खाता था. जंगलीसुअर 
ज़मीन के नीचे दबे हुए कंद खाते थे. सुअर उनका पता लगा पाते थे क्योंकि उनको उसकी गंध आ जाती थी. जब सुअर कंद-मूल के लिए ज़मीन खोदते थे तो मैं उन्हें पत्थर मार कर भगा देता था और सुअर वहां से भाग जाते थे और मैं कंद चुरा लेता था."
मार्कोस ने कहा कि बहुत से जानवरों के साथ उनके एक तरह के ख़ास रिश्ते बन गए थे.
यहां तक की भेड़ियों के एक परिवार के साथ उनके संबंधों की बात पर कई लोग विश्वास भी नहीं कर पाते हैं.उन्होंने बताया, "एक दिन मैं एक गुफ़ा में गया. मैं वहां रह रहे भेड़ियों के बच्चों के साथ खेलने लगा और सो गया. कुछ देर में बच्चों की मां उनके लिए खाना लेकर आई और मैं जाग उठा. वह मेरी ओर ग़ुस्से के साथ देखने लगी. भेड़िए ने मांस के टुकड़े अलग करने शुरू किए. भेड़िए का एक बच्चा मेरे क़रीब आया और भूखा होने की वजह से मैंने उससे मांस का टुकड़ा चुराने की कोशिश की. भेड़िए ने तभी मेरी तरफ़ पंजा उठाया और मैं पीछे की ओर हट गया. अपने बच्चों को खिलाने के बाद भेड़िए ने मांस का एक टुकड़ा मेरी ओर फेंका."
मार्कोस बताते हैं, "मैं उसे छूना नहीं चाहता था, क्योंकि मुझे लगा की वह मुझ पर हमला करने वाली है. लेकिन वह अपनी नाक से उस मांस के टुकड़े को मेरी ओर सरकाने लगी. मैंने टुकड़ा उठाया और खाने लगा. मुझे लगा की वह मुझे काटने वाली है, लेकिन उसने अपनी जीभ बाहर की ओर की और मुझे चाटने लगी. इसके बाद से मैं भी उस भेड़िए के परिवार का एक हिस्सा बन चुका था."
मार्कोस यह भी बताते हैं,"पहाड़ों में वह एक नागिन के साथ रहा करते थे. यह नागिन एक सूनसान खान के एक हिस्से में बनी गुफ़ा में मेरे साथ रहा करती थी. मैंने उसके लिए एक घोंसला बनाया और उसे बकरियों का दूध पिलाया करता था."
मार्कोस कहते हैं, "मैं जहां भी जाता था वह मेरे पीछे-पीछे आ जाती थी और मेरी रक्षा करती थी."मार्कोस कहते हैं, "यही रिश्ते थे, जो मेरा अकेलापन दूर करते थे, मैं अकेला उसी समय महसूस करते थे जब कोई जानवर मेरे क़रीब नहीं होता था. ऐसे समय में जानवरों की आवाज़ निकालता था. अभी भी मैं हिरण, लोमड़ी और चील की आवाज़ निकाल सकता हूँ. और जब जानवर मेरी आवाज़ का जवाब देते तभी मैं सो पाता था."
मार्कोस के जीवन में धीरे-धीरे शब्दों की जगह आवाज़ और टर्रटर्राहटों ने ले ली थी.
मार्कोस का बोलना पूरी तरह से बंद हो चुका होता अगर गॉर्डिया सिविल (पुलिस) ने उन्हें ढूंढ़ निकाला न होता. पुलिस उन्हें जबरन पहाड़ों की तलहटी में बसे छोटे से गांव फुएनकालेंटे में ले गई. यहां मार्कोस की पहचान के लिए उनके पिता को बुलाया गया.
मार्कोस बताते हैं, "जब मैंने अपने पिता को देखा तो मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ. मेरे पिता ने मुझसे केवल एक चीज़ पूछी. तुम्हारा जैकेट कहां है? मानो इतने सालों तक मैं वही जैकेट पहन रहा था."
समाज में वापसी को मार्कोस अपने जीवन का सबसे भयावह लम्हा बताते हैं.
पहली बार नाई की दुकान में जाने से लेकर बिस्तर में सोने तक सब कुछ उनके लिए सदमे भरा था. नाई के हाथों में उस्तरा देखकर उन्हें लगा था कि वो उनका गला काट देगा.
इन चीज़ों को स्वीकार करने में उन्हें लंबा समय लगा. sabhar : http://www.bbc.co.uk

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