जीपीएस तकनीक से इंसान का ऑपरेशन


बहुत जल्द सर्जन भी रास्ता बताने वाली तकनीक का ऑपरेशन में उपयोग करेंगे. थ्री डी तस्वीरों का इस्तेमाल कर ऑपरेशन सटीक और सुरक्षित बन पाएंगे. इंफ्रारेड कैमरों ने डॉक्टरों को रास्ता दिखा दिया है.
एक मिनट के लिए सोच कर देखिए आप ऑपरेशन थिएटर में हैं और सर्जन, प्रोफेसर गेरे स्ट्राउस साइनस का ऑपरेशन करने वाले हैं. पांच मॉनिटर अर्धगोलाकार स्थिति में ऑपरेशन टेबल पर रखे हुए हैं. ऊपर एक बड़ा मॉनिटर टंगा हुआ है और बीच में दो इन्फ्रारेड कैमरे लगे हैं. गेरो स्ट्राउस कहते है जिस तरह से ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जीपीएस कारों में इस्तेमाल किए जाते हैं ठीक उसी तरह यहां भी होगा. स्ट्राउस के मुताबिक, "कार में आपके पास सेटेलाइट होता है और यह सेटेलाइट मैप के हिसाब से कार की स्थिति बताता है."
ऑपरेशन में इंफ्रारेड कैमरे यही काम करते हैं, वो लगातार ऑपरेशन की तस्वीरें भेजते रहते हैं. एक छोटा रिसीवर उस मरीज से जुड़ा होता है जिसकी तस्वीर कैमरे से उतारी जाती है. जीपीएस सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले मैप की जगह डॉक्टरों के पास सीटी स्कैन या फिर एमआरई की तस्वीर होती है जो उन्हें बताती है कि वो ठीक जा रहे हैं
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हाई रिजोल्यूशन वाले सिटी स्कैन और एमआरआई की तस्वीरें सर्जनों को हड्डियों, नाड़ियों और तंत्रिकाओं की अलग अलग और सूक्ष्म तस्वीरें दिखा सकती हैं. मरीज की ऑपरेशन से पहले जांच के दौरान ली गई तस्वीरों को ऑपरेशन के दौरान ही ली गई तस्वीरों से उसी वक्त तुलना की जा सकती है. इसका मतलब यह है कि सर्जन मरीज का ऑपरेशन करते वक्त ही देख समझ कर यह जान सकते हैं कि कहां क्या है और किससे बचना है. इसका असर यह होगा कि सर्जन उस हिस्से को ज्यादा बेहतर तरीके से पहचान कर निशान लगा सकेंगे. साइनस के ऑपरेशन में ऑपरेशन वाला हिस्सा चेहरे की तंत्रिकाओं के आस पास होगा. इस हिस्से पर निशान लगाने के लिए प्रोफेसर स्ट्राउस कंप्यूटर माउस का इस्तेमाल कर तस्वीर पर छोटे छोटे बिंदु से निशान लगा देते हैं और फिर सारे आंकड़े सॉफ्टवेयर की मदद से जुटा लिए जाते हैं.
स्ट्राउस बताते हैं, "कैमरा मरीज और उपरकण की स्थिति पहचान लेता है और एक दूसरे के अनुसार उनकी जानकारी दे देता है." दूरी नियंत्रक बहुत कुछ कार में लगे पार्किंग सेंसर की तरह काम करता है, लेकिन यह उसकी तुलना में बहुत ज्यादा सटीक और बारीक है. इंफ्रारेड कैमरे मरीज की स्थिति चौथाई मिलीमीटर तक बता देते हैं. यह करीब दो तीन बालों की मोटाई के बराबर होती है. अगर सर्जन किसी बेहद संवेदनशील हिस्से के जरूरत से ज्यादा करीब पहुंच जाता है तो फिर अलार्म बज जाता है और उपकरण
अपने आप ही बंद हो जाता है. रास्ता बताने वाली सारी जानकारियां एक मॉनीटर में होती हैं जबकि दूसरा मॉनीटर मरीज के शरीर के भीतरी अंगों की तस्वीर दिखाता रहता है जो इंडोस्कोप की मदद से ली जाती हैं
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ऐसी उम्मीद की जा रही है कि रास्ता बताने वाली तकनीक ऑपरेशन को सुरक्षित बना देगी. जर्मन शहर लाइपजिग के इंटरनेशनल रेफरेंस एंड डेवलपमेंट सेंटर फॉर सर्जिकल टेक्नोलॉजी(आईआरडीसी) में भविष्य के ऑपरेशन थिएटर बन रहे हैं. यहां तक कि थ्रीडी तस्वीरों के साथ काम करना भी बहुत जल्द ही मुमकिन हो जाएगा.
sabhar : dw.de

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