अमर उजाला डाट com मे प्रकाशित खबर के मुताबिक परामनोविज्ञान और आत्मा से सम्बन्धित खबर के अनुसार परामनोविज्ञान का संबंध मनुष्य की उन असामान्य शक्तियों से है, जिनकी व्याख्या अब तक के प्रचलित सामान्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से नहीं हो पाती। इन तथाकथित प्राकृति से परे तथा विलक्षण प्रतीत होने वाली घटनाओं या प्रक्रियाओं की व्याख्या में ज्ञात भौतिक तत्वों से भी सहायता नहीं मिलती।
परिचित ज्ञान, विचार संक्रमण, दूरानुभूति, पूर्वाभास, अतींद्रिय ज्ञान, मनोजनित गति या साइकोकाइनेसिस आदि कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो एक भिन्न कोटि की मानवीय शक्ति तथा अनुभूति की ओर संकेत करती हैं। इन घटनाओं की वैज्ञानिक स्तर पर घोर उपेक्षा की गई है और इन्हें बहुधा जादू-टोने से जोड़कर, गुह्यविद्या का नाम देकर विज्ञान से अलग समझा गया है।
किंतु ये विलक्षण प्रतीत होने वाली घटनाएं घटित होती हैं। वैज्ञानिक उनकी उपेक्षा कर सकते हैं, पर घटनाओं को घटित होने से नहीं रोक सकते। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज भी परामनोविज्ञान को वैज्ञानिक संदेह तथा उपेक्षा की दृष्टि से देखता है। किंतु वास्तव में परामनोविज्ञान न जादू टोना है, न वह गुह्यविद्या, प्रेतविद्या या तंत्रमंत्र जैसा कोई विषय। इन तथाकथित प्राकृतेतर, पराभौतिक एवं परामानसकीय, विलक्षण प्रतीत होने वाली अधिसामान्य घटनाओं या प्रक्रियाओं का विधिवत् तथा क्रमबद्ध अध्ययन ही परामनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य है।
इन्हें प्रयोगात्मक पद्धति की परिधि में बांधने का प्रयत्न, इसकी मुख्य समस्या है। परामानसकीय अनुसंधान या साइकिकल रिसर्च इन्हीं पराभौतिक विलक्षण घटनाओं के अध्ययन का अपेक्षाकृत प्राचीन नाम है, जिसके अंतर्गत विविध प्रकार की उपांत घटनाएं भी सम्मिलित हैं, मानव का अदृश्य जगत से इंद्रियेतर संपर्क में विश्वास बहुत पुराना है। लोककथाएं, प्राचीन साहित्य, दर्शन तथा धर्मग्रंथ पराभौतिक घटनाओं तथा अद्भुत मानवीय शक्तियों के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। परामनोविद्या का इतिहास बहुत पुराना है - विशेष रूप से भारत में।
किंतु वैज्ञानिक स्तर पर इन तथाकथित पराभौतिक विलक्षण घटनाओं का अध्ययन उन्नीसवीं शताब्दी की देन है। इससे पूर्व इन तथाकथित रहस्यमय क्रिया व्यापारों को समझने की दिशा में कोई संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न नहीं हुआ। आधुनिक परामनोविज्ञान का प्रारंभ सन् 1882 से ही मानना चाहिए, जिस वर्ष लंदन में परामानसकीय अनुसंधान के लिए सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च (एसपीआर) की स्थापना हुई।
यद्यपि इससे पहले भी कैंब्रिज में घोस्ट सोसाइटी, तथा ऑक्सफोर्ड में फैस्मेटोलाजिकल सोसाइटी जैसे संस्थान रह चुके थे, तथापि एक संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न का आरंभ एसपीआर की स्थापना से ही हुआ, जिसकी पहली बैठक 17 जुलाई, 1882 ई. में प्रसिद्ध दार्शनिक हेनरी सिजविक की अध्यक्षता में हुई। इसके संस्थापकों में हेनरी सिजविक उनकी पत्नी ईएम सिजविक, आर्थर तथा गेराल्ड बाल्फोर, लार्ड रेले, एफडब्ल्यूएच मायर्स तथा भौतिक शास्त्री सर विलियम बैरेट थे।
भूत होते हैं

भूत होते हैं, किसी भी मौके पर कहीं भी देखे जा सकते हैं और जिस तरह के भूतों से मिलना चाहें मुलाकात हो सकती है। अभी और यहीं उन्हें देखा और उनसे संपर्क किया जा सकता है।
लेकिन सिर्फ आप ही उन्हें देख मिल सकते हैं या आप जैसी स्थिति वाले कुछ और लोगों को भी वे दिखाई दे सकते हैं। कोलंबिया के भौतिक विज्ञानी डा. अब्राहम बेवर ने कोई तीस साल पहले अपनी पुस्तक अनसिन डायमेशंन ऑफ एक्जिस्टेंस में यह बात रखी तो विद्वानों ने इस विचार की खिल्ली उड़ाई।
लेकिन इसी वर्ष मार्च के महीने मे मनोविज्ञानी एविन कोलिंस के पर्चे ने इस बात की पुष्टि की। लिस्बन मे हुई पेरासाइकोलाजी कांफ्रेंस में उन्होंने अपने एक अध्ययन, प्रयोग और निष्कर्षों के आधार पर कहा कि सूक्ष्म जगत में अस्तित्व रखने वाली चीजों को हर कोई अनुभव नहीं कर सकता। आप जो अनुभव करते हैं, वह आपकी मनःस्थिति पर निर्भर करता है।
इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई चीज आप अनुभव करते हैं और दूसरे लोग नहीं कर पा रहे तो उसका वजूद ही नहीं होता। कलर ब्लाइंडनेस का उदाहरण देते हुए कोलिंस ने कहा कि कोई व्यक्ति बैंगनी रंग के प्रति अधंत्व का शिकार है तो इससे कहां साबित होता है कि बैंगनी रंग होता ही नहीं।
सूक्ष्म जगत की वस्तुओं के अनुभव को इसी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। किसी को या बहुत से लोगों को वायवीय शक्तियों का अनुभव नहीं होता तो उन्हें नकारने की बजाय वैज्ञानिक ढंग से सोचना चाहिए। सिरे से उसे रद्द कर देना उस क्षेत्र में ज्ञान की संभावनाओं को खत्म कर देता है। खुले मन से उस दिशा मे सोचकर तो देखिए।
पूर्वजन्म

इस घटना का जिक्र श्री एल. पी. फैरेल ने किया है जो आजादी से पूर्व भारतीय पश्चिमी कमान के प्रधान कप्तान रह चुके हैं। अगस्त माह में गीता प्रेस से प्रकाशित कल्याण पत्रिका में इस घटना का उल्लेख है। घटना 1942 की है जब फैरेल उत्तर प्रदेश के एक राजा के आमंत्रण पर कुमायूं घूमने आए थे।
उन दिनों उन्हें एक विचित्र साधु के दर्शन हुए। साधु ने बताया कि जिस स्थान पर आपका तंबू लगा है वहां एक नौजवान मुझे तलाशता हुआ आएगा। साधु का कहना सही हुआ एक 18 साल का युवक उस स्थान पर आया जो साधु को ढूंढ रहा था। फैरेल ने उस लड़के को साधु से मिलवाया।
यह लड़का अपने जीवन की कुछ घटनओं से परेशान था जिसका उत्तर उसके पूर्वजन्म में छिपा था। साधु ने उस लड़के से कहा था कि तुम्हें अपने पूर्वजन्म की घटनओं को दिखाऊंगा। अपने कथन के अनुसार साधु ने उस युवक को और फैरेल को लड़के के पूर्वजन्म की घटनाओं को एक दिव्य ज्योति के माध्यम से दिखाना शुरू किया।
यह लड़का पूर्वजन्म में सरदार भाई था। सुनील नाम की जिस लड़की से प्यार करता था उसके माता-पिता इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए दोनों ने घर से भागकर विवाह करने का फैसला कर लिया और एक दिन सरदार भाई सुनील को लेकर अहमदाबाद से कोयम्बटूर चला गया। वहां जाकर इन्होंने शादी कर ली। दो साल के बाद दोनों वापस अपने शहर चले आए।
तब तक इनके परिवार के लोगों की नाराजगी दूर हो गयी थी। सुनील और सरदार भाई सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद ले रहे थे। सरदार भाई की अहमदाबाद में दिल्ली दरवाजे के पास कपड़े की एक दुकान थी। एक दिन सरदार भाई अपने दुकान से सुनील के लिए एक सुन्दर सा कपड़ा लेकर आ रहा था। तभी रास्ते में एक ट्रक ने उसे ठोकर मार दी और सरदार भाई मौत की आगोश में सो गया। मरते समय भी इसके होंठों पर सुनील का ही नाम था।
कुछ समय बाद सरदार भाई का पुनर्जन्म हुआ। इसे अपने पूर्वजन्म की कुछ घटनाओं का आभास होता रहता था जिसका कारण वह साधु बाबा से मिला था। पूर्व जन्म की पत्नी को देखकर सुनील बेचैन हो उठा और उसके बारे में जानने की इच्छा प्रकट की।
इस पर साधु बाबा ने दिखाया कि सुनील की भी मृत्यु हो चुकी है और अब वह एक लड़की के रूप में जन्म ले चुकी है जिसकी उम्र करीब पांच साल है। साधु बाबा ने कहा कि सात साल के बाद सुनील तुम्हारे सामने वर्तमान रूप में आएगी लेकिन तुम उसे पहचान लोगे। इतना कहते हुए सभी के सामने से साधु बाबा अचानक अन्तर्धान हो गए।
भविष्य की घटनाएं


अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने वाले विद्वानों का मानना है कि यदि कोई तत्व प्रकाश की गति से भी तीव्र गति करे तो उसके लिए समय रुक जाता है। दूसरे शब्दों में, वहां बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा। अपने चित्त में यह गति साध ली जाए तो अतीत और भविष्य की घटनाएं चलचित्र की तरह देखी जा सकती हैं।
अधिकतर दार्शनिकों का मत है कि घटनाओं के पूर्वाभास जीवन बचाने के लिए होते हैं और यह बात भी सच है कि यदि हम कमजोर मन इंसान से इस तरह के पूर्वाभासों का जिक्र करते है, तो वे किसी की मौत का कारण भी बन सकते हैं। अनेक बार पूर्वाभास स्पष्ट नहीं होते और न उनकी व्याख्या की जा सकती है।
प्रिमोनीशन एक्स्टां सॅन्सरी परसॅप्शन्स का वह रूप है, जिसे हम इन्स्टिंक्ट या भावी घटना का एक तीव्र आभास कह सकते हैं। ये एक तरह की 'इन्ट्यूटिव वॉर्निंग होती है, जो अवचेतन मन पर अंकित हो जाती है और कभी-कभी व्यक्ति को नियोजित कार्योँ को करने से मनोवैज्ञानिक तरह से रोकती हैं।
इसे बहुत से चिन्तक विशिष्ट घटनाओं की 'भविष्यवाणी भी कहते हैं। साइंस इसके स्टेट्स को अस्वीकार करता है। लेकिन दार्शनिकों का मानना है कि प्रिमोनीशन और प्रौफॅसी को व्यर्थ की चीज मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि घटनाओं के पूर्वाभास की जानकारी और उनका सही घटना प्रमाणित करता है कि 'प्रिमोनीशन में तथ्य है, इसकी अर्थवत्ता है।
इस तरह से यह साइंस के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि यह सृष्टि की गतिविधियों के साथ मानव मन के सघन संबंध का संकेत देती है। यह आन्तरिक शक्तियों और सृष्टि में स्पन्दित अलौकिक शक्तियों व उसके चक्र के अन्तर्संबंध का विज्ञान है। कहा जाता है कि नॉस्टेंडम ने अपनी मृत्यु की 'पूर्व घोषणा कर दी थी।
जुलाई 1, 1566 जब एक पुरोहित उनसे मिलने आया और जाने लगा तो नॉस्टेंडम ने उससे अपने बारे में कहा कि 'वह कल सूर्योदय होने तक मर चुका होगा। इसी तरह अब्राहम लिंकन ने अपनी मौत का सपना देखा और अपनी पत्नी व अंगरक्षक को अपने कत्ल से कुछ घंटे पहले इस बारे में बताया।
अगर आप पेड़ की ऊंची डाल पर बैठे हों तो दो किलोमीटर दूर से आ रही बैलगाड़ी दिखाई दे सकती है। पेड़ के नीचे खड़े व्यक्ति से कह सकते हैं कि आधा घंटा बाद यहां से एक बैलगाडी़ निकलेगी। वह व्यक्ति जमीन पर पास से देखें तो, दस कदम दूर की चीजें भी नहीं दिखाई देती।
जमीन पर खड़े उस व्यक्ति के लिए पेड़ की ऊंची शाखा पर बैठे व्यक्ति की बात भविष्य कथन जैसी लग सकती है और वह भविष्य में यानी आधा घंटा बाद सही भी होगी। इसलिए चमत्कारी सिद्धि की तरह हो सकती है।
चमत्कारी भविष्यवाणियों को इसी तरह समझा जा सकता है। ऐसे चमत्कार हो सकते है। पर उन व्यक्तियों द्वारा जिनकी चेतना सामान्य या औसत लोगों से ऊपर उठी हो। आमतौर पर हमें वर्तमान की, अपने आसपास की घटनाओं की जानकारी होती है। भविष्य की या पिछली बहुत सी घटनाओं की जानकारी नहीं होती।
उपरोक्त सिद्धांत के अलावा सामान्य स्थितियों में भी यदा-कदा हरेक के साथ ऐसी घटनाएं घट जाती है, जिनसे लगता है कि कोई विलक्षण शक्ति काम कर रही है, जो भूत, भविष्य अथवा वर्तमान में झांकने की क्षमता रखती है।
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चेतना के उच्चस्तर पर पहुंच जाने के बाद की गई भविष्य कथन और इस तरह की वृत्तियां इस बात का प्रमाण है कि अतीन्द्रिय ज्ञान एक विलक्षण उपलब्धि है। हम पांच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी किसी में छठी इन्द्रिय या अतिंद्रीय ज्ञान की क्षमता भी जाग उठती है।
अतीन्द्रिय क्षमताओं को प्रायः चार वर्गों में बांटा सा सकता है: परोक्ष दर्शन-अर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है। एक बिना किसी बाहरी साधन के भविष्य के गर्भ में झांककर घटनाओं को होने से पहले जान लेना। दूसरे बिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी।
और बिना किसी आधार के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुंचाना। प्रसिद्ध वैज्ञानिक विल्हेम वॉन लिवनीज के अनुसार हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले। sabhar :
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